मोदी-योगी की कोशिश के बाद भी मगहर में कबीर शोध संस्थान क्यों नहीं बन पा रहा?
कबीर की परिनिर्वाण स्थली मगहर में नहीं शुरू हो पाया 'संत कबीर अकादमी एवं शोध संस्थान'. इस अधूरे प्रोजेक्ट ने कबीर चौरा परिसर में पर्यटन विकास की संभावनाओं पर असर डाला है

शास्त्रों ने काशी को मुक्ति का एकमात्र ठिकाना बताया और संत कबीर दास ने भक्ति को. उन्होंने रूढ़िवादिता के विरोध में काशी को तज मगहर चले आए, कहा, ''क्या काशी क्या ऊसर मगहर...'' मान्यता है कि कबीर का जन्म और निर्वाण एक ही तिथि पर हुआ लेकिन आज की तारीख में मगहर ज्यादा चर्चा में है.
गोरखपुर से सटे पूर्वी उत्तर प्रदेश के खलीलाबाद का छोटा सा नगर है मगहर जो अब संत कबीर नगर जिले का हिस्सा है, इसमें कबीर ने 1518 में देह त्यागी थी. साल 2018 की 28 जून को कबीरदास का 620वां प्राकट्योत्सव और 500वां निर्वाण दिवस था. इस मौके पर पहली बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मगहर में मौजूद थे.
वे कबीर मंदिर गए. कबीर समाधि स्थल और मजार पर चादर चढ़ाई. कबीर चौरा परिसर को विकसित करने के संकल्प के साथ ही 24 करोड़ रुपए की लागत से बनने वाली संत कबीर अकादमी का शिलान्यास भी किया था. कबीरपंथियों के प्रमुख केंद्र मगहर में आयोजित रैली में प्रधानमंत्री मोदी ने करीब 40 मिनट के संबोधन में कबीर के दोहों का बखूबी इस्तेमाल किया था. भाषण के दौरान मोदी ने कबीर का दोहा ''काल्ह करै सो आज कर, आज करै सो अब, पल में परलय होएगी, बहुरि करैगो कब.'' का जिक्र कर संत को कर्म करने का सबसे बड़ा पक्षधर बताया था.
प्रधानमंत्री मोदी के नींव रखने के सात साल बाद संत कबीर अकादमी एवं शोध संस्थान का भवन त्वरित कर्म के संदेश की उलटबांसी बानगी पेश कर रहा है. मोदी के नींव रखने के चार साल बाद 5 जून, 2022 को मगहर पहुंचे तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने संत कबीर अकादमी एवं शोध संस्थान का लोकार्पण किया था. तब यह उम्मीद जगी थी कि संत कबीर के जीवन दर्शन पर आधारित शोध सवं सर्वेक्षण के कार्य में तेजी आएगी. लेकिन कार्यदायी संस्था की लापरवाही के चलते लोकार्पण के दो साल बाद यह संस्थान और इसके बगल में बना संत कबीर शोध संस्थान छात्रावास का भवन संत कबीर अकादमी को हैंडओवर हो पाया.
इसके करीब सवा साल बाद सितंबर में यहां एक प्रशासनिक अधिकारी समेत कुल सात कर्मचारियों की तैनाती की. अभी भी यह भवन पूरा नहीं बन पाया है. मुख्य भवन के भीतर प्रवेश करते ही संत कबीर अकादमी का वह माडल भी रखा है जिसे शिलान्यास के वक्त प्रधानमंत्री को दिखाया गया था. इसके मुताबिक अकादमी के परिसर में दोनों तरफ पिक्चर गैलरी बननी थी लेकिन अभी केवल बाईं ओर ही बनी है.
छात्रावास के बगल में पार्क बनाया जाना था जहां इस वक्त बड़ी बड़ी झाड़ियां उगी हुई हैं. अकादमी भवन के भूतल पर निदेशक अतुल द्विवेदी का कक्ष आमतौर पर बंद ही रहता है. द्विवेदी उत्तर प्रदेश लोक एवं जनजाति संस्कृति संस्थान के निदेशक भी हैं और लखनऊ में जवाहर भवन के नौवें तल पर बैठते हैं. यहीं बगल में निदेशक, कबीर शोध संस्थान का भी दफ्तर है. इस तरह उद्घाटन के तीन साल से अधिक समय बीतने के बाद भी संत कबीर अकादमी एवं शोध संस्थान अपने मूल स्वरूप में काम शुरू नहीं कर पाया है.
हालांकि, निदेशक द्विवेदी बताते हैं, ''मेरठ में 'रन कबीर' और वाराणसी में 'कबीर यात्रा' जैसे कार्यक्रमों का आयोजन किया गया है. आने वाले समय में कबीर पर बिरहा गायन और कबीर पर नृत्य नाटिका जैसे कार्यक्रम भी होंगे.'' लेकिन कबीर पर शोध के लिए बना यह संस्थान कब अपने मूल उद्देश्य को पूरा करेगा? यह अभी तक तय नहीं हो सका है.
