तमिलनाडु: जाति आधारित सड़कों के नाम बदलने पर क्यों मचा बवाल?
तमिलनाडु में स्टालिन सरकार ने सभी सार्वजनिक स्थलों से जाति आधारित नामों को हटाने का आदेश दिया, मगर आलोचक इसमें पक्षपात का रोना रो रहे हैं

भारत में नाम बदलने का चलन अमूमन अलग रहा है, मगर तमिलनाडु इसे बदलने के लिए पूरी तरह तैयार है. पेरियार के स्वाभिमान आंदोलन की शताब्दी मना रहा राज्य गौरव के पुराने प्रतीकों को मिटा रहा है. सभी जिलों में सड़कों, मुहल्लों, जलाशयों और आम स्थानों के जाति-आधारित नाम हटा दिए जाएंगे.
अक्तूबर के एक आदेश के अनुसार, हर नगर निकाय और पंचायत अपने अधिकार क्षेत्र के आम स्थलों की जांच करेगी, जातिगत नाम वाले स्थलों की पहचान करेगी और उन्हें बदलेगी. नए नाम जाति-निरपेक्ष और तमिल कवियों, फूलों, स्थानीय प्रतीकों या ऐतिहासिक रूप से अहम शख्सियतों पर आधारित होंगे.
पेरियारवादी पहल
इसकी समय सीमा से संकेत मिलता है कि राज्य बेहद गंभीर है: स्थानीय निकायों को पहले जाति से जुड़े नामों की सूची तैयार करनी है, फिर लोगों से सुझाव और आपत्तियां मांगनी है, औपचारिक अधिसूचना जारी करनी है, और फिर अंतिम रूप से चुने नामों को नवंबर के मध्य तक राज्य सरकार को भेजना होगा. इस पूरी प्रक्रिया को 19 नवंबर तक पूरा करना है. सिर्फ राजधानी में ही ग्रेटर चेन्नै कॉर्पोरेशन ने करीब 3,400 सड़कों के जाति-आधारित नामों को बदलने की योजना बनाई है. उनकी जगह जातिमुक्त नाम या उपयुक्त नाम नहीं तय होने पर बिना जाति जताए नाम के प्रारंभिक अक्षरों का इस्तेमाल किया जाएगा.
साल 1929 में चेंगलपट्टू में पेरियार की अगुआई में आयोजित स्वाभिमान सम्मेलन में पारित एक प्रस्ताव में लोगों से अपने नामों से जाति और समुदाय की पहचान वाले टाइटलों यानि उपनामों को हटाने की अपील की गई थी. उस ऐतिहासिक पल की याद दिलाता यह प्रतीकात्मक सुधार महत्वाकांक्षी तो है मगर विवादों से अछूता नहीं. अन्नाद्रमुक नेता एडप्पाडी के. पलानीस्वामी ने आरोप लगाया है कि द्रमुक सरकार पक्षपातपूर्ण स्मृतियों को गढ़ने की कोशिश कर रही है, खासकर वह स्टालिन के पिता और पूर्व द्रमुक मुख्यमंत्री एम. करुणानिधि को प्राथमिकता दे रही है.
'परिवार-प्रेम'
ईपीएस का आरोप है कि सरकार करुणानिधि को बढ़ावा दे रही है, जबकि अन्नाद्रमुक के दिग्गज नेता एम.जी. रामचंद्रन और जयललिता समेत कई अन्य शख्सियतों को दरकिनार कर रही है. उन्होंने वादा किया कि अगर उनकी पार्टी सत्ता में आएगी तो नाम बदलने के आदेश को रद्द कर दिया जाएगा. भाजपा के के. अन्नामलै ने भी दोनों पूर्व मुख्यमंत्रियों को राज्य की 'आइकन' सूची से बाहर रखने की आलोचना की है. सुझाए गए विकल्पों की मौजूदा सूची में 16 समाज सुधारकों और साहित्यिक शख्सियतों के नाम हैं. सूची में आखिरी नाम कलैनार है जो करुणानिधि की लोकप्रिय उपाधि है. उन्हें साहित्यिक शख्सियत माना जाता था और द्रविड़ आंदोलन में उनकी अहम भूमिका थी.
वित्त मंत्री थांगम थेन्नारसु ने पलानीस्वामी पर सामाजिक रूप से प्रगतिशील पहल को सियासत से जोड़ने का आरोप लगाया है. उन्होंने साफ किया कि सरकार के आदेश में सूचीबद्ध नाम सिर्फ सुझाव हैं, अनिवार्य नहीं, ताकि स्थानीय विकल्पों की जगह बनी रहे.
कोयंबत्तूर का जी.डी नायडू एलिवेटेड एक्सप्रेसवे विवाद का एक और मुद्दा है. उसका उद्घाटन इसी साल हुआ है. आलोचकों का कहना है कि इसका सरनेम यानी उपनाम नाम बदलने की पहल के विपरीत है. मगर थेन्नारसु कहते हैं कि नायडू एक महान वैज्ञानिक और कोयंबत्तूर के निवासी थे, और जनता में उनकी स्मृति को बनाए रखने के लिए उनके पूरे नाम को शामिल रखना बेहद जरूरी है.
विश्लेषकों का मानना है कि असल परीक्षा यह है कि विभिन्न समुदाय इस कवायद में कितनी भागीदारी करते हैं. क्या नए नाम वाकई स्थानीय सामाजिक ऊंच-नीच को चुनौती देंगे, नाम-पता पर आधारित लांछन को कम करेंगे, और सामाजिक पहचान को नए सिरे से पारिभाषित करेंगे? या यह सब महज प्रतीकात्मक ही रहेगा?
खास बातें
> सभी सड़कों, मोहल्लों, जलाशयों के नाम को 19 नवंबर तक जातिगत पहचान से मुक्त कर लिया जाना है.
> विरोधी इसे करुणानिधि के नाम को आगे बढ़ाने और एमजीआर तथा जयललिता के नाम को दरकिनार करने की कवायद बता रहे.