भारत में अब व्हाइट कॉलर जॉब्स में भी फ्रीलांस प्रोफेशनल्स की मांग क्यों बढ़ रही है?

इस समय खासकर साइबर सिक्योरिटी और एआई जैसे क्षेत्रों में फ्रीलांस स्किल्ड प्रोफेशनल्स की मांग तेजी से बढ़ रही है

कंपनियों में तेजी से बढ़ रही फ्रीलांस नौकरियों की मांग (सांकेतिक फोटो)
कंपनियों में तेजी से बढ़ रही फ्रीलांस करने वालों की मांग (सांकेतिक फोटो)

देश और विदेश की कंपनियों की व्हाइट कॉलर जॉब्स में स्किल्ड इंडिपेंडेंट कंसल्टेंट यानी शॉर्ट टर्म, कॉन्ट्रेक्ट बेसिस या फ्रीलांस काम करने वाले मैनेजर या सलाहकारों की मांग तेजी से बढ़ रही है. इनमें साइबर सिक्योरिटी, एआई, डेटा एनालिसिस और ईएसजी यानी पर्यावरण, सामाजिक और शासन जैसे क्षेत्रों की कंपनियां प्रमुख हैं.

जॉब्स प्लेटफॉर्म फाउंडिट के मुताबिक, देश की अलग-अलग कंपनियों में करीब 68 लाख व्हाइट-कॉलर जॉब में शॉर्ट टर्म या कॉन्ट्रेक्ट बेसिस कर्मचारी हैं, जिसमें साल दर साल 17 फीसद की वृद्धि हो रही है. इससे जाहिर होता है कि इंडिपेंडेंट कंसल्टेंट अब ज्यादातर कंपनियों का अभिन्न हिस्सा बन गए हैं.

फाउंडिट के सीईओ वी. सुरेश कहते हैं, "शॉर्ट टर्म या प्रोजेक्ट के आधार पर कर्मचारियों की नियुक्ति की एक खास चलन से भारत के वर्क फोर्स में एक महत्वूर्ण और शानदार बदलाव देखने को मिल रहे हैं."

ऑन-डिमांड टैलेंट प्लेटफॉर्म ‘फ्लेक्सिंग इट’ की संस्थापक और सीईओ चंद्रिका पसरीचा बताती हैं, “इस तरह के चलन के बढ़ने की मुख्य वजह ये है कि तकनीक के तेजी से विकसित होने के साथ कंपनियों या कॉरपोरेट्स को ज्यादा से ज्यादा बेहतर और स्किल्ड कर्मचारियों की जरूरत होती है. शॉर्ट टाइम या प्रोजेक्ट वाइज काम करने वाले टैलेंटेड कर्मचारी इन जरूरतों को आसानी से पूरा करते हैं. इंडिपेंडेंट कंसल्टेंट को तरजीह देने की एक वजह यह भी है कि एक सीनियर लेवल या मैनेजर लेवल के परमानेंट कर्मचारी को बहाल करने के दौरान लंबी नोटिस की प्रक्रिया में तीन से नौ महीने का समय लग जाता है, जबकि इंडिपेंडेंट कंसल्टेंट या कॉन्ट्रैक्ट बेसिस पर काम करने वाले शॉर्ट टर्म कर्मचारी एक सप्ताह में ही कंपनी के लिए काम करना शुरू कर सकते हैं.”

कई कंपनियां अब दफ्तर के बजाय रिमोट वर्क कल्चर में ज्यादा सहज हैं, यही वजह है कि सीनियर पदों पर भी ये कंपनियां आउटसोर्स कर रही हैं. सीईओ चंद्रिका पसरीचा कहते हैं, “शुरुआत में कंपनियां 8 से 15 साल के अनुभव वाले मध्य-प्रबंधकीय स्तर के कर्मचारियों को आउटसोर्स करती थीं, लेकिन अब ट्रेंड बदला है. अब 20-25 साल से ज्यादा अनुभव वाले पेशेवरों की भी मांग तेजी से बढ़ रही है, खासकर ये कंपनियों में लीडरशिप की भूमिका में होती हैं."

आईटी, सॉफ्टवेयर जैसे सर्विस सेक्टर के अलावा ऑनलाइन एजुकेशन, भर्ती और स्टाफिंग जैसे क्षेत्र में कंपनियां तेजी से स्वतंत्र सलाहकारों की नियुक्ति कर रही हैं. यहां तक ​​कि विनिर्माण जैसे पारंपरिक क्षेत्र से जुड़ी कंपनियां भी फ्रीलांस प्रतिभाओं के जरिए काम करवा रही हैं. इस क्षेत्र में महीने-दर-महीने 12 फीसद की दर से फ्रीलांस कर्मचारियों की वृद्धि हो रही हैं.

लॉजिस्टिक्स और परिवहन के क्षेत्र में 9 फीसद और गैर-लाभकारी संगठन बैंकिंग, वित्तीय सेवाएं और बीमा में अब 8 फीसद की दर से फ्रीलांस, आउटसोर्स या कॉन्ट्रैक्ट बेसिस कर्मचारियों की संख्या बढ़ रही हैं. फाउंडिट के मुताबिक, फ्रीलांस, आउटसोर्सिंग और कॉन्टैक्ट के आधार पर 37 फीसद नौकरियां 3 लाख रुपए, 41 फीसद नौकरियां 3 से 6 लाख रुपए सालाना, 16 फीसद नौकरियां 6 से 10 लाख रुपए और 4 फीसद नौकरियां 10 से 15 लाख रुपए के सालाना पैकेज पर होती हैं. फ्रीलांस सैलरी और कर्मचारियों की मांग लगातार बढ़ रही हैं.

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