हिड़मा की मौत से कैसे कमजोर हुआ माओवादी संगठन?
छत्तीसगढ़ के सबसे खतरनाक लड़ाके माड़वी हिड़मा की मुठभेड़ में मौत के साथ माओवादी आंदोलन के खात्मे की शुरुआत हो गई है

छत्तीसगढ़ के उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा ने पिछले हफ्ते माड़वी हिड़मा की मां के साथ दोपहर का भोजन किया. और उसके तुरंत बाद हिड़मा से अपने कई पूर्व साथियों की तरह हथियार डाल देने की अपील की. लेकिन यह काम पारंपरिक तरीके से होना था: जंगल में मुठभेड़. वह सुरक्षाबलों के लिए अब तक का सबसे खरतनाक माओवादी उग्रवादी था.
गुरिल्ला युद्ध का सबसे माहिर लड़ाका. यह इकलौता ऐसा लड़ाका था जिसके लिए बस्तर महज उसका ठिकाना नहीं बल्कि अपना घर था और वह वहां पूरी तरह घुला-मिला था. विडंबना यह थी कि हिड़मा का अंत उसके अपने इलाके से काफी दूर हुआ.
माओवादी संगठन के शीर्ष पदों पर हमेशा तेलुगु नेता रहे हैं जबकि विद्रोह के केंद्र माने जाने वाले मध्य भारत में उनका 'मुक्त क्षेत्र' छत्तीसगढ़ था. वह भी तेजी से अपनी अंतिम सांसें ले रहा है. 50 वर्षीय हिड़मा राज्य का इकलौता आदिवासी था जो प्रतिबंधित सीपीआइ (माओवादी) की केंद्रीय समिति तक पहुंचा.
आंध्र प्रदेश पुलिस ने 18 नवंबर को हिड़मा को उसकी पत्नी और चार अन्य काडरों के साथ मार गिराया. इसी के साथ माओवादी संगठन के सबसे बेरहम और माहिर लड़ाके की चली आ रही तलाश भी खत्म हुई. माना जाता है कि हिड़मा ने बीते डेढ़ दशक में छत्तीसगढ़ में सुरक्षा बलों पर दो दर्जन से ज्यादा सबसे दुस्साहसी और हिंसक हमलों की योजना बनाई और उन्हें अंजाम दिया.
इसमें 2010 का ताड़मेटला हमला शामिल है जिसमें 76 सीआरपीएफ जवान मारे गए थे. इसमें 2021 का तर्रेम हमला भी शामिल है जिसमें 22 जवान मारे गए थे और 31 घायल हुए थे. छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र और ओडिशा समेत माओवाद प्रभावित राज्यों में हिड़मा पर कुल मिलाकार 1.8 करोड़ रुपए का इनाम घोषित किया गया था.
शिकारी और शिकार
सुकमा जिले के पुवर्ती गांव में जन्मे हिड़मा ने स्थानीय स्कूल में पांचवीं कक्षा तक पढ़ाई की थी. वह 1991 में बाल संघम सदस्य के तौर पर माओवादियों से जुड़ गया. उसने मध्य प्रदेश में बालाघाट, ओडिशा और संयुक्त आंध्र में काम किया और जहां भी गया उसने नया नाम रख लिया. वह क्रूर रणनीतियों, दुस्साहस, संगठनात्मक क्षमता और जोखिम उठाने में माहिर था और इन्हीं विशेषताओं की वजह से वह संगठन में तेजी से आगे बढ़ा.
2009-10 में वह पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी की कुख्यात बटालियन नंबर 1 का प्रमुख बन गया. मगर अंतत: उसके अच्छे दिन ढलने लगे. 2024 तक पुवर्ती 'सुरक्षा शून्य' क्षेत्र था. पिछले साल सीआरपीएफ ने वहां एक कैंप स्थापित किया. उन्होंने इसका नाम 'द फॉर्म' रखा. पुवर्ती में माओवादियों के लिए अनाज और सब्जियां उगाई जाती थीं. उन्होंने वहां एक चेक डैम भी बनाया.
आंध्र प्रदेश की ओर से यह 'उपलब्धि' हासिल कर लेने के बाद जाहिर है कि छत्तीसगढ़ में थोड़ी बेचैनी होगी. दिसंबर 2023 से छत्तीसगढ़ पुलिस कई बार उसके बेहद करीब तक पहुंच गई थी. मगर हर बार वह मुठभेड़ से बच निकलता और उसकी अजेयता की कहानी गहरी होती गई. तेलंगाना सीमा पर अक्तूबर के अंत में हुए एक अभियान के दौरान तो वह बिल्कुल निशाने पर आ गया था. मगर हिड़मा उस बार भी बच निकला. पुराने माओवादी नेताओं में अब केवल देवजी बचा है और उन नेताओं के लिए विद्रोह की उम्मीद तब तक ही जिंदा थी जब तक हिड़मा आजाद घूम रहा था.
खास बातें
> 50 साल का हिड़मा, मोस्ट वांटेड माओवादी गुरिल्ला था जो आंध्र प्रदेश में एक मुठभेड़ में मारा गया.
> माओवादी टॉप रैंक में छत्तीसगढ़ का अकेला आदिवासी, कई जानलेवा हमले किए थे.
> छत्तीसगढ़ उसका सरेंडर चाहता था, उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा उसकी मां से मिले थे.
> उसकी जोरदार तलाश चल रही थी, वह भागकर आंध्र प्रदेश गया जहां उसका अंत हुआ.