वोटर ID को आधार से लिंक करने पर मचा घमासान; सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में क्यों लगाई थी रोक?

दो मौके पर असफल होने के बाद अब एक बार फिर से चुनाव आयोग ने वोटर ID को आधार कार्ड से लिंक करने की कोशिश शुरू की है

18 मार्च, 2025 को मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार के साथ सीनियर अधिकारियों की इस मुद्दे पर हुई बैठक की तस्वीर (फोटो साभार- पीटीआई)
18 मार्च, 2025 को मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार के साथ सीनियर अधिकारियों की इस मुद्दे पर हुई बैठक की तस्वीर (फोटो साभार- पीटीआई)

मार्च की 18 तारीख को मुख्य चुनाव आयोग, गृह मंत्रालय, सूचना प्रौद्योगिकी एवं दूरसंचार मंत्रालय और आधार बनाने वाली एजेंसी UIDAI के सीनियर अधिकारियों के बीच बैठक हुई. यह इस साल चुनाव आयोग और भारत सरकार के सीनियर अधिकारियों के बीच होने वाली पहली बड़ी बैठक थी.

इसमें वोटर ID और आधार को लिंक करने पर सहमति बनी. अब जल्द ही इस पर एक्सपर्ट की राय ली जाएगी. चुनाव आयोग का कहना है कि वोटर कार्ड को आधार से जोड़ने का काम मौजूदा कानून और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार किया जाएगा.

यह पहला मौका नहीं है, इससे पहले दो बार चुनाव आयोग ने वोटर ID को आधार से लिंक करने की कोशिश की, लेकिन ज्यादा सफलता नहीं मिली. विपक्षी दलों ने जब इस मुद्दे पर घमासान मचाया तो मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और कोर्ट ने इसपर रोक लगा दी.

अब एक बार फिर चुनाव आयोग वोटर कार्ड से आधार को लिंक करने के लिए कोई बड़ा फैसला लेने का मन बना चुका है. वहीं, विपक्ष इसका विरोध कर रहा है. ऐसे में लॉ एक्सपर्ट के जरिए इस पूरे मामले को समझते हैं-

चुनाव आयोग वोटर ID को आधार कार्ड से क्यों लिंक करना चाहता है?

सुप्रीम कोर्ट के वकील विराग गुप्ता के मुताबिक, चुनाव आयोग और सरकार वोटर ID और आधार को लिंक किए जाने के समर्थन में 4 मुख्य तर्क देती है-

1. एक व्यक्ति कई जगहों पर वोट देता है. ऐसे में अगर वोटर ID को आधार से लिंक किया जाता है तो एक मतदाता का नाम एक ही जगह की वोटर लिस्ट में होगा. इससे डुप्लीकेसी रुकने के साथ ही एक देश एक वोटर लिस्ट की पहल को बढ़ावा मिलेगा.

2. इलेक्ट्रॉनिक और इंटरनेट आधारित मतदान को बढ़ावा देने के लिए वोटर ID को आधार से लिंक होना जरूरी है.

3. देश में बड़ी आबादी अपने घर गांव को छोड़कर शहरों की ओर पलायन करती है. ये सभी लोग वोटिंग से वंचित रहते हैं. ऐसे में ये लोग के घर से दूर रहने के बावजूद वोट दे पाएंगे.

4. प्रॉक्सी वोटिंग की सुविधा के लिए, जिसमें मतदाता के सत्यापन के लिए आधार की आवश्यकता हो सकती है.

भारतीय चुनाव आयोग के मुताबिक वोटर-आधार को लिंक करने का मकसद आगामी चुनावों से पहले चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता, समावेशिता और एफिशिएंसी को बढ़ाना है. चुनाव आयोग 31 मार्च से पहले दोबारा इस मुद्दे पर मीटिंग करने वाला है.

पिछले 10 साल में पहली बार चुनाव आयोग ने कानूनी ढांचे के भीतर सभी राष्ट्रीय और राज्य-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों से 30 अप्रैल 2025 तक आधिकारिक तौर पर सुझाव मांगे हैं. मतलब साफ है कि इस बार चुनाव आयोग वोटर-आधार को लिंक करने के लिए सख्ती से मन बना चुका है.

विराग बताते हैं कि इस पूरी प्रक्रिया में सबसे बड़ा कानूनी संकट यह है कि आधार कार्ड निजी एजेंसियों द्वारा बनाया जा रहा है, जिसमें विशेष वेरिफिकेशन नहीं होता. दूसरी तरफ वोटर कार्ड को कानूनी प्रक्रिया के तहत चुनाव आयोग के सुपरविजन में जारी किया जाता है. इसलिए वोटर कार्ड के शुद्धिकरण के लिए आधार कार्ड के इस्तेमाल से मर्ज ठीक होने के बजाय और जटिल होने के साथ बढ़ सकता है.

