ये सीसीटीवी कैमरे हैं या चीन की 'जासूस आंखें', रेलवे इन्हें लगाने से पहले क्यों ठोक-पीट कर रहा है?
देश के कई रेलवे स्टेशनों पर जो सीसीटीवी कैमरे इंस्टॉल किए गए हैं, संदिग्ध रूप से वे सभी चीनी मूल के हैं. और ये उपकरण सुरक्षा उल्लंघन के लिहाज से संभावित खतरा बन सकते हैं

भारतीय रेलवे ट्रेनों में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) संचालित सीसीटीवी कैमरे लगाने की अपनी योजना पर सावधानी से कदम आगे बढ़ा रहा है. उसे पता चला है कि देश के कई रेलवे स्टेशनों पर जो कैमरे इंस्टॉल किए गए हैं, संदिग्ध रूप से वे सभी चीनी मूल के हैं. और इस तरह, ये उपकरण चीन द्वारा सुरक्षा उल्लंघन के लिहाज से संभावित खतरा बन सकते हैं.
रेलवे ने कुछ ही महीने पहले रेल नेटवर्क की सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए 15 हजार करोड़ रुपये के अनुमानित खर्च पर कोचों और इंजनों में करीब 75 हजार AI-संचालित सीसीटीवी कैमरे लगाने का फैसला किया था. इस योजना में 40 हजार कोच, 14 हजार इंजन और 6 हजार ईएमयू (इलेक्ट्रिक मल्टीपल यूनिट) को शामिल किया जाना था. ईएमयू को आमतौर पर लोकल ट्रेन के रूप में जाना जाता है.
इस परियोजना का उद्देश्य पटरियों पर संदिग्ध वस्तुओं का पता लगाना था, क्योंकि हाल ही में आई रिपोर्टों में ये दावा किया गया था कि जानबूझकर ट्रेनों के पटरी से उतारने की कोशिश की गई थी. लेकिन यह प्रोजेक्ट तब मुश्किल में पड़ गया, जब रेलवे ने अपनी जांच में पाया कि ये उपकरण जिस देश में बने हैं, उसके नाम के जिक्र में 'गड़बड़ी' है. यह मामला तब सामने आया जब रेलवे ने दक्षिण पश्चिम रेलवे को इन कैमरों की आपूर्ति करने वाली कंपनी द्वारा जारी किए गए इनवॉइस (चालान) को देखा.
दक्षिण पश्चिम रेलवे की एक इंटरनल नोट, जिसे इंडिया टुडे ने भी पढ़ा, उसमें बेंगलुरु के डिप्टी चीफ सिग्नल और टेलीकॉम इंजीनियर के कार्यालय ने कहा कि रेलवे की सतर्कता शाखा ने चालान (इनवॉइस) में बताए गए कैमरों के मूल देश में विसंगति पाई है. इस इनवॉइस में ताइवान का जिक्र किया गया है, जबकि एयर कार्गो कॉम्प्लेक्स, मुंबई कस्टम्स का जो ओरिजिनल इनवॉइस है उसमें मूल देश के रूप में 'ताइवान, चीन' को सूचीबद्ध किया गया था.
उस नोट के मुताबिक, "यह विसंगति वास्तविक मूल देश को छिपाने के लिए दस्तावेजों के साथ संभावित छेड़छाड़ के बारे में चिंता पैदा करती है." इसी नोट में सलाह दी गई है कि बदले हुए या जाली इनवॉइस प्रस्तुत करने की जिम्मेदारी तय करने के लिए कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए. एक इनवॉइस, बिल की तुलना में इस लिहाज से अलहदा होता है कि इसमें प्रदान की गई वस्तुओं या सेवाओं का विस्तृत विवरण होता है, जबकि बिल में सिर्फ उत्पाद की कीमत के साथ उसका विवरण होता दर्ज होता है.
इन चीन निर्मित कैमरों से खतरे का मुद्दा उठाते हुए टेलीकॉम इक्विपमेंट मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (टेमा) ने रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष सतीश कुमार को एक पत्र लिखा है. इसमें कहा गया है कि आंतरिक सुरक्षा के मामले को देखते हुए रेलवे द्वारा लगाए गए या लगाए जाने वाले कैमरों की तीसरे पक्ष से जांच कराने में देरी नहीं करनी चाहिए. टेमा ने कहा कि सीसीटीवी उपकरणों का विस्तृत ऑडिट रेल मंत्रालय के रिसर्च डिजाइन एवं मानक संगठन के सीसीटीवी नेटवर्क के लिए सुरक्षा दिशा-निर्देशों पर तकनीकी एडवायजरी नोट के मुताबिक किया जाना चाहिए.
