लगातार बढ़ती मांग के बीच भारत 50 फीसदी अक्षय ऊर्जा उत्पादन के लक्ष्य पर टिक पाएगा?
औद्योगीकरण, शहरीकरण और बढ़ते जीवन स्तर के कारण 2047 तक भारत की ऊर्जा खपत में 2.5 गुना तक की बढ़ोतरी का अनुमान है

इस महीने भारत ने ऊर्जा क्षेत्र में ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की. उसने अपनी स्थापित बिजली क्षमता का 50.08 फीसदी यानी 484.82 गीगावॉट में से 242.78 गीगावॉट बिजली गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से हासिल की. यह उपलब्धि तय लक्ष्य से पांच साल पहले ही हासिल कर ली गई जो उसे पेरिस समझौते के तहत 2030 तक प्राप्त करनी थी.
केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी ने इसकी "ऐतिहासिक हरित छलांग" के रूप में सराहना की. यह उपलब्धि, सौर, पवन, जल और परमाणु बिजली जैसी स्वच्छ ऊर्जा की ओर भारत के तेजी से बढ़ते कदमों को बताती है. फिर भी, जहां भारत इस कामयाबी से खुश है वहीं अहम चुनौतियां भी बनी हुई हैं. इसकी यात्रा अन्य देशों के लिए सबक के साथ वैश्विक ऊर्जा बदलाव की दिशा में एक नजरिया मुहैया कराती है.
1.4 अरब की आबादी और तेजी से बढ़ती ऊर्जा मांग वाले विकासशील देश के लिए 50 फीसदी गैर-जीवाश्म ईंधन क्षमता तक पहुंचना एक बहुत बड़ी उपलब्धि है. औद्योगीकरण, शहरीकरण और बढ़ते जीवन स्तर के कारण भारत की ऊर्जा खपत 2047 तक 2 से 2.5 गुना बढ़ने का अनुमान है. पांच साल पहले ही यह उपलब्धि हासिल कर लेने से जलवायु प्रतिबद्धताओं के साथ भारत की आर्थिक वृद्धि की क्षमता जाहिर होती है. इस तरह उभरती अर्थव्यवस्थाओं में भारत अग्रणी बन गया है.
यह उपलब्धि पेरिस समझौते के तहत भारत के राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) के अनुरूप है, जिसमें 2030 तक उत्सर्जन तीव्रता में 45 प्रतिशत तक की कमी (2005 के स्तर से) और गैर-जीवाश्म ईंधन क्षमता का 50 प्रतिशत हासिल करना शामिल है. भारत के प्रति व्यक्ति कम उत्सर्जन के साथ यह प्रगति जलवायु को लेकर संवेदनशील देश के रूप में उसकी वैश्विक स्थिति को और मजबूत करती है.
भारत की सफलता की कहानी नीतियों, तकनीकी प्रगति और बड़े पैमाने पर अक्षय ऊर्जा शुरू करने से जुड़ी हुई है. 2014 के बाद से गैर-जीवाश्म ईंधन क्षमता 87 गीगावॉट से बढ़कर 242.78 गीगावॉट हो गई है. नवंबर 2024 तक इसमें सौर ऊर्जा 94.16 गीगावॉट और पवन ऊर्जा 47.95 गीगावॉट के साथ सबसे आगे है. अकेले 2024 में भारत ने 28 गीगावॉट सौर और पवन ऊर्जा क्षमता जोड़ी है और इसके बाद 2025 के पहले पांच महीनों में 16.3 गीगावॉट की वृद्धि हुई है जिससे इसकी तेज रफ्तार जाहिर होती है.
सरकार ने कई कार्यक्रमों के रूप में नीतिगत प्रोत्साहन शुरू किए हैं. इनमें पीएम-कुसुम, पीएम सूर्य घर: मुफ्त बिजली योजना और राष्ट्रीय पवन-सौर हाइब्रिड नीति शामिल है. 2024 में शुरू की गई पीएम सूर्य घर योजना का उद्देश्य 1 करोड़ घरों में छत पर सौर ऊर्जा संयंत्र लगाना और ऊर्जा की पहुंच का विकेंद्रीकरण करना है. इस नीति ने देहाती इलाकों में सौर ऊर्जा को बढ़ावा दिया है और अक्षय ऊर्जा को ग्रिड से जोड़ा है.
सरकार ने राजस्थान और गुजरात जैसे राज्यों में 66.5 गीगावॉट अक्षय ऊर्जा को जोड़ने के लिए ट्रांसमिशन योजनाएं तैयार की हैं, जिनमें 2030 तक 51,000 सर्किट किलोमीटर ट्रांसमिशन लाइनें और 4,33,500 एमवीए परिवर्तन क्षमता की योजनाएं शामिल हैं. सौर और पवन ऊर्जा के टैरिफ अब दुनिया भर में सबसे कम हैं, जिससे अक्षय ऊर्जा जीवाश्म ईंधन के मुकाबले लागत-प्रतिस्पर्धी हो गई है. रिलायंस, अदाणी ग्रीन एनर्जी और टाटा पावर सोलर जैसी कंपनियों ने इस क्षेत्र में भारी निवेश किया है.
इस प्रगति के बावजूद भारत को अपनी स्थापित क्षमता को वास्तविक बिजली उत्पादन में बदलने में बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है. हालांकि स्थापित क्षमता से संतुलित और मिलाजुले उत्पादन का स्वरूप झलकता है, लेकिन वास्तविक बिजली उत्पादन जीवाश्म ईंधन से ज्यादा है और यह कुल उत्पादित ऊर्जा का 73.4 प्रतिशत है. इसकी वजह उनकी परिचालन स्थिरता अधिक होना है.
