भारत में धड़ल्ले से बिक रही पाकिस्तान में बनीं 'जहरीली' फेयरनेस क्रीम!

भारत में ई-कॉमर्स साइट Amazon पर बिक रहीं पाकिस्तान, थाईलैंड और अन्य देशों में निर्मित कई फेयरनेस क्रीम में मरकरी या पारे की मात्रा इतनी ज्यादा है कि ये सेहत के लिए गंभीर खतरा बन सकती हैं

भारत में लोगों के बीच गोरा होने की क्रीम प्रचलन में है (Photo- Pexels)
भारत में ब्यूटी प्रोडक्ट्स में पारे का उपयोग प्रतिबंधित है

Amazon पर कई ऐसी क्रीमें आराम से उपलब्ध हैं जो आपको गोरा बनाने का दावा करती हैं. लेकिन इन स्किन फेयरनेस क्रीम में पारा (मर्करी) का स्तर स्वीकार्य सीमा से बहुत ज्यादा होता है. नई दिल्ली स्थित गैर-लाभकारी संस्था टॉक्सिक्स लिंक कई बार इस बात को उजागर कर चुकी है. 

अपनी हालिया जांच में टॉक्सिक्स लिंक ने आठ ऐसे ब्रांड्स का परीक्षण किया जिनकी Amazon पर खूब बिक्री है. जांच में पाया गया कि पाकिस्तान, थाईलैंड और अन्य देशों में निर्मित उत्पादों के आठ में से सात नमूने भारतीय नियामकों की तरफ से निर्धारित सौंदर्य प्रसाधनों के लिए पारा मानकों का उल्लंघन कर रहे हैं.

जिन ब्रांड की जांच की गई उनमें पाकिस्तान निर्मित इनफोकस प्रोफेशनल पर्ल हर्बल ब्यूटी क्रीम, फैजा ब्यूटी क्रीम, चांदनी व्हाइटनिंग क्रीम, गोरी ब्यूटी क्रीम, न्यू फ्रेश एंड व्हाइट ब्यूटी क्रीम और सैंडल ब्यूटी क्रीम के अलावा थाईलैंड की 4K प्लस व्हाइटनिंग नाइट क्रीम शामिल है. इन सभी में पारे का स्तर 7,331 पीपीएम (पार्ट्स पर मिलियन) से लेकर 27,431 पीपीएम तक पाया गया. सिर्फ सैंडल ब्यूटी क्रीम में पारा 1 पीपीएम से कम था.

टॉक्सिक्स लिंक स्टडी में शामिल सभी ब्रांड का विश्लेषण यूरोपीय संघ और अमेरिका की मान्यता प्राप्त लैब में किया गया. टॉक्सिक्स लिंक के एसोसिएट डायरेक्टर सतीश सिन्हा बताते हैं, “यह पहली बार नहीं है जब इस तरह की खामियां हमारे सामने आई है. पिछले पांच वर्षों में हमने भारतीय बाजार खासकर ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध फेयरनेस क्रीम उत्पादों पारे की मात्रा अधिक होने का खुलासा करने वाले कई अध्ययन किए हैं. बार-बार सामने आए निष्कर्षों के बावजूद ये जहरीले उत्पाद बेरोकटोक बिक रह हैं. Amazon.in पर इनका निरंतर उपलब्धता होना पूरी तरह गैर-कानूनी है और राष्ट्रीय नियमों का गंभीर उल्लंघन है.”

इंडिया टुडे ने इस सबंध में Amazon से कुछ प्रश्न पूछे. लेकिन ये आर्टिकल प्रकाशित होने तक उसकी तरफ से कोई जवाब नहीं आया था.

