भारत-चीनः तनातनी की तैयारी
भारत के साथ सीमा पर चीन के ताजा घुसपैठ से खतरे की घंटी बजी. आखिर बीजिंग इसके जरिए क्या संदेश दे रहा है?

जब दो परमाणु ताकत से लैस देशों के सैनिक हाथापाई, घूसे-मुक्कों और पत्थरों से आपस में भिड़ें तो उससे डरावना आश्वासन नजर आता है. कोई इसमें उस कथन की विचित्र झलक पा सकता है जिसे अमूमन गलती से अलबर्ट आइंस्टीन का बता दिया जाता है कि चौथा विश्व युद्ध कैसे लड़ा जाएगा. भारत और चीन के बीच 3,448 किलोमीटर लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर असहमति की वजह से दोनों देशों के जवानों के बीच हाथापाई और मुक्केबाजी हुई, पर दोनों ओर के सैनिकों की राइफल पीठ पर हमेशा उल्टी टंगी रही. दुनिया में इस सबसे लंबी विवादास्पद सीमा पर आखिरी गोली करीब 45 साल पहले चली थी. फिर भी, मई के पहले हफ्ते में पूर्वी लद्दाख में भारत-चीन के जवानों के बीच झड़प चिंता की वजह है. एलएसी पर चक्राकार खारे पानी की झील पांगोंग त्सो के किनारों पर हुई झड़प हाल के दौर में बदतर थी. कई भारतीय सैनिकों को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा. कुछ ही दिनों में उत्तर सिक्किम के नाकु ला क्षेत्र में भी भारत और चीन के सैनिक भिड़ गए.
बड़ी सावधानी भरी रजामंदी के साथ कायदा तय हुआ था कि दोनों तरफ के गश्ती दल कभी एक-दूसरे के इलाके में आ जाएं तो अंग्रेजी में लिखे बैनर लहरा दिए जाएं कि एलएसी लांघी जा चुकी है इसलिए वापस चले जाओ. इन घटनाओं में इस कायदे को धत्ता बता दिया गया. एक भारतीय सेना के अधिकारी हल्के व्यंग्य में कहते हैं, ''ये बैनर रेजिमेंट के झंडे की तरह हो गए हैं, जिन्हें शायद ही लहराया जाता है.''
लद्दाख के बर्फीले रेगिस्तान में ये झड़पें अब दोनों तरफ से टकराव की बानगी बन गई हैं, पांगोंग त्सो से तकरीबन 100 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में गल्वान घाटी में कुछ सौ चीनी फौजियों ने टेंट लगा लिए हैं. ये टेंट चीन के दावे वाली सीमा से आगे लगाए गए हैं. इससे करीब 500 मीटर की दूरी पर उतनी ही संख्या में भारतीय सैनिकों ने भी टेंट लगा लिए हैं.
गल्वान घाटी 1962 में चीन के साथ सीमा युद्ध में भारत सरकार की नाकाम 'आगे बढऩे की नीति' की दर्दनाक याद दिलाती है. जुलाई, 1962 में चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने घाटी में भारतीय सेना की एक नई बनी चौकी को घेर लिया और उसे उड़ा देने की धमकी दी. उन्होंने धमकी पर अमल नहीं किया तो नई दिल्ली में उसे जीत की तरह माना गया. उसी साल बाद में चीनी सेना बढ़ी और उसने चौकी को नेस्तोनाबूद कर दिया. हालांकि फिलहाल वैसा युद्ध भड़कने का खतरा नहीं है, लेकिन गल्वान घाटी में हाल की घटनाओं की तरह ही तब शुरुआत हुई थी.
वैसे भी, यह टकराव 2017 में डोकलाम में 73 दिनों के तनाव के बाद सबसे बड़ा है. उस वक्त चीनी सेना के सड़क निर्माण को रोकने के लिए भारतीय सेना भूटान के चारागाह में घुस गई थी. हालिया टकराव ज्यादा गंभीर है क्योंकि एक सेना अधिकारी के मुताबिक, पीएलए ने दूर-दराज की भारतीय सीमा चौकी तक पहुंच वाली एक नई सड़क पर कैंप लगा लिया है.
अगर वह दूर की चौकी भेद दी गई तो उत्तरी क्षेत्र में भारतीय सेना की आपूर्ति गंभीर खतरे में आ जाएगी. नई दिल्ली में पीछे हटने का कोई संकेत नहीं है. हालांकि, तनाव घटाने के लिए बीजिंग के साथ कई स्तरों पर संपर्क शुरू किए गए हैं.
इस वक्त क्यों?
यही सवाल सेना और सरकार में लगभग हर किसी की जुबान पर है. डोकलाम की घटना के बाद भारत-चीन के बीच एलएसी पर असहज शांति-सी बनी रही है. उस टकराव के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच दो बार अनौपचारिक वार्ता हुई. एक, वुहान (अप्रैल, 2018) और दूसरी, ममल्लपुरम (अक्तूबर 2019) में. दोनों नेताओं ने सीमा संबंधी असहमतियों को द्विपक्षीय रिश्ते से अलग रखने और सीमा पर शांति बनाए रखने पर रजामंदी जताई थी. भारतीय सेना के सैन्य अभियान महानिदेशालय (डीजीएमओ) और लांझाउ में स्थित चीन के पश्चिमी थिएटर कमान के बीच अपनी तरह की पहली हॉटलाइन जल्दी ही काम करने लगेगी. यहां तक कि टकराव के बाद तीन साल के अंतराल से एक वरिष्ठ सेना अधिकारी ने यह संकेत तक दे दिए थे कि सीमा विवाद का स्थायी समाधान भी संभव है.
