ऑपरेशन शटरडाउन से कैसे बेपर्दा हुई राजस्थान सरकार?

यह कोई साइबर थ्रिलर कहानी नहीं, बल्कि उस डिजिटल इंडिया का सच है जहां सरकारी योजनाओं के धन पर साइबर ठगों ने लगाम कस रखी थी और किसी को भनक भी नहीं लग पाई

छापे के दौरान ठगों के कागजात खंगालते पुलिस वाले

अक्तूबर की 22 तारीख को रात तीन बजे का वक्त और जगह राजस्थान के झालावाड़ का पुलिस अधीक्षक कार्यालय. पुलिस के 300 से ज्यादा जवान सादी वर्दी में ऑफिस के बाहर जमा थे. 40 अलग-अलग टीमों में बांटे गए इन जवानों में से किसी को मालूम नहीं था कि इतनी देर रात उन्हें यहां क्यों बुलाया गया है.

करीब 10 मिनट बाद झालावाड़ के पुलिस अधीक्षक अमित कुमार जवानों के बीच आकर उनसे मुखातिब हुए, ''आप सब एक महत्वपूर्ण अभियान का हिस्सा बनने जा रहे हैं जो आने वाले कई साल तक पुलिस का इकबाल बुलंद करेगा. यह अभियान क्या है और आपको क्या करना है, यह सब आपको  छापा (रेड) डालने से पांच मिनट पहले बता दिया जाएगा.''

इसके बाद सभी 40 टीमों के लीडर्स को खाकी रंग का एक सील बंद लिफाफा थमा दिया गया और हिदायत दी गई कि इस लिफाफे को लोकेशन पर पहुंचकर ही खोलना है. लोकेशन आपके ग्रुप में शेयर कर दी गई है. करीब साढ़े तीन बजे पुलिस की 40 गाड़ियां अलग-अलग दिशाओं में निकल पड़ीं. इस अभियान को कवर करने के लिए इंडिया टुडे की एक टीम भवानीमंडी पुलिस उपाधीक्षक प्रेम कुमार के साथ निकल चुकी थी और एक टीम पुलिस अधीक्षक कार्यालय में बनाए गए कंट्रोल रूम में मौजूद थी.

सुबह 5 बजकर 50 मिनट पर जब सभी टीमें बताई गई लोकेशन पर पहुंच गईं तब पुलिस अधीक्षक अमित कुमार ने सभी टीम लीडर्स को व्हाट्सऐप ग्रुप कॉल के जरिए लिफाफा खोलने को कहा. इसमें कौन-सी टीम को किस व्यक्ति के घर पर छापा मारना है और वहां से क्या-क्या चीजें बरामद करनी हैं, इन सबका पूरा विवरण था. इसके बाद करीब दो घंटे तक कंट्रोल रूम में गहमा-गहमी का माहौल रहा.

हर सेकंड किसी न किसी टीम के मोबाइल फोन की घंटी बज रही थी. कंट्रोल रूम को पुलिस टीमों की हर गतिविधि की पल-पल की खबर मिल रही थी. इसी दौरान एक जगह से सूचना मिली कि किसी आरोपी के घरवालों ने पुलिस टीम पर पथराव कर दिया है. सूचना मिलने के साथ ही वहां से सबसे नजदीकी पुलिस की रिजर्व टीम को मौके पर पहुंचने के निर्देश दिए गए. छापे की कार्रवाई में भाग ले रही 40 टीमों के अलावा पुलिस की 30 रिजर्व टीमें भी बनाई गई थीं.

इन रिजर्व टीमों को किसी भी आपातस्थिति से निबटने के लिए ऐक्शन मोड पर रखा गया था. पुलिस को झालावाड़ जिले के मनोहरथाना तहसील के पहाड़पुर गांव में बिहारी गोयल नाम के एक साइबर ठग की लोकेशन मिली थी जो ई-मित्र के जरिए सरकारी योजनाओं का पैसा निजी खातों में ट्रांसफर करता था. सुबह 6 बजकर 5 मिनट पर पुलिस टीम ने बिहारी के घर पर दस्तक दी. पुलिस को देखते ही बिहारी पूरा माजरा समझ चुका था. इसके बाद बिहारी के घर और ई-मित्र की तलाशी का अभियान शुरू हुआ. इस छापे में पुलिस को 100 से ज्यादा लोगों के आधार कार्ड, आधा दर्जन बैंकों की पास बुक और एक हजार से ज्यादा बैंक खातों की डिटेल मिलीं.

