जम्मू कश्मीर: क्रिकेट टूर्नामेंट को बीच में छोड़ क्यों भागे आयोजक?

क्रिकेट मैच में कई बार बाधाएं आती हैं, लेकिन शायद ही पहले कभी इतनी शर्मनाक स्थिति आई होगी. कश्मीर में आयोजकों के भाग जाने से टूर्नामेंट ही नहीं हो पाया

बख्शी स्टेडियम में अपना सामान पैक करते ब्रॉडकास्टर

गुलदाउदी फूलों से सजे कश्मीर के चिनार के मैदानों की फिजा में क्रिकेट के चटकीले रंग बिखरे हुए थे. बेहद लोकप्रिय क्रिकेट लीग आइपीएल की तर्ज पर यहां इंडियन हेवन प्रीमियर लीग (आइएचपीएल) का आयोजन चल रहा था. लेकिन 2 नवंबर की रात यह सुनहरा सपना अचानक टूट गया. क्रिस गेल और जेसी राइडर जैसे अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट सितारे हक्के-बक्के खड़े थे, अंपायरों और मैच अधिकारियों का एक समूह भी बिल भुगतान न होने के कारण महंगे रेडिसन कलेक्शन होटल में अटका था.

श्रीनगर स्थित बख्शी स्टेडियम का मैदान और स्टैंड एकदम सूने पड़े थे, असमंजस में घिर प्रसारणकर्ता अपना साजो-सामान समेट रहे थे, और कैटरिंग एजेंसियां भी खाने-पीने की चीजों को पैक करके बाहर भेज रही थीं. ये सब क्यों? क्योंकि निजी लीग की आयोजक पंजाब की युवा सोसाइटी ऑफ मोहाली नामक एक गैर-लाभकारी संस्था श्रीनगर में 15 दिवसीय टूर्नामेंट अधर में छोड़कर गायब हो चुकी थी. आयोजकों ने ऐसे समय पर अपने हाथ पीछे खींचे थे जब 8 नवंबर को इस लीग का फाइनल होने में एक हफ्ता बाकी रह गया था.

कुछ समय पहले तक ठंडी शामों में टी-20 लीग का जोश एक अलग ही गर्माहट पैदा करता नजर आ रहा था. आखिरकार गेल, राइडर, थिसारा परेरा और डेवोन स्मिथ जैसे खिलाड़ी स्थानीय खिलाड़ियों के साथ खेल रहे थे. आइपीएल की तरह ऊंची फ्लडलाइट्स के नीचे आठ टीमें दर्शकों में नया उत्साह भर रही थीं. लेकिन आखिरी ओवर खेलने जैसी स्थिति नहीं आ पाई. इसके बजाए, किस्मत ने एक ऐसी मुसीबत ला दी जिसने कश्मीर के खेल जगत को हिलाकर रख दिया.

आइएचपीएल में अंपायरिंग कर रहीं इंग्लैंड क्रिकेट बोर्ड की अंपायर मेलिसा जुनिपर बेहद परेशान नजर आ रही थीं. उन्होंने मीडिया को बताया, ''खिलाड़ियों को भुगतान नहीं हुआ है, कर्मचारियों को भुगतान नहीं किया गया है, और न ही होटल के बिल चुकाए गए हैं. लीग प्रबंधन कहीं नजर नहीं आ रहा. वे किसी के फोन का जवाब भी नहीं दे रहे. मैदान पर मौजूद हम लोग ही संकट से निकलने का रास्ता खोजने में लगे हैं.'' उनके व अन्य अंपायरों के अलावा सभी स्टार क्रिकेटरों और स्थानीय खिलाड़ियों के पास वहां से बाहर निकलने के उपायों के बारे में होटल प्रबंधन के साथ बातचीत करने के अलावा कोई चारा नहीं था. 51 लाख रुपए से ज्यादा का भुगतान नहीं हुआ था. स्थानीय खाद्य एवं प्रसारण एजेंसियों को भी लाखों रुपए का बकाया था.

हालांकि, आयोजकों की नीयत पर संदेह तो पहले से ही हो रहा था. लीग ने अपनी आठ टीमों में से प्रत्येक का मूल्यांकन 2.5 करोड़ रुपए किया था और इसमें अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों और कुछ प्रमुख खिलाड़ियों का भुगतान अनुबंध भी शामिल था. लेकिन ज्यादातर स्थानीय खिलाड़ियों के साथ कोई औपचारिक करार नहीं किया गया था, जिससे कुछ लोगों में नाराजगी भी थी. लेकिन गेल जैसे वैश्विक सितारों वाले विज्ञापन हर तरफ छाए थे, जिससे ज्यादातर स्थानीय क्रिकेटर खुद को इसका हिस्सा बनाने से रोक नहीं पाए. 