वोटर ID और आधार लिंक करने पर चुनाव आयोग की सक्रियता की क्या वजह है?

दिल्ली विधानसभा चुनाव के पहले आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह की पत्नी का नाम दो जगह की वोटर लिस्ट के विवाद में चुनाव आयोग ने दिल्ली पुलिस को जांच का निर्देश दिया था.

उस मामले में संजय सिंह का यह दावा था कि उनकी पत्नी ने उत्तर प्रदेश के चुनाव अधिकारियों को जरूरी लिखित सूचना दी थी. उसके बाद यह चुनाव आयोग की जिम्मेदारी है कि दो जगहों पर वोटर का नाम दर्ज नहीं रहे. वहीं पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की सरकार ने अनेक डुप्लीकेट वोटरों का विवरण चुनाव आयोग को दिया था.

आगामी बिहार चुनाव में विवाद से बचने के लिए चुनाव आयोग और केंद्र सरकार डुप्लीकेट वोटरों की समस्या का सुप्रीम कोर्ट के फैसले और कानून के दायरे में समाधान करने का प्रयास कर रहे हैं.

इससे पहले कब-कब वोटर ID और आधार को लिंक करने की कोशिश हुई?

सुप्रीम कोर्ट के वकील विराग गुप्ता के मुताबिक चुनाव आयोग ने मतदाता सूची की गड़बड़ियां दूर करने के लिए वोटर कार्ड को आधार से लिंक करने की प्रक्रिया मार्च 2015 में शुरू की थी, जिसपर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी.

युवा मतदाताओं के रजिस्ट्रेशन, एक देश एक वोटर लिस्ट और हर नागरिक के पास एक मतदाता पहचान पत्र सुनिश्चित करने के लिए दिसंबर 2021 में सरकार ने पहल शुरू की. इसके तहत जून 2022 में सरकार ने नया कानून बनाया. नए कानून रजिस्ट्रेशन ऑफ इलेक्ट्रोरल अमेंडमेंट रुल्स 2022 के अनुसार संशोधित रजिस्ट्रेशन फॉर्म जारी किया गया. रजिस्ट्रेशन ऑफ इलेक्ट्रोरल रूल 1960 के नियम 26-बी के अनुसार चुनाव आयोग ने फार्म-6बी जारी किया था.

इसमें वोटरों को आधार कार्ड देने की प्रक्रिया बनाई गई. आधार कार्ड नहीं होने पर 11 अन्य दस्तावेजों को दिया जा सकता था, जिनमें मनरेगा कार्ड, बैंक की फोटो वाली पासबुक, ड्राइविंग लाइसेंस, पेन कार्ड, पासपोर्ट आदि प्रमुख हैं.

जी निरंजन बनाम चुनाव आयोग मामले में सुप्रीम कोर्ट के 18 सितंबर 2023 के आदेश के अनुसार चुनाव आयोग के वकील ने यह शपथ पत्र दी कि फार्म-6-बी के तहत आधार जरूरी नहीं है. इसके बाद स्वैच्छिक तौर पर 66.23 करोड़ लोगों ने सितंबर 2023 तक चुनाव आयोग को अपना आधार कार्ड का नंबर दे दिया है.

अब एक बार फिर से कानून में बदलाव कर चुनाव आयोग नए सिरे से वोटर ID और आधार लिंक कराने की प्रक्रिया को तेज करना चाहता है.

सुप्रीम कोर्ट ने क्या तर्क देते हुए वोटर ID और आधार लिंक किए जाने पर रोक लगाई थी?

विराग के मुताबिक चुनाव आयोग ने मार्च 2015 से अगस्त 2015 तक राष्ट्रीय मतदाता सूची शुद्धिकरण कार्यक्रम यानी NERPAP चलाया था. उस समय चुनाव आयोग ने 30 करोड़ से ज्यादा वोटर ID को आधार से लिंक करने की प्रक्रिया पूरी कर ली थी. यह प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद रुकी.

दरअसल, वोटर ID को आधार से लिंक करने की प्रक्रिया के दौरान आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के करीब 55 लाख लोगों के नाम वोटर डेटाबेस से हट गए थे. इसी को लेकर आधार की संवैधानिकता को लेकर मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था और शीर्ष अदालत ने चुनाव आयोग को वोटर ID और आधार को लिंक करने से रोक दिया था.

