पहलगाम आतंकी हमला: भारत ने सिंधु जल संधि को स्थगित किया; पाकिस्तान पर क्या असर होगा?
भारत और पाकिस्तान के बीच दुश्मनी का एक लंबा इतिहास रहा है. तीन युद्धों के बाद भी भारत ने सिंधु जल संधि पर रोक नहीं लगाई. लेकिन पहलगाम में आतंकी हमले के बाद भारत ने संधि रोकने का फैसला किया है

अप्रैल की 22 तारीख को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने सिंधु जल संधि पर रोक लगा दी है. 1960 से चली आ रही इस संधि को रोकने का भारत का फैसला अभूतपूर्व और साहसिक दोनों है.
अभूतपूर्व इसलिए कि भारत और पाकिस्तान के बीच दुश्मनी का एक लंबा इतिहास रहा है. तीन युद्धों में पाकिस्तान मुंह की खा चुका है. दशकों से भारत के खिलाफ सीमा पार से आतंकवादी हमलों को अंजाम दिया जाता रहा है. इन सबके बावजूद भारत ने अभी तक पाकिस्तान के लिए जीवनदायिनी सिंधु जल संधि पर रोक नहीं लगाई थी.
लेकिन पहलगाम में हालिया आतंकी हमले के बाद भारत ने इस संधि को रोकने का फैसला किया. इसका मतलब यह कि भारत अब इस संधि के मुताबिक पाकिस्तान के साथ कोई जानकारी साझा नहीं करेगा और न ही इससे जुड़ी किसी बैठक में हिस्सा लेगा. संधि स्थगित करने के बाद भारत के पास कई विकल्प बचे हैं. लेकिन पाकिस्तान के पास अब क्या विकल्प हैं, यह देखते हुए कि उसकी खेती, पीने का पानी और बिजली उत्पादन का बड़ा हिस्सा इसी पानी पर निर्भर है.
भारत ने यह फैसला पहलगाम में सैलानियों पर हुए हमले के एक दिन बाद लिया, जिसमें पाकिस्तानी आतंकवादियों ने 26 लोगों की जान ले ली. विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने 23 अप्रैल की शाम कहा, "1960 की सिंधु जल संधि तत्काल प्रभाव से स्थगित रहेगी, जब तक कि पाकिस्तान भरोसा दिलाए और हमेशा के लिए सीमा पार से आतंकवाद को अपना समर्थन देना बंद नहीं कर देता."
23 अप्रैल को सिंधु जल संधि रोकने के अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (CCS) ने 5 पॉइंट एक्शन लागू किया है. इसमें सिंधु जल संधि पर स्थगन के अलावा, अटारी-वाघा चेक पोस्ट को तुरंत बंद करना, पाकिस्तानी नागरिकों का वीजा रद्द करना, नई दिल्ली स्थित पाकिस्तानी उच्चायोग में तैनात रक्षा और सैन्य सलाहकारों को भारत छोड़ने के लिए कहना और भारत और पाकिस्तान उच्चायोग में कर्मचारियों की संख्या 55 से घटाकर 30 करना शामिल हैं.
इनमें सिंधु जल संधि के निलंबन के सबसे दूरगामी परिणाम हो सकते हैं.
क्या है सिंधु जल समझौता?
दरअसल, भारत और पाकिस्तान के बीच बंटवारे के दौरान जब पंजाब को विभाजित किया गया तो इसका पूर्वी भाग भारत के पास और पश्चिमी भाग पाकिस्तान के पास गया. बंटवारे के दौरान ही सिंधु नदी घाटी और इसकी विशाल नहरों को भी विभाजित किया गया. लेकिन इससे होकर मिलने वाले पानी पर पाकिस्तान पूरी तरह भारत पर निर्भर था.
1960 तक छिटपुट संधियों के चलते पाकिस्तान को पानी मिलता रहा. लेकिन करीब 9 साल की बातचीत के बाद जब 19 सितंबर, 1960 को कराची में सिंधु जल संधि पर हस्ताक्षर हुए, तब भारत और पाकिस्तान के बीच पानी को लेकर एक अंतरराष्ट्रीय द्विपक्षीय संधि सामने आई. वर्ल्ड बैंक की मध्यस्थता में हुए इस समझौते में सिंधु बेसिन से बहने वाली 6 नदियों को पूर्वी और पश्चिमी हिस्से में बांटा गया.
