पंजाब: तरनतारन में कैसे पहचान और आस्था की लड़ाई जीतने में कामयाब हुई AAP?
साल 2024 में कट्टरपंथी अमृतपाल के जीते लोकसभा क्षेत्र में एक विधानसभा सीट पर उपचुनाव सत्ताधारी पार्टी के लिए इम्तिहान था, जिसमें AAP पास हो गया है

वैसे तो यह बस एक और विधानसभा उपचुनाव है मगर तरनतारन के लिए यह अपनी पहचान और आस्था का सवाल बना हुआ था. आम आदमी पार्टी (आप) उम्मीदवार हरमीत सिंह संधू के रंग-बिरंगे पोस्टरों के पास से गुजरती युवा स्कूल शिक्षिका राजविंदर कौर ने कहा, ''हम विकास चाहते हैं—सड़कें, स्कूल, साफ पानी. मगर उन लोगों को नजरअंदाज नहीं कर सकते जो हमारे समुदाय और आस्था की बात करते हैं.''
कुछ ही दूर स्थित गलियों में पगड़ी पहने बुजुर्ग वाहे गुरुजी का खालसा की हुंकार भर रहे थे और युवा स्वयंसेवक पंथिक एकजुटता के आह्वान वाले पर्चे बांट रहे थे. पास में लहराते शिरोमणि अकाली दल (शिअद) के केसरिया और नीले झंडे कभी इन्हीं आदर्शों का आह्वान करते रहे होंगे. तरनतारन विधानसभा क्षेत्र खडूर साहिब लोकसभा सीट का हिस्सा है. यह वही लोकसभा क्षेत्र है जो 2024 के आम चुनाव में सुर्खियों में रहा था.
खालिस्तान समर्थक अमृतपाल सिंह ने राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत दर्ज मामले के कारण सलाखों के पीछे होने के बावजूद यहां से जीत हासिल की थी. अब इस उपचुनाव का परिणाम आ गया है. AAP को जीत हासिल हुई है. AAP के उम्मीदवार हरमीत सिंह संधू ने 12,091 वोटों के अंतर से जीत दर्ज कर ली है. लेकिन, जानते हैं कि कैसे इस सीट पर चुनाव आस्था और पहचान के सवाल पर हुआ है.
चुनाव से इंडिया टुडे की ओर से यहां ग्राउंड रिपोर्ट किया गया था, जिसे नीचे पढ़ सकते हैं. इससे यह समझने में मदद मिलेगी कि कैसे यहां आप ने बढ़त बनाई.
पंथिक दबदबा
तीनों उम्मीदवार जीत के लिए पंथिक राग के सहारे हैं. अकाली दल से लाए गए आप उम्मीदवार संधू तीन बार विधायक रह चुके हैं. सुखबीर बादल की पार्टी की उम्मीदवार पूर्व स्कूल प्रिंसिपल सुखविंदर कौर रंधावा 1984 के सैन्य विद्रोह में शामिल सैनिक, जिन्हें आमतौर पर 'धर्मी फौजी' कहते हैं, की पत्नी हैं. उनकी राजनीति किसी से छिपी नहीं है—उन्होंने 2024 में अमृतपाल का समर्थन किया था. मैदान में एक और खिलाड़ी हैं—मनदीप सिंह, जिन्हें अमृतपाल के 'वारिस पंजाब दे' का समर्थन है.
साल 2024 के चुनाव में करीब दो लाख वोटों के अंतर से अमृतपाल की जीत ने इतना तो बता दिया कि खडूर साहिब की प्राथमिकताएं क्या हैं. तरनतारन ने 2022 में पेशे से डॉक्टर कश्मीर सिंह सोहल को चुना था. मगर जून 2025 में उनके असामयिक निधन के कारण ही यहां उपचुनाव की नौबत आई है.
तरनतारन के 1.7 लाख मतदाताओं में 78 फीसद ग्रामीण हैं. इसकी करीब 65 फीसद सिख समुदाय वाली आबादी का दलित-सिख वर्ग हार-जीत में निर्णायक भूमिका निभाता है. आप ने 2022 में 48 फीसद वोट हासिल किए, जिससे शिअद का वोट शेयर घटकर 16 फीसद रह गया. मगर नौकरशाही की सुस्ती और कानून-व्यवस्था से जुड़ी चिंताओं ने लोगों के बीच आप के प्रभाव को घटाया ही है.
ग्रामीण जाट सिखों और दलितों के बीच मजबूत पैठ रखने वाली कांग्रेस तरनतारन उपचुनाव को अपनी वापसी का मौका मान रही है. मगर शहरी हिंदू और ग्रामीण दलित वोट भाजपा की तरफ खिसकना इसकी सबसे बड़ी चुनौती है. बहरहाल, जीत किसकी होगी, यह तो मतदान के तीन दिन बाद 14 नवंबर को ही पता चलेगा.
पंजाब धीरे-धीरे 2027 के विधानसभा चुनाव के लिए तैयार हो रहा है. यह उपचुनाव इस नैरेटिव को और धार देगा कि पंथिक वोट पर किसका कब्जा है. शिअद नए सिरे से अपनी जमीन वापस पाने की मशक्कत में जुटा है. कट्टरपंथियों को भी उपचुनाव से काफी उम्मीदें हैं. मनदीप की दावेदारी इसकी मिसाल है. उसके भाई संदीप सिंह पर 2023 में अमृतसर में हिंदू कार्यकर्ता सुधीर सूरी की हत्या करने का आरोप है. सितंबर में वह फिर सुर्खियों में था, और इस बार पटियाला जेल में एक पूर्व पुलिसकर्मी की हत्या तथा दो अन्य को घायल करने का आरोप लगा. ये सभी 1993 में तरनतारन क्षेत्र में फर्जी मुठभेड़ों के आरोपी थे और उसी जेल में बंद थे.
सिख यूथ फेडरेशन (भिंडरांवाले) के प्रमुख रंजीत सिंह दमदमी टकसाल ने कथित तौर पर मनदीप को चुनाव लड़ने को राजी किया था. 'वारिस पंजाब दे' ने भी उनका समर्थन किया. मारे गए और जेल में बंद सिख आतंकवादियों की तस्वीरों वाले दुस्साहिक अभियान ने कट्टरपंथियों के एक समूह को सक्रिय कर दिया है. तो क्या मनदीप का विधायक बनना तय माना जाए? अगर तरनतारन ने ऐसा ही चाहा तो.
खास बातें
> तरनतारन में 11 नवंबर को होने वाले उपचुनाव में पारंपरिक दलों के मुकाबले कट्टरपंथी भी खड़े हैं.
> अमृतपाल का 'वारिस पंजाब दे' जेल में बंद एक सिख उग्रवादी के भाई का समर्थन कर रहा है.
> अकाली दल अपनी पुरानी जमीन पाने की कोशिश में है, पर उसे आस्था-आधारित नैरेटिव से चुनौती मिल रही.
> आप की उम्मीद एक पूर्व अकाली नेता पर टिकी है, जबकि कांग्रेस अपना आधार बचाने की कोशिश में.