गोवा: क्या भगवा-विरोधी मोर्चा की मदद से सरकार बना पाएगी कांग्रेस?

2027 के विधानसभा चुनाव से पहले गोवा में वापसी की उम्मीद कर रही कांग्रेस ने भगवा विरोधी मोर्चा बनाया है, लेकिन स्थानीय निकाय चुनावों से पहले ही जमीन कमजोर दिख रही

गोवा में कांग्रेस की जमीन कमजोर दिख रही (इलस्ट्रेशन- सिद्धांत जुमडे)

यह महागठबंधन का गोवा संस्करण है. इसका नाम भी 'गोवा' है—जीओए यानी 'ग्रैंड अपोजिशन एलायंस' या 'महा विपक्षी गठबंधन'. मगर कांग्रेस के नेतृत्व वाली यह तमाम गठबंधनों की जननी दलबदलुओं के खतरे से जूझ रही है. 2027 में होने वाले चुनाव में जहाजों के भगवा बेड़े को समुद्र में डुबोने के लिए तैयार यह परियोजना एक सख्त इम्तहान से गुजर रही है. 

राज्य चुनाव आयोग ने 29 नवंबर को नॉर्थ और साउथ गोवा जिला पंचायतों के चुनावों का ऐलान किया. वोटों की गिनती का दिन, यानी 22 दिसंबर, प्रमोद सावंत सरकार की अग्निपरीक्षा का दिन होगा. 'गोवा' गठबंधन अगर ताकतवर होकर उभरता है, तो अगले साल की शुरुआत में होने वाले शहरी निकाय चुनाव के लिए उसकी उम्मीद बढ़ेगी. इनसे भी वह निखरकर निकलता है, तो एक साल बाद अपने निर्णायक इम्तेहान में उतरेगा.

विधानसभा चुनाव जनवरी-फरवरी 2027 में होने हैं, और कांग्रेस समय रहते गोवा फॉरवर्ड पार्टी (जीएफपी) और मूलवासियों के समर्थक धड़े रिवॉल्यूशनरी गोवन्स पार्टी (आरजीपी) को गोवा तटीय छत्र के तहत लाने पर आमादा है. दोनों का 40 सदस्यीय सदन में एक-एक विधायक है. 2022 के चुनावों में कांग्रेस 11 सीटों पर सिमट गई थी जबकि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने 20 सीटें जीती थीं.

अलबत्ता यह जीत 2020 के नॉर्थ और साउथ जिला पंचायत चुनावों में उसके प्रदर्शन के मुकाबले कमतर थी. दोनों जिला पंचायतों में 25-25 सदस्य हैं, और भाजपा ने इनमें से करीब दो-तिहाई (33) सीटें जीती थीं, जबकि कांग्रेस चार पर हांफती रह गई थी. यहां तक कि उसे साउथ गोवा के उस सालसेट तालुका में भी मुंह की खानी पड़ी थी जहां कैथोलिकों और मुसलमानों की अच्छी खासी तादाद है. गोवा के 40 विधानसभा क्षेत्रों में से आठ इसी तालुका से आते हैं. वह सालसेट की नौ जिला पंचायत सीटों में से महज तीन जीत पाई. 

फिर भी कांग्रेस 2027 में अपने लिए बेहतर संभावनाएं देख रही है. उसे लगता है कि एकजुट विपक्ष सत्ता विरोधी वोटों को बंटने से रोककर अपने को कमजोर नहीं पड़ने देगा, जैसा कि 2022 में हुआ था, जब आम आदमी पार्टी (आप) और तृणमूल कांग्रेस ने उसके वोटों का एक हिस्सा हड़प लिया था.

बागियों की टोली

मगर यह प्रायोगिक परीक्षण अचानक मुश्किल से घिर गया है. गोवा गठबंधन में उसके नए साझेदार जीएफपी ने चार बार के विधायक इसिडोर फर्नांडीस को पार्टी में शामिल करके उसे हक्का-बक्का कर दिया, जो 2019 में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में गए थे. सितंबर 2022 में उसके 11 में से आठ विधायक दिगंबर कामत (अब लोक निर्माण मंत्री) और तब विपक्ष के नेता माइकल लोबो की अगुआई में पाला बदलकर भाजपा में चले गए. यह भी तब हुआ जब पार्टी के उम्मीदवारों ने मंदिर, चर्च और मस्जिद में चुनाव के बाद वफादारी नहीं बदलने की शपथ ली थी! 

कांग्रेस के एक बड़े नेता कहते हैं, ''गठबंधन के साझेदार चुनने में हमें सावधान रहना होगा... वर्ना बाद में वे भाजपा में चले जाएंगे.'' वे सीटों के बंटवारे के कांटेदार मुद्दे को लेकर भी आगाह करते हैं. जीएफपी कह रही है कि जिला पंचायत की 50 में से 20 सीटें गठबंधन की दोनों गैर-कांग्रेसी पार्टियों के लिए आरक्षित कर दी जाएं—10 खुद उसके लिए और 10 आरजीपी के लिए. बड़ा भाई बाकी बची 30 सीटों से खास खुश नहीं है. 

मगर जीएफपी 'गोवा' के विचार से काफी सहज है. उसके प्रमुख और पूर्व उपमुख्यमंत्री विजय सरदेसाई कहते हैं, ''इस बात का एहसास है कि भाजपा को हराने के लिए सभी को साथ आना चाहिए.'' वे फर्नांडीस को पार्टी में शामिल करने के कदम का बचाव करते हुए कहते हैं, ''उन्हें हमारे उम्मीदवार की जीत में मदद करने के लिए लिया गया.'' वे जोर देकर कहते हैं कि जीएफपी 'दलबदलुओं का मंच नहीं' है. इन सबके बीच, दो विधायकों वाली आम आदमी पार्टी आरजीपी को अपनी ओर करना चाह रही है. आप ने अब तक जिला पंचायत के 22 उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया है. 

कांग्रेस की सबसे बड़ी अड़चन इस बाधा दौड़ के उस पार है. भाजपा के गोवा अध्यक्ष दामोदर 'दामू' नाइक का कहना है कि विपक्ष चाहे जो शक्ल अख्तियार करे, हम डटकर उसका मुकाबला करेंगे.

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