इस संधि के तहत, सिंधु, झेलम और चिनाब को पश्चिमी नदियां बताते हुए इनका पानी पाकिस्तान के लिए तय किया गया. जबकि रावी, ब्यास और सतलुज को पूर्वी नदियां बताते हुए इनका पानी भारत के लिए तय किया गया.
इसके मुताबिक, भारत पूर्वी नदियों के पानी का बेरोकटोक इस्तेमाल कर सकता है. जबकि पाकिस्तान पश्चिमी नदियों सिंधु, झेलम और चिनाब के पानी का इस्तेमाल करेगा. हालांकि, संधि के तहत पश्चिमी नदियों के पानी के इस्तेमाल का कुछ सीमित अधिकार (करीब 20 फीसद) भारत को भी दिया गया, जैसे बिजली बनाना, कृषि के लिए सीमित पानी.
सिंधु जल संधि रोकने का भारत का फैसला क्यों अहम है?
सिंधु जल संधि को स्थगित करने के बाद भारत के पास कई विकल्प बचे हैं. इनमें पश्चिमी नदियों (सिंधु, झेलम और चिनाब) पर वॉटर स्टोरेज बनाने से लेकर वॉटर फ्लो डेटा साझा करने पर रोक लगाने की बातें शामिल हैं. इसके नतीजे पाकिस्तान के लिए विनाशकारी हो सकते हैं, जो सिंधु नदी प्रणाली पर बहुत अधिक निर्भर है.
सिंधु जल संधि के पूर्व भारतीय आयुक्त पीके सक्सेना ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में बताया है, "भारत पाकिस्तान के साथ जल प्रवाह डेटा साझा करना तुरंत बंद कर सकता है. सिंधु और उसकी सहायक नदियों के पानी के उपयोग के लिए भारत पर कोई डिजाइन या ऑपरेशनल प्रतिबंध नहीं होगा. इसके अलावा भारत अब पश्चिमी नदियों, सिंधु, झेलम और चिनाब पर स्टोरेज बना सकता है."
सक्सेना के मुताबिक भारत जम्मू-कश्मीर में फिलहाल निर्माणाधीन दो जलविद्युत परियोजनाओं - झेलम की सहायक नदी किशनगंगा पर किशनगंगा जलविद्युत परियोजना और चिनाब पर रतले जलविद्युत परियोजना - का दौरा करने के लिए पाकिस्तानी अधिकारियों को भी रोक सकता है.
उन्होंने कहा, "भारत किशनगंगा परियोजना पर जलाशय फ्लशिंग (जलाशय से संचित तलछट को हटाने के लिए निम्न-स्तरीय आउटलेट के जरिए पानी छोड़ने और तलछट को नीचे की ओर ले जाने की तकनीक) कर सकता है, जिससे बांध का जीवन बढ़ जाएगा."
हालांकि, सिंधु जल संधि पर इस रोक से कम से कम कुछ सालों तक पाकिस्तान को जाने वाले पानी के प्रवाह पर तत्काल प्रभाव नहीं पड़ेगा. भारत के पास अभी पाकिस्तान में पानी के प्रवाह को रोकने या इसे अपने इस्तेमाल के लिए मोड़ने के लिए बुनियादी ढांचा नहीं है.
पाकिस्तान के पास क्या विकल्प हैं?
हालांकि वर्ल्ड बैंक की मध्यस्थता वाली इस संधि में यह जिक्र नहीं है कि संयुक्त राष्ट्र की न्यायिक शाखा इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस इसमें हस्तक्षेप कर सकती है, लेकिन इसमें एक त्रिस्तरीय समाधान तंत्र स्थापित किया गया है.
इसके मुताबिक, दोनों देशों के आयुक्तों वाला स्थायी सिंधु आयोग (पीआईसी) दोनों देशों के बीच जल बंटवारे से पैदा हुए विवादों को सुलझाने के लिए शुरुआती बिंदु है.
लेकिन अगर पीआईसी द्वारा भी मुद्दे का समाधान नहीं किया जा सकता, तो इसे वर्ल्ड बैंक द्वारा नियुक्त तटस्थ विशेषज्ञ के पास भेज दिया जाता है, जैसा कि किशनगंगा और रतले जलविद्युत परियोजनाओं को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच हाल के विवादों में हुआ था.