असल में संत कबीर अकादमी शोध संस्थान का संबद्धीकरण लखनऊ में भातखंडे संस्कृति विश्वविद्यालय से होना है लेकिन अभी तक इस दिशा में कोई भी पहल शुरू नहीं हुई है. संस्कृति विभाग के एक अधिकारी बताते हैं कि कबीर शोध संस्थान में होने वाले शोध के विषय क्या होंगे? शोध के लिए धन कहां से उपलब्ध होगा? इसके अलावा शोध किनकी निगरानी में होगा? ऐसे कई पहलुओं पर अभी कोई व्यवस्था नहीं हुई है. हालांकि द्विवेदी बताते हैं, ''गोरखपुर विश्वविद्यालय के साथ मिलकर अकादमी ने कबीर पर सर्वे की योजना तैयार की है. इन सर्वे को एक पत्रिका के रूप में प्रकाशित किया जाएगा.''
मगहर में तीन एकड़ में फैला संत कबीर अकादमी एवं शोध संस्थान भले ही सफेद हाथी बनकर खड़ा हो लेकिन कबीर के जरिए सामाजिक-राजनैतिक संदेश देने की कवायद में कहीं कोई कमी नहीं आई है. उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने संत कबीर से जुड़ी दो बड़ी पहल की हैं. पहली राज्य में टेक्सटाइल-एपेरल पार्कों को कबीर नाम देने का फैसला, इसे श्रम-जागरूकता और कौशल विकास से जोड़कर पेश किया गया है. दूसरा, 27 अक्तूबर को लखीमपुर खीरी जिले के गांव मुस्तफाबाद का नाम बदलकर 'कबीरधाम' करने का प्रस्ताव, संस्कृति-विरासत संकल्प के तहत. बावजूद इसके मगहर में सूफी संत कबीर की निर्वाण स्थली प्रधानमंत्री मोदी की अपेक्षाओं के अनुरूप संवर नहीं सकी है.
कबीर चौरा परिसर में संत कबीर अकादमी के सामने एक कमरे में करीब पांच करोड़ रुपए की लागत से खरीदा गया लाइट ऐंड साउंड शो का सिस्टम बंद पड़ा है. चौंकाने वाली बात यह है कि पूर्व राष्ट्रपति कोविंद ने 5 जून, 2022 को कबीर चौरा परिसर में लाइट ऐंड साउंड शो का उद्घाटन किया था. मगहर के समाजसेवी सत्य प्रकाश वर्मा बताते हैं, ''तीन साल से अधिक समय से बंद पड़ा लाइट ऐंड साउंड शो का सिस्टम सरकारी पैसे की बर्बादी की कहानी कह रहा है. सरकार को इसकी जांच कराकर दोषियों को दंडित करना चाहिए.'' नगर पंचायत मगहर के अधिशासी अधिकारी वैभव सिंह के मुताबिक, कार्यदायी संस्था ने अब तक कर्मचारियों को प्रशिक्षत नहीं किया है जिसके चलते यह शो नहीं चल पा रहा है.
योगी सरकार ने संत कबीर की विरासत को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने की बात कही थी. इसी मकसद से स्वदेश दर्शन योजना के तहत करीब 17.67 करोड़ रुपए की लागत से 20 प्रोजेक्ट शुरू किए गए. वाप्कोस कंस्ट्रक्शन कंपनी ने इन योजनाओं पर काम किया—कबीर चौरा परिसर में पार्कों का सौंदर्यीकरण, आमी घाट का पुनर्विकास, कैफेटेरिया, सार्वजनिक शौचालय, बाउंड्रीवॉल, कलरफुल फोकस लाइट, सोलर लाइट, साउंड ऐंड लाइट शो, व्याख्यान और प्रदर्शनी हॉल, 10 दुकानों, कबीर तलैया घाट, म्यूजिकल फव्वारे और हरित क्षेत्र के निर्माण जैसे काम किए गए. कागजों पर यह सब सुनने में भव्य लगता है, लेकिन जमीन पर नजारा कुछ और है. परियोजनाएं पूरी हुईं, मगर सुरक्षा के इंतजाम अधूरे हैं.
कार्यदायी संस्था को पूरे परिसर की सुरक्षा के लिए मजबूत बाउंड्रीवॉल बनानी थी, लेकिन धोबी घाट और नगर पंचायत कार्यालय की ओर जाने वाले रास्ते पर यह दीवार अधूरी पड़ी है. खुले रास्ते से लोग और मवेशी परिसर में घुस आते हैं. कई जगह तो स्टील की रेलिंग ही उखाड़ ली गई है. मगहर नगर पंचायत की चेयरपर्सन अनवरी बेगम कहती हैं, ''निर्वाण स्थली परिसर कुछ ही दिन पहले नगर पंचायत को हैंडओवर किया गया है. सुरक्षा के लिए सिर्फ दो गार्ड मिले हैं, जबकि जरूरत कम से कम पांच की है.