एलएसी का अभी जमीन पर सीमांकन नहीं किया गया है, न सेना के नक्शे में यह है. इसके पूर्वी लद्दाख वाले हिस्से को पश्चिमी क्षेत्र, हिमाचल और उत्तराखंड वाले हिस्से को मध्य क्षेत्र और सिक्किम तथा अरुणाचल प्रदेश वाले हिस्से को पूर्वी क्षेत्र कहा जाता है. बिना किसी स्पष्ट रेखा के एलएसी तनाव का कारण बनी हुई है. अपनी-अपनी मान्यता के हिसाब से अपना दावा बनाए रखने के लिए भारत और चीन की सेना एलएसी तक गश्त करती है. कई मौके पर चीनी सेना की गश्ती टुकड़ी इन्फ्रास्ट्रक्चर निर्माण का विरोध करने के लिए उस इलाके में कैंप लगा लेती है, जिस पर भारत का दावा है (देखें, लद्दाख पर निशाना). इन असहमतियों के लिए भारतीय आधिकारिक नजरिए में चीन के रुख पर भी तवज्जो दी जाती है—जैसे, ये 'धारणाओं के मतभेद' से पैदा होते हैं. लेकिन, एक सेना अधिकारी कहते हैं, ''गल्वान में कभी धारणा में मतभेद नहीं था.''
ताजा घुसपैठ में पूर्व सैन्य अभियान महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल विनोद भाटिया की 2017 की एक भविष्यवाणी की अजीब गूंज भी सुनाई दे रही है. उनकी अगुआई वाले रक्षा मंत्रालय के थिंक टैंक सेंटर फॉर जॉइंट वारफेयर स्टडीज (सेनजोव्ज) के लिए लिखे एक शोध-पत्र में लेफ्टिनेंट जनरल भाटिया ने भविष्यवाणी की थी: ''चीन के आक्रामक रुख और उभरते भारत के मद्देनजर एलएसी को लेकर धारणाओं के मतभेद से लगातार तनाव बना रहेगा, घुसपैठ या सीमा लांघने की घटनाओं की बारंबारता बढ़ जाएगी और टकराव बढ़ेंगे.''
चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की मिल्कियत वाले ग्लोबल टाइम्स के संपादकीय में 19 मई को भारत को घुसपैठिया बताया गया.
21 मई को भारत के विदेश मंत्रालय ने इस बात का खंडन किया कि भारतीय सेना एलएसी के पार कोई गतिविधि कर रही है. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा, ''भारतीय टुकडिय़ां एलएसी से वाकिफ हैं और पूरी तरह कायदों का पालन करती हैं.''
हालांकि कुछ दूसरे वैश्विक वजहें भी काम कर रही हैं. चीन की संसद नेशनल पीपल्स कॉन्फ्रेंस की सालाना बैठक फिलहाल बीजिंग में चल रही है. शी जिनपिंग ने सैन्य खर्च में 6 फीसद के इजाफे के साथ पीएलए को पूरे समर्थन की बात की है. कोविड-19 महामारी से अपेक्षाकृत कम क्षति से निकलने के बाद चीन ने खासकर क्षेत्रीयता और सीमा विवादों में आक्रामक रुख अपनाया है. अप्रैल के शुरू में उसने विवादास्पद दक्षिण चीन सागर में एक वियतनामी जहाज को डुबो दिया. हांगकांग में असहमति के स्वरों को दबाने के लिए बीजिंग नया सख्त कानून लाया और उसने ताइवान को अलगाव के खिलाफ चेताया है. इन घटनाओं के मद्देनजर, भारत के टिप्पणीकार मौजूदा घटनाक्रम को पिछले अगस्त में अनुच्छेद 370 हटाकर जम्मू-कश्मीर के बंटवारे पर चीन के खीझ का नतीजा मानते हैं.
भारत में सैन्य सुधार पर रिपोर्ट पेश करने वाली समिति के अध्यक्ष लेफ्टिनेंट जनरल डी.बी. शेकतकर का कहना है कि लद्दाख में टकराव 'न किसी अचानक प्रसंगवश है, न महज संयोग भर.' वे कहते हैं, ''इसकी योजना बनाने में कई महीने लगे होंगे. यह लद्दाख को केंद्रशासित क्षेत्र बनाने और (पाकिस्तानी कब्जे वाले) गिलगित-बल्तिस्तान और (चीन के कब्जे वाले) अक्साइ चिन पर नए सिरे से हमारा दावा ठोकने के जवाब में है.''
