ओडिशा: पुलिस भर्ती घोटाले में शामिल अपराधियों के गिरोह का कैसे हुआ खुलासा?
ओडिशा पुलिस भर्ती घोटाले ने विभिन्न राज्यों में फैले आपराधिक गिरोहों और सरकारी मिलीभगत को उजागर किया है

तीन लग्जरी बसें और उसमें 117 लोग सवार, मंजिल विजयनगरम. किसी को भनक भी नहीं लगती अगर गुप्त सूचना न मिलती. 30 सितंबर को जब इस काफिले को ओडिशा-आंध्र प्रदेश सीमा पर रोका गया तो खुलासों का ऐसा सिलसिला शुरू हुआ कि सब हैरान रह गए.
दिनभर की पूछताछ के बाद पता चला कि उनमें 114 यात्री सब-इंस्पेक्टर पद के अभ्यर्थी थे और वे 5-6 अक्तूबर को ओडिशा पुलिस भर्ती बोर्ड (ओपीआरबी) की ओर से आयोजित परीक्षा देने जा रहे थे. बाकी तीन बिचौलिए थे.
यह पूरा समूह लीक हुए प्रश्नपत्रों पर आधारित ''स्पेशल कोचिंग'' शिविर में जा रहा था. प्रत्येक अभ्यर्थी ने कथित रूप से 25 लाख रुपए देने पर सहमति जताई थी. उसमें 10 लाख रुपए पहले और बाकी नौकरी मिलने के बाद देने थे.
बिचौलिए समेत सभी 117 लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया. विस्तृत जांच शुरू हुई तो यह स्पष्ट हो गया कि उस दिन बरहमपुर पुलिस के हाथ जो लगा, वह एक बड़े भर्ती रैकेट की केवल एक कड़ी थी. इस सुव्यवस्थित साजिश में विभिन्न राज्यों में फैले आपराधिक गिरोह और सरकारी तंत्र में गहरी पैठ रखने वाले लोग शामिल थे. इस परीक्षा में कुल 933 पदों के लिए 1,53,000 से ज्यादा आवेदक हैं और ऐसे में यह फर्जीवाड़ा ओडिशा के इतिहास का अब तक का सबसे बड़ा भर्ती घोटाला साबित हो सकता है.
इस मामले की जांच अब ओडिशा पुलिस क्राइम ब्रांच कर रही है. इसने भर्ती प्रक्रिया से जुड़े निजी ठेकेदारों और उप-ठेकेदारों के उलझे हुए नेटवर्क का खुलासा किया है, जबकि उस प्रक्रिया को पूरी तरह राज्य-नियंत्रित और सुरक्षित होना चाहिए था. ओपीआरबी केवल तीन सदस्यों और कुछ कर्मचारियों वाला छोटा निकाय है. इसने परीक्षा के तकनीकी कार्यों को दूरसंचार मंत्रालय के अधीन एक केंद्रीय सरकारी उपक्रम, आइटीआइ लिमिटेड को आउटसोर्स किया था.
आइटीआइ ने आगे यह काम निजी कंपनी सिलिकॉन टेकलैब को सौंपा. टेकलैब ने भी फिर कुछ प्रमुख कार्य भुवनेश्वर की एक अन्य कंपनी, पंचसॉफ्ट टेक्नोलॉजीज को दे दिए. आउटसोर्सिंग की इस शृंखला में अहम जिम्मेदारियां निजी संस्थानों के हाथों में छोड़ दीं. भुवनेश्वर के सिलिकॉन टेकलैब और पंचसॉफ्ट दोनों के दफ्तर अब सील कर दिए गए हैं.
मिलीभगत का गहरा जाल
इस मामले का मुख्य आरोपी पंचसॉफ्ट का प्रमोटर शंकर प्रुस्टी फिलहाल फरार है. क्राइम ब्रांच ने उसके और कई अन्य लोगों के खिलाफ लुकआउट नोटिस जारी किया है तथा ओडिशा, झारखंड और बिहार में छापेमारी कर रही है. जांचकर्ताओं का मानना है कि प्रुस्टी ने अपनी पत्नी के नाम से काम करते हुए पहले भी एक अन्य कंपनी केदारनाथ टेक्नोलॉजीज के जरिए इसी तरह के फर्जीवाड़े किए थे. पुलिस महानिदेशक वाइ.बी. खुरानिया को सौंपी गई खुफिया रिपोर्ट में पहले ही चेतावनी दी गई थी कि कुछ वरिष्ठ पुलिस अधिकारी इन निजी कंपनियों के दफ्तरों में बार-बार जाते देखे गए थे. रिपोर्ट में आगाह किया गया था कि इतनी संवेदनशील परीक्षा को आउटसोर्स करते समय जरूरी सतर्कता पूरी तरह से नजरअंदाज की गई.
