गगनयान मिशन : क्या है इसरो की बनाई 'ह्यूमनॉइड' खोपड़ी, जिस पर टिकी है मिशन की सफलता!
गगनयान भारत का पहला मानवयुक्त मिशन है जिसे 2025 में अंजाम दिया जाना है. इसके लिए गगनयान से पहले एक ह्यूमनॉइड रोबोट 'व्योममित्र' को अंतरिक्ष में भेजने की तैयारी है. हाल ही में इस रोबोट की खोपड़ी का डिजाइन पूरा किया गया है

वो साल 1984 था, तारीख 3 अप्रैल. सारी अहर्ताएं पूरी करने के बाद राकेश शर्मा अंतरिक्ष में जाने वाले पहले भारतीय बने. लेकिन यह पूरी तरह भारत का मिशन नहीं था बल्कि तत्कालीन सोवियत संघ के इंटरकॉस्मोस स्पेस प्रोग्राम के साथ एक संयुक्त प्रयास का हिस्सा भर था. तब से लेकर अब तक आकाश में न जाने कितने विमान गुजर चुके हैं. इन 40 सालों में स्पेस को अकेले दम पर फतह करने की भारतीय कोशिश कई गुना आगे निकल आई है. भारत अब 'गगनयान मिशन' को मूर्त रूप देने में लगा है, जिसे देश की अंतरिक्ष एजेंसी यानी इसरो संचालित कर रहा है.
गगनयान भारत का पहला मानवयुक्त मिशन है जिसे 2025 में अंजाम दिया जाना है. लेकिन किसी इंसान को अंतरिक्ष में भेजने से पहले इसरो सुरक्षा के लिहाज से अपनी स्पेसक्राफ्ट की टेस्टिंग करना चाहता है. इसके लिए गगनयान से पहले एक फीमेल ह्यूमनॉइड रोबोट 'व्योममित्र' को अंतरिक्ष में भेजने की तैयारी है. इसी क्रम में हाल ही में खबर आई कि इसरो ने व्योममित्र की ह्यूमनॉइड खोपड़ी का डिजाइन तैयार कर लिया है. इसे विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र की केरल स्थित तिरुवनंतपुरम यूनिट द्वारा तैयार किया गया है.
क्या होते हैं ह्यूमनॉइड्स?
ह्यूमनॉइड्स दरअसल वैसे रोबोटिक सिस्टम होते हैं जो बिल्कुल इंसानों की तरह व्यवहार करते हैं. इनका इस्तेमाल स्पेस में अंतरिक्ष यात्रियों को उन कामों में मदद के लिए किया जाता है जो थोड़े खतरनाक किस्म के होते हैं या जिन्हें बार-बार किए जाने की जरूरत होती है. जैसे सौर पैनलों की सफाई करना या फिर स्पेसक्राफ्ट के बाहर मौजूद फॉल्टी उपकरणों को ठीक करना. इसके अलावा ये एस्ट्रॉनॉट्स की भी रक्षा करते हैं और उन्हें चिंतारहित होकर वैज्ञानिक मिशन पर काम करने की सहूलियत प्रदान करते हैं.
व्योममित्र भी ऐसी ही एक रोबोटिक सिस्टम है जो एक एस्ट्रोनॉट की तरह काम करेगी. यह दो शब्दों से मिलकर बनी है - व्योम + मित्र. व्योम का मतलब होता है अंतरिक्ष. यानी अंतरिक्ष मित्र. यह एक फीमेल ह्यूमनॉइड है जो किसी इंसानी शरीर के ऊपरी भाग जैसी है. इसमें मानव जैसी भुजाएं, चेहरा और गर्दन मौजूद हैं. यह अंतरिक्ष में खुद-ब-खुद काम करेगी. इसके अलावा यह ग्राउंड स्टेशन में मौजूद वैज्ञानिकों और मिशन की टीम से संपर्क करके बात करेगी. यह इंसानों जैसे कार्य करने और अंतरिक्ष यात्रा के प्रभावों का आकलन करने के लिए सेंसर से लैस होगी.
कैसे तैयार हुई व्योममित्र की ह्यूमनॉइड खोपड़ी
हाल ही में इसरो ने व्योममित्र की जो ह्यूमनॉइड खोपड़ी डिजाइन की है वो उस रोबोट का सबसे महत्वपूर्ण घटक है. इसे एल्यूमीनियम मिश्र धातु (AlSi10Mg) का इस्तेमाल करके बनाया गया है जो अपनी फ्लेक्सिबिलिटी, हल्के वजन, गर्मी झेलने की क्षमता और यांत्रिक गुणों के लिए जाना जाता है. इस मिश्र धातु का इस्तेमाल आमतौर पर ऑटोमोटिव इंजन और एयरोस्पेस घटकों को बनाने के लिए किया जाता है.
इसकी सबसे खास बात ये है कि यह अविश्वसनीय रूप से काफी मजबूत होता है. यह रॉकेट लॉन्च के समय अनुभव होने वाले जबर्दस्त कंपन को भी झेल सकता है. इस एल्यूमीनियम मिश्र धातु की उच्च शक्ति 220 मेगापास्कल (1 एमपीए = 1 मिलियन पास्कल) से ज्यादा की यील्ड स्ट्रेंथ प्रदान करती है. यील्ड स्ट्रेंथ से आशय उस अधिकतम तनाव से है जो किसी वस्तु के स्थायी रूप से बिखरने से पहले उस पर लगाया जाता है.