यूनाइटेड सर्विसेज इंस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया में फील्ड मार्शल केएम करियप्पा चेयर ऑफ एक्सीलेंस से सम्मानित क्लॉड अर्पी के मुताबिक, ''गल्वान क्षेत्र और नाकु ला पर कभी विवाद नहीं रहा है. घुसपैठ के इस तरीके का संकेत है कि चीन एलएसी पर कई नए मोर्चे खोलने की सोच रहा है.''
इस टकराव पर अमेरिका ने भी टिप्पणी की, जो चीन-भारत के सीमा विवाद पर बमुश्किल बोलता है. अमेरिकी विदेश विभाग में दक्षिण और मध्य एशिया मामलों के ब्यूरो में निवर्तमान प्रिंसिपल डिप्टी एसिस्टेंट एलिस वेल्स ने कहा कि सीमा पर तनाव जाहिर करता है कि चीन की आक्रामकता सिर्फ लफ्फाजी नहीं है.
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 27 मई को ट्वीट किया: ''हमने भारत और चीन को बताया है कि अमेरिका दोनों के बीच हालिया सीमा विवाद की सहर्ष और सक्षम तरीके से मध्यस्थता करने को तैयार है.''
इस ट्वीट ने बीजिंग को असहज कर दिया होगा, जो भारत-अमेरिका की बढ़ती नजदीकी से चौकन्ना है. चीन के विदेश मंत्री के प्रवक्ता झाओ लिजिएन ने संकेत दिया कि तनाव को कम करने की कोशिश जारी है और ''सीमा पर स्थिति कुल मिलाकर स्थिर और नियंत्रण में है.''
नई दिल्ली की नजर निस्संदेह महामारी के बाद चीन के रवैए को देखने के लिए इसी साल बाद में होने वाली दो द्विपक्षीय वार्ता पर है.
एक, प्रधानमंत्री मोदी और शी जिनपिंग के बीच तीसरी अनौपचारिक वार्ता है, और दूसरी, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल के विशेष प्रतिनिधि और चीन के विदेश मंत्री वांग यी के बीच सीमा वार्ता का 23वां अध्याय.
बाजी पलटने वाली सड़क
1962 के युद्ध के बाद के दशकों में पूर्वी लद्दाख भारत की दुखती रग और सैन्य योजनाकारों के लिए दु:स्वप्न सरीखा रहा है. वह इलाका दूर-दराज है, कोई सड़क वहां नहीं जाती. सर्दियों में पहाड़ी दर्रे बर्फ से ढक कर बंद हो जाते हैं तो उसके कुछ इलाके एकदम अलग-थलग हो जाते हैं.
1990 के दशक में तिब्बत के पठार में इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार करने के तेज अभियान से भारत सरकार के कान खड़े हो गए और उसने 'चीन अध्ययन समूह' का गठन किया क्योंकि उससे चीन अपनी फौज को तेजी से भेजने के काबिल हो सकता था.
2003 में इस समूह ने हर मौसम के अनुकूल सड़कें बनाकर सीमा पर इन्फ्रास्ट्रक्चर बेहतर करने की सिफारिश की. पिछले छह साल से समूह के सुझाए 73 सड़कों में से ज्यादातर का काम तेजी से निर्माण के चलते पूरा होने को है.
मौजूदा टकराव की फौरी वजह इनमें से एक, 260 किमी. लंबी दारबुक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी सड़क है जो लेह से सेना के सबसे उत्तरी चौकी डीबीओ को जोड़ती है.
इस चौकी से काराकोरम दर्रा दक्षिण में कुछ ही किलोमीटर दूर है. सड़क का काम पिछले साल पूरा हो गया. अब आपूर्ति उस चौकी तक सीधे जा सकती है. पहले यह 10 दिनों की खच्चरों की सवारी से पहुंचाई जाती थी या वायु सेना के विमानों के जरिए.
पिछले साल अप्रैल में सेना ने चतुराई से सड़क निर्माण का काम पूरा होने का ऐलान किया. करगिल युद्ध की 20वीं वर्षगांठ पर इस पर एक मोटरसाइकिल रेस का आयोजन किया गया.
लिहाजा, संदेश अनसुनी नहीं रही होगी. 2019 में चीन की सेना के सीमा लांघने की घटनाएं लगभग दोगुनी, 536 हुईं—जिनमें ज्यादातर पश्चिमी क्षेत्र लद्दाख में हुईं.
कुछ सेना अधिकारी अब गल्वान को डोकलाम का जवाब मानते हैं. 2017 में चीन की सड़क जफ्फेरी रिज तक पहुंची थी, जहां से 'चिकन नेक' यानी भारत के पूर्वोत्तर को जोडऩे वाला पतला-सा सिलिगुड़ी गलियारा दिखता है.
नई दारबुक-श्योक-डीबीओ सड़क भी तिब्बत से जिंजियांग को जोडऩे वाले चीन के रणनीतिक हाइवे से ज्यादा दूर नहीं है.
सीमा पर इन्फ्रास्ट्रक्चर बेहतर करने का निर्माण जारी है और सभी सडकें 2023 तक बनकर तैयार हो सकती हैं. गल्वान जैसे सीमा विवाद मामूली अड़चन ही साबित होंगे.
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