उच्च शिक्षा में बदलाव के लिए पेश विधेयक को राज्य विश्वविद्यालयों के लिए खतरा क्यों बताया जा रहा है?
उच्च शिक्षा के रेगुलेशन ढांचे में बदलाव लाने के लिए सरकार ने 15 दिसंबर को लोकसभा में एक विधेयक पेश किया है

भारत की उच्च शिक्षा व्यवस्था एक ऐसे मोड़ पर खड़ी है जहां बड़े बदलाव की हवा चल रही है. आखिरकार लंबे इंतजार के बाद 12 दिसंबर को केंद्रीय कैबिनेट ने 'विकसित भारत शिक्षा अधिष्ठान विधेयक 2025’ को मंजूरी दी थी. 15 दिसंबर को यह विधेयक लोकसभा में पेश भी कर दिया गया.
यह प्रस्तावित विधेयक विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC), अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (AICTE) और राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (NCTE) को एक साथ मिलाकर एक नया नियामक HECI बनाने का प्रस्ताव करने वाला है
सरकार की तरफ से कहा गया है कि इस विधेयक का मकसद गवर्नेंस, एक्रेडिटेशन और फंडिंग को पटरी पर लाना है. लेकिन उच्च शिक्षा के नियमन को लेकर सरकार के इरादे पर सवाल खड़े करते हुए विपक्ष की तरफ से कहा जा रहा है कि अगर सरकार इस बारे में इतनी गंभीर होती तो आज आठ महीने से UGC के चेयरमैन का पद खाली नहीं पड़ा होता. UGC चेयरमैन रहे एम जगदीश कुमार 7 अप्रैल, 2025 को ही रिटायर हो गए लेकिन तब से लेकर अब तक के आठ महीने में नए चेयरमैन की नियुक्ति केंद्र सरकार नहीं कर पाई. तब से सरकार ने सचिव, उच्च शिक्षा विनीत जोशी को UGC चेयरमैन का अतिरिक्त कार्यभार दिया है.
दरअसल, केंद्र सरकार प्रस्तावित विधेयक की जरूरत को राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 के लागू होने के बाद की जरूरतों से जोड़ रही है. सरकार का कहना है कि नई नीति आने के बाद डिग्री स्ट्रक्चर, क्रेडिट ट्रांसफर और मल्टीडिसिप्लिनरी यूनिवर्सिटी के स्तर पर पहले से ही कई बदलाव चल रहे हैं, ऐसे में उच्च शिक्षा के अलग-अलग नियामकों को एक करना समय की मांग है.
सरकार का ये भी दावा है कि HECI के आने से रिसर्च फंडिंग, क्वालिटी बेंचमार्क, फॉरेन यूनिवर्सिटी रजिस्ट्रेशन और स्किल-बेस्ड एजुकेशन का तरीका बदलेगा. वहीं दूसरी तरफ सरकार के इस कदम का विरोध करने वालों की तरफ से ओवर-सेंट्रलाइजेशन का डर, अनुदान देने में दिक्कतें, राज्य विश्वविद्यालयों पर नकारात्मक प्रभाव और अफसरशाही का नियंत्रण बढ़ने जैसी आशंकाएं व्यक्त की जा रही हैं.
दरअसल, उच्च शिक्षा के तीनों नियामकों का आपस में विलय करके एक बड़ा नियामक बनाने का प्रस्ताव पहली बार मोदी सरकार 2018 में लेकर आई थी. उस समय भी प्रस्तावित विधेयक का एक ड्राफ्ट जारी किया गया था. लेकिन इसके बाद 2020 में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति आई. सरकार की तरफ से कहा जा रहा है कि अब जो विधेयक आ रहा है, उसमें वे सभी जरूरी बदलाव किए गए हैं जो इसे नई शिक्षा नीति के अनुरूप बनाने के लिए जरूरी थे.
क्या है HECI
सरल शब्दों में समझा जाए तो ये HECI विधेयक भारत की उच्च शिक्षा को एक छतरी के नीचे लाने का प्रयास है. अभी UGC सामान्य शिक्षा को देखता है. वहीं AICTE टेक्निकल कोर्सेस पर नजर रखता है और NCTE शिक्षकों के प्रशिक्षण का नियमन करता है. केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के अधिकारियों की मानें तो इन तीनों के बीच ओवरलैपिंग, आपसी भ्रम और धीमी मंजूरी की समस्या रही है और HECI बिल इन सबको खत्म करके एक नियामक बनाएगा.
HECI की स्थापना की बात नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भी की गई है. इसमें कहा गया है कि एक ऐसा अकेला नियामक होना चाहिए जो रेगुलेशन, एक्रेडिटेशन, फंडिंग और एकेडमिक स्टैंडर्ड्स को अलग-अलग वर्टिकल्स में रखकर काम करे. शिक्षा नीति में कहा गया था कि उच्च शिक्षा को 'लाइट बट टाइट' रेगुलेशन चाहिए. यानी दखल कम हो लेकिन बेहद सख्ती से जिम्मेदारी तय की जाए.
प्रस्तावित विधेयक में यह प्रावधान किया गया है कि HECI के चार वर्टिकल्स होंगे. इनमें पहला नेशनल हायर एजुकेशन रेगुलेटरी अथॉरिटी (NHERA) होगा. यह नियमन का काम करेगा. दूसरे वर्टिकल का नाम नेशनल एक्रेडिटेशन काउंसिल (NAC) होगा. यह उच्च शिक्षा के मानकों को सुनिश्चित करने का काम करेगा. तीसरा वर्टिकल हायर एजुकेशन ग्रांट्स काउंसिल (HEGC) होगा. इसके पास उच्च शिक्षण संस्थानों की फंडिंग की जिम्मेदारी होगी. वहीं चौथे वर्टिकल का नाम जनरल एजुकेशन काउंसिल (GEC) प्रस्तावित है. इसके पास मानकों को तय करने और अध्यापकों के प्रशिक्षण संबंधित कार्य होंगे.
