और अब अरब सागर में बन रहा है एक चक्रवात
इस सदी के सबसे बड़े चक्रवातीय तूफान अंफन को गुजरे अधिक वक्त नहीं हुआ है और दूसरा चक्रवातीय तूफान अरब सागर में बनने की प्रक्रिया में है. मौसम वैज्ञानिकों का अनुमान है कि जल्द ही अरब सागर से एक चक्रवात उठकर भारत के पश्चिमी तट पर भारी बरसात कराएगा

इस सदी के सबसे बड़े चक्रवातीय तूफान अंफन को गुजरे अधिक वक्त नहीं हुआ है और दूसरा चक्रवातीय तूफान अरब सागर में बनने की प्रक्रिया में है. मौसम वैज्ञानिकों का अनुमान है कि जल्द ही अरब सागर से एक चक्रवात उठकर भारत के पश्चिमी तट पर भारी बरसात कराएगा.
मौसम का पूर्वानुमान लगाने वाली निजी एजेंसी स्काइमेट के वाइस प्रेसिडेंट महेश पालावत कहते हैं, “इस वक्त अरब सागर में कोई डिप्रेशन तो मौजूद नहीं है. दक्षिण-पूर्व अरब सागर में एक साइक्लोनिक सर्कुलेशन (चक्रवातीय सर्कुलेशन) मौजूद है जो निम्न दाब का क्षेत्र पैदा करेगा.”
इसका अर्थ है कि अरब सागर में भी वैसी ही स्थितियां बन रही हैं जैसा मई के दूसरे हफ्ते में दक्षिणी बंगाल की खाड़ी में बन रही थीं और जिसने बाद में थोड़ा रुककर भीषण सुपरसाइक्लोन अंफन का रूप ले लिया.
पालावत कहते हैं, “साइक्लोनिक सर्कुलेशन से बना निम्न दाब का क्षेत्र गहन होकर एक डिप्रेशन में तब्दील हो सकता है और जो आगे चलकर चक्रवात भी बन सकता है.”
ऐसे में सीधा प्रश्न यह उठता है कि क्या अरब सागर में उठ रहा चक्रवात महाराष्ट्र और गुजरात में वैसी ही तबाही मचा सकता है जैसी अंपन ने ओडिशा और पश्चिम बंगाल में मचाई है!
पालावत कहते हैं, “अभी कहना जल्दबीज होगी. हमें थोड़ा इंतजार करके देखना चाहिए.”
हालांकि, वह स्पष्ट कहते हैं, अगर चक्रवातीय तूफान बना तो वह पश्चिमोत्तर दिशा में बढ़ेगा. यानी जिस तरफ ओमान है और 31 मई के आसपास यह ओमान तट पर पहुंच सकता है.
पालावत इस बारे में एक संभावित टाइम लाइन भी बताते हैं कि यह साइक्लोनिक सर्कुलेशन दक्षिण-पूर्वी अरब सागर में 30 मई तक पहुंच सकता है. जहां यह निम्न दाब के क्षेत्र में तब्दील होगा और यह निम्न दाब का क्षेत्र डिप्रेशन में बदलकर गुजरात तट की ओर 3 जून के आसपास असर दिखाएगा.
पालावत कहते हैं, “जून महीने की शुरुआत में पश्चिमी भारत खासकर महाराष्ट्र और गुजरात में भारी बरसात की संभावना बनती दिखाई दे रही है.’
हालांकि, चक्रवातीय तूफानों के मामले में अरब सागर में बंगाल की खाड़ी की तुलना में कम चक्रवात बनते हैं. मौसम वैज्ञानिकों के मुताबिक, इन दोनों सागरों में चक्रवातीय तूफानों के पैदा होने की संख्या को लेकर कोई खास पैटर्न तो नहीं है, पर पिछले रिकॉर्ड इस बात की तस्दीक करते हैं कि 3 से 4 महीने तक चलने वाले प्री-मॉनसून (मॉनसून पूर्व) सीजन में दोनों बेसिनों में दो से अधिक चक्रवातीय तूफान नहीं बनते हैं.
पिछले दस साल के आंकड़ों को विश्लेषण भी यह स्पष्ट कर देता है कि कि किसी खास साल में एक भी चक्रवातीय तूफान नहीं आने की भी संभाव्यता होती है. और दोनों बेसिनों में औसतन दो चक्रवातीय तूफानों का आंकड़ा भी इन्हीं सांख्यिकीय गणनाओं से आया है.
मौसम का पूर्वानुमान लगाने वाली निजी एजेंसी स्काईमेट के मौसम वैज्ञानिक कहते हैं कि 2011 और 2012 में प्री-मॉनसून सीजन में दोनों में से किसी बेसिन में कोई तूफान नहीं आया था.
2019 और 2020 में बंगाल की खाड़ी में एक के बाद एक प्री-मॉनसून चक्रवातीय तूफान आए. इससे पहले मरुत और मोरा नाम के दो चक्रवातीय तूफान अप्रैल और मई 2017 में बने थे. मरुत और मोरा दोनों की शुरुआत तूफानों के रूप में हुई थी और जीवनकाल महज 2 दिन का था. पर इन 2 दिनों के बाद ये गहन होकर चक्रवातीय तूफानों में बदल गए थे. मोरा तो सीवियर साइक्लोनिक स्टॉर्म का दर्जा पा गया था.
हालांकि, राहत की बात यह थी कि इन तूफानों में से कोई भी तूफान भारतीय तट से नहीं टकराया था और उनका केंद्र म्यांमार और बांग्लादेश थे.
इस वक्त जब अरब सागर में एक संभावित चक्रवातीय तूफान तैयार होने की प्रक्रिया में है, भारत के पश्चिमी राज्यों को तैयार रहना चाहिए. इससे पहले अरब सागर में नीलोफर जैसी तूफानों का खतरा था, पर वे नख-दंत विहीन तूफान साबित हुए थे.