बिजली उत्पादन में अक्षय ऊर्जा का योगदान केवल 24 प्रतिशत है क्योंकि कोयला अभी भी बिजली की रीढ़ बना हुआ है. प्राथमिक चुनौतियों में से एक है, पहले से उत्पादित हरित ऊर्जा को ग्रिड से जोड़ना. जीवाश्म ईंधन के लिहाज से तैयार किए गए ग्रिड को अक्षय ऊर्जा की अस्थायी प्रकृति से जूझना पड़ता है. भंडारण (मसलन बैटरी सिस्टम) बढ़ाना और स्मार्ट ग्रिड बनाना महत्त्वपूर्ण है. इसके अलावा, राज्यों की यूटिलिटी कंपनियों को वित्तीय तंगी का सामना करना पड़ता है और ग्रिड में लचीलापन सुनिश्चित करने के लिए बुनियादी ढांचे में निवेश की जरूरत है.
'ऊर्जा की किल्लत' - बोझ न उठा पाने की समस्याओं या अपर्याप्त वितरण के कारण बिजली की भरोसेमंद पहुंच न होना - भारत में लाखों लोगों के लिए एक हकीकत है. इतना ही नहीं, यह उपलब्धि अल्पकालिक भी हो सकती है क्योंकि बढ़ती मांग पूरी करने के लिए भारत 2032 तक 80 गीगावॉट कोयला क्षमता जोड़ने की योजना बना रहा है, जिससे कार्बन खत्म करने का मसला पेचीदा हो जाता है. एक और हकीकत गांव-देहात में बायोमास यानी जैव ऊर्जा से खाना पकाने की है. इसके कारण लाखों लोग जहरीले उत्सर्जन के संपर्क में आते हैं. लिहाजा, इसके लिए स्वच्छ विकल्प अपनाने की जरूरत है.
भारत का कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन दुनिया में तीसरा सबसे अधिक है. लेकिन इसका प्रति व्यक्ति उत्सर्जन लगभग 2 टन प्रति व्यक्ति (2023 के आंकड़े) कम बना हुआ है जबकि इसकी तुलना में अमेरिका (14.7 टन), चीन (10.2 टन) और यूरोपीय संघ (6.2 टन) का अधिक है. इससे विकासशील अर्थव्यवस्था के रूप में भारत की स्थिति और ऐतिहासिक रूप से कम उत्सर्जन जाहिर होता है. जहां अमेरिका और चीन कुल उत्सर्जन में सबसे आगे हैं, वहीं भारत की उत्सर्जन तीव्रता 2005 के बाद से 33 प्रतिशत कम हो गई है और इस तरह उसके एनडीसी लक्ष्य को पार कर गई है. हालांकि, बिजली उत्पादन में कोयले के दबदबे का मतलब है कि भारत का कुल उत्सर्जन बढ़ना जारी रहेगा जिसकी वजह औद्योगिक विकास और शहरीकरण है.
2008 की जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना के साथ भारत ने गैर-जीवाश्म ईंधन पर ध्यान देना शुरू किया. इसके तहत 2010 में जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय सौर मिशन की शुरुआत की गई जिसका लक्ष्य 2022 तक 20 गीगावॉट सौर ऊर्जा जोड़ना था (जिसे बाद में संशोधित कर 100 गीगावॉट कर दिया गया). 2015 के पेरिस समझौते ने भारत की प्रतिबद्धता को मजबूती दी. इसके तहत उसने 2030 तक 40 प्रतिशत गैर-जीवाश्म ईंधन क्षमता हासिल करने का संकल्प लिया लेकिन 2021 में ही इसे प्राप्त कर लिया गया. बढ़ते ऊर्जा आयात, भू-राजनीतिक जोखिम और जलवायु परिवर्तन कम करने की जरूरत ने इस बदलाव को बढ़ाया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2021 कॉप26 "पंचामृत" ढांचे के तहत महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किए: 500 गीगावॉट गैर-जीवाश्म क्षमता, 50 प्रतिशत अक्षय ऊर्जा और 2070 तक शून्य कार्बन.
दुनिया भर में अक्षय ऊर्जा अपनाने के तरीके अलग-अलग हैं. चीन 1,000 गीगावॉट से अधिक की अक्षय क्षमता (2023) के साथ आगे है जिसकी वजह बड़े पैमाने पर सौर और पवन ऊर्जा में उसका निवेश है. लेकिन कोयले पर निर्भरता के कारण उसका प्रति व्यक्ति उत्सर्जन उच्च स्तर पर है. 350 गीगावॉट अक्षय ऊर्जा के साथ अमेरिका दूसरे स्थान पर है. लेकिन जीवाश्म ईंधन के बहुत ज्यादा उपयोग के कारण प्रति व्यक्ति उत्सर्जन में कटौती के मामले में पीछे है. जर्मनी अक्षय ऊर्जा में अग्रणी है और अपनी 60 प्रतिशत बिजली अक्षय ऊर्जा (2024) स्रोतों से प्राप्त करता है, उसे ग्रिड के उन्नत बुनियादी ढांचे का फायदा मिलता है.
ब्राजील (60 प्रतिशत पन बिजली के साथ अक्षय ऊर्जा) और दक्षिण अफ्रीका (कोयले पर निर्भरता के कारण धीमी अक्षय ऊर्जा वृद्धि) जैसे विकासशील देश मिलीजुली प्रगति दिखाते हैं. 50 प्रतिशत गैर-जीवाश्म क्षमता की प्रारंभिक उपलब्धि से भारत अपनी बराबरी वाले कई देशों से आगे हो गया है लेकिन उसका उत्पादन हिस्सा जर्मनी जैसे अग्रणी देशों से कम है.