व्योममित्र की ह्यूमनॉइड खोपड़ी का वजन 800 ग्राम है और साइज 200 मिमी x 220 मिमी है. जिस एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग (एएम) तकनीक के जरिए ह्यूमनॉइड खोपड़ी का निर्माण हुआ, उसमें AlSi10Mg की भूमिका सबसे ज्यादा होती है. एएम दरअसल, एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें 3डी डिजिटल मॉडल से किसी भौतिक वस्तु को बनाने के लिए उसमें परत दर परत वस्तु को जोड़ा जाता है. इसे 3डी प्रिंटिंग के नाम से भी जाना जाता है. इसकी खास बात ये है कि नए डिजाइन, हल्के और सुरक्षित उत्पाद कम समय और कम लागत में बनाए जा सकते हैं.
इसके अलावा ये अंतिम प्रोडक्ट के कुल वजन को महत्वपूर्ण रूप से कम करने में मदद करता है. दरअसल, अंतरिक्ष अभियानों के लिए जो पेलोड बनाए जाते हैं,उनमें अक्सर मजबूत लेकिन लचीली और हल्की वस्तु का इस्तेमाल किया जाता है. इसका कारण यह है कि पेलोड जितना भारी होगा, अंतरिक्ष तक पहुंचने के लिए उतने ही अधिक ईंधन की जरूरत होगी और उतने ही बड़े रॉकेट की भी जरूरत पड़ती है.
दिसंबर तक पूरी हो जाएगी टेस्टिंग
कई मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, मिशन गगनयान कार्यक्रम अगले साल यानी 2025 के लिए निर्धारित है. मानव को अंतरिक्ष में भेजने के प्रयास से पहले इसरो गगनयान-1 और गगनयान-2 मिशन संचालित करेगा. गगनयान-1 मिशन दिसंबर, 2024 में संचालित किया जाएगा.
गगनयान-1 मुख्य रूप से स्पेसक्राफ्ट के अंतरिक्ष में जाने और उसे वापस समुद्र में गोता लगाने की टेस्टिंग के लिए होगा. वहीं गगनयान-2 मिशन व्योममित्र को उस क्रू मॉड्यूल के अंदर ले जाएगा, जहां बैठकर एस्ट्रोनॉट वास्तविक उड़ान भरेंगे. इस दौरान ह्यूमनॉइड उन सभी मापदंडों को रिकॉर्ड करेगा जिनका इस्तेमाल इंसानों पर अंतरिक्ष उड़ानों के प्रभावों का अध्ययन करने के लिए किया जाएगा.
भारत का मिशन गगनयान
गगनयान भारत का पहला मानवयुक्त मिशन है जिसे 2025 में अंजाम दिया जाना है. इसका उद्देश्य तीन भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को तीन दिन के लिए धरती की सतह से करीब 400 किमी दूर अंतरिक्ष में ले जाना और उन्हें धरती पर सुरक्षित वापस लाना है. भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो इस उड़ान की तैयारी के लिए लगातार कई परीक्षण कर रही है. पिछले साल अक्टूबर में एक महत्वपूर्ण परीक्षण में यह दिखाया गया कि रॉकेट में खराबी आने की स्थिति में चालक दल सुरक्षित रूप से उससे बाहर निकल सकता है.
इस साल फरवरी में भारतीय वायुसेना के उन चार पायलटों को देश के सामने लाया गया था जो मिशन गगनयान के तहत अंतरिक्ष में जाएंगे. इनमें ग्रुप कैप्टन प्रशांत बालकृष्णन नायर, ग्रुप कैप्टन अजीत कृष्णन, ग्रुप कैप्टन अंगद प्रताप और विंग कमांडर शुभांशु शुक्ला शामिल हैं. भारत का यह मिशन अगर सफल हो जाता है तो वो सोवियत संघ (यूएसएसआर), अमेरिका और चीन के बाद अंतरिक्ष में मानव भेजने वाला चौथा देश बन जाएगा. यूएसएसआर और अमेरिका दोनों ही 1961 से अंतरिक्ष में मौजूद हैं. जबकि चीन ने अक्टूबर 2003 में यह उपलब्धि हासिल की.
चीन अंतरिक्ष में पहुंचने वाला तीसरा देश बना था, जब उसके एक मिशन ने अंतरिक्ष में 21 घंटे बिताए और 14 बार पृथ्वी की परिक्रमा की. इसके अलावा अमेरिका और चीन के पास पूरी तरह से काम कर रहे अंतरिक्ष स्टेशन भी हैं.
भारत के संबंध में बात करें तो साल 1984 में पहले भारतीय के तौर पर अंतरिक्ष की सैर करने वाले राकेश शर्मा ने रूसी अंतरिक्ष यान पर लगभग आठ दिन बिताए थे. वहीं पिछले साल अगस्त में भारत ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास उतरने वाला पहला देश बनकर इतिहास रच दिया. इसके कुछ ही सप्ताह बाद, वैज्ञानिकों ने सूर्य के लिए भारत का पहला अवलोकन मिशन आदित्य-एल1 प्रक्षेपित किया, जो अब सूर्य की कक्षा में है और हमारे सौरमंडल के इस सबसे महत्वपूर्ण तारे पर नजर रख रहा है.
भारत ने अंतरिक्ष के लिए और भी नई महत्वाकांक्षी योजनाओं की घोषणा की है, जिनमें कहा गया है कि उसका लक्ष्य 2035 तक एक अंतरिक्ष स्टेशन स्थापित करना और 2040 तक चंद्रमा पर एक अंतरिक्ष यात्री भेजना है.