तिब्बत पर चीन का नया प्रोपेगैंडा भारत के लिए भी है चिंता की बात

हाल ही में चीन ने तिब्बत से जुड़ा एक वाइट पेपर जारी किया है

Xi Jinping
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग

चीन अब तिब्बत पर अपने नए प्रोपेगैंडा को लेकर दुनिया के सामने हाजिर है. जहां इस वक्त नई दिल्ली के सत्ता गलियारों में हिमालय में भारत की उत्तरी सीमा को चीन के बजाय 'तिब्बत के साथ सीमा' कहने की बहस चल रही है, तो वहीं अब चीन ने भी तिब्बत को जिंजांग बताना शुरू कर दिया है.

हाल ही में चीन ने तिब्बत पर एक वाइट पेपर रिलीज किया था जिसका टाइटल 'सीपीसी पॉलिसीज ऑन द गवर्नेंस ऑफ जिंजांग इन द न्यू इरा: अप्रोच एंड अचीवमेंट' था. यह दस्तावेज तिब्बत में खुद को स्थापित करने की चीन की कोशिशों और राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बाद से तिब्बत में विकास की रूपरेखा के बारे में बताता है. 

चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (CPC) के गृहयुद्ध जीतने के एक साल बाद 1950 में चीन ने तिब्बत पर कब्जा कर लिया था. जिसके बाद दलाई लामा 1959 में भारत भाग आए और निर्वासन में तिब्बत के आध्यात्मिक नेता बने रहे. भारत में चीन मामलों के विशेषज्ञों का मानना है कि बीजिंग 1950 से ही तिब्बत पर दुष्प्रचार कर रहा है, जब उसकी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) ने यहां मार्च किया था. उनका मानना है कि तिब्बत की जगह जिंजांग नाम का इस्तेमाल करके चीन इस क्षेत्र पर अपना ठप्पा लगा रहा है और तिब्बतियों की सांस्कृतिक पहचान को मिटाने की कोशिश कर रहा है. यह सब तिब्बत में चीन की भविष्य की योजनाओं के तहत देखा जा रहा है. नई दिल्ली स्थित एक विशेषज्ञ ने कहा, "भारत के लिए भी इसके गंभीर सुरक्षा मायने हैं क्योंकि चीन अरुणाचल प्रदेश को जंगनान कहता है, जो जिजांग का हिस्सा है. 

अधिकारियों का दावा है कि चीन की स्टेट काउंसिल ने 10 नवंबर को जारी तिब्बत पर हालिया 'वाइट पेपर' में चौंकाते हुए तिब्बत की स्थिति की एक बेहद आकर्षक छवि प्रस्तुत की है. इसमें कहा गया है कि शी जिनपिंग के नेतृत्व में तिब्बत में विकास दिखाने वाले आंकड़ों की भरमार है. हालांकि यह पेपर तिब्बत में पार्टी और चीनी सरकार के मुख्य एजेंडे, जैसे औपनिवेशिक बोर्डिंग स्कूल प्रणाली और बड़े पैमाने पर पुनर्वास कार्यक्रम, दोनों पर कोई भी बात नहीं करता, जिसका तिब्बती लोगों और उनकी संस्कृति पर जबरदस्त प्रभाव पड़ा है. 

विशेषज्ञों का कहना है कि तिब्बत पर यह वाइट पेपर वही विजन रखता है जैसा कि 1950 के दशक में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के संस्थापक माओत्से तुंग का था. साल 1951 में, झांग जिंगवु और झांग गुओहुआ की अध्यक्षता वाली सीसीपी तिब्बत कार्य समिति ने रिपोर्ट दी कि "पूरे देश में समाजवादी परिवर्तन अपने उफान पर है" और "तिब्बत के पड़ोसी अल्पसंख्यक क्षेत्र सभी लोकतांत्रिक सुधार करने की तैयारी कर रहे हैं." साथ ही यह भी बताया गया कि कैसे तिब्बती 'जिजांग' में समृद्धि का आनंद लेते हैं. 

जब ऐसा लगा कि दलाई लामा भारत में शरण मांगेंगे, तो सीसीपी नेतृत्व ने उन्हें वापस बुलाने की कोशिश की. प्रीमियर झोउ एनलाई ने 1956-57 में भारत की यात्रा की और दलाई लामा से मुलाकात कर उन्हें ल्हासा लौटने के लिए मनाया. उन बैठकों के दौरान, माओ की भावना से अवगत कराते हुए, झोउ एनलाई ने दलाई लामा से वादा किया कि परामर्श के बिना तिब्बत में सुधार नहीं लाए जाएंगे. उन्होंने यह भी वादा किया कि दूसरी पंचवर्षीय योजना के दौरान, यानी अगले छह वर्षों तक कोई सुधार नहीं किया जाएगा. इस पर चीनी विद्वान चेन जियान ने जर्नल ऑफ कोल्ड वॉर स्टडीज के लिए अपने 2006 के लेख में बताया था कि माओ और उनके साथी सीसीपी नेताओं को सैन्य अभियानों को शांत राजनयिकों और 'संयुक्त मोर्चा' खास तौर पर तिब्बत के राजनीतिक और मठ में रहने वाले कुलीन वर्ग के साथ जोड़ना जरूरी लगा.  

साल 2023 में शी जिंनपिंग भी माओ की तरह ही पॉलिटिकल नैरेटिव का इस्तेमाल करते दिखाई दे रहे हैं. यह भी कहा जाता है कि कुछ चीनी हैंडल, दुनिया भर के मीडिया संगठनों के साथ, सीसीपी के चीनी प्रचार को बढ़ावा भी दे रहे हैं. कई निर्वासित तिब्बती शी जिनपिंग पर धार्मिक दमन और उनकी संस्कृति को नष्ट करने का आरोप लगाते हैं. जिसके विरोध में आत्मदाह सहित कई सारे विरोध प्रदर्शन हो चुके हैं. जिसके बाद से ही तिब्बत का मुद्दा चीन के लिए काफी संवेदनशील हो चुका है. 

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