सिर्फ रूस नहीं, मोदी सरकार से ट्रंप के रूठने की वजह कुछ और भी हैं!

अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने बताया कि आखिर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत और यहां की सरकार से क्यों नाराज हैं

PM नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप
PM नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 30 जुलाई को भारत पर 25 फीसद टैरिफ लगाने की घोषणा की. इसके कुछ देर बाद ही ईरान से तेल खरीदने की बात कहकर भारत की आधा दर्जन तेल कंपनियों पर बैन लगा दिया. इतना ही नहीं ट्रंप ने अपने बयान में भारत की अर्थव्यस्था को 'डेड इकोनॉमी' बता दिया.

राष्ट्रपति ट्रंप के फैसले और बातों से इस बात की चर्चा तेज हो गई कि क्या अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप भारत से चिढ़े हुए हैं और आखिर उनकी भारत से नाराजगी की असल वजह क्या है?

इन सवालों का जवाब अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो के बयान में मिलता है. मार्को रुबियो ने कहा, "भारत रूसी तेल खरीद रहा है. इससे मास्को को यूक्रेन पर हमला करने की ताकत मिल रही है. यह वाशिंगटन के साथ नई दिल्ली के संबंधों में निश्चित रूप से एक परेशानी की बात है. हालांकि, भारत से परेशानी सिर्फ इसी बात से नहीं है."

फॉक्स रेडियो को दिए एक इंटरव्यू में रुबियो ने दावा किया कि अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप भारत को लेकर इस बात से निराश हैं कि भारत अब भी रूस से तेल खरीद रहा है, जबकि उसके पास तेल खरीदने के लिए कई अन्य ऑप्शन हैं. भारत तेल खरीदकर एक तरह से यूक्रेन के खिलाफ रूस के युद्ध को फंड कर रहा है.

रुबियो ने कहा, "भारत की ऊर्जा जरूरतें बहुत ज्यादा हैं और इसमें तेल, कोयला, गैस के अलावा अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए जरूरी दूसरी चीजें हैं. भारत इन्हें रूस से खरीदता है, क्योंकि रूसी तेल पर प्रतिबंध है और यह सस्ता भी है. कई मामलों में प्रतिबंधों के कारण वे इसे वैश्विक कीमत से कम पर बेच रहे हैं."

अमेरिकी विदेश मंत्री रुबियो ने आगे कहा, "रूसी तेल खरीदना हमारे लिए परेशानी का एकमात्र बिंदु नहीं है. भारत से हमारे निराशा की कई अन्य बिंदु भी हैं."

भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर करने में रुकावट डालने वाले सबसे बड़े विरोधाभासों में से एक भारत का अपने कृषि और डेयरी क्षेत्रों को खोलने का कड़ा विरोध है.

दरअसल, भारत नहीं चाहता है कि अमेरिकी डेयरी और कृषि प्रोडक्ट उसके बाजारों में पहुंचे. जबकि अमेरिका अपने जीएम फसलों, डेयरी और मक्का, सोयाबीन, सेब, बादाम और इथेनॉल जैसे उत्पादों को भारत के कृषि बाजार में बेचना चाहता है. अमेरिका इन संवेदनशील क्षेत्रों में भारत की ओर से लगाए जाने वाले टैरिफ में कटौती पर जोर दे रहा है.

नई दिल्ली का तर्क है कि देश में सस्ती, सब्सिडी वाली अमेरिकी कृषि वस्तुओं को अनुमति देने से भारत के लाखों छोटे किसान प्रभावित होंगे. इससे उनकी आमदनी को नुकसान होगा.

भारत ने अमेरिका से कहा है कि डेयरी, चावल, गेहूं और मक्का व सोयाबीन जैसी जीएम फसलों (ऐसी फसलें जिसके DNA को आनुवंशिक इंजीनियरिंग विधियों से बदला गया हो) पर शुल्क कम करना अभी संभव नहीं है. भारतीय अधिकारियों के मुताबिक, अमेरिका के इस मांग को मानने से 70 करोड़ से ज्यादा ग्रामीण लोगों को नुकसान हो सकता है, जिनमें लगभग 8 करोड़ छोटे डेयरी किसान भी शामिल हैं.

अमेरिका कृषि और डेयरी उत्पादों के अलावा कई दूसरे प्रोडक्ट को भी भारतीय बाजार में बेचना चाहता है. इनमें इथेनॉल, सेब, बादाम, ऑटोमोबाइल, चिकित्सा उपकरण, दवाइयां और यहां तक कि मादक पेय भी शामिल हैं. अमेरिका यह भी चाहता है कि भारत सीमा शुल्क नियमों को सरल बनाए और डेटा स्टोरेज, पेटेंट और डिजिटल व्यापार से संबंधित कानूनों में ढील दे.

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