आकाश की बसपा में फिर वापसी हुई; आखिर मायावती की क्या है मजबूरी?

आकाश को बसपा में दोबारा शामिल करने का मायावती का फैसला पार्टी को फिर से खड़ा करने के लिए एक रणनीतिक कदम का संकेत देता है, जिसे हाल के सालों में अहम चुनावी असफलताओं का सामना करना पड़ा है

बसपा सुप्रीमो मायावती और आकाश आनंद
बसपा सुप्रीमो मायावती और आकाश आनंद

करीब डेढ़ महीने होने हुए जब बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की प्रमुख मायावती ने अपने सबसे करीबी सहयोगी और भतीजे आकाश आनंद को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया था. तीन मार्च को आकाश आनंद को पार्टी से निकालने से पहले मायावती ने सीनियर नेता और उनके ससुर अशोक सिद्धार्थ को भी कथित पार्टी अनुशासनहीनता के चलते पार्टी से बाहर कर दिया था.

लेकिन 13 अप्रैल को जब आकाश ने शाम 5 बजकर 56 मिनट पर 'एक्स' पर लगातार कई ट्वीट करके मायावती से माफी मांगी, तो बसपा सुप्रीमो ने उन्हें माफ कर दिया. आकाश के ट्वीट के करीब ढाई घंटे के बाद मायावती ने 'एक्स' पर ही अपने पोस्ट के जरिए उन्हें "एक और मौका" देने का फैसला किया, और उन्हें वापस संगठन में शामिल करने की घोषणा की.

13 अप्रैल को किए गए अपने सिलसिलेवार ट्वीट में आकाश आनंद ने खुद की गलतियों को माना, और मायावती की अगुआई में पार्टी के साथ खुद को पूरी तरह से जोड़ने का संकल्प लिया. उन्होंने कसम खाई कि अब से वो किसी भी रिश्तेदार या सलाहकार से राजनीतिक परामर्श नहीं लेंगे. उन्होंने कहा कि वो मायावती को ही अपना "एकमात्र राजनीतिक गुरु और रोल मॉडल" मानते हैं.

आकाश ने 'एक्स' पर लिखा, "इतना ही नहीं, मैं कुछ दिन पहले किए गए अपने ट्वीट के लिए भी माफी मांगता हूं, जिसके कारण उन्होंने (मायावती) मुझे पार्टी से निकाल दिया है. अब से मैं यह सुनिश्चित करूंगा कि मैं अपने किसी भी राजनीतिक फैसले के लिए किसी रिश्तेदार या सलाहकार से कोई सलाह नहीं लूंगा. और मैं केवल बहनजी द्वारा दिए गए दिशा-निर्देशों का पालन करूंगा. और मैं पार्टी में अपने बुजुर्गों और पुराने लोगों का भी सम्मान करूंगा और उनके अनुभवों से बहुत कुछ सीखूंगा."

आकाश ने मायावती से अपील की कि वे उनकी सारी गलतियों को माफ कर दें और उन्हें फिर से बसपा में काम करने का मौका दें. उन्होंने वादा किया कि आगे दोबारा ऐसी कोई गलती नहीं होगी.

आकाश की इस अपील के बाद जल्द ही मायावती ने एक्स पर पोस्ट के जरिए जवाब दिया. बसपा सुप्रीमो ने एलान किया कि उन्होंने आकाश को एक और मौका देने का फैसला किया है. उन्होंने इसके लिए आकाश की सार्वजनिक माफी, बड़ों को पूरा सम्मान देने के वादे, साथ ही अपने ससुर की बातों में न आने और अपना जीवन बसपा और आंदोलन के लिए समर्पित करने का हवाला दिया. हालांकि, उन्होंने दोहराया कि किसी को अपना उत्तराधिकारी बनाने का सवाल ही नहीं उठता.

मायावती ने कहा, "वैसे मैं अभी स्वस्थ हूं और जब तक पूरी तरह ठीक रहूंगी, मान्यवर कांशीराम जी की ही तरह पूरी तन-मन-धन से पार्टी और आंदोलन के लिए काम करती रहूंगी. ऐसे में उत्तराधिकारी के नाम का सवाल ही नहीं उठता. मैं अपने फैसले पर अडिग हूं और अडिग रहूंगी."

बसपा प्रमुख ने कहा कि आकाश ने सार्वजनिक रूप से अपनी गलतियों को माना है और अपने ससुर से प्रभावित न होने का संकल्प जाहिर किया है. लेकिन अशोक सिद्धार्थ की गलतियां माफी योग्य नहीं हैं, क्योंकि गुटबाजी जैसी गंभीर पार्टी विरोधी गतिविधियों के अलावा उन्होंने आकाश का करियर बर्बाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. मायावती ने अपने पोस्ट में कहा, "इसलिए उन्हें माफ करने और पार्टी में वापस लेने का सवाल ही नहीं उठता."

बसपा से क्यों निकाले गए थे आकाश और अशोक?

पिछले एक दशक से भी ज्यादा समय से बसपा उत्तर प्रदेश की सत्ता से बाहर है. बसपा के नेता और पार्टी कार्यकर्ता इस उम्मीद में लगे हुए हैं कि पार्टी वापसी कर सकती है. लेकिन पिछले कुछ सालों में बसपा प्रमुख ने जिस तरह के अप्रत्याशित फैसले लिए हैं, जैसे चुनावी लाभ के बावजूद समाजवादी पार्टी (सपा) से नाता तोड़ना, 'इंडिया' गठबंधन से दूर रहना, भतीजे आकाश आनंद को दरकिनार करना और दलितों की समानांतर आवाज के रूप में भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद के उभरने पर कोई चिंता न दिखाना, इन कदमों ने पार्टी समर्थकों के बीच एक तरह से भ्रम की स्थिति पैदा कर दी है.

