चीनी राजदूत के नए सुर : ड्रैगन और हाथी कैसे बन सकते हैं भरोसेमंद साझेदार?

कोलकाता में चीन के कार्यवाहक वाणिज्य दूत चिन यंग ने हाल-ही में एक कार्यक्रम के दौरान भारत-चीन संबंधों को लेकर कई बातें कही हैं

Chinese consulate in Kolkata
चीन के वाणिज्य दूत चिन यंग

कोलकाता में भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद का हॉल खचाखच भरा था. 19 सितंबर को चीन के कार्यवाहक वाणिज्य दूत चिन यंग ने भारत-चीन संबंधों की संभावनाओं पर असामान्य रूप से उत्साहजनक टिप्पणी की और साझेदारी पर आधारित एक "नए ढांचे" की अपील की. 

टैगोर इंस्टीट्यूट ऑफ पीस स्टडीज की ओर से 'बदलती भू-राजनीति: भारत-चीन संबंधों का नया ढांचा' विषय पर आयोजित विशेष सत्र में बोलते हुए चिन ने कहा कि शीर्ष नेतृत्व के स्तर पर हाल में हुई बैठकों ने पड़ोसी देशों के लिए एक "नई शुरुआत" तय की है.

उन्होंने कहा, "प्रधानमंत्री मोदी सात साल बाद चीन गए, 31 अगस्त को राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात की और तियानजिन में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन में भाग लिया."

चिन ने भारत और चीन के बीच सहयोग पर जोर देते हुए कहा, "दोनों नेता चीन-भारत संबंधों को रणनीतिक और लंबी अवधि के नजरिए से देखने और संभालने पर सहमत हुए. वे इस बात पर भी राजी हुए कि दोनों देशों को प्रतिद्वंद्वी के बजाय एक-दूसरे का सहयोगी भागीदार होने की महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए और एक-दूसरे को खतरे के बजाय विकास के ऐसे अवसर के रूप में देखना चाहिए - जहां ड्रैगन और हाथी एक साथ डांस करें."

चिन ने भारत-चीन के बीच एक दूसरे पर बढ़ती निर्भरता के सबूत के तौर पर कारोबारी आंकड़ों का जिक्र किया: 2025 के पहले सात महीनों में द्विपक्षीय व्यापार 88 अरब डॉलर तक पहुंच गया जो एक साल पहले की तुलना में 10.5 फीसदी की बढ़ोतरी है. उन्होंने कहा, "चीन और भारत एक दूसरे के लिए लाभकारी सहयोग को मजबूत करके ही फायदेमंद और साझा विकास कर सकते हैं." उन्होंने यह भी कहा कि दोनों देशों का संयुक्त आर्थिक उत्पादन पहले से ही एशिया के कुल उत्पादन का आधा है.

चिन ने आर्थिक बेहतरी की इस उम्मीद को क्षेत्रीय स्थिरता से जोड़ा. उन्होंने कहा, "चीन-भारत के मजबूत और स्थिर संबंध एशिया के स्थायित्व के लिए एक 'दृढ़ आधार' का काम करेंगे और एशिया के विकास को गति देंगे." उन्होंने टिप्पणी की कि दोनों देशों का शांति के लिए साझा दृष्टिकोण है: चीन का विचार "ऐसे समुदाय का है जिसमें मानव जाति का साझा भविष्य हो" और भारत का विचार "एक विश्व, एक परिवार" का है.

हाल में हुए SCO शिखर सम्मेलन की समीक्षा करते हुए चिन ने भारत की भूमिका की भूरी-भूरी तारीफ की. उन्होंने कहा, "SCO के तब के बारी -बारी के अध्यक्ष और शिखर सम्मेलन के मेजबान के रूप में चीन को भारत से पूरा समर्थन मिला." उन्होंने तियानजिन घोषणापत्र, SCO विकास बैंक की स्थापना के निर्णय और नए सहयोग मंचों का प्रमुखता के साथ जिक्र किया और इन्हें "चीन के नए विकास के साथ SCO सदस्यों और भागीदार देशों के लिए नए अवसर" के रूप में बताया. उन्होंने कहा कि इस व्यवस्था के तहत बीजिंग और नई दिल्ली "सतत ऊर्जा विकास, हरित उद्योग, डिजिटल अर्थव्यवस्था, वैज्ञानिक और तकनीकी इनोवेशन, उच्च शिक्षा, पेशेवर और तकनीकी शिक्षा" में सहयोग बढ़ा सकते हैं.

चीनी राजनयिक ने द्विपक्षीय रिश्तों को एक व्यापक वैश्विक संदर्भ में प्रस्तुत किया. इस वर्ष जापानी हमले और विश्व की फासीवाद-विरोधी जंग के खिलाफ चीनी जनता के 'प्रतिरोध' युद्ध विजय की 80वीं वर्षगांठ है. साथ ही यह संयुक्त राष्ट्र की स्थापना की भी 80वीं वर्षगांठ है.

इस पृष्ठभूमि में चिन ने याद किया कि चीन और भारत ने कभी "फासीवाद के खिलाफ लड़ाई और राष्ट्रीय स्वतंत्रता एवं मुक्ति के लिए हाथ मिलाया था" और दोनों ने मिलकर शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पांच सिद्धांतों की वकालत की थी. उन्होंने शी जिनपिंग की नई वैश्विक शासन पहल का हवाला दिया और कहा, "भारत सहित भागीदार देशों ने इसकी बहुत सराहना की है और इसका सक्रिय समर्थन किया है."