अभी जो उच्च शिक्षा में UGC की व्यवस्था है, उसमें नियमन और फंडिंग दोनों की जिम्मेदारी इसके पास ही है. HECI की नई व्यवस्था में फंडिंग और नियमन को अलग रखने का प्रस्ताव है ताकि विश्वविद्यालयों पर दबाव न पड़े. मेडिकल और लीगल एजुकेशन को इससे बाहर रखा गया है. सरकार का दावा है कि नई व्यवस्था से डुप्लिकेशन खत्म होगा, निर्णय प्रक्रिया तेज होगी और ग्लोबल स्टैंडर्ड्स आएंगे.
HECI पर क्या सवाल उठ रहे हैं
दरअसल, इस संस्था की स्थापना संबंधित इस विधेयक का पहला ड्राफ्ट जब 2018 में आया था, तब भी काफी विवाद हुआ था. इसके प्रावधानों को लेकर चिंताएं जाहिर की गई थीं. इस बार भी ये चिंताएं जाहिर की जा रही हैं. सबसे अधिक चिंता उन विश्वविद्यालयों के नियमन को लेकर की जा रही हैं, जो ग्रामीण क्षेत्रों में हैं और जिनके पास संसाधनों की कमी है. राष्ट्रीय शिक्षा नीति में यह कहा गया था कि प्रस्तावित संस्था HECI सभी उच्च शिक्षा संस्थानों में बोर्ड ऑफ गवर्नर्स गठित करे. लेकिन इसमें राज्य सरकार की भागीदारी कम होगी. इस प्रावधान को लेकर कुछ राज्य इसे संघीय ढांचे के खिलाफ मान रहे हैं और केंद्र सरकार से इस प्रस्ताव को वापस लेने की मांग कर रहे हैं.
प्रस्तावित विधेयक को लेकर अकादमिक जगत से भी मिलीजुली प्रतिक्रिया आ रही है. कुछ शिक्षक संघों और छात्र संघों ने मिलकर 'कोऑर्डिनेशन कमिटी अगेंस्ट HECI' का गठन किया है. इसके सदस्य अलग-अलग पार्टियों के सांसदों से मिलकर उनसे यह अनुरोध कर रहे हैं कि विवादास्पद प्रावधानों वाले इस विधेयक को संसद पारित न होंने दें. इस समिति ने बीते कुछ दिनों में DMK सांसद कनिमोझी, राजद सांसद मनोज कुमार झा और सीपीएम सांसद जॉन ब्रिटास से मिलकर अपना पक्ष रखा. ब्रिटास ने तो इस मुलाकात के बाद केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को एक पत्र भी लिखा.
अपने पत्र में जॉन ब्रिटास कहते हैं, ''उच्च शिक्षा पर प्रस्तावित विधेयक के दूरगामी प्रभावों को देखते हुए इसे लाने में सरकार जल्दबाजी न करे. अगर सरकार विधेयक सदन में पेश करने का निर्णय लेती ही है तो उस स्थिति में विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति के पास भेजा जाए ताकि सभी हितधारकों को सुनने के बाद इस विधेयक पर विचार हो सके.'' ब्रिटास ने अपने पत्र में यह भी लिखा है कि HECI के आने से केंद्रीकरण बढ़ेगा और राज्य विश्वविद्यालयों की आजादी खतरे में पड़ जाएगी. साथ ही उन्होंने यह आशंका भी जाहिर की है कि अगर पूरी फंडिंग केंद्र सरकार के हाथ में चली गई तो निजीकरण बढ़ेगा और उच्च शिक्षा से गरीब छात्र बाहर हो सकते हैं.
प्रस्तावित संस्था HECI का विरोध सबसे अधिक इसी बात पर हो रहा है कि एक नियामक आने से शक्तियां केंद्र सरकार में सीमित हो जाएंगी और विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता खतरे में पड़ सकती है. शिक्षा पर संसद की स्थायी संसदीय समिति के चेयरमैन और वरिष्ठ कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह इस बारे में कहते हैं, ''HECI से उच्च शिक्षा का आधुनिकीकरण तो होगा लेकिन अगर राज्य सरकारों का प्रतिनिधित्व न्यूनतम रखा गया तो यह संघीय ढांचे को कमजोर कर सकता है. केंद्र सरकार अगर विधेयक पेश करना चाहती है तो इसे पहले संसदीय समिति में भेजा जाए और उसके बाद तय किया जाए कि इसे किस रूप में पास कराना है.''
हाल ही में दिग्विजय सिंह ने भी केंद्रीय शिक्षा मंत्री को इस बारे में पत्र लिखा है. उन्होंने इसे एक महत्वपूर्ण विधेयक बताते हुए कहा कि यह उच्च शिक्षा के मौजूदा शासन ढांचे को पूरी तरह बदल देगा और इसलिए जरूरी है कि विधेयक को समिति में जांच और चर्चा के लिए भेजा जाए ताकि सभी पक्षों की राय ली जा सके.
HECI के बारे में केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान कहते हैं, ''हायर एजुकेशन कमीशन ऑफ इंडिया उच्च शिक्षा सुधार के लिए NEP के विजन का एक अहम हिस्सा है, जिसमें विकासशील भारत के लिए डेवलपमेंट एजेंडा को आगे बढ़ाने की क्षमता है. हमारी सरकार जल्द ही उच्च शिक्षण संस्थानों को और मजबूत बनाने के लिए हायर एजुकेशन कमीशन ऑफ इंडिया (HECI) बिल संसद में लाने वाली है.''