'फर्स्ट पास्ट द पोस्ट सिस्टम' क्या है, जिससे भारत में चुनावी जीत का फैसला किया जाता है

भारत के साथ-साथ कई और देशों में भी 'फर्स्ट पास्ट द पोस्ट सिस्टम' से चुनावों में हार-जीत का फैसला होता है

2019 के लोकसभा चुनावों में जीत के बाद विक्ट्री साइन दिखाते हुए नरेंद्र मोदी साथ में अमित शाह
2019 के लोकसभा चुनावों में जीत के बाद विक्ट्री साइन दिखाते हुए नरेंद्र मोदी साथ में अमित शाह

भारत में लोकसभा चुनाव का माहौल अब अपने पूरे उफान पर है. 16 मार्च को इलेक्शन कमीशन ने चुनाव की तारीखों का ऐलान किया था और उसके बाद से ही सारी पार्टियां भी ताबड़तोड़ रैलियों और अलग-अलग जरियों से प्रचार में उतर चुकी हैं. लोकसभा में सरकार बनाने के लिए भले ही बहुमत का जरूरी आंकड़ा 272 हो पर सत्ताधारी बीजेपी 'अबकी बार 400 पार' का नारा बुलंद कर रही है.

हालांकि यहां पर एक सवाल यह जरूर बनता है कि आखिर लोकसभा चुनाव या फिर अलग-अलग विधानसभा चुनावों में बहुमत के आंकड़े का फैसला कैसे किया जाता है? साथ ही वह कौन सी प्रक्रिया है जिसके जरिए भारत में विधानसभा या लोकसभा उम्मीदवारों की जीत या हार का फैसला किया जाता है?

इस सवाल का जवाब है 'फर्स्ट पास्ट द पोस्ट सिस्टम', इसी व्यवस्था के तहत भारत सहित दुनिया के कई और देशों में उम्मीदवारों की जीत या हार का फैसला किया जाता है. अगर इसे आसान शब्दों में समझें तो इसका मतलब है सबसे आगे निकलने की पद्धति. फर्स्ट पास्ट द पोस्ट सिस्टम  की व्यवस्था आम तौर पर डायरेक्ट इलेक्शन में लागू की जाती है. यानी ऐसा चुनाव जहां जनता अपने प्रतिनिधि को सीधे तौर पर वोटिंग के जरिए चुनती है. भारत में लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय निकाय के चुनाव डायरेक्ट (कुछ निकाय के प्रमुखों को छोड़कर) इलेक्शन पद्धति से ही होते हैं. वहीं, राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, राज्यसभा और विधान परिषद का चुनाव इनडायरेक्ट इलेक्शन व्यवस्था के तहत कराया जाता है. जिन प्रतिनिधियों को हम चुनते हैं वे इन चुनावों में वोटिंग करते हैं.

'फर्स्ट पास्ट द पोस्ट सिस्टम' को अब एक उदाहरण से समझते हैं. मान लेते हैं कि किसी विधानसभा या लोकसभा में 10 लाख वोटर हैं और वहां पर 5 उम्मीदवार खड़े हैं. अब अगर वोट डालने के लिए 7 लाख वोटर आते हैं, इसमें अगर किसी एक उम्मीदवार को 2 लाख वोट पड़ते हैं और बाकी के 4 उम्मीदवारों में 5 लाख वोट बंट जाते हैं और इस तरह से बंटते हैं कि बाकियों में से किसी को भी 2 लाख या उससे ज्यादा वोट नहीं मिल पाते तो ऐसे में जिसने 2 लाख वोट या सबसे ज्यादा वोट हासिल किए उसे ही विजेता माना जाएगा."

हालांकि इस सिस्टम की आलोचनाएं भी होती रहती हैं. जैसे अगर हम ऊपर लिखे उदाहरण को ही समझें तो जीतने वाले उम्मीदवार को कुल वोटरों के मुकाबले काफी कम वोट ही मिल पाए हैं. वहीं ज्यादातर वोट उसके विरोध में पड़े हैं. इसका सीधा सा मतलब यह निकाला जा सकता है कि विजयी उम्मीदवार बेहद ही कम वोटरों का प्रतिनिधित्व करता है. लेकिन 'फर्स्ट पास्ट द पोस्ट सिस्टम' की व्यवस्था लागू होने के चलते वह पूरे इलाके का ही प्रतिनिधि बन जाता है. 'फर्स्ट पास्ट द पोस्ट सिस्टम' को बहुलतावाद या साधारण बहुमत प्रणाली भी कहा जाता है.

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