इससे पहले, केंद्र सरकार ने भारत की राष्ट्रीय और सुरक्षा संपत्तियों को चीन द्वारा कथित जासूसी से बचाने के लिए अपनाए जाने वाले उपायों पर विचार-विमर्श की एक शृंखला आयोजित की थी, जिसमें विभिन्न सरकारी और सैन्य प्रतिष्ठानों में लगे चीनी मूल के सीसीटीवी कैमरों के जाल पर बात की गई थी. इस विचार-विमर्श के बाद सरकार ने इसी साल अप्रैल में सुरक्षा दिशा-निर्देश जारी किए, जिसमें केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) ने भारत में बेचे जाने वाले सीसीटीवी कैमरों के लिए 'अनिवार्य पंजीकरण आदेश' में संशोधन किया.
इस संशोधन के मुताबिक, सभी सीसीटीवी कैमरों के 'जरूरी सुरक्षा मापदंडों' की टेस्टिंग अनिवार्य है. इसके लिए निर्माताओं को भारतीय मानक ब्यूरो से मान्यता प्राप्त प्रयोगशालाओं, जैसे मानकीकरण परीक्षण और गुणवत्ता प्रमाणन से टेस्ट रिपोर्ट प्रस्तुत करनी थी. हालांकि, देश में ऐसे कैमरों के विशाल नेटवर्क को देखते हुए नया रेगुलेशन इस साल 9 अक्टूबर से लागू होना है, जिससे निर्माताओं को अनुकूलन (एडॉप्टेशन) के लिए पर्याप्त समय मिल पाएगा.
हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि देश में पर्याप्त सुरक्षा जांच के बिना सीसीटीवी नेटवर्क के प्रसार ने राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी चिंताएं पैदा कर दी हैं, क्योंकि इनमें से ज्यादातर उपकरण चीन से आयात किए गए थे, और इनका रिमोट सर्विलांसिंग (निगरानी) और डेटा चोरी के लिए दुरुपयोग होने का खतरा था. उदाहरण के तौर पर, दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन, रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन और विशेष सुरक्षा समूह (प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार) को प्रदान किए गए सीसीटीवी कैमरा सुरक्षा समाधान में कथित तौर पर चीनी कंपनियां शामिल थीं.
चीन की दुश्मनी वाला स्वभाव और आक्रामक जासूसी रणनीति को देखते हुए, देश की सुरक्षा प्रतिष्ठानों में चीनी कंपनियों की भागीदारी की निगरानी के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय के तहत खुफिया अधिकारियों की एक समर्पित शाखा स्थापित की गई है. केंद्र सरकार खास तौर से राष्ट्रीय सुरक्षा तंत्र से चीन निर्मित उपकरणों को हटाने की प्रक्रिया में है.
एक अनुमान के मुताबिक, देश में 20 लाख से ज्यादा सीसीटीवी कैमरे लगे हुए हैं. इनमें से करीब दस लाख चीन में बने हैं और सरकारी संस्थानों में लगाए गए हैं. संदेह है कि ज्यादातर सरकारी परियोजनाओं में लगाए जा रहे सीसीटीवी चीनी मूल के हैं, ये चीन से आयात किए गए हैं और 'मेड इन इंडिया' के तौर पर सप्लाई किए गए हैं. यह संभावित रूप से उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा बनाता है.
अनुमान है कि देश में 80 फीसद से अधिक उपकरणों और सरकारी प्रतिष्ठानों में 98 फीसद से अधिक चीनी सीसीटीवी कैमरे इंस्टॉल हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि ये संदिग्ध सीसीटीवी कैमरे दुर्भावना रखने वाले किसी भी देश की आंख और तकनीकी खुफिया जानकारी जुटाने का एक साधन बन सकते हैं. इंडिया टुडे ने 6 मार्च, 2023 की अपनी कवर स्टोरी में सैकड़ों-हजारों निगरानी कैमरों के जरिए भारत पर चीन की जासूसी के खतरे को उजागर किया था, जिसमें सुरक्षा विशेषज्ञों ने इस खतरे के बारे में गंभीर चिंता जताई थी.
पिछले हफ्ते दक्षिण कोरिया की सेना को अपने ठिकानों से 1,300 से ज्यादा सीसीटीवी कैमरे हटाने पड़े, क्योंकि उन्हें पता चला कि ये कैमरे चीन में बने हैं. यह कार्रवाई ऐसे समय में की गई है जब सुरक्षा भंग होने की आशंका के चलते कई पश्चिमी देशों में चीन निर्मित इन निगरानी उपकरणों पर एक्शन लिया जा रहा है.
चीन की खुफिया कानून, 2017 के मुताबिक, निगरानी उपकरण बनाने वाली चीनी कंपनियों को अपने देश की खुफिया एजेंसियों के साथ अपना सारा डेटा साझा करना अनिवार्य है. यह कानून चीन की कम्युनिस्ट पार्टी को अपने अधिकार क्षेत्र में आने वाली कंपनियों से डेटा नियंत्रित करने और उसका इस्तेमाल करने के लिए व्यापक अधिकार देता है, जिनमें से अधिकांश की अंतरराष्ट्रीय मौजूदगी है.