2021 में टॉक्सिक्स लिंक ने इसी तरह फेयरनेस क्रीम के 15 ब्रांड का परीक्षण किया था जिनमें छह में पारे की उपलब्धता पाई गई थी. इनमें से केवल स्टिलमैन की स्किन ब्लीच क्रीम में पारा स्वीकार्य सीमा (0.3 पीपीएम) के भीतर था, जबकि बाकी पांच ब्रांडों- गोरी, फैजा, फेस फ्रेश और चांदनी- में पारे की सांद्रता 4,000 पीपीएम और 14,000 पीपीएम के बीच पाई गई. चार साल बाद भी ये ब्रांड भारत में ऑनलाइन आसानी से उपलब्ध हैं.

आर्थिक प्रतिस्पर्धा कानूनों पर अमल सुनिश्चित करने वाली वैधानिक संस्था पाकिस्तान प्रतिस्पर्धा आयोग (CCP) ने इसी महीने अपने देश में पारा युक्त फेयरनेस क्रीम बनाने, उसकी मार्केटिंग और बिक्री करने वाली कंपनियों के खिलाफ देशव्यापी जांच शुरू की. CCP ने पाया कि इनमें से कई ब्रांड सुरक्षित और प्रभावी होने का झूठा दावा करते हैं, और लेबल पर उत्पाद में पारा मौजूद होने की जानकारी को छिपाते हैं. पारा अक्सर सामग्री लेबल पर अलग तरह के नामों से दर्शाया जाता है, मसलन cinnabaris, hydrargyrum, quicksilver, calomel आदि.
 
नियम-कायदे और स्वास्थ्य जोखिम

भारत में ब्यूटी प्रोडक्ट्स में पारे का उपयोग प्रतिबंधित है. औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 के कॉस्मेटिक नियम, 2020 के तहत अनजाने में अशुद्धता के तौर पर पारे की स्वीकार्य सीमा 1 पीपीएम है, जो घरेलू उत्पादकों और आयातित सौंदर्य प्रसाधनों, दोनों पर लागू होती है.

त्वचा गोरी बनाने वाली क्रीमों का पारे का इस्तेमाल आमतौर पर इसलिए किया जाता है क्योंकि यह मेलेनिन उत्पादन को घटाता है, जिससे रंग गोरा लगने लगता है. हालांकि, इसके व्यापक प्रमाण हैं कि पारा युक्त क्रीम स्वास्थ्य पर गंभीर दुष्प्रभाव डालती हैं.

पारा एक न्यूरोटॉक्सिन और नेफ्रोटॉक्सिन दोनों है, जो नर्व्स सिस्टम और किडनी दोनों के लिए ही हानिकारक होता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक, सांस के जरिये या निगलने अथवा त्वचा के संपर्क के माध्यम से इसका शरीर में पहुंचाना न्यूरोलॉजिकल और व्यवहार संबंधी विकार उत्पन्न कर सकता है. नतीजा- कंपकपी, अनिद्रा, याददाश्त खराब होना, न्यूरो-मस्कुलर समस्याएं, सिरदर्द और संज्ञानात्मक बोध में गड़बड़ी के तौर पर सामने आ सकता है.
 
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर क्या है हाल

वैश्विक बाजारों में इस मामले में स्पष्ट अंतर नजर आता है. अमेरिका और यूरोपीय संघ में Amazon  वेबसाइट पर केवल कुछ पारा-युक्त फेयरनेस क्रीम ही उपलब्ध हैं.

वैश्विक स्तर पर 55 देशों के 110 से ज्यादा पर्यावरण और स्वास्थ्य संगठनों के गठबंधन जीरो मर्करी वर्किंग ग्रुप (ZMWG) ने दुनियाभर के साझेदार संगठनों के जरिये फेयरनेस क्रीम का परीक्षण किया. परीक्षण के दौरान 31 में से 25 क्रीमों में ज्यादातर राष्ट्रीय कानूनों और 2013 के मिनामाता कन्वेंशन ऑन मर्करी में निर्धारित 1 पीपीएम की सीमा से हजारों गुना ज़्यादा पारा पाया गया.