इस मामले में, एक तटस्थ विशेषज्ञ ने नई दिल्ली के रुख का समर्थन किया जो भारत के लिए एक स्वागत योग्य फैसला था. भारत के विदेश मंत्रालय (MEA) के अनुसार, "तटस्थ विशेषज्ञ का अपनी क्षमता के अंतर्गत सभी मामलों पर फैसला अंतिम और बाध्यकारी होगा."
आखिरी दांव के तहत, इस मामले को आर्टिकल-IX के नियमों के तहत हेग स्थित स्थायी मध्यस्थता न्यायालय (पीसीए) में ले जाया जा सकता है. किशनगंगा और रतले जलविद्युत परियोजनाओं पर हालिया विवाद में पाकिस्तान किसी तटस्थ विशेषज्ञ के बजाय पीसीए से ही संपर्क करना चाहता था.
क्या भारत सिंधु जल संधि से बाहर निकल सकता है?
1960 में तब भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और उनके पाकिस्तानी समकक्ष जनरल अयूब खान के बीच सिंधु जल समझौता हुआ था. इसके मुताबिक, न तो भारत और न ही पाकिस्तान एकतरफा रूप से संधि को रद्द कर सकते हैं, और न ही कोई भी देश इस समझौते को त्याग सकता है.
सिंधु जल संधि के आर्टिकल-XII में कहा गया है, "इस संधि के प्रावधान, या पैराग्राफ (3) के प्रावधानों के तहत संशोधित इस संधि के प्रावधान, तब तक लागू रहेंगे जब तक कि दोनों सरकारों के बीच उस उद्देश्य के लिए विधिवत अनुमोदित संधि द्वारा समाप्त नहीं किया जाता."
ऐसी स्थिति में जब भारत संधि को रद्द करना चाहता है, तो संधि कानून पर 1969 का विएना कन्वेंशन लागू हो जाता है, जो दो संप्रभु राज्यों के बीच संधियों के निर्माण, रेगुलेट और समाप्ति को नियंत्रित करता है.
भारत ने विएना कन्वेंशन पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं. हालांकि, भारत 1969 कन्वेंशन का पक्षकार न होते हुए भी प्रासंगिक धाराओं से मार्गदर्शन लेता है. सिंधु जल संधि के अनुसार, कोई भी पक्ष एकतरफा संधि से बाहर नहीं निकल सकता और न ही जल प्रवाह को पूरी तरह से रोक सकता है. हालांकि, भारत सिंधु जल संधि के अनुच्छेद-3 के प्रावधानों के तहत जल प्रवाह को कम कर सकता है.
क्या भारत और पाकिस्तान ने सिंधु जल संधि के संबंध में कोई हालिया एक्शन लिया है?
जम्मू और कश्मीर में दो जलविद्युत परियोजनाएं वर्षों से भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद का विषय रही हैं, जिसके कारण भारत ने जनवरी 2023 में इस्लामाबाद को एक नोटिस जारी कर संधि में "संशोधन" की मांग की. संधि के सामने आने के बाद छह दशकों में यह पहला ऐसा नोटिस था. सितंबर 2024 में भारत ने इस मामले पर पाकिस्तान को एक और नोटिस भेजा.
पाकिस्तान ने दो जलविद्युत परियोजनाओं की डिजाइन विशेषताओं पर आपत्ति जताई है. हालांकि ये "रन ऑफ द रिवर" परियोजनाएं हैं जो नदी के प्राकृतिक प्रवाह को रोके बिना बिजली पैदा करती हैं. लेकिन पाकिस्तान ने बार-बार आरोप लगाया है कि ये सिंधु जल संधि का उल्लंघन करती हैं.
जनवरी 2023 में पाकिस्तान को भेजे गए नोटिस में नई दिल्ली ने संधि को लागू करने में इस्लामाबाद के "अड़ियल रवैए" का हवाला दिया. नई दिल्ली द्वारा सितंबर 2024 में जारी नोटिस में सिंधु जल संधि की "समीक्षा और संशोधन" की मांग की गई थी. विशेषज्ञों के अनुसार, "समीक्षा" शब्द ने प्रभावी रूप से भारत की संधि को रद्द करने और फिर से बातचीत करने की मंशा को दर्शाया.
दोनों नोटिस सिंधु जल संधि के अनुच्छेद XII (3) के तहत जारी किए गए थे जिसमें कहा गया है कि "इस संधि के प्रावधानों को समय-समय पर दोनों सरकारों के बीच उस उद्देश्य के लिए संपन्न एक विधिवत अनुमोदित संधि द्वारा संशोधित किया जा सकता है."