अशोक सिद्धार्थ के निकाले जाने और उसके तुरंत बाद आकाश के निष्कासन ने इस भावना को और गहरा करने का काम किया है. दोनों ही फैसले ऐसे समय में आए जब बसपा की चुनावी मौजूदगी सबसे कमजोर थी. पार्टी 2024 के लोकसभा चुनाव में कोई सीट नहीं जीत पाई, और यूपी के 403 सदस्यीय मौजूदा विधानसभा में बसपा का सिर्फ एक ही विधायक मौजूद है.

इसके बावजूद, फरवरी में एक्स पर लिखी एक पोस्ट में मायावती ने पार्टी पर अपने पूर्ण नियंत्रण की पुष्टि की, और कहा कि सिर्फ वे लोग ही नेतृत्व के योग्य होंगे जिन्होंने कांशीराम की विचारधारा के लिए निजी संबंधों का त्याग किया हो. उन्होंने साफ किया कि किसी उत्तराधिकारी का नाम नहीं लिया गया है और न ही कोई नाम लिया जाएगा.

इस बयान के बाद मायावती ने पहले अशोक सिद्धार्थ को हटाया, जिन पर उन्होंने गुटबाजी को बढ़ावा देने और पार्टी अनुशासन को कम करने का आरोप लगाया. बाद में उन्होंने ये हवाला देते हुए आकाश को भी हटा दिया कि सिद्धार्थ का उनपर अनुचित प्रभाव पड़ा है. उन्होंने उस समय कहा था, "निष्कासन के लिए पार्टी नहीं बल्कि उनके ससुर अशोक सिद्धार्थ पूरी तरह से जिम्मेदार हैं."

मायावती ने ताजा पोस्ट में कहा, "अब मैंने यह फैसला भी ले लिया है कि अपने जीवनकाल तक और अपनी अंतिम सांस तक पार्टी में मेरा कोई उत्तराधिकारी नहीं होगा. इस फैसले का पार्टी के लोगों ने तहे दिल से स्वागत किया है."

सिद्धार्थ के निकाले जाने को पार्टी के अंदरूनी लोगों के लिए स्वीकार करना खास तौर पर मुश्किल था. पूर्व राज्यसभा सांसद सिद्धार्थ को लंबे समय से अहम जिम्मेदारियां सौंपी गई थीं और उन्हें मायावती के करीबी लोगों में से एक माना जाता था. उनकी नजदीकी उनके परिवार और मायावती के परिवार के बीच विवाह संबंधों से भी उजागर हुई. बसपा के एक पदाधिकारी ने कहा, "मायावती ने अपने भतीजे की शादी उनकी बेटी से कर दी थी."

ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि आकाश की मुश्किलें खास तौर पर 2024 के आम चुनाव अभियान के दौरान भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के खिलाफ उनके बढ़ते आक्रामक रुख के बाद शुरू हुईं. जहां उन्होंने महंगाई, बेरोजगारी और पेपर लीक जैसे मुद्दों पर केंद्र सरकार पर हमला किया, वहीं मायावती ने कांग्रेस और सपा की आलोचना करना जारी रखा.

इसके बाद आकाश का नाम कुछ समय के लिए गूंजना बंद हो गया, जब उन्हें बसपा के राष्ट्रीय संयोजक पद से हटा दिया गया था. आम चुनाव के बाद उन्हें फिर से बहाल किया गया और फिर से हटा दिया गया.

मायावती क्या सोच रही हैं?

आकाश को बसपा में दोबारा शामिल करने का मायावती का फैसला पार्टी को स्थिर करने और उसे फिर से खड़ा करने के लिए एक रणनीतिक कदम का संकेत देता है, जिसे हाल के वर्षों में अहम चुनावी असफलताओं का सामना करना पड़ा है. 30 वर्षीय आकाश बसपा के लिए एक यंग चेहरा हैं जो उन दलित युवाओं को अपने पाले में करने में मदद कर सकते हैं, जो धीरे-धीरे आजाद समाज पार्टी के चंद्रशेखर आजाद जैसे उभरते दलित नेताओं की ओर खींचते चले जा रहे हैं.

आकाश को वापस लाकर मायावती अपनी ताकत को बनाए रखते हुए आंतरिक गुटबाजी को भी दुरुस्त करने का प्रयास कर रही हैं. उन्होंने अपने जीवनकाल में उत्तराधिकारी के नाम की घोषणा करने से साफ इनकार कर दिया है, जिससे पता चलता है कि वे अभी नेतृत्व करना चाहती हैं, लेकिन आकाश को आगे बढ़ाने के लिए एक अहम चेहरे के रूप में देखती हैं. इससे लीडरशिप के बारे में अनिश्चितताओं पर रोक लगाकर पार्टी को स्थिर किया जा सकता है.

हालांकि, मायावती के अल्पकालिक गठबंधनों के इतिहास और उनके मौजूदा एकरेखीय नजरिए को देखते हुए उनकी राह आसान होने की उम्मीद नहीं है. एक कम समय के लिए आकाश की वापसी बसपा कार्यकर्ताओं के बीच मनोबल बढ़ा सकती है और रिवाइवल (पुनरुद्धार) के प्रति प्रतिबद्धता का संकेत दे सकती है. लेकिन ठोस चुनावी सफलता पार्टी के संगठनात्मक ढांचे को फिर से बनाने और इसके कोर दलित आधार से फिर से जुड़ने की उसकी क्षमता पर निर्भर करेगी.

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