उत्तर प्रदेश : आजम खान के बसपा में जाने की चर्चा क्यों चल पड़ी?
समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता आजम खान जेल से बाहर आ गए हैं और अब उनकी राजनैतिक गतिविधियों पर सबकी नजरें टिक गई हैं

तेईस सितंबर की दोपहर 12 बजे के बाद जैसे ही आजम खान सीतापुर जेल से बाहर निकले, रामपुर से लेकर लखनऊ तक सियासी हलचल तेज हो गई. लगभग दो साल जेल में बिताने के बाद उनकी रिहाई को लेकर समाजवादी पार्टी (सपा) के कार्यकर्ता ''आजम खान जिंदाबाद'' और 'शेर आया, शेर आया' के नारे लगा रहे थे. लेकिन भीड़ और नारों के बीच आजम के चेहरे पर वही स्थायी संजीदगी और चुप्पी थी.
आजम, जिनका स्वागत उनके बेटे अब्दुल्ला और मुरादाबाद की सांसद रुचि वीरा सहित अन्य लोगों ने किया, अपने राजनैतिक भविष्य को लेकर चल रही अटकलों पर मीडिया को संबोधित करने के लिए कुछ देर रुके. उन्होंने कहा, ''जेल में किसी से मिलने या फोन करने की भी गुंजाइश नहीं थी, इसलिए मैं पूरी तरह से कटा हुआ था. मैं लगभग पांच साल से संपर्क से बाहर था. मुझे नहीं पता था कि बाहरी दुनिया में क्या हो रहा है.''
उनके इस बयान में राहत भी थी और गहरी कसक भी. सीतापुर से करीब सवा दो सौ किलोमीटर दूर रामपुर में, जो कभी 'आजम का किला' माना जाता था, उनकी वापसी को लेकर उत्सुकता साफ दिखी. सफेद कार में सवार आजम खान के स्वागत के लिए भारी भीड़ सुबह से ही डटी थी. इस भीड़ को चीरते हुए आजम खान शाम करीब साढ़े पांच बजे रामपुर के मुमताज पार्क मोहल्ले में अपने आवास पर पहुंचे.
समाजवादी पार्टी के संस्थापक सदस्य और तीन दशकों से इसके प्रमुख मुस्लिम चेहरा आजम का रामपुर की सियासत में लंबे समय तक दबदबा रहा है. वे शहर से 10 बार विधायक चुने गए. राज्यसभा और लोकसभा सदस्य भी रहे हैं. प्रदेश के नेता प्रतिपक्ष भी बने और चार बार सपा सरकार में कई विभागों में मंत्री रहे. उनकी पत्नी तजीन फातिमा भी राज्यसभा सदस्य रहने के साथ ही शहर से विधायक चुनीं गईं थीं.
बेटे अब्दुल्ला आजम दो बार स्वार-टांडा विधानसभा क्षेत्र से विधायक रहे, लेकिन दोनों बार उनकी विधायकी कोर्ट के आदेश से चली गई. पहली बार कम उम्र में चुनाव लड़ने तो दूसरी बार मुकदमे में सजा के कारण विधायकी गई. सपा के सबसे चर्चित मुस्लिम चेहरा आजम की कानूनी परेशानियां 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले एक अभद्र भाषा के मामले से शुरू हुईं थी. यह उनके खिलाफ शुरू किए गए शुरुआती मामलों में से एक था. आजम अक्तूबर, 2023 से जेल में थे.
सियासत के गलियारों में सबसे बड़ा सवाल यह है कि रिहाई के बाद आजम की भूमिका क्या होगी. समाजवादी पार्टी में कभी 'मुलायम के सिपहसालार' कहे जाने वाले नेता की हैसियत अब पहले जैसी नहीं रही. वर्ष 2017 के बाद से अखिलेश यादव पूरी तरह पार्टी की कमान संभाल चुके हैं. रामपुर लोकसभा और विधानसभा सीटें भी अब आजम परिवार के हाथ से निकल चुकी हैं. पिछले वर्ष जेल में रहते हुए उन्होंने इंडिया गठबंधन की आलोचना की थी और 'रामपुर की अनदेखी' का मुद्दा उठाया था. इससे पार्टी नेतृत्व के साथ उनके मतभेदों की अटकलें तेज हुईं.
