भुवनेश्वर 2.0 प्रोजेक्ट देश के दूसरे शहरों के लिए एक मॉडल क्यों बताया जा रहा है?

भुवनेश्वर 2.0 का मंसूबा कामयाब रहा तो यह दूसरे भारतीय शहरों के लिए मॉडल बन सकता है.

भुवनेश्वर 2.0 प्रोजेक्ट की तस्वीर

जब भी भारत के आधुनिक शहरी नियोजन की बात होती है, तो सबसे ज्यादा कसीदे कार्बूजिए के शहर चंडीगढ़ के पढ़े जाते हैं. मगर जब आधुनिक भुवनेश्वर का निर्माण हुआ तब चंडीगढ़ निराकार विचार भर था.

1948 में ओडिशा की राजधानी जर्मन वास्तुकार ओटो कोनिग्सबर्गर के चौड़े रास्तों, बगीचों और पार्कों से भरे शहर में बदल चुकी थी. लेकिन आठ दशकों के बेतरतीब विकास ने हमेशा की तरह सब चौपट कर दिया.

लिहाजा पुराने शहर के बाहरी छोर पर भुवनेश्वर 2.0 का मंसूबा बनाया जा रहा है, और यह ऐसी परियोजना है जो बाकी भारत के लिए मॉडल बन सकती है, बशर्ते सरकारी मंसूबों की मानें, यानी असहमत आवाजों को नजरअंदाज कर दें. 

तो औपचारिक खाका क्या है? इरादा तो बढ़िया है. 324 हेक्टेयर से ज्यादा में बन रहे नए शहर में महज इमारतें और सड़कें नहीं होंगी. इसका मकसद नवाचार, पारिस्थितिकी और समावेश का सही किस्म का 'स्मार्ट' मेल तैयार करना है. इस तरह कि इसमें प्रकृति और आधुनिकता का संतुलन हो, जहां 182.05 हेक्टेयर जमीन विकास योग्य होगी और चारों तरफ 48.18 हेक्टेयर सीमित विकास क्षेत्र और 92.30 हेक्टेयर रिजर्व फॉरेस्ट होगा. एक 'जन मार्ग' (पीपुल्स स्ट्रीट) की कल्पना कीजिए, जिसमें यहां-वहां कैफे, बीच में हरे-भरे नजारे, छायादार लेन में साइकिल चलाते लोग, और जंगल के किनारे पगडंडियां दिखाई देती हों.

नवाचार का प्राथमिक स्थल वह है जहां माइस या एमआइसीई यानी बैठकों, प्रोत्साहनों, सम्मेलनों और प्रदर्शनियों के आयोजन की सुविधा, आइटी कैंपस और रिसर्च हब होंगे. दूसरे स्थल पर आवास, खुदरा बाजार और मौज-मस्ती की जगहें होंगी. ग्रीन हब या हरित क्षेत्र में ईको-रिजॉर्ट, स्टेकेशन और छुट्टी मनाने की जगह, साथ ही जंगल से गुजरती पगडंडियां होंगी. पूरे इलाके का करीब 47 फीसद हिस्सा हरा और खुला रहेगा.

शहर में महज 60,000 लोगों के रहने की सुविधा का इरादा है, यानी प्रति हेक्टेयर 200 लोग, जबकि इससे 1,00,000 से ज्यादा नौकरियों का सृजन होगा. हाल में तेजी से उभरे और वर्गीय भेदभाव से ग्रस्त शहरों के विपरीत इसके 16,000 घरों में से चौथाई सस्ते होंगे. सिंगापुर की फर्म सुबर्ना जुरोंग विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार करेगी.

कुल 1.04 करोड़ वर्ग फुट आवास, 65 लाख वर्ग फुट वाणिज्यिक क्षेत्र और 24 लाख वर्ग फुट एमआइसीई इन्फ्रास्ट्रक्चर पर करीब 8,179 करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान है. दिशार्निदेशों पर अभी दस्तखत होने बाकी हैं, लेकिन लागत तीन पक्षों में बंटने की योजना है. केंद्र 25 फीसद, राज्य 25 फीसद और 50 फीसद निजी निवेशक लगाएंगे जिन्हें ओडिशा आकर्षक प्रावधानों से लुभाने वाला है.

एक वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं, ''अगर हॉस्पिटैलिटी या बिजनेस निवेश आता है, तो जमीन पर क्रॉस-सब्सिडी दी जा सकती है. इरादा यह है कि मूल बुनियादी ढांचे यानी सड़क, प्रकाश व्यवस्था और सुविधाओं का निर्माण सरकार करे और निजी साझेदार रखरखाव और सेवाओं की जिम्मेदारी लें. इस तरह शहर का न केवल निर्माण होगा बल्कि वह खुद को बनाए रख सकेगा.'' ओडिशा मंत्रिमंडल ने परियोजना में पांच साल के दौरान धन लगाने को मंजूरी देकर इसके पहले चरण की नींव रख दी है.

भुवनेश्वर 2.0 प्लान में एक मॉडल की तस्वीर

नाभिनाल के रिश्ते
आवास और शहरी विकास की प्रिंसिपल सेक्रेटरी उषा पाढ़ी का कहना है कि नए शहर के अनुपूरक के तौर पर पुराने शहर का भी पुनर्विकास किया जाएगा. वे कहती हैं, ''भुवनेश्वर शहर विरासत संजोए है. हमें इसे लेकर बहुत सावधान रहना होगा. हर शहर बढ़ता है—ज्यादा लोग, ज्यादा वाणिज्य, ज्यादा आवाजाही. समस्याओं के आने से पहले समाधान की योजना बनाना बेहतर है.'' एक योजना रेलवे स्टेशन के इर्द-गिर्द व्यावसायिक केंद्र विकसित करने का है.

यह सब कागज पर बेहद खूबसूरत जान पड़ता है. लेकिन मौजूदा व्यवस्था से छेड़छाड़ होना तय है. शहरी नियोजक पीयूष रंजन राउत कहते हैं, ''प्रस्तावित शहर यहां के बेहद अहम हरित क्षेत्र चंदका वन की सरहद पर बनेगा. भारत का पहला नियोजित शहर भुवनेश्वर प्रकृति के साथ सहअस्तित्व को ध्यान में रखकर बनाया गया था. इस परियोजना से वह सामंजस्य खतरे में पड़ सकता है.''

इससे एक बुनियादी सवाल खड़ा होता है. ''दुनिया भर में इंचियोन या पुत्रजया सरीखे नए शहर कभी महत्वाकांक्षा के प्रतीक थे, लेकिन अक्सर वे मौजूदा शहरी समस्याओं से आंख चुराने का सबब बन गए, जैसा कि मिस्र और इंडोनेशिया की नई राजधानियों में भी देखा गया. भुवनेश्वर के लिए सवाल यह है: क्या यह वाकई संतृप्ति पर पहुंच गया है, या हम इसके पुनरुद्धार को अनदेखा कर रहे हैं?'' कोनिग्सबर्गर ने भी पुरानी जगह पर काम किया था. इस तरह 2000 साल के अतीत से घिरा यह शहर अपने भविष्य को लेकर विचारमग्न है.

खास बातें

> इस नए शहर में एक इनोवेशन हब, समावेशी हाउसिंग, 47 फीसद हरित क्षेत्र होंगे.

> 8,179 करोड़ रुपए की परियोजना में केंद्र और राज्य 25-25 फीसद देंगे, बाकी 50 फीसद निजी निवेशक लगाएंगे.

Read more!