‘सिंधु जल समझौता’ निलंबित होने से पाकिस्तान को कितना नुकसान होगा?
सिंधु जल संधि पर तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल मोहम्मद अयूब खान ने हस्ताक्षर किए थे

पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने 1960 में हुए ‘सिंधु जल समझौता’ (IWT) को स्थगित कर दिया है. इसके बाद घबराए इस्लामाबाद ने भारत के इस फैसले को युद्ध की कार्रवाई करार दिया है. साथ ही पाकिस्तान ने कुछ द्विपक्षीय समझौतों से हटने सहित 1972 के शिमला समझौते को स्थगित कर दिया है.
हालांकि, पाकिस्तान ने जिन समझौतों को तोड़ा है, उसके कूटनीतिक महत्व अधिक हैं, लेकिन सिंधु जल संधि को निलंबित करने से पाकिस्तान पर गंभीर आर्थिक प्रभाव पड़ने का खतरा है.
‘सिंधु जल समझौता’ स्थगित किए जाने से क्या शुरुआती असर दिख रहा है?
भारत ने सिंधु जल समझौता यानी IWT के तहत पनबिजली परियोजनाओं से पानी की नियमित सप्लाई रोक दी है और पाकिस्तान के साथ डेटा साझा करना भी बंद कर दिया है. इस संधि के तहत पाकिस्तानी अधिकारी नियमित अंतराल पर भारतीय पनबिजली परियोजनाओं का निरीक्षण भी कर सकते हैं, लेकिन अब यह मुमकिन नहीं होगा.
पाकिस्तान की ओर बहने वाली चेनाब और झेलम नदियों के जल स्तर में गिरावट की खबरें आ रही हैं. साथ ही यह भी दावा किया गया कि भारत द्वारा बिना किसी पूर्व सूचना के छोड़े गए पानी ने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (POK) के चकोठी इलाके में तबाही मचा दी है.
IWT के निलंबन से पाकिस्तान के बड़े हिस्से में सूखे की स्थिति पैदा हो सकती है. इससे पाकिस्तान को लेकर अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं की चिंता और ज्यादा बढ़ेगी, क्योंकि पाकिस्तान अपनी कमजोर आर्थिक हालात की वजह से पहले से ही भारी कर्ज का सामना कर रहा है. वित्त वर्ष 2025 के अंत तक विदेशी ऋण 140 अरब डॉलर होने का अनुमान है.
पाकिस्तानी अधिकारियों को 2024-25 के पहले नौ महीने में केवल 12.5 अरब डॉलर के विदेशी कर्ज जुटाने में भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ा है. जबकि पाकिस्तान सरकार ने इस वित्त वर्ष 30 जून तक 19.2 हजार करोड़ डॉलर विदेशी कर्ज जुटाने का लक्ष्य रखा था.
किसी देश के ऋण और अन्य वित्तीय मामलों की क्रेडिट योग्यता को परखने वाली रेटिंग एजेंसी ‘फिच रेटिंग्स’ ने अप्रैल में पाकिस्तान की सॉवरेन क्रेडिट रेटिंग को 'CCC+' से थोड़ा सुधार कर स्थिर दृष्टिकोण के साथ 'बी-' कर दिया. इसका मतलब यह था कि पाकिस्तान को दूसरे देशों से मिल रहे निरंतर समर्थन के बावजूद देश के अंदर बलूचिस्तान समेत कई मुद्दों पर जोखिम बने हुए हैं.
पिछले साल, एसएंडपी ग्लोबल ने पाकिस्तान को 'CCC+' रेटिंग दी थी, जबकि मूडीज ने रेटिंग को अपग्रेड करके 'CAA2' कर दिया था. ये सभी रेटिंग मुख्य रूप से 2024 में सहमत हुए 7 अरब डॉलर के आईएमएफ (अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष) बेलआउट पैकेज से प्रभावित थीं.
हालांकि, पाकिस्तान से IMF ने जितना वादा किया था, उसमें से सिर्फ 1 अरब डॉलर यानी 100 करोड़ डॉलर का कर्ज ही पाकिस्तान को मिला है.
यही वजह है कि इस्लामाबाद सिंधु जल संधि के निलंबन के अल्पकालिक और दीर्घकालिक प्रभावों का मूल्यांकन कर रहा है. वह यह जानने की कोशिश कर रहा है कि सिंधु जल समझौता स्थगित होने से उसे कितना नुकसान हो सकता है.
‘सिंधु जल समझौता’ क्यों महत्वपूर्ण है?
तत्कालीन विश्व बैंक के उपाध्यक्ष सर विलियम इलिफ की मध्यस्थता में सिंधु जल संधि ने भारत और पाकिस्तान के बीच जल बंटवारे के लिए एक रूपरेखा पेश की थी.