कश्मीर को क्रिकेट के मंच पर खास पहचान दिलाने वाले पूर्व भारतीय खिलाड़ी परवेज रसूल को उनकी अनुबंध फीस का सिर्फ 10 फीसद पैसा ही मिला. उन्होंने इंडिया टुडे को बताया, ''यह अनुबंध पर हस्ताक्षर के दौरान दिया गया था. इसके बाद कुछ नहीं मिला.'' माना जा रहा है कि गेल जैसे बड़े खिलाड़ियों को भी उनकी फीस का कुछ हिस्सा मिला है. रसूल सवाल उठाते हैं, ''उन पर शक कौन करता? लीग में सुरिंदर खन्ना और आशु दानी जैसे भारतीय क्रिकेट के विश्वसनीय नाम भी थे.''

35 साल बाद अगस्त में मुसलमान और पंडित दोस्ताना मैच खेलते हुए

करीब चार दशक तक अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट मैचों को तरसते रहे कश्मीर के लिए इंतजार का सिलसिला अक्तूबर 2024 में खत्म हुआ, जब लीजेंड्स लीग क्रिकेट के मैच श्रीनगर में आयोजित किए गए. अब आइएचपीएल के जरिए फिर से यही कामयाबी दोहराए जाने की उम्मीद थी. लेकिन इसे शुरू से ही कोई खास प्रतिक्रिया नहीं मिली. टिकट नहीं बिके तो आयोजकों को स्थानीय कंटेंट क्रिएटर्स के साथ प्रचार करने और छूट देने की रणनीति अपनानी पड़ी. कई लोग इस गड़बड़ी का कारण राजस्व की कम उपलब्धता बता रहे हैं, जिससे हितधारकों को करोड़ों का नुक्सान हुआ है.

स्लॉग ओवर
यह कमाई की होड़ के बीच एक स्टार्टअप फ्लॉप होने जैसा है, जिसमें हमेशा से धोखेबाजों का बोलबाला रहता है. 2019 के बाद सरकारी प्रोत्साहन से क्रिकेट कश्मीर में एक उद्योग के तौर पर उभरा. बड़े व्यवसायी शामिल हुए, जिन्होंने लीग और टूर्नामेंट वित्तपोषित किए और अच्छा मुनाफा भी कमाया. व्यंग्यात्मक अंदाज में ये तक कहा गया कि कश्मीर में बेरोजगारी का आलम ये है कि फाइनल के लिए भीड़ उमड़ पड़ी, जिससे जिले में घंटों यातायात पूरी तरह ठप रहा.

लेकिन यह घटना अप्रत्याशित है. वादे तोड़े जा रहे हैं लेकिन हताश-निराश स्थानीय खिलाड़ी शिकायत नहीं करते. ग्रामीण प्रतिभाएं बड़ी लीग तक नहीं पहुंच पा रहीं. एक साधारण टूर्नामेंट भी 10,000 रुपए में बिकता है. वेरीनाग के जमालगाम के एक उत्साही क्रिकेटर आरिफ हुसैन भट कहते हैं, ''हम ग्रामीण स्तर पर आयोजनों तक ही सीमित रहते हैं.'' सरकार खेलों के बुनियादी ढांचे को बेहतर बनाने में जुटी है लेकिन स्थानीय लोगों के लिए ये लगभग वर्जित हैं क्योंकि इन जगहों को बड़े आयोजनों के लिए बुक रखा जाता है.

आइएचपीएल इसी बेतरतीब विकास का नतीजा है. इसका उद्घाटन करने वाले खेल मंत्री सतीश शर्मा ने कड़ी कार्रवाई का वादा किया है लेकिन भाजपा उमर अब्दुल्ला सरकार पर निशाना साधते हुए कह रही है कि यह घटना शर्मिंदगी का सबब बन गई है. आयोजक, परमिंदर और मनप्रीत सिंह के बारे में फिलहाल कुछ पता नहीं है.

खास बातें

> इंडियन हेवन प्रीमियर लीग बीच में ही रुक गई क्योंकि इसके आयोजक कश्मीर से फरार हो गए.

> अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी, स्टाफ और अंपायर होटल का बिल न चुकाए जाने की वजह से फंस गए; स्थानीय खिलाड़ियों को भी उनका मेहनताना नहीं दिया गया.

- कलीम गीलानी

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