झारखंड से कहां गायब हो रहे हैं बच्चे?
झारखंड में ऐसे कई परिवार हैं जिनके लड़के-लड़कियां निजी प्लेसमेंट एजेंसियों या बाहर काम दिलाने वाले कथित एजेंटों के बहकावे में आकर अपने परिवार से दूर हुए और अब वे कहां हैं, किसी को पता नहीं

झारखंड के खूंटी जिले के कर्रा प्रखंड के रोन्हे गांव की सुष्मिता देवी की छोटी बहन बीते सात साल से गायब है. सुष्मिता बताती हैं, ''जानकी देवी नाम की महिला मेरी बड़ी बहन को लेकर 2015 में दिल्ली गई. वहां किसी के यहां दाई के काम पर लगा दिया. काम के दौरान ही वह जल गई. फिर वह मेरी छोटी बहन को बोली कि ''चलो तुम्हारी बहन जल गई, उसके साथ रहना.'' वह जो गई, आज तक उसका पता नहीं चला.
जानकी देवी पहले जेल में थी, अब कहां है, पता नहीं. थक-हार कर सुष्मिता ने बीते मार्च में पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई. मदद के बदले पुलिस ने कहा कि ''तुम लोग खुद भेज देती हो, बाद में हमें परेशान करने आती हो.'' यह बताते हुए वे फफक पड़ीं, ''बेटी का पता लगाते-लगाते मेरी मां तीन साल पहले मर गई. वह जहां भी है, बहुत टॉर्चर हो रही होगी.''
रांची के नामकुम में मोबाइल रिपेयरिंग की दुकान चलाने वाले सत्यवीर कुमार की 17 साल की बेटी भी बीते जून से गायब है. वे कहते हैं, ''नदी, नाला, रिश्तेदार सब जगह पता कर लिया, कहीं नहीं मिली. पुलिस भी मदद नहीं कर रही. इंतजार कर रहे हैं और जी रहे हैं.'' झारखंड में साल 2024 में कुल 282 लोग तस्करी के शिकार हुए. उनमें 18 साल से कम उम्र के 163 लड़के, 53 लड़कियां शामिल हैं. 2025 में अप्रैल तक कुल 64 नाबालिग तस्करी के शिकार हो चुके हैं.
रांची से 415 किमी दूर साहेबगंज जिले के श्रीरामपुर गांव की ठकराइन सोरेन बीते 9 साल से लापता है. उसके पिता मर चुके हैं. मां एक पुरानी फोटो के सहारे बेटी के लौटने का इंतजार कर रही हैं. ठकराइन के पड़ोस में रह रहे हृदय सोरेन की एक बेटी लुक्खी सोरेन भी इतने ही समय से गायब है. पश्चिमी सिंहभूम जिले के मंदरू भेंगरा का भतीजा माकी भेंगरा 20 साल पहले मात्र 8 साल की उम्र में गायब हो गया. उसके मां-पिता दोनों इंतजार में मर गए. ठकराइन, हृदय और मंदरू जैसे लोग तो पुलिस शिकायत भी दर्ज नहीं करा पाते.
कैसे गायब हो रहे बच्चे
बीती 3 जुलाई को तमिलनाडु के सेलम रेलवे स्टेशन पर रेलवे पुलिस को नाबालिग बच्चियों का झुंड दिखा. उनमें पांच नाबालिग झारखंड की थीं. पूछताछ में उन्होंने बताया कि वे सब कॉफी बगान में काम करने आई हैं. उनमें से पश्चिम सिंहभूम जिले की एक लड़की एक लड़के के संपर्क में आकर गर्भवती हो गई थी और उसके शोषण और धमकी के डर से परिवार को बिना बताए घर से निकल गई. उसी जिले की 18 साल की एक अन्य लड़की अपने पति की प्रताड़ना और दिहाड़ी मजदूर पिता के तगादे से परेशान थी. वहीं, एक अन्य लड़की के कान में बड़ा-सा मांस का टुकड़ा लटक रहा था. क्या बीमारी थी, उसे पता नहीं था. जंगल की सूखी लकड़ी बेचकर गुजारा करने वाले उसके पिता इलाज कराने में सक्षम न थे. वह स्कूल में मजाक का पात्र बन गई थी.
ये सब एक स्थानीय दलाल के संपर्क में आईं, जिसने इन्हें सेलम में काम दिलाने का वादा किया. सबने परिवार को बिना बताए ट्रेन पकड़ी और सेलम पहुंच गईं. पुलिस ने उन्हें स्थानीय शेल्टर होम को सौंप दिया. बीते 9 सितंबर को उन सभी को वापस लाया गया है.
यूपी के निवासी और टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस के पासआउट रवींद्र कुमार एक प्रोजेक्ट के सिलसिले में झारखंड पुलिस के संपर्क में आए. वे पुलिस के सहयोग से इन लड़कियों को सेलम जाकर वापस ले आए. रवींद्र कहते हैं, ''पहले जहां रांची, खूंटी, गुमला जैसे जिलों के बच्चे निशाने पर थे, अब यह सब सिंहभूम और संथाल इलाके में शिफ्ट हो गया है. इस इलाके में पहाड़िया, संथाली आदिवासी लड़कियों का बाहर जाना और फिर वापस लौट कर नहीं आना, आम बात हो गई है.''
बाल मजदूर रह चुके बैद्यनाथ कुमार का दावा है कि अब तक उन्होंने 5,000 से ज्यादा बच्चों को सुरक्षित बरामद कराया है. वे कहते हैं, ''नाबालिगों के आधार में उम्र से छेड़छाड़ कर बालिग बता दिया जाता है. लड़कियां महज 2,000-4,000 रु. में बेच दी जाती हैं.''
साल 2016 में रघुबर दास सरकार में झारखंड निजी नियोजन अभिकरण और घरेलू कामगार अधिनियम बना, ताकि ऐसे दलालों और प्लेसमेंट एजेंसियों पर लगाम लग सके. मगर आलम देखिए कि दिल्ली की ब्रूमीज नामक कंपनी रांची में पोस्टर लगाकर दिल्ली में घरेलू काम का ऑफर दे रही है, जबकि वह घरेलू कामगार अधिनियम के तहत रजिस्टर्ड नहीं है. कंपनी की राजमनी देवी ने बताया कि कंपनी के जरिए लड़की चाहिए तो 35,000-40,000 रु. तक रजिस्ट्रेशन शुल्क लगेगा. वे यह भी कहती हैं कि कोई सीधे दलाल को 4,000 रु. देकर भी ऐसी लड़कियां ले सकता है, जिसमें वे मदद करेंगी.
सिस्टम से उम्मीद
ऐसे बच्चों की बरामदगी के लिए सुप्रीम कोर्ट में वाराणसी के गुड़िया स्वयंसेवी संस्थान ने एक पीआइएल दायर की. उस पर सुनवाई करते हुए बीते 24 सितंबर को कोर्ट ने कहा कि इसके लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय की देखरेख में एक साझा पोर्टल बनाना उचित होगा. कोर्ट ने देशभर के राज्यों से जिलावार गायब हुए बच्चों, लोगों के साल 2020 से अब तक के आंकड़े भी मांगे हैं. पेश किए गए आंकड़ों के मुताबिक, साल 2020 से 2025 तक देशभर में कुल 4,24,107 बच्चे गायब हुए. कुल छह रिमाइंडर भेजने के बाद भी झारखंड, पश्चिम बंगाल और नगालैंड ने आंकड़े उपबल्ध नहीं कराए हैं.