जाति जनगणना का विरोध करते-करते बीजेपी आखिर इसके लिए तैयार कैसे हुई?

पहले 2021 की जनगणना को जाति आधारित नहीं बनाने का निर्णय लेने के बावजूद आखिर बीजेपी ने इस मुद्दे पर यू-टर्न ले लिया है

PM Narendra Modi, Amit Shah, JP Nadda
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, जेपी नड्डा और अमित शाह

जाति आधारित जनगणना की मांग कराने वाले राजनीतिक दलों में अधिकांश दल भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के विरोधी खेमे से हैं. लेकिन जब से केंद्र सरकार ने 2021 की लंबित जनगणना में जाति को शामिल करने का निर्णय लिया है, तब से विपक्षी दलों के साथ-साथ सत्ता पक्ष में बीजेपी के सहयोगी दल भी इसका श्रेय लेने की कोशिश कर रहे हैं. इनमें बिहार की जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) और लोक जनशक्ति पार्टी रामविलास भी शामिल हैं. 

जेडीयू की तरफ से यह दावा किया जा रहा है कि उसने पहले ही बिहार में जातिगत गणना कराई थी. हालांकि, एक तथ्य यह भी है कि जब बिहार में जातिगत गणना का निर्णय हुआ, उस समय जेडीयू बीजेपी के साथ मिलकर सरकार नहीं चला रही थी बल्कि उसकी धुर विरोधी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और कांग्रेस के साथ सरकार में थी.

तब भी बिहार में बीजेपी के नेता सीधे तौर पर न सही लेकिन प्रक्रियागत मुद्दा उठाकर जातिगत गणना का विरोध कर रहे थे. जातिगत गणना पर यही स्थिति बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व के साथ भी थी. खुलकर विरोध नहीं किया जा रहा था लेकिन समर्थन भी नहीं किया जा रहा था. बीजेपी नेताओं की तरफ से ऐसी बातें कही जा रहीं थीं, जिनका मतलब यह निकाला जा रहा था कि पार्टी जाति आधारित जनगणना के पक्ष में नहीं थी.

जाति आधारित जनगणना पर बीजेपी के रुख का ठोस अंदाज तब लगा जब 2021 में होने वाली जनगणना के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने दस्तावेज जारी किए. दरअसल, 2021 से लंबित जनगणना कराने के लिए फ्रेमवर्क संबंधित जो दस्तावेज केंद्रीय गृह मंत्रालय ने जारी किए थे, उसमें जाति आधारित जनगणना तो छोड़िए अलग से अन्य पिछड़ा वर्ग की गिनती अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के तर्ज पर करने की भी बात नहीं थी. 

2021 की जनगणना के लिए केंद्र सरकार की तरफ से जो दस्तावेज जारी किए गए थे, उनमें यह साफ-साफ लिखा गया था कि जाति आधारित जनगणना नहीं होगी और अलग वर्ग के तौर पर सिर्फ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों की गणना की जाएगी. जाति आधारित जनगणना के साथ-साथ अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों की गिनती भी अलग से करने की मांग की जा रही थी. लेकिन 2021 की जनगणना के दस्तावेज बताते हैं कि केंद्र सरकार ने इस मांग को भी खारिज कर दिया. 2021 की जनगणना कराने के लिए जिला स्तर तक के अधिकारियों को केंद्र सरकार की तरफ से जो हैंडबुक भेजी गई है, उसमें भी इस बात का अंदेशा व्यक्त किया गया है कि अन्य पिछड़ा वर्ग की गणना कराने के लिए विरोध-प्रदर्शन हो सकते हैं.

आखिरी जातिगत जनगणना 1931 में हुई थी. 1990 के दशक में एचडी देवगौड़ा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने जातिगत जनगणना कराने की बात कही थी लेकिन उनकी सरकार नहीं रही. इसके बाद 2001 की जनगणना फिर से पुराने ढंग से हुई और जाति के आधार पर लोगों की गिनती नहीं की गई. 2019 के लोकसभा चुनाव के पहले 2018 में केंद्र की मोदी सरकार ने कहा था कि वह अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों की गिनती कराएगी. लेकिन बाद में भाजपा नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में एक हलफनामा दायर करके कहा कि जाति के आधार पर जनगणना कराने की नीति को 1951 से ही छोड़ दिया गया है और जाति आधारित जनगणना करना व्यावहारिक नहीं है.

आखिर जाति आधारित जनगणना को 'अव्यावहारिक' मानने वाली मोदी सरकार और भाजपा में ऐसा क्या हुआ कि अब इसे कराने का निर्णय ले लिया गया? इस बारे में भाजपा के कुछ वरिष्ठ नेताओं और केंद्र सरकार के कुछ मंत्रियों से बातचीत करने पर कुछ प्रमुख वजहों की जानकारी मिलती है.

भाजपा के एक राष्ट्रीय पदाधिकारी इस बारे में कहते हैं, ''2024 के लोकसभा चुनाव परिणामों के विश्लेषण से हमें कई सबक मिले और पार्टी उनके हिसाब से सुधार करने में लगी हुई है. इसमें एक बात हमारे सामने आई कि 2014 से ओबीसी और अनुसूचित जाति में भी पिछड़े माने जाने वाले जिन वर्गों को अपने साथ जोड़ा था, उनमें से कुछ हिस्सा 2024 में हमारे साथ नहीं रहा. आरक्षण खत्म करने को लेकर फैलाया गया भ्रम और जाति जनगणना का मुद्दा शायद इसकी वजह रहा हो. ऐसे में न सिर्फ हमें इन लोगों को वापस अपने खेमे में लाना था बल्कि पार्टी को अपना सामाजिक विस्तार और बढ़ाना है. इस वजह से शीर्ष नेतृत्व को लगा होगा कि जाति आधारित जनगणना एक उपयोगी पहल हो सकती है.''

इस बात में दम इसलिए भी लगता है क्योंकि जब मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर जाति आधारित जनगणना को 'अव्यावहारिक' बताया था और जब 2021 की जनगणना के शुरुआती दस्तावेज जारी किए थे तो उस समय केंद्र में बीजेपी की अपने दम पर पूर्ण बहुमत की सरकार थी. अभी जो सरकार चल रही है कि उसमें पार्टी के पास पूर्ण बहुमत नहीं है और सहयोगी दल पहले के दो कार्यकाल के मुकाबले अधिक मुखर हैं.

जाति जनगणना पर पार्टी के यूटर्न के पीछे कुछ राज्यों की तरफ से जाति आधारित सर्वेक्षण कराने की पहल भी एक प्रमुख वजह है. इस बारे में भाजपा के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं, ''बिहार ने पहले ही करा लिया था. कर्नाटक में कांग्रेस सरकार इस दिशा में काफी आगे बढ़ गई है. तेलंगाना में कांग्रेस की रेवंत रेड्डी सरकार ने जाति सर्वेक्षण इसी साल फरवरी में पूरा किया. रेवंत रेड्डी को कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर पर भी ओबीसी चेहरे के तौर पर स्थापित करने की कोशिश कर रही है. झारखंड में भी इस तरह की सुगबुगाहट की सूचना है. अगर विपक्षी दलों के शासन वाले सारे राज्य इस रास्ते पर आगे बढ़ते तो विपक्षी पार्टियां मिलकर बीजेपी को पिछड़ा विरोधी साबित करने के लिए नए-नए नैरेटिव गढ़ने की कोशिश करतीं. अब ये ऐसा नहीं कर पाएंगी.''

बीजेपी के पितृ संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बारे में भी कहा जा रहा है कि जाति आधारित जनगणना पर उसने सरकार को हरी झंडी दी. यहां गौर करने वाली बात है कि केंद्रीय कैबिनेट से जाति आधारित जनगणना की मंजूरी के ठीक पहले वाली शाम संघ प्रमुख मोहन भागवत और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मुलाकात हुई थी. 

मोहन भागवत ने अपने संबोधनों में लगातार इस बात को दोहराया है कि संघ के भौगोलिक विस्तार के साथ-साथ सामाजिक विस्तार पर भी काम करना होगा. संघ के एक पदाधिकारी का कहना है कि संभव है कि प्रधानमंत्री ने मोहन भागवत से इस विषय पर चर्चा की हो और संघ को भी अपने संगठनों के सामाजिक विस्तार के लिहाज से यह कदम ठीक लगा हो और उन्होंने प्रधानमंत्री को इस विषय पर आगे बढ़ने को लेकर समर्थन किया हो.

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