ठगों को गिरफ्तार करने के बाद एसपी अमित कुमार अपनी टीम के साथ

करीब 8 बजे तक हर टीम अपनी कार्रवाई को अंजाम दे चुकी थी और तब तक यह भी खुलासा हो चुका था कि झालावाड़ पुलिस के इस अभियान का नाम था—ऑपरेशन शटरडाउन, जिसमें देश में पहली बार सरकारी योजनाओं में की जा रही ठगी को बेनकाब किया गया है. झालावाड़ पुलिस की अब तक की जांच में यह सामने आया है कि राजस्थान, पंजाब, दिल्ली, गुजरात, मध्य प्रदेश, मणिपुर और असम समेत 15 राज्यों के पटवारी से लेकर जिला कलेक्टर स्तर तक के अधिकारियों की सरकारी आइडी और पासवर्ड हैक कर प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि, विकलांग, वृद्धावस्था और विधवा पेंशन जैसी सामाजिक सुरक्षा तथा लोक कल्याणकारी योजनाओं के अरबों रुपए फर्जी लाभार्थियों और अपात्र लोगों के खातों में भेज दिए गए.

पुलिस ने राजस्थान, दिल्ली और पंजाब के 40 से ज्यादा साइबर ठगों और उनका साथ देने वाले सरकारी अधिकारियों को गिरफ्तार किया है. जिन कलेक्टरों की आइडी और पासवर्ड के जरिए यह सब फर्जीवाड़ा किया जा रहा था उनमें बाड़मेर की जिला कलेक्टर टीना डाबी भी शामिल हैं.

आंध्र प्रदेश के पीएम किसान सम्मान निधि पोर्टल के स्टेट नोडल की आइडी से लॉगइन किए गए पेज का भी स्क्रीनशॉट मिला है, जिसमें राज्य के अन्य कार्यकारी अधिकारियों की डिटेल्स एडिट, एक्टिवेट और डिएक्टिवेट करने की जानकारी है. देश के कई राज्यों के 1,256 कार्यकारी अधिकारियों की यूजर आइडी मिली है, जिनके जरिए यह पूरा गोरखधंधा चल रहा था.

इस खेल का मास्टर माइंड लईक खान है जो राजस्थान में प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के स्टेट नोडल ऑपरेटर के पद पर कार्यरत है. किसी को शक न हो, इसलिए वह स्कूटर से चलता था. उसके पिता पंचर की दुकान करते हैं. खान के पास गुजरात, असम, आंध्र प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश समेत कई राज्यों के करीब दो लाख लोगों का डेटा मिला है, जिनके खातों में सरकारी योजनाओं का पैसा भेजा जा रहा था. ठगी के इस खेल में कलेक्ट्रेट और कोषागार के कर्मचारी, बैंक एजेंट, वेब डेवलपर, ई-मित्र संचालक और डेटा हैंडलर भी शामिल हैं.

क्या है ऑपरेशन शटरडाउन
पिछले 8 अगस्त को झालावाड़ पुलिस को सुराग मिला कि मनोहरथाना तहसील के गोडिया गांव के मेवाती मोहल्ले में रहने वाला आशिक अली सरकारी योजनाओं का पैसा अपने खाते में डालकर भ्रष्टाचार कर रहा है. झालावाड़ के पुलिस अधीक्षक अमित कुमार के निर्देशन में साइबर मामलों के एक्सपर्ट रवि सैन और सुमित कुमार को इस मामले की जांच सौंपी गई. रवि और सुमित ने करीब डेढ़ महीने तक आरोपियों के मोबाइल कॉल डिटेल, बैंक खातों में हुए लेन-देन की जांच की तो सामने आया कि पीएम किसान सम्मान निधि, पेंशन और फसल मुआवजा जैसी योजनाओं का पैसा दिन में 20 से 25 बार ठगों और उनके परिजनों के अलग-अलग बैंक खातों में भेजा जा रहा है.

पुलिस के लिए सबसे चौंकाने वाला पहलू यह था कि यह पैसा विभिन्न जिलों के सरकारी कोषागारों (ट्रेजरी) के माध्यम से साइबर ठगों और अपात्र लोगों के खातों में भेजा जा रहा था. आमतौर पर किसी भी जिले के लाभार्थी को पैसा उसी जिले के कोषागार से भेजा जाता है मगर ठगों के खातों में 10-10 जिलों के कोषागारों से पैसा ट्रांसफर हो रहा था.