हाल ही में अमेरिका के कैलिफोर्निया में एक कानूनी समझौते के तहत Amazon.com को सेहत को नुकसान पहुंचाने वाले फेयरनेस उत्पादों को प्रतिबंधित करने की नीति लागू करना पड़ी. लेकिन ZMWG के परीक्षणों से पता चलता है कि 23 से ज्यादा देशों में Amazon  पर ऑनलाइन इन क्रीमों की बिक्री पर कोई रोक नहीं है जो एक “दोहरा मापदंड” को ही दर्शाता है. यही नहीं, ये ग्लोबल साउथ में उपभोक्ताओं के लिए एक खासा बड़ा खतरा भी है. टॉक्सिक्स लिंक के सिन्हा का कहना है, “पारा युक्त उत्पादों की बिक्री को रोकने के लिए Amazon  को भारत में अपनी प्रतिबंधित उत्पाद नीतियों को लागू करना होगा.”

2020 में भी टॉक्सिक्स लिंक ने Amazon  इंडिया को पारा युक्त स्किन क्रीम की बिक्री बंद करने के लिए लिखा था. हालांकि, Amazon  ने जवाब दिया कि वह अपने प्लेटफॉर्म के माध्यम से बेचे जाने वाले थर्ड-पार्टी उत्पादों के लिए जिम्मेदार नहीं है.
ZMWG के सह-समन्वयक माइकल बेंडर ने कहा, “हमारा Amazon  से यही आग्रह है कि वह वैश्विक स्तर पर थर्ड-पार्टी विक्रेताओं के लिए वही शर्तें लागू करे जो वह अमेरिका में लागू होती है. यानी उत्पादों को सूचीबद्ध करने से पहले पारे की जांच करना और Amazon  सेलर सेंट्रल पॉलिसी का अनुपालन सुनिश्चित करना.”

ZMWG का तर्क है कि Amazon  को ये सुनिश्चित करने की पूरी कानूनी जिम्मेदारी लेनी चाहिए कि उसके प्लेटफॉर्म पर बिकने वाले सभी उत्पाद स्वास्थ्य, उपभोक्ता और उत्पाद सुरक्षा कानूनों का पालन करते हैं. बेंडर ने कहा, “ऐसा नहीं होना Amazon  के दुनिया की सबसे बड़ी ग्राहक-केंद्रित कंपनी बनने के दावे को बेमानी कर देगा.”

यूरोपीय पर्यावरण ब्यूरो के पॉलिसी ऑफिसर राफेल कैटे का कहना है, “ये निष्कर्ष (टॉक्सिक्स लिंक स्टडी) ई-कॉमर्स के जरिये असुरक्षित आयात पर जारी यूरोपीय संघ की बहस की याद दिलाते हैं. अमेरिका में Amazon  के साथ हुआ समझौता दर्शाता है कि प्लेटफॉर्म समाधान का हिस्सा बन सकते हैं. थर्ड पार्टी विक्रेताओं से स्वतंत्र परीक्षण और अनुपालन की अपेक्षा करना बिल्कुल वही नजरिया है जिसकी EU को आवश्यकता है.”
 
भारत में अमल पर ढिलाई

भारत पारे पर मिनामाता कन्वेंशन का अनुमोदन कर चुका है, जो एक अंतरराष्ट्रीय संधि है. इसके तहत सभी पक्षों के लिए 1 पीपीएम से अधिक पारे वाले सौंदर्य प्रसाधनों के निर्माण, आयात और निर्यात पर प्रतिबंध लगाना अनिवार्य है.

हालांकि, भारत के अपने घरेलू कानून इस कन्वेंशन के अनुरूप ही हैं, फिर भी इसके अमल में खासी ढिलाई बरती जाती है. भारतीय उपभोक्ताओं की सुरक्षा और स्वास्थ्य रक्षा के लिए जमीनी स्तर पर मजबूती के साथ इन कानूनों पर अमल सुनिश्चित करना सबसे बड़ी जरूरत है.

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