'झकास' बोला तो अनिल कपूर को पैसे देने होंगे!
दिल्ली हाईकोर्ट ने अनिल कपूर की अनुमति के बग़ैर उनकी तस्वीरों, डायलॉग्स और आवाज़ के व्यवसायिक इस्तेमाल पर रोक लगाई है

यह नोएडा के सेक्टर-18 का अट्टा बाज़ार है. सड़क किनारे एक ठेले पर गोलगप्पे बिक रहे हैं. लोग बड़े चाव से चटखारे के साथ इस अतिलोकप्रिय चीज़ को खा रहे हैं. दो लोग खा चुके हैं, अब पैसे देने की बारी है. खाने वाला फोन निकालता है. यूपीआई के ज़रिए ऑनलाइन पेमेंट करता है और फोन घुमाकर दुकान वाले को दिखाता है. फोन देखने के बजाय दुकानदार अपना स्कैनर बॉक्स देख रहा है. इतने में सदी के महानायक अमिताभ बच्चन की गूंजती हुई आवाज़ 'देवियों-सज्जनों' के संबोधन के साथ 40 रुपए पेमेंट होने का ऐलान करती है. यह नया तरीक़ा है. जो पहले मशीनी आवाज़ सुनाई देती थी उसकी जगह अब 'बिग-बी' की आवाज़ ने ले ली है.
कुल जमा बात ये है कि अक्सर ही हम प्रचार को रोचक बनाने और मशहूर करने के लिए किसी लोकप्रिय अभिनेता/अभिनेत्री की तस्वीरों, उनके डायलॉग्स का इस्तेमाल होते देखते हैं. कुछ ऐसे डायलॉग्स जो हमारे दिमाग़ में बसे हुए हैं. ऐसा ही एक डायलॉग है- 'झकास'. 1985 की बात है. अनिल कपूर फिल्मों में नए थे. डायरेक्टर राजीव राय एक फिल्म बना रहे थे- युद्ध. मल्टीस्टारर फिल्म थी. अभिनेताओं में एक थे अनिल कपूर. लेकिन हम फिल्म पर बात नहीं करेंगे. सिर्फ़ इतना बताना है कि इस फिल्म में एक डायलॉग था, जिसे अनिल कपूर बोलते हैं- 'झकास.'
'झकास' बहुत बाद में चलकर अनिल कपूर का सिग्नेचर डायलॉग बन गया. आख़िर अनिल कपूर, झकास और प्रचार में लोकप्रिय हस्तियों की तस्वीरों, डायलॉग्स के इस्तेमाल की चर्चा क्यों? यहां की-वर्ड अनिल कपूर हैं. 66 साल के हो चुके अनिल कपूर आज ख़बरों में हैं. दरअसल उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका दाखिल की थी. कहा था कि उनकी तस्वीरों, डायलॉग्स, एआई के ज़रिए आवाज़ और निजी जानकारियों का इस्तेमाल व्यवसायिक तौर पर प्रचार-प्रसार के लिए किया जा रहा. वो भी बग़ैर उनकी अनुमति लिए, जिससे उनकी छवि ख़राब हो रही है.
दिल्ली हाईकोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए 'पर्सनैलिटी राइट्स' की सुरक्षा को लेकर अपना फैसला सुनाया. हाईकोर्ट ने आदेश दिया है कि अनिल कपूर की अनुमति के बग़ैर व्यवसायिक मकसद से उनकी तस्वीरों, डायलॉग्स, आवाज़, फिल्मों में उनके किरदारों के नाम या किसी भी तरह की जानकारी का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. अब यहां से एक और की-वर्ड मिला है- 'पर्सनैलिटी राइट्स.' आगे हम इसे समझेंगे लेकिन बता दें कि यह पहला मौका नहीं है जब किसी एक्टर ने ऐसी गुहार कोर्ट के सामने लगाई हो. जिस अभिनेता (अमिताभ बच्चन) के नाम से हमने शुरुआत की थी उन्होंने भी इस मामले को कोर्ट में उठाया था.
बीते साल यानी 2022 में अमिताभ बच्चन ने भी दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. अमिताभ बच्चन ने उनकी अनुमति के बग़ैर उनकी तस्वीरों, आवाज़, डायलॉग, फिल्मों के किरदारों की तस्वीरों और उनके नाम के इस्तेमाल पर रोक लगाने की मांग की थी. कोर्ट ने तब भी ऐसा करने पर रोक लगाई थी. एआई के प्रचलित होने के बाद से कई अभिनेताओं की आवाज़ में विज्ञापन बनाए जा रहे थे. वह भी ग़ैर-कानूनी ढंग से. जिस पर कोर्ट ने रोक लगाई है.
हाईकोर्ट ने अनिल कपूर की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा, "अदालत को यह मानने में कोई मुश्किल नहीं है कि उनके (अनिल कपूर के) नाम और पर्सनैलिटी को न सिर्फ उनके लिए बल्कि परिवार के लिए भी सुरक्षित किया जाना चाहिए. जो उनके नाम को ख़राब करने और नकारात्मक रुप से इस्तेमाल होते हुए देखना नहीं चाहते." एक्टर्स के प्रचार के लिहाज से कोर्ट ने कहा, "मशहूर हस्तियों के लिए प्रचार वास्तव में आजीविका का एक प्रमुख सोर्स हो सकता है. जिसे अवैध व्यापार की अनुमति देकर नष्ट नहीं किया जा सकता."
क्या है पर्सनैलिटी राइट?
पर्सनैलिटी राइट्स यानी व्यक्तित्व से जुड़े अधिकार. बहुत सपाट भाषा में कहें तो किसी भी व्यक्ति की निजी जानकारियों की सुरक्षा का अधिकार. यानी किसी भी व्यक्ति से जुड़ी सूचनाएं बग़ैर उसकी अनुमति के इस्तेमाल करना ग़ैर-कानूनी है. संविधान में पर्सनैलिटी राइट्स का अलग से कोई ज़िक्र तो नहीं मिलता. लेकिन संविधान में अनुच्छेद-21 के तहत गोपनीयता और निजता के अधिकार के तहत इसकी व्याख्या की जाती है.
क्या कहता है निजता का अधिकार? निजता के अधिकार में 3 बिंदु शामिल हैं. जिसमें से एक है सूचनात्मक गोपनीयता का अधिकार. इसके तहत किसी भी व्यक्ति से जुड़ी जानकारी को उसकी अनुमति के बिना किसी भी तरह से इस्तेमाल करना ग़ैर-कानूनी है. इसी के तहत पर्सनैलिटी के अधिकार की व्याख्या की जाती है. मशहूर हस्तियों के लिए इसका ख़ास मतलब है क्योंकि अक्सर किसी फिल्म के लोकप्रिय डायलॉग का इस्तेमाल व्यवसायिक तौर पर प्रचार-प्रसार के लिए किया जाने लगता है. यह कानूनन ग़लत है. इसी के तहत अनिल कपूर और उनसे पहले अमिताभ बच्च की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने अपना फैसला दोनों अभिनेताओं के पक्ष में सुनाया.
कॉपीराइट अधिनियम-1957 भी पर्सनैलिटी राइट्स का एक हिस्सा है. ख़ासकर लेखकों के लिए यह बेहद ज़रूरी कानून है. जिसके तहत किसी लेखक या कलाकार को अपने काम के लिए क्रेडिट और रॉयल्टी यानी कि उसके बदले में पैसा मांगने का अधिकार है.