आशिक अली की कॉल रिकॉर्ड के आधार पर इस मामले के तार दौसा जिले के राजूलाल सैनी, रामअवतार सैनी, झालावाड़ के बिहारी गोयल, धीरप, सुनील कुमार साहू, महावीर पारेता, परमानंद मीणा, रामबाबू तंवर, राजू तंवर, शिवनारायण, चंद्रप्रकाश सुमन, बिट्ठल तंवर और रोडूलाल जैसे लोगों से जुड़े पाए गए. 22 अक्तूबर को ऑपरेशन शटरडाउन पार्ट-1 के जरिए पुलिस की 70 टीमों ने रामअवतार सैनी, आशिक अली, बिहारी गोयल जैसे 30 ठगों को गिरफ्तार किया. इनके पास मिले 70 मोबाइल फोन, 38 कंप्यूटर-लैपटॉप, 11,000 बैंक खातों की जांच की गई तो सामने आया कि इनके तार कई दूसरे राज्यों तक फैले हैं. इसी दौरान पुलिस को इस खेल के मास्टर माइंड खान की जानकारी मिली.

वह शाम को ऑफिस बंद होने के बाद विभिन्न जिलों के कलेक्टर, योजनाओं के कार्यकारी अधिकारियों, तहसीलदारों और पटवारियों की फर्जी आइडी तथा पासवर्ड जारी करके गिरोह से जुड़े निजी लोगों को बताता और सुबह ऑफिस खुलने से पहले ही उस आइडी को डिएक्टिवेट कर देता. सरकारी अधिकारियों की फर्जी आइडी और पासवर्ड मिलने के बाद गिरोह के सदस्य अपात्र लोगों के नाम लाभार्थियों की सूची में शामिल कर लेते और फर्जी लैंड सीडिंग (पटवारी-तहसीलदार स्तर पर किसान की जमीन का सत्यापन) कर इनके नाम विभिन्न जिलों की ट्रेजरी को भेज देते थे जहां से पैसा इनके खातों में भेज दिया जाता था. आइडी-पासवर्ड के इस्तेमाल के दौरान ओटीपी के लिए भी ठगों के ही नंबर इस्तेमाल किए जा रहे थे.

ठगों के पास से एक सूची ऐसी मिली है जिसमें एक ही मोबाइल नंबर से देश के कई राज्यों के 95 किसानों की फर्जी आइडी बनी हुई थी. इन फर्जी आइडी के जरिए राजस्थान, पंजाब, उत्तर प्रदेश, मणिपुर, असम, मध्य प्रदेश, गुजरात और उत्तराखंड तक के अपात्र लाभार्थियों को पात्र बनाकर सरकारी धन ट्रांसफर किया जा रहा था. हर एक्टिवेशन के साथ गिरोह को मोटी रकम मिलती थी और असली लाभार्थियों के हिस्से की किस्तें रास्ते में ही री-रूट की जा रही थीं. ठगी गिरोह से जुड़ा एक-एक व्यक्ति हजारों बैंक खातों का संचालन कर रहा था. बैंक खातों में जमा राशि को तुरंत यूपीआइ, एटीएम और नेट बैंकिंग के जरिए निकाल लिया जाता था और एजेंटों के माध्यम से यह राशि गिरोह के सरगनाओं तक पहुंचा दी जाती थी. दीपावली से दो दिन पहले ही रामअवतार सैनी झालावाड़ से 95 लाख रुपए की रकम लेकर दौसा गया था. 