हमने जिला प्रशासन से तीन और चौकीदारों की तैनाती की मांग की है.'' इस बीच, परिसर में बनी दुकानों की हालत भी बदहाल है. पर्यटकों को खाने-पीने की सुविधा देने के लिए जो दुकानें बनाई गईं, उनका आवंटन महीनों से अटका है. नतीजा यह कि स्थानीय ठेलेवाले फुटपाथ पर दुकानें लगाकर गुजर-बसर कर रहे हैं. दुकानों का आवंटन अगर समय पर होता, तो न तो यह अव्यवस्था फैलती और न ही पर्यटकों की परेशानी बढ़ती. परिसर की सोलर लाइटें भी ज्यादातर खराब हैं. शाम होते ही पूरा क्षेत्र अंधेरे में डूब जाता है. स्थानीय लोगों का कहना है कि कबीर की निर्वाण स्थली में लगे साज-सज्जा के सामान और धातु संरचनाएं अराजक तत्वों के निशाने पर हैं. कबीर शोध संस्थान के सामने बने 'ताना-बाना हाल' में लगे विद्युत उपकरण चोरी हो चुके हैं, और उद्यान विभाग की नर्सरी में लगी लोहे की ग्रिलें भी उखाड़ ली गई हैं.
संत कबीर के नाम पर बना यह पूरा पर्यटन कॉरिडोर अब कागजी चमक का उदाहरण बन गया है. योजनाओं की मंशा नेक थी, पर क्रियान्वयन लचर रहा. सरकारी कामकाज की रफ्तार और स्थानीय प्रशासन की उदासीनता ने मिलकर एक ऐतिहासिक स्थल को लावारिस स्थिति में पहुंचा दिया है.
सिर्फ परिसर ही नहीं, बल्कि मगहर की पहचान रही आमी नदी भी बदहाली की मिसाल बन गई है. यह वही नदी है, जिसके किनारे मगहर में कबीर ने अपने अंतिम दिन बिताए. करीब 103 किलोमीटर लंबी यह नदी सिद्धार्थनगर के सिकहरा कोहड़ा गांव से निकलती है और बस्ती, संत कबीर नगर होते हुए गोरखपुर में राप्ती नदी में मिलती है. इसका नाम 'आमी' इसलिए पड़ा क्योंकि कहा जाता है, कभी इसका पानी आम जैसा मीठा था. आज वही नदी दुर्गंध से भरी है. मगहर के बुजुर्ग बताते हैं कि पहले नदी के किनारे तीर्थ और स्नान का माहौल होता था, लेकिन अब लोग आचमन तक करने से डरते हैं. फैक्ट्रियों का केमिकलयुक्त पानी इसमें गिर रहा है, जिससे यह नदी मरती जा रही है.
कबीर चौरा धाम के महंत विचार दास कहते हैं, ''सात साल पहले जब प्रधानमंत्री मोदी संत कबीर नगर आए थे, तब आमी नदी को पुनर्जीवित करने की योजना बनी थी. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने खुद कहा था कि नदी की खुदाई कर उसे अविरल बनाया जाएगा. उस वक्त लोगों में उम्मीद जगी थी कि अब नदी का कायाकल्प होगा. लेकिन प्रधानमंत्री का कार्यक्रम खत्म होते ही मशीनें और मजदूर चले गए. उसके बाद न काम हुआ, न निगरानी.'' वहीं जिलाधिकारी आलोक कुमार के अनुसार, ''आमी नदी के पुनरुद्धार के लिए कार्ययोजना तैयार की जा रही है. प्रस्ताव जल्द शासन को भेजा जाएगा. साथ ही नदी के घाट को भी पर्यटकों के लिए विकसित किया जाएगा.''
लेकिन स्थानीय लोगों को लगता है, प्रस्ताव और योजनाएं फिर से कागजों में सिमट जाएंगी. पर्यटकों के लिए मगहर में कबीर चौरा परिसर पहुंचना भी टेढ़ी खीर साबित होता है. स्थानीय निवासी राम सिंह बताते हैं, ''बस्ती- गोरखपुर हाइवे से मगहर में कबीर चौरा धाम तक 3 किलोमीटर से अधिक की दूरी लोगों को पैदल तय करनी पड़ती है. हाइवे से कबीर धाम आने के लिए कोई व्यवस्था नहीं है.''
कबीर की विचारधारा ने समाज को अंधविश्वास और आडंबर से बाहर निकलने की राह दिखाई. मगर उनकी निर्वाण स्थली खुद प्रशासन के ढुलमुल रवैये के बोझ तले दबी है. कबीर की निर्वाण स्थली दुनिया के लिए प्रेम, सद्भाव और मानवता का प्रतीक बन सकती थी, पर अभी बदइंतजामी और उपेक्षा का प्रतीक बन गई है. कबीर ने कहा था: ''माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रोंदे मोहि. एक दिन ऐसा आएगा, मैं रोंदूंगी तोहि.'' शायद यही बात आज मगहर की धरती भी कहना चाहती है कि विकास के नाम पर अगर उसे यूं ही अनदेखा किया गया, इतिहास इस लापरवाही को जरूर याद रखेगा.