पुलिस जांच में खुलासा हुआ कि इस गिरोह ने पश्चिम बंगाल के दीघा में भी 100 से ज्यादा अभ्यर्थियों के लिए वैसी ही स्पेशल कोचिंग के नाम पर होटल कमरे बुक किए थे. वैसे, विजयनगरम जा रही बसों के पकड़े जाने के बाद उनमें से कोई नहीं पहुंचा. माना जा रहा है कि इस रैकेट ने तकरीबन 500 अभ्यर्थियों से संपर्क साधा था और 15-25 लाख रुपए तक की रिश्वत लेकर लीक प्रश्नपत्र मुहैया कराने का वादा किया था. इसमें कथित रूप से बिचौलियों, ट्रांसपोर्टरों और कई राज्यों में सक्रिय आदतन अपराधियों का नेटवर्क शामिल था.
इस धांधली के मुख्य साजिशकर्ताओं में खल्लीकोट के प्रदीप सेठी का नाम सामने आया है. वह पहले भी ओडिशा शिक्षक पात्रता परीक्षा (ओटीईटी) में धांधली के आरोप में हिरासत में रह चुका है. गिरफ्तार अभ्यर्थियों में से कई के भुवनेश्वर के बाणिक कोचिंग सेंटर से जुड़े होने का पता चलने पर वहां छापा मारा गया. मगर सेंटर के प्रबंध निदेशक सुब्रत छत्तोई ने फर्जीवाड़े में किसी भी तरह की भागीदारी से इनकार किया और पुलिस को पूरा सहयोग देने का आश्वासन दिया. क्राइम ब्रांच के मुताबिक, कई प्रमुख आरोपी अब भी फरार हैं. वैसे अब तक 123 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है.
भारी नाराजगी
इस घोटाले की वजह से राज्यभर में लोगों में भारी आक्रोश है. सैकड़ों अभ्यर्थियों ने इंसाफ की मांग करते हुए सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन किया. उसके बाद ओपीआरबी ने वादा किया है कि वह परीक्षा अब जांच पूरी होने के बाद पारदर्शी तरीके से आयोजित की जाएगी. फिलहाल उसे अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया है. मगर जनता का भरोसा पूरी तरह टूट चुका है. पिछले साल भी इसी तरह का विरोध भड़का उठा था, जब ओडिशा सबऑर्डिनेट स्टाफ सेलेक्शन कमेटी ने राजस्व निरीक्षक और दूसरे पदों की भर्ती निजी एजेंसियों को सौंप दी थी.
उम्मीद के मुताबिक, विपक्षी दलों ने भी सरकार पर हमला बोला है. बीजू जनता दल (बीजद) ने आरोप लगाया कि इस घोटाले में प्रभावशाली लोग शामिल हैं और भाजपा नेतृत्व वाली सरकार दोषियों को बचा रही है. उसने सीबीआइ जांच की मांग की है. वहीं, कांग्रेस ने न्यायालय की निगरानी में जांच की मांग उठाई है. मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी ने कहा है कि इस धांधली के विभिन्न राज्यों से जुड़े होने की वजह से इसकी जांच सीबीआइ को सौंप दी जाएगी. ऐसे में अब केंद्रीय एजेंसी अपनी विशेष जांच क्षमताओं के साथ जांच में उतरेगी, मगर असल इम्तिहान पारदर्शिता और जवाबदेही से जुड़े असहज सवालों के समाधान की है.
खास बातें
> ओडिशा पुलिस भर्ती परीक्षा घोटाले ने बिचौलियों और निजी ठेकेदारों के व्यापक पेपर लीक नेटवर्क को उजागर किया.
> भर्ती घोटाले में सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत ने पूरे राज्य में विरोध और सियासी तूफान खड़ा कर दिया.