ऑपरेशन शटरडाउन पार्ट-2 के तहत झालावाड़ पुलिस ने खान के साथ ही दिल्ली के सुभाष, पंजाब के सुनंत, संदीप और रोहित कुमार और भरतपुर के मोहम्मद शाहिद को गिरफ्तार किया. सुभाष और शाहिद उत्तराखंड और दूसरे राज्यों के बड़ी संख्या में अपात्र लोगों की फर्जी लैंड सीडिंग तैयार करके गिरोह के सरगनाओं को देते थे. रोहित और संदीप सरकारी पोर्टल की क्लोन वेबसाइट तैयार कर अपात्र लोगों के इनऐक्टिव अकाउंट ऐक्टिव करते थे, जिससे उनके खातों में सरकारी योजनाओं का पैसा ट्रांसफर होने लगता. ये लोग लाभार्थियों का नाम जोड़ने के लिए ऐसे लोगों का चयन करते जिन्हें केवाइसी लंबित होने या अन्य किसी कारण पीएम किसान सम्मान निधि, पेंशन और फसल मुआवजे जैसी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाया था. ऐसे लोगों के नाम का इस्तेमाल कर उनकी फर्जी लैंड सीडिंग तथा केवाइसी कर खुद के या किराए के बैंक खातों में पैसा ट्रांसफर कर दिया जाता था.

ऐसे चल रही थी साइबर सरकार
पुलिस जांच में खुलासा हुआ कि साइबर अपराधी समानांतर सरकार चला रहे थे. पुलिस को पीएम किसान सम्मान निधि पोर्टल के केंद्रीय नोडल, स्टेट नोडल और जिला नोडल की लिस्ट मिली है, जिसमें नोडल की आइडी, मोबाइल नंबर, ईमेल आइडी की डिटेल्स शामिल हैं. पुलिस को ठगों से पीएम किसान सम्मान निधि योजना के लाभार्थियों को एक्टिवेट और डिएक्टिवेट करने की एसओपी मिली है. आरोपियों के कब्जे से पीएम किसान सम्मान निधि पोर्टल का डेटा मिला है, जिसमें लाभार्थियों के नाम, आइडी, अकाउंट नंबर, मोबाइल नंबर, आधार नंबर अंकित हैं.

फर्जीवाड़े का सामान छापे के दौरान बड़ी संख्या में मिले लाभार्थियों के अकाउंट नंबर, आधार कार्ड, मोबाइल फोन नंबर

पुलिस जांच में अब तक गुजरात के करीब 2 लाख, असम के 40 हजार और राजस्थान के 55,000 लाभार्थियों का संदिग्ध डेटा तथा करीब 15,000 व्यक्तियों की आधार आइडी की सूची मिली है. पीएम किसान पोर्टल के डेटाबेस को एक्सेस करने का वीडियो, सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में जारी किए जाने वाले पेंशन पेमेंट ऑर्डर (पीपीओ) और अकाउंट डिटेल्स भी आरोपियों के पास से मिले हैं.
चिंता की बात यह है कि अगर दसवीं-बारहवीं पास ये ठग इन सरकारी योजनाओं के पोर्टल में छेड़छाड़ करके पैसा निकाल सकते हैं, तो बड़े हैकरों के सामने ये पोर्टल और जरूरतमंद नागरिकों का हक कितनी देर टिके रह सकते हैं.

ठगी का कई चरण
पीएम किसान सम्मान निधि, पेंशन और फसल मुआवजे को हड़पने के लिए ठग किस तरह के हथकंडे अपनाते थे, उसका एआइ चित्रण

पहला चरण 
पीएम किसान सम्मान निधि के स्टेट नोडल ऑफिस में ऑपरेटर का काम करने वाला लईक खान ऑफिस बंद होने के बाद नोडल अधिकारियों की फर्जी आइडी-पासवर्ड बनाकर गिरोह को उपलब्ध कराता था. पटवारी, तहसीलदार, कार्यकारी अधिकारी और जिला कलेक्टर तक की फर्जी आइडी खान ही तैयार करता था. 

दूसरा चरण
फर्जी आइडी-पासवर्ड मिलने के बाद शाहिद और सुभाष जैसे एजेंट विभिन्न राज्यों के अपात्र घोषित किए गए लोगों की फर्जी लैंड सीडिंग तैयार कर उन्हें पात्र घोषित करते. ओटीपी के लिए नंबर भी साइबर ठगों के ही इस्तेमाल किए जा रहे थे. 

तीसरा चरण
पीएम किसान सम्मान निधि, पेंशन पोर्टल जैसी सरकारी वेबसाइट सरीखी ही क्लोन वेबसाइट तैयार कर उसमें पात्र घोषित किए गए लोगों के नाम और बैंक अकाउंट की डिटेल की जानकारी अपलोड की जाती थी.

चौथा चरण
जिला नोडल कार्यालयों में कार्यरत कर्मचारी इन्हीं फर्जी वेबसाइट के आधार पर पात्र लोगों की सूची ट्रेजरी कार्यालयों में भेज देते थे.

