जम्मू कश्मीर: नौगाम हादसे में किन सवालों के जवाब मिलने अभी बाकी हैं?

श्रीनगर में नौगाम पुलिस स्टेशन में 14 नवंबर की रात इतना तेज धमाका हुआ कि 30 किलोमीटर दूर तक सुनाई दिया. लेकिन, इससे जुड़े कई सवालों के जवाब अब तक नहीं मिले हैं

14 नवंबर को आग के लपटों में घिरा नौगाम थाना

घनी आबादी वाले एक रिहाइशी इलाके में चारों तरफ घरों से घिरी एक प्रवासी की पुरानी संपत्ति पर नौगाम पुलिस स्टेशन बना हुआ था. सोचने वाली बात है कि वहीं 358 किलो अमोनियम नाइट्रेट, केमिकल और बैटरियां रखी थीं. वही विस्फोटक जो 10 नवंबर को दिल्ली के लाल किले के ब्लास्ट में इस्तेमाल हुआ था.

ये सारा सामान वापस श्रीनगर के नौगाम में, यानी उस जगह कैसे पहुंचा जिसे 'व्हाइट कॉलर टेरर' नेटवर्क का असली खुलासा करने वाला ग्राउंड जीरो कहा जा रहा है? दरअसल, ये बरामद विस्फोटक नौगाम पुलिस की 'केस प्रॉपर्टी' थे. उन्होंने गैरकानूनी गतिविधियां (निरोधक) कानून (यूएपीए) और भारतीय न्याय संहिता की कई धाराओं में केस दर्ज किया था.

इन्हीं की जांच के दौरान फरीदाबाद मॉड्यूल का भंडाफोड़ हुआ था और वहां से 2,900 किलो विस्फोटक बरामद हुआ था. नियम यह है कि जिस जगह केस दर्ज हुआ हो, सबूत वहीं की अदालत में जमा किए जाते हैं. इसलिए इस माल का एक हिस्सा कंटेनरों में भरकर, बरामदगी वाली जगह से 1,000 किलोमीटर दूर नौगाम भेजा गया.

सैंपल बन गया जानलेवा

14 नवंबर की रात 11:20 बजे इस फैसले की असली कीमत समझ में आ गई. इतना तेज धमाका हुआ कि 30 किलोमीटर दूर तक सुनाई दिया. आसपास के लोग सोने की तैयारी कर रहे थे कि अचानक धमाके और तेज रोशनी की चमक से बिस्तरों से उठ खड़े हुए. थाना, जो सड़क से सिर्फ एक खाली मैदान से अलग था, पूरी तरह जलकर राख हो गया. शरीर के टुकड़े आधा मील दूर तक मिले.

जिस वक्त यह हादसा हुआ, विस्फोटक का सैंपल छोटे-छोटे पैकेट में भरकर जम्मू की फॉरेंसिक साइंस लैब भेजने के लिए तैयार किया जा रहा था. भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में फॉरेंसिक सबूत जुटाना जरूरी है. नौ मारे गए लोगों में एमबीए कर अफसर बने असरार अहमद भी थे, जिन्हें स्पेशल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी की तरफ से नौगाम केस संभालना था. उनके अलावा फॉरेंसिक कर्मचारी, लैब असिस्टेंट और पाउच सिलने के लिए बुलाया गया एक दर्जी शामिल था.

पुलिस महानिदेशक नलिन प्रभात ने साफ कर दिया कि इसमें किसी आतंकी हमले का हाथ नहीं है, जबकि जैश-ए-मोहम्मद के नाम पर चलने वाले पीपल्स ऐंटी-फासिस्ट फ्रंट ने इसका क्रेडिट लेने की कोशिश की थी.

अब सवाल उठना लाजमी है. जब सिर्फ सैंपल काफी था, तो पूरा स्टॉक नौगाम क्यों भेजा गया? इतना संवेदनशील सामान रिहाइशी इलाके में बने थाने में क्यों रखा गया? इन सवालों के जवाब ढूंढने के लिए गृह विभाग के प्रिंसिपल सेक्रेटरी की अगुआई में एक जांच कमेटी बनी है, जिसमें कश्मीर जोन के आइजी, श्रीनगर डीएम और सेंट्रल फॉरेंसिक साइंस लैब के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक शामिल हैं.

एक केंद्रीय अधिकारी ने कहा कि पुलिस शायद थोड़ा लापरवाह हो गई. ''इतनी बड़ी मात्रा को देखते हुए, वे सबूत जमा करने से छूट मांग सकते थे या यह स्टॉक एनएसजी, सेना या पैरामिलिट्री को दे देते, जिनके पास इसे संभालने की बेहतर क्षमता है.''

इधर, कार्रवाई बहुत तेज चल रही है. 18 नवंबर की सुबह-सुबह हुई रेड में दावा किया गया कि प्रतिबंधित दुख्तरान-ए-मिल्लत के साथ 'जैश लिंक' मिला है. दर्जनों लोगों को पकड़ा गया है. काजीगुंड के रहने वाले बिलाल अहमद वानी ने अपने बेटे की गिरफ्तारी के बाद खुद को आग लगा ली. यह आग नौगाम जितनी नहीं थी, लेकिन विस्फोटक सामग्री को संभालने का यह भी एक करारा सबक है.

खास बातें

> फरीदाबाद के 'सफेदपोश आतंक' केस में जब्त अमोनियम नाइट्रेट नौगाम में फट गया.

> 358 किलो विस्फोटक को सबूत की तरह पेश करने के लिए 1,000 किलोमीटर दूर ढोकर लाया गया था.

कलीम गीलानी और प्रदीप आर. सागर.

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