न्याय के मुद्दे पर चीफ जस्टिस और बाकी जज एक बराबर

हाईकोर्ट के ज्यादा लंबे तजुर्बे के आधार पर दीपक मिश्रा हुए सीनियर.

हाईकोर्ट के ज्यादा लंबे तजुर्बे के आधार पर दीपक मिश्रा हुए सीनियर
हाईकोर्ट के ज्यादा लंबे तजुर्बे के आधार पर दीपक मिश्रा हुए सीनियर

नई दिल्ली.सुप्रीम कोर्ट के चार न्यायाधीशों के भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) के कामकाज पर आपत्ति जाहिर करने के मसले के पटाक्षेप का ऐलान सोमवार को बार काउंसिल ने कर जरूर दिया पर कुछ सवाल अभी भी जिंदा हैं. इनमें से एक है जजों की वरिष्ठता का. चार जजों की चिट्ठी में ही जिक्र है कि प्रधान न्यायाधीश "फर्स्ट अमांग ईक्वल्स, नथिंग मोर नथिंग लेस" यानी सीजेआई सुप्रीम कोर्ट के बाकी जजों के बराबर हैं, न ज्यादा न कम. ये भी एक परंपरा या धारणा पर आधारित व्यवस्था है. 

सुप्रीम कोर्ट में बहुत सी चीजें परंपराओं पर चल रही हैं और परंपराएं अलिखित होती हैं. वरिष्ठता का मामला भी इसी में आता है. मौजूदा प्रधान न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा और दूसरे सबसे सीनियर जज जस्टिस जे. चेलमेश्वर की नियुक्ति एक ही दिन 10 अक्तूबर 2011 को हुई.

सवाल ये है कि वरिष्ठता के मसले पर व्यवस्था क्या कहती है. दो जज अगर एक ही दिन नियुक्त होंगे तो कौन सीनियर माना जाएगा. इस पर व्यवस्था ये कहती है कि दो जज अगर एक ही दिन सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त हुए हों तो वरिष्ठता के मामले में उनके हाईकोर्ट के कार्यकाल को भी संज्ञान में लिया जाएगा. जस्टिस चेलमेश्वर इसी मामले में जस्टिस दीपक मिश्रा से पिछड़ते हैं. उनका रिटायरमेंट भी जस्टिस मिश्रा (2 अक्तूबर 2018) से पहले यानी इस साल 22 जून को हो रहा है.

मुकदमों की बेंच तय करने के अलावा जहां तक फैसलों का सवाल है तो किसी जज का फैसला किसी से बड़ा नहीं होता. दो जजों की पीठ का फैसला उससे ज्यादा संख्या वाले जजों की पीठ ही पलट सकती है. न्याय के मामले में चीफ जस्टिस और बाकी जज एक बराबर होते हैं. 

तीन तलाक का मामला इसका बढ़िया उदाहरण है जब तत्कालीन चीफ जस्टिस जे. एस. खेहर और जस्टिस अब्दुल नजीर की राय तीन तलाक को गैरकानूनी बनाने की नहीं थी. लेकिन बाकी तीन जजों ने इसे गैर कानूनी माना और 3 : 2 के बहुमत से फैसला सुनाया गया. जाहिर है प्रशासनिक शक्तियों के मामले में चीफ जस्टिस सर्वोपरि है और मास्टर ऑफ रोस्टर यानी केस की पीठ तय करने के मामले में पिछले दिनों आए फैसले से स्थिति स्पष्ट हो चुकी है.

जजों की लिखी चिट्ठी में विरोधाभास ये है कि एक तरफ वे कहते हैं कि न्याय के मामले में चीफ जस्टिस बाकी जजों के बराबर हैं और दूसरी तरफ वे अपनी वरिष्ठता का हवाला देकर महत्वपूर्ण मामलों के अलॉटमेंट पर सवाल उठा रहे हैं. जब सभी जज बराबर हैं तो केस के अलॉटमेंट में सीनियर-जूनियर देखना कितना न्यायसंगत है.  

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