26 सितंबर 2018 को आधार को लेकर दिए अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि सरकार सब्सिडी और कल्याणकारी योजनाओं के अलावा आधार को किसी भी सेवा के लिए अनिवार्य नहीं बना सकती.

कानूनी स्तर पर वोटर ID और आधार लिंक किए जाने में क्या दिक्कते हैं?

सुप्रीम कोर्ट के वकील विराग गुप्ता बताते हैं कि एक देश एक चुनाव के बारे में पूर्व राष्ट्रपति कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति गंभीर मंथन कर रही है. हालांकि, एक देश एक वोटर लिस्ट को बनाने का ठोस रोडमैप सरकार के पास नहीं है.

पूरे देश में पंचायत, विधानसभा और लोकसभा चुनावों के लिए तीन तरह की वोटर लिस्ट हैं. वोटर लिस्ट में नाम शामिल होने के लिए 18 साल की उम्र और भारतीय नागरिक होना जरूरी है. वोटर लिस्ट भारतीय नागरिकता का प्रमाण है, जबकि आधार कार्ड भारत में रहने वाले सभी लोगों को वेरिफिकेशन के बगैर दिया जा रहा है.

पश्चिम बंगाल में टीएमसी के नेताओं ने चुनाव आयोग से आग्रह किया है कि सभी वोटर कार्ड को आधार की तरह एक यूनिक नंबर दिया जाना चाहिए. इससे डुप्लीकेट वोटरों की समस्या खत्म हो सकती है. पार्टी का कहना है कि इसके बजाय आधार कार्ड से वोटर कार्ड को लिंक करने का विफल फार्मूला नए सिरे से आजमाने की कोशिश हो रही है.

पिछली बार तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में 55 लाख से ज्यादा वोटरों के नाम वोटर लिस्ट से हट गये थे. उसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सिर्फ आधार नहीं होने से किसी को वोटिंग के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता. इसलिए पिछले दरवाजे से आधार को अनिवार्य बनाये जाने से मुकदमेबाजी के साथ कानूनी विवाद भी बढ़ेंगे.

विपक्ष आधार और वोटर ID लिंक किए जाने के विरोध में क्या दलीलें दे रहा है?

राहुल गांधी ने वोटर आईडी और आधार लिंक का विरोध करते हुए कहा है, “कांग्रेस और INDIA ब्लॉक लगातार मतदाता सूचियों के मुद्दे उठाता रहा है. इसमें असामान्य रूप से मतदाताओं को जोड़ना, हटाना और डुप्लिकेट वोटर ID के मुद्दे शामिल हैं. अगर आधार नंबर, डुप्लिकेट वोटर आईडी से जुड़ गया तो गरीब लोगों को लिंकिंग प्रोसेस में दिक्कत आएगी. चुनाव आयोग को तय करना चाहिए कि कोई भी भारतीय अपने वोट से वंचित न रहे.”

2022 में बिना चर्चा कराए चुनाव कानून में संशोधन कराने पर राज्य सभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने सरकार पर भड़कते हुए कहा था, “बिना चर्चा और बहस के इस बिल को पास कराना 'लोकतंत्र का मजाक' उड़ाना है.”

कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने भी कहा था, ''आधार कार्ड केवल निवास के प्रमाण के लिए है, न कि नागरिकता के प्रमाण के लिए.'' थरूर ने सरकार पर ये भी आरोप लगाया था कि ऐसा करके सरकार गैर-नागरिकों को वोटिंग अधिकार दे रही है.

AIMIM सांसद असदुद्दीन ओवैसी के मुताबिक, “सरकार इससे राइट टु प्राइवेसी' अधिकार का भी उल्लंघन करेगी. इस कदम से चुनाव आयोग की स्वायत्तता में भी दखल पड़ेगा.”

क्या वोटर ID और आधार लिंक करने से पर्सनल डेटा लीक होने का डर है?

विराग बताते हैं कि आधार को जरूरी बनाने से लोगों को प्राइवेसी यानि निजता के अधिकार के हनन की भी आशंका है. आधार में नंबर के साथ बायोमैट्रिक्स भी होते हैं, जिसके इस्तेमाल के 12 फीसदी तक गलती की गुजाइंश है. लेकिन सरकार का मानना है कि आधार बायोमेट्रिक के माध्यम से सत्यापन करना सस्ता होने के साथ विश्वसनीय भी है.