सिंधु जल समझौते के मुताबिक तीन पूर्वी नदियों ब्यास, रावी और सतलुज का नियंत्रण भारत तथा तीन पश्चिमी नदियों सिंधु, चिनाब और झेलम पर ज्यादा नियंत्रण पाकिस्तान के पास है.
वह शीत युद्ध का दौर था, जब भारत गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) का नेतृत्व कर रहा था. हालांकि, इस वक्त भारत का झुकाव तत्कालीन सोवियत संघ के तरफ माना जा रहा था. जबकि पाकिस्तान का NATO (उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन) के साथ सहयोगात्मक संबंध था.
पाकिस्तान इस वक्त मुख्य रूप से दो अमेरिकी नेतृत्व वाले सैन्य गठबंधनों SEATO (दक्षिण पूर्व एशिया संधि संगठन) और CENTO (केंद्रीय संधि संगठन) का सदस्य था.
सिंधु जल संधि पर तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल मोहम्मद अयूब खान ने हस्ताक्षर किए थे. इस समझौते के तहत भारत को सिंधु जल नेटवर्क का 20 फीसद हिस्सा मिला, जबकि बाकी हिस्सा पाकिस्तान को मिला.
बाद के वर्षों में यह जल अनुपात भारत के लिए एक पीड़ादायक बिंदु बन गया क्योंकि पाकिस्तान को इसका बड़ा हिस्सा मिला जबकि नई दिल्ली को अपने हिस्से के पानी को बनाए रखने और उसका उपयोग करने के लिए बुनियादी ढांचे का निर्माण करना पड़ा.
जम्मू और कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने हाल ही में सिंधु जल संधि के निलंबन पर अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि उन्होंने हमेशा से ही इस जल संधि को अपने क्षेत्र के हितों के लिए नुकसानदायक माना है.
हालांकि, सिंधु जल समझौता भारत को सिंधु, झेलम और चिनाब के पानी के इस्तेमाल करने से नहीं रोकता. समझौते के मुताबिक इन नदियों के पानी के प्रवाह को बिना रोके जलविद्युत उत्पादन करने और सीमित क्षेत्र में सिंचाई (लगभग 700,000 एकड़) की अनुमति दी गई है. हालांकि, किसी बड़े बांध बनाने की अनुमति भारत को नहीं है. भारत के लिए एक मुश्किल यह भी है कि इन नदियों के पानी को पूरी तरह से इस्तेमाल करने के लिए बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचे के निर्माण की आवश्यकता है.
सिंधु जल समझौते में विवाद का मुद्दा क्या है?
इस मार्च में भारत ने हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर की सीमा पर उत्तर पंजाब में एक बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजना, 55.5 मीटर ऊंची ‘शाहपुर कंडी बांध’ का निर्माण पूरा किया है.
इस बांध के बनने से नहर के जरिए रावी नदी से अनुमानित 1,150 क्यूसेक पानी जम्मू-कश्मीर के कठुआ और सांबा जिलों में 32,000 हेक्टेयर कृषि भूमि की सिंचाई के लिए आसानी से पहुंच जाएगा.
इसके अलावा नदी के पानी की धार को पाकिस्तान की बजाय पंजाब और राजस्थान की ओर मोड़ने की कोशिश की गई है. दशकों के इंतजार के बाद आखिरकार यह परियोजना पूरी हुई है.
इसी तरह कठुआ में रावी की सहायक नदी उझ पर बना ‘उझ बांध’ पाकिस्तान जाने वाले अतिरिक्त पानी को और कम कर सकता है. इस बांध से 925 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी संग्रहित होने और 196 मेगावाट बिजली पैदा होने का अनुमान है.
भारत में रावी, ब्यास और सतलुज का पानी पंजाब और आंशिक रूप से हरियाणा, जम्मू-कश्मीर और राजस्थान के खेतों के बड़े हिस्से की सिंचाई करता है. कुछ साल पहले इस पानी को सतलुज-यमुना-लिंक (एसवाईएल) नामक नहर योजना के जरिए पंजाब और हरियाणा के खेतों तक पहुंचाने की कोशिश की गई है.
हालांकि, इस योजना के खिलाफ भी पंजाब में खालिस्तानी समर्थकों ने कड़ा विरोध किया था. सीमावर्ती राज्य पंजाब में इसे भावनात्मक मुद्दा बनाकर अलगाववादी भावना को भड़काने में पाकिस्तान की इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) का हाथ भी सामने आया था.
पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर में भारत की जलविद्युत निर्माण परियोजनाओं पर आपत्ति जताता रहा है. खास तौर पर पिछले एक दशक में किसी तरह के निर्माण पर पाकिस्तान की ओर से कड़ी प्रतिक्रिया आती रही है.
इनमें बांदीपुर में किशनगंगा बांध (330 मेगावाट) शामिल है, जो झेलम की सहायक नदी किशनगंगा पर बना है और 2018 से चालू है. इसी तरह किश्तवाड़ में चेनाब पर रतले (850 मेगावाट) है. अगले साल तक इसके चालू होने की उम्मीद है.
पाकिस्तान की चिंता यह है कि जिस पानी पर सवाल उठाया जा रहा है, उससे पंजाब प्रांत के उसके कुछ सबसे उपजाऊ मैदानों की सिंचाई होती है. वर्तमान में, इस्लामाबाद अपने ताजा पानी की आपूर्ति का लगभग 80 फीसद सिंधु और इसकी सहायक नदियों से प्राप्त करता है. इन नदियों से सालाना बहने वाले 16.8 करोड़ एकड़ फीट (सीएएफ) पानी में से केवल 3.3 सीएएफ ही भारत को आवंटित किया जाता है. भारत पहले से ही अपने हिस्से का 90 फीसद से अधिक पानी का उपयोग कर रहा है.
इस्लामाबाद ने किशनगंगा और रतले दोनों परियोजनाओं का विरोध किया है. यह मामला मध्यस्थता न्यायालय (COA) और विश्व बैंक द्वारा नियुक्त एक पैनल के समक्ष विचाराधीन है.
2013 में, हेग स्थित स्थायी मध्यस्थता अदालत ने किशनगंगा जलविद्युत परियोजना को हरी झंडी दे दी थी. अदालत ने फैसला सुनाया था कि भारत बेसिन के भीतर बिजली उत्पादन के लिए पानी को मोड़ सकता है. इसके बाद ही भारत ने सिंधु-झेलम-चिनाब नेटवर्क पर लगभग 156 छोटी और बड़ी पनबिजली परियोजनाओं को शुरू करने का फैसला किया.
इस तरह की छोटी परियोजनाओं से पाकिस्तान को पानी की आपूर्ति प्रभावित नहीं होती है. हालांकि, कुछ बड़ी परियोजनाएं अब पाकिस्तान के लिए चिंता का विषय होंगी. उदाहरण के लिए, जम्मू-कश्मीर के रामबन में चिनाब पर 900 मेगावाट की बगलिहार पनबिजली परियोजना है. इसमें 475 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी स्टोर किया जाएगा.
इस फैसले से भारत को क्या फायदा होगा?
भारत अब सिंधु नदी संधि की बाध्यताओं से परे बांधों और बैराजों के निर्माण में तेजी लाने का इरादा दिखा सकता है. 2014 में सत्ता संभालने के बाद से नरेंद्र मोदी सरकार ने सिंधु जल संधि के पूर्वी और पश्चिमी तट नदी नेटवर्क पर कई परियोजनाओं पर काम शुरू किया है.
2018 से नई दिल्ली इस्लामाबाद पर सिंधु जल समझौता पर फिर से बातचीत करने के लिए दबाव डाल रही है. वहीं, दूसरी ओर भारत सरकार इन नदियों के पानी से जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में मौजूदा 13 लाख एकड़ से ज्यादा जमीन की सिंचाई करना चाहती है. जबकि फिलहाल इन नदी की पानी से 6.4 लाख एकड़ जमीन की ही सिंचाई हो पा रही है.
समझौते के निलंबन के बाद पाकिस्तान को इस बात का डर सता रहा है कि भारत सिंधु नदी पर और बड़ी जलविद्युत परियोजना बनाकर उसकी तरफ बहने वाली नदियों के पानी को रोक सकता है.
सिंधु जल संधि के अनुसार, भारत को पश्चिमी तट की नदियों से 36 लाख एकड़ फीट पानी संग्रहित करने की अनुमति है, लेकिन जमीनी स्तर पर, बुनियादी ढांचे का विकास नहीं हो पाने का कारण भारत इतना पानी का भी इस्तेमाल नहीं कर पाता.
हालांकि, रणनीतिक रूप से इन नदियों पर बांध बनाने से भारत को ज्यादा फायदा मिलेगा. हालांकि, भारत द्वारा बनाए जाने वाले बांध से पानी को पूरी तरह से रोकना संभव नहीं होगा, लेकिन ये बांध रूप से पाकिस्तान में पानी के प्रवाह में देरी कर सकते हैं. इससे पाकिस्तान में खरीफ (गर्मी की फसल) और रबी के मौसम के दौरान पानी की भारी किल्लत हो सकती है, जिससे वहां विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं