राहुल का दावा- 10 फीसदी आबादी के कंट्रोल में है सेना, क्या वाकई भारतीय सेना में जातिवाद है?
बिहार में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने सेना में पिछड़ी जातियों के कम प्रतिनिधित्व का मुद्दा उठाया है. उन्होंने कहा कि 10 फीसदी आबादी के कंट्रोल में भारतीय सेना है.

4 नवंबर को कांग्रेस नेता राहुल गांधी बिहार के कुटुम्बा में चुनाव प्रचार के लिए पहुंचे थे. इस दौरान उन्होंने दावा किया कि भारतीय सेना देश की 10 फीसद आबादी के कंट्रोल में है.
राहुल गांधी की ये टिप्पणी ऊंची जातियों को लेकर थी. कांग्रेस नेता के मुताबिक, भारतीय सेना पर 10 फीसद सामान्य वर्ग के लोगों का कंट्रोल है, जबकि पिछड़ी जातियों की 90 फीसद आबादी है.
राहुल के इस बात में कितनी सच्चाई है और क्या भारतीय सेना में जातिगत भेदभाव होता है?
राहुल गांधी ने बिहार में भारतीय सेना को लेकर क्या कहा है?
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा, "अगर आप गौर करें तो देश की 90 फीसद आबादी दलित, महादलित, पिछड़ी, अति पिछड़ी अल्पसंख्यक और आदिवासी तबके से आती है. लेकिन अगर आप भारत की 500 सबसे बड़ी कंपनियों की सूची निकालें तो आपको पिछड़े या दलित समुदाय का कोई व्यक्ति वहां नहीं मिलेगा."
इसके आगे उन्होंने कहा, "इन कंपनियों में काम करने वाले ज्यादातर लोग 10 फीसद आबादी से आते हैं. सभी नौकरियां उन्हीं के पास जाती है. सेना में भी 10 फीसद का नियंत्रण है. आपको शेष 90 फीसद आबादी का प्रतिनिधित्व कहीं नहीं मिलेगा. हम ऐसा भारत चाहते हैं, जिसमें देश की 90 फीसद आबादी के लिए जगह हो, जहां लोग सम्मान और खुशी के साथ रह सकें. कांग्रेस हमेशा पिछड़ों के लिए लड़ी है."
राष्ट्रीय जाति जनगणना की अपनी मांग दोहराते हुए गांधी ने कहा कि समाज में पिछड़ी जातियों के समान प्रतिनिधित्व और संवैधानिक अधिकारों के लिए ऐसे आंकड़े बेहद जरूरी हैं. लेकिन, पहली बार उन्होंने अपने बयान में सेना को भी शामिल किया. उनके इस बयान के बाद से ही विवाद शुरू हो गया है.
राहुल गांधी के इस बयान पर BJP ने क्या जवाब दिया?
राहुल के इस बयान पर मुंबई BJP प्रवक्ता सुरेश नखुआ ने कहा, "राहुल गांधी अब देश की सेना में भी जाति खोज रहे हैं. प्रधानमंत्री मोदी के लिए अपनी नफरत में राहुल ने सारी सीमा पार कर दी है."
वहीं, BJP प्रवक्ता प्रदीप भंडारी ने एक्स पर पोस्ट किया, "भारतीय सेना, नौसेना और वायु सेना राष्ट्र प्रथम के लिए खड़ी हैं, न कि जाति, पंथ या वर्ग के लिए. राहुल गांधी हमारी बहादुर सशस्त्र सेनाओं से नफरत करते हैं. राहुल गांधी भारतीय सेना विरोधी हैं."
क्या इससे पहले भी कभी सेना में जाति का मुद्दा उठा है?
हां, 2018 में सेना में जाति का मुद्दा कोर्ट पहुंच गया था. दरअसल, भारतीय सेना में राष्ट्रपति अंगरक्षक सबसे प्रतिष्ठित पदों में से एक मानी जाती है. 2018 में हरियाणा के रेवाड़ी जिले के गौरव यादव ने दिल्ली उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की, जिसमें आरोप लगाया गया कि राष्ट्रपति अंगरक्षक की भर्ती नीति जाति के आधार पर भेदभाव करती है.
यादव ने कहा कि राष्ट्रपति अंगरक्षक इकाई में केवल तीन जातियों—राजपूत, हिंदू जाट और सिख जाट को ही भर्ती किया जाता है. यादव के मुताबिक, इन तीनों जातियों को देश के अन्य नागरिकों के हितों की रक्षा के लिए वरीयता दिया जा रहा है. याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय की एक पीठ ने रक्षा मंत्रालय और कई वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों को 9 मई 2019 तक इस मुद्दे पर अपने जवाबी हलफनामे दाखिल करने को कहा. सेना और सरकार दोनों ने काफी समय तक इसपर अपना जवाब दाखिल नहीं किया.
यह पहली बार नहीं है जब सेना की भर्ती नीति को अदालत में चुनौती दी गई हो. 2012 में, उत्तर प्रदेश के एक डॉक्टर आईएस यादव ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर जाति, क्षेत्र और धर्म के आधार पर सेना में भर्ती को समाप्त करने की मांग की थी.
यादव की याचिका में कहा गया है, "केवल सेना में ही जाति, धर्म और क्षेत्र आधारित रेजिमेंट हैं, जैसे जाट रेजिमेंट, सिख रेजिमेंट, महार रेजिमेंट, गोरखा राइफल्स, गढ़वाल रेजिमेंट, डोगरा रेजिमेंट, आदि, और इसलिए इन रेजिमेंटों में भर्ती मुख्य रूप से जाति, क्षेत्र और धर्म के आधार पर होती है."
क्या सच में 10 फीसद आबादी के कंट्रोल में है भारतीय सेना?
नहीं, इस तरह का कोई डेटा रक्षा मंत्रालय या भारत सरकार ने नहीं जारी किया है. राहुल गांधी एक अनुमान के आधार पर ऐसा दावा कर रहे हैं.
डिफेंस एक्सपर्ट पीके सहगल के मुताबिक, भारतीय सेना में जाति और अलग-अलग समाजिक समूहों के नाम पर दो दर्जन से ज्यादा रेजिमेंट हैं. लेकिन, इन इन्फेंट्री में भर्ती होने के लिए किसी भी समुदाय और जाति के लोग आवेदन कर सकते हैं. साथ ही अगर क्षेत्र की बात करें, तो सेना कहीं से भी जाकर सेना में लोगों की भर्ती कर सकती है.
उन्होंने कहा कि सैनिकों की बहाली के बाद पहले ट्रेनिंग के लिए भेजा जाता है. उसके बाद उन्हें चॉइस दी जाती है, जिसमें वह बताते हैं कि वह किस रेजिमेंट या बटालियन में जाना चाहते हैं. हालांकि. यह जरूरी नहीं कि सैनिक को उस की चॉइस से रेजिमेंट मिल ही जाए.
सहगल बताते हैं कि भारतीय सेना की इन रेजिमेंट में भी सिर्फ उन्हीं जाति के जवान नहीं होते. मतलब नाम भले राजपूताना राइफल्स हो, लेकिन इसमें बाकी जातियों के जवान भी होते हैं. यह संभव है कि राजपूत रेजिमेंट में राजपूत, अहीर और जाट बराबर संख्या में हों. इसी तरह, जाट रेजिमेंट में भी राजपूत, गुर्जर और मुसलमान हो सकते हैं. इस तरह भारतीय सेना की बहाली में जाति के आधार पर रेजिमेंट में नहीं होती है.
भारतीय सेना में जाति आधारित रेजिमेंट की शुरुआत कब हुई?
भारतीय सेना में कुछ सैनिकों के एक ग्रुप को रेजिमेंट कहते हैं. कई रेजिमेंट मिलकर भारतीय सेना बनती है. भारत में रेजिमेंट सबसे पहले अंग्रेजी हुकूमत के दौरान बनीं. अग्रेजों ने भारत में आने के बाद 1758 में सबसे पहले मद्रास रेजिमेंट बनाया. इसके बाद कई और रेजिमेंट बने. इनमें पंजाब, मराठा, डोगरा, गोरखा, सिख आदि था.
1825 के आसपास देश में राजपूत रेजिमेंट की 5 टीम बनाई गई थी. इससे पहले राजपूत रेजिमेंट को बंगाल नेटिव इन्फेंट्री और बाद में किलपैट्रिक बटालियन के नाम से जाना जाने लगा था. यहीं से जाति के नाम के आधार पर रेजिमेंट बनाने की परंपरा की शुरुआत हुई.
इसके बाद 1903 में पहली और तीसरी (गौड़) ब्राह्मण इन्फैंट्री के रूप में एक जाति-आधारित रेजिमेंट का गठन किया गया था, जिसे प्रथम विश्व युद्ध के बाद भंग कर दिया गया था. दूसरी जाति-आधारित रेजिमेंट, 'चमार रेजिमेंट', द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बनाई गई थी और दिसंबर 1946 में भंग कर दी गई थी.
क्या रेजिमेंट के नाम को लेकर कभी कोई विवाद हुआ है?
हां, आजादी के बाद सेना की जाति आधारित रेजिमेंट को भंग करने की मांग कई बार उठी है. भर्ती प्रक्रिया में सुधार करने के लिए कई समितियां भी बनी, लेकिन किसी सरकार ने सेना में नई जातीय रेजिमेंट बनाने या भंग करने की बात नहीं कही.
2016 में मोदी सरकार ने जाति के नाम पर रेजिमेंट भंग करने की मांग पर कहा कि रेजिमेंट सिस्टम से जवानों में एकता बनी रहती है. हर जंग में रेजिमेंट सिस्टम सफल रहा है, इसलिए इसे भंग नहीं किया जाना चाहिए. ये बात तब के रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने संसद में खुद कही थी.
अब हालात ये है कि अलग-अलग जातियों के नाम पर नई रेजिमेंट बनाने की मांग जोर पकड़ने लगी है. 2019 के लोकसभा चुनावों में, समाजवादी पार्टी ने अपने चुनावी घोषणापत्र में वादा किया था कि अगर वे सत्ता में आए तो जाति-आधारित अहीर इन्फैंट्री रेजिमेंट का गठन किया जाएगा. इसके अलावा, भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर आज़ाद ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान गठित चमार रेजिमेंट को बहाल करने की मांग की थी.
जाति-आधारित रेजिमेंट न केवल एक राजनीतिक एजेंडा था, बल्कि राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग ने भी इस कदम का समर्थन किया था. आयोग ने चमार रेजिमेंट की बहाली के लिए तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर को एक पत्र लिखा था.