चिन ने घोषणा की, "विकासशील दुनिया के महत्त्वपूर्ण सदस्य देश के रूप में चीन और भारत को एक अधिक न्यायसंगत और निष्पक्ष वैश्विक शासन व्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए मिलकर काम करना चाहिए, समान और व्यवस्थित बहुध्रुवीय विश्व और सबके लिए लाभकारी एवं समावेशी आर्थिक वैश्वीकरण की वकालत करनी चाहिए, किसी भी प्रकार के टैरिफ और व्यापार युद्ध का मजबूती से विरोध करने, विकासशील देशों के साझा हितों की रक्षा करने और विकासशील देशों के सामूहिक उत्थान में योगदान देने के लिए दोनों को मिलकर काम करना चाहिए."

2025 में भारत और चीन के बीच राजनयिक संबंधों के 75 वर्ष भी पूरे हो रहे हैं. यह ऐसी उपलब्धि है जिसका इस्तेमाल चिन ने संबंधों के सामान्य होने के संकेतों के रूप में बताने के लिए किया. उन्होंने कहा, "इस वर्ष अब तक चीन ने शीजांग या तिब्बत (कैलाश मानसरोवर यात्रा) में पवित्र कैलास पर्वत और मानसरोवर की तीर्थयात्रा फिर से खोल दी है और भारत ने चीनी नागरिकों को फिर से पर्यटक वीजा देना शुरू कर दिया है. चीन और भारत के बीच सीधी उड़ानें भी निकट भविष्य में फिर से शुरू होने की उम्मीद है." उन्होंने यह भी कहा कि इन कदमों की "दोनों पक्षों ने काफी सराहना की है और स्वागत किया है."

अपने निजी अनुभव साझा करते हुए चिन ने कहा कि उन्होंने "दोनों देशों के लोगों के बीच घनिष्ठ दोस्ती को व्यक्तिगत रूप से महसूस किया है." और यह वचन भी दिया कि कोलकाता का चीनी वाणिज्य दूतावास "चीन-भारत मैत्री को संयुक्त रूप से आगे बढ़ाने के लिए सभी क्षेत्रों के मित्रों के साथ आदान-प्रदान और सहयोग मजबूत करने के लिए तैयार है."

संदेश स्पष्ट था: वर्षों के तनाव के बावजूद बीजिंग चाहता था कि नई दिल्ली एक ऐसे भविष्य पर विचार करे जहां "ड्रैगन और हाथी साथ- साथ डांस करें", एशिया की शांति और समृद्धि का आधार बनें.

हालांकि चिन की टिप्पणियां बयानबाजी में नरमी का संकेत दे सकती हैं. लेकिन भारत-चीन के संबंधों का व्यापक संदर्भ अभी-भी जटिल बना हुआ है. भारत क्वाड और अमेरिका के साथ घनिष्ठ रक्षा संबंधों के जरिए अपनी रणनीतिक साझेदारियों में लगातार विविधता ला रहा है. साथ ही चीनी निवेश और तकनीकी हस्तांतरण की भी बारीकी से जांच कर रहा है. फिर भी, चिन ने जिस तरह  फासीवाद-विरोधी इतिहास को साझा किया और विकासशील देशों की एकजुटता की अपील की, उससे लगता है कि बीजिंग प्रतिद्वंद्विता के बजाय बहुपक्षीय सहयोग के इर्द-गिर्द संबंध बनाने को इच्छुक है, शायद वह मान रहा है कि टकराव के रवैये से खास लाभ नहीं हुआ है. नई दिल्ली के लिए चुनौती यह है कि आर्थिक अंतरनिर्भरता- जो बढ़ते व्यापार आंकड़ों से साफ है- और अपनी सीमाओं को सुरक्षित करने के साथ-साथ महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढांचे की सुरक्षा की आवश्यकता के बीच संतुलन कैसे साधा जाए. 

चिन के भाषण में व्यापार और क्षेत्रीय स्थिरता पर जिस तरह जोर दिया गया है, उससे यह बात प्रमुखता के साथ उभरती है कि आर्थिक व्यवहारिकता कैसे राजनीतिक अविश्वास को पीछे छोड़ सकती है. तीर्थयात्राओं की बहाली, वीजा प्रतिबंधों में ढील और सीधी उड़ानों की योजनाओं से धीरे-धीरे सामान्यीकरण का संकेत मिलता है. शंघाई सहयोग संगठन में भारत की भागीदारी और चीन की वैश्विक शासन पहलों को लेकर उसकी सतर्क भागीदारी से दोतरफा दृष्टिकोण की झलक मिलती है: आर्थिक और सुरक्षा फायदों के लिए बहुपक्षीय मंचों का लाभ उठाते हुए रणनीतिक घेरेबंदी का विरोध करना.

इसलिए, चिन के आशावाद को एक निमंत्रण और एक परीक्षा दोनों के रूप में देखा जा सकता है. आखिर में सवाल यही बचता है कि क्या नई दिल्ली "समान और व्यवस्थित बहुध्रुवीय विश्व" को आकार देने में आगे आएगा या अनसुलझे सीमा विवादों और बदलते हिंद-प्रशांत गठबंधनों के बीच सतर्क रहेगा.

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