2015 में आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में आधार को वोटर लिस्ट से जोड़ने की प्रक्रिया में 30 लाख से ज्यादा लोगों का नाम वोटर लिस्ट से हट गए थे. इसीलिए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि आधार नहीं होने की वजह से किसी को उसके संवैधानिक अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता.

क्या वोटर ID और आधार लिंक करने के लिए कोई कानून बदलने की जरूरत होगी?

हां, ऐसा करने के लिए सरकार को कानून में बदलाव करना होगा. दरअसल, 2022 में संशोधन के जरिए चुनाव कानून को बदला गया था. इसके तहत फार्म-6बी जोड़ा गया था. इसमें किसी व्यक्ति के लिए अपना आधार नंबर देना स्वैच्छिक था. मतलब आप चाहें तो आधार को वोटर आईडी से लिंक कराएं और नहीं चाहें तो नहीं कराएं. इसके लिए वजह बताने की जरूरत नहीं थी.

हालांकि, अब चुनाव आयोग चाहता है कि जो लोग आधार लिंक नहीं कराएंगे, उन्हें सही वजह बताना चाहिए. इसके लिए फार्म-6-बी में बदलाव करने जरूरत होगी. चुनाव कानून में बदलाव के बाद सुप्रीम कोर्ट के फैसले के उल्लंघन के बगैर बाकी बचे 33 करोड़ से ज्यादा मतदाताओं के आधार कार्ड का डिटेल हासिल किया जा सकता है.

इतना ही नहीं चुनाव आयोग की वेबसाइट में उपलब्ध संशोधित रजिस्ट्रेशन फार्म में दी गई सूचना के अनुसार आधार डेटा की सुरक्षा के लिए आधार कानून की धारा-37 में किए गए प्रावधानों का पालन जरूरी है. आधार की जानकारी सार्वजनिक नहीं की जाएगी और यदि ऐसा किया गया तो सूचनाओं को छिपाया जाएगा.

आधार की हार्ड कॉपी को चुनाव अधिकारी की सेफ कस्टडी में डबल लॉक में रखा जाएगा. वोटरों के आधार नंबर को चुनाव आयोग द्वारा लिये गये लाइसेंस्ड आधार वॉल्ट में रखा जायेगा. चुनाव आयोग के अनुसार आधार के डेटा को चुनाव आयोग की वोटर लिस्ट के डेटा के साथ मिक्स नहीं किया जाएगा.

आधार को वोटर कार्ड के साथ लिंक करने में बायोमेट्रिक डेटा के इस्तेमाल नहीं करने की भी बात हो रही है. सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर आधार कार्ड को पूरी तरह से सुरक्षित बताया था. उसके बावजूद डार्क वेब में आधार का डेटा कौड़ियों के भाव नीलाम हो रहा है.

टटुस्वामी मामले में 9 जजों की संविधान पीठ के साल-2017 के फैसले के 6 साल बाद संसद ने डेटा सुरक्षा कानून पारित किया लेकिन नियम नोटिफाई नहीं होने से उन्हें अभी तक लागू नहीं किया गया.

आमलोगों के लिहाज से देखें तो चुनाव आयोग के इस फैसले से उनके लिए क्या बदलेगा?

वोटर लिस्ट से जुड़े अनेक राजनीतिक विवाद हैं. चुनाव आयोग के पास 66 करोड़ से ज्यादा लोगों का आधार डेटा कई सालों से है जिसका अभी तक इस्तेमाल नहीं किया गया.

डुप्लीकेट वोटरों का मसला सॉफ्टवेयर और टेक्नोलॉजी के प्रभावी इस्तेमाल से दुरुस्त किया जा सकता है. वोटर लिस्ट को साल में 4 बार अपडेट करने से 18 साल के युवाओं को समय पर वोट डालने का अधिकार मिल रहा है. उसी तरह से डुप्लीकेट वोटरों के मसले को दुरुस्त करके लोकतंत्र और संविधान की रक्षा करना अनुच्छेद-324 और 326 के तहत चुनाव आयोग की बड़ी जिम्मेदारी है.

नाम, पिता, उम्र और निवास के आधार पर वोटर लिस्ट को सॉफटवेयर के माध्यम से अपडेट करने पर संदिग्ध वोटरों का डेटा हासिल हो सकता है. ऐसे सभी संदिग्ध वोटरों से आधार और अन्य दस्तावेज हासिल करके केस टू केस बेसिस पर उनके मामलों का निपटारा होना चाहिए.

इससे प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत का पालन होने के साथ सियासी विवाद के बगैर कानून के दायरे में वोटर लिस्ट की गड़बड़ियों को दूर किया जा सकता है.

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