पांचवा चरण
ट्रेजरी कार्यालयों से साइबर ठगों द्वारा अपलोड किए गए लोगों के बैंक खातों में पीएम किसान सम्मान निधि, पेंशन और फसल मुआवजा जैसी सरकारी योजनाओं का पैसा डीबीटी के तहत ट्रांसफर कर दिया जाता.

छठा चरण
किराए के खातों में ट्रांसफर होने के बाद एटीएम, नेट बैंकिंग और यूपीआइ के जरिए पैसा निकाल लिया जाता था और बाद में यह पैसा गिरोह के सरगनाओं तक पहुंचा दिया जाता. फर्जीवाड़े में साथ देने वाले ई-मित्र संचालक, खाता किराए पर देने वाले और स्टेट व जिला नोडल ऑफिस के कर्मचारियों को उनका कमिशन दे दिया जाता.

ठगों की कुंडली

रामवतार सैनी: दौसा जिले की बांदीकुई तहसील का रामवतार 8 साल पहले तक गली-गली घूमकर गन्ने का जूस बेचा करता था. लईक खान और शाहिद के संपर्क में आने के बाद उसने दो साल में ही करोड़ों रुपए कमा डाले. पांच साल पहले कच्चे घर में रहने वाला रामवतार अब आलीशान बंगले और कई लग्जरी गाड़ियों का मालिक बन चुका था. बंगले में सरकारी धन अपात्र लोगों के खातों में भेजने के लिए 10 से ज्यादा कंप्यूटर और लैपटॉप और रुपए गिनने की मशीन जैसे सेटअप लगा रखे थे. बंगले का मुख्य द्वार किंगर स्कैनर के जरिए खुलता था. 

लईक खान: जयपुर के किशनपोल का रहने वाला लईक खान ठगी गिरोह का मास्टर माइंड है मगर इतना पैसा कमाने के बाद भी वह स्कूटर पर चलता है. आरएससीआइटी जैसा कंप्यूटर का सामान्य कोर्स करने के बाद खान 2015 में राजस्थान सचिवालय के आयोजना विभाग में महज 10 हजार रुपए महीना वेतन पर संविदा पर काम करने लगा था. इसके बाद उसने वित्त विभाग में काम किया और वहां से संपर्क बनाकर पीएम किसान सम्मान निधि योजना की स्टेट नोडल टीम से जुड़ गया. पंजाब और राजस्थान के साइबर ठगों के साथ मिलकर वह पटवारी से लेकर कलेक्टर तक की फर्जी आइडी व पासवर्ड बनाने लगा.

रमेश विश्नोई: महज 12वीं कक्षा तक पढ़ा लिखा रमेश विश्नोई 2018 में शिक्षा विभाग में बाबू के पद पर भर्ती हुआ था. 2023 में वह जिला कलेक्ट्रेट कार्यालय फलौदी में डेपुटेशन पर काम करने लगा. इसी दौरान वह लईक खान के संपर्क में आया और अधिकारियों की फर्जी आइडी और पासवर्ड के जरिए अपात्र लोगों के नाम सरकारी योजनाओं में शामिल करने लगा.

शाहिद खान: भरतपुर का रहने वाला शाहिद खान पिछले छह साल से भूमि विकास बैंक में संविदा के आधार पर काम कर रहा था. किसानों को ऋण दिलाने और उनकी समस्याओं के समाधान के लिए वह 100-200 रुपए की राशि लेता था. शिकायतें मिलने के बाद जनवरी 2025 में उसे भूमि विकास बैंक की नौकरी से हटा दिया गया. इसके बाद वह लईक के संपर्क में आया. वह लईक और उनकी टीम को उन किसानों की सूची देता था, जिनके नाम से केवाइसी पेंडिंग होने के कारण उन्हें अपात्र घोषित किया गया है. ऐसे किसानों की केवाइसी और लैंड सीडिंग कर वह उनके नाम पात्र लोगों की सूची में शामिल कर लेता था.  

झालावाड़ के पुलिस अधीक्षक अमित कुमार ने कहा, ''सरकारी खातों में सेंधमारी की यह अब तक की सबसे बड़ी ठगी है. अब तक तीन लाख से ज्यादा अपात्र लोगों को करोड़ों रुपए ट्रांसफर किए जाने का खुलासा हो चुका है.''

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