सपा के भीतर भी माना जा रहा है कि आजम का राजनैतिक प्रभाव सीमित होता जा रहा है. मुरादाबाद के पूर्व सांसद एस.टी. हसन कहते हैं, ''मुसलमानों को सपा को वोट देने के लिए अब किसी चेहरे की जरूरत नहीं है. आजम का दौर बदल चुका है.'' हालांकि रामपुर में जरदोजी का काम करने वाले मोहम्मद शोएब कहते हैं, ''आजम खान के जेल जाने के बाद से यूपी की मुस्लिम राजनीति में एक शून्यता आ गई थी. जेल से लौटने के बाद वे इस कमी को भरेंगे. भाजपा सरकार ने आजम को सताया है जिससे पूरे मुस्लिम समाज में उनके प्रति सहानुभूति और स्वीकार्यता और बढ़ी है.''
सीतापुर जिला जेल में आजम से 26 जून को उनकी पत्नी तजीन फातिमा और बेटे अदीब की मुलाकात ने उत्तर प्रदेश में सियासी हलचल को बढ़ा दिया था. इसके बाद आजम और समाजवादी पार्टी के बीच रिश्तों को लेकर अटकलें लगने लगी थीं. इसकी वजह तजीन फातिमा के उस बयान को माना जा रहा था, जो उन्होंने सीतापुर जेल में आजम खां से मिलकर आने के बाद दिया था. जेल में पति से मिलने के बाद भावुक फातिमा ने संवाददाताओं से कहा था, ''हमें किसी से भी उम्मीद नहीं है.
अगर उम्मीद है तो सिर्फ अल्लाह से.'' इसके बाद से आजम परिवार के दूसरे दल का दामन थामने की अटकलें लगने लगी थीं. जेल से बाहर आने के अगले ही दिन 24 सितंबर को जब आजम से बसपा या किसी अन्य दल में जाने के कयास पर सवाल हुआ, तो उन्होंने तल्खी से कहा, ''हम चरित्रवान लोग हैं, बिकाऊ नहीं; यह हम पहले भी साबित कर चुके हैं.'' हालांकि, उनके तेवर और परिवार की तरफ से उठे बयान बताते हैं कि पार्टी नेतृत्व में उनका भरोसा पूरी तरह मजबूत नहीं है.
आजम के लिए अलग सियासी राह चुनना आसान नहीं होगा. वर्ष 2009 में मुलायम सिंह यादव और कल्याण सिंह के बीच बढ़ती सियासी नजदीकियों के विरोध में उन्होंने सपा छोड़ी थी, लेकिन वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव से पहले मुलायम सिंह यादव ने पूरी शान के साथ आजम खान की सपा में वापसी करवाई थी. इसके बाद से सपा में उनकी हनक बनी रही जो कि कई अंतर्विरोधों के बावजूद अभी भी कुछ कमी के साथ ही सही पर बरकरार है. वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव के बाद सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने आजम खान की पैरवी के चलते ही कांग्रेसी नेता और वकील कपिल सिब्बल को राज्यसभा भेजा था.
साथ ही सहारनपुर के शाहनवाज खान और सीतापुर जेल में बंद रहने के दौरान सहयोग करने वाले जसमीर अंसारी को भी आजम खान के कहने पर ही विधान परिषद सदस्य निर्वाचित करवाया था. इसके बाद 2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान अखिलेश यादव ने मुरादाबाद लोकसभा सीट से निवर्तमान सांसद एस. टी. हसन का टिकट काटकर आजम खान के साथ पारिवारिक रिश्ते रखने वाली रुचि वीरा को सपा का टिकट दिया था. राजनैतिक विश्लेषक मानते हैं कि मुस्लिम वोटर अभी भी सपा के साथ खड़ा है.
ऐसे में अगर आजम सपा से अलग राह चुनते हैं, तो उनके 'बी-टीम' बनने का खतरा होगा, जिसका उन्हें अंदाजा है. रामपुर में सपा के पूर्व जिलाध्यक्ष और आजम के करीबी वीरेंद्र गोयल कहते हैं, ''आजम खान समाजवादी विचारधारा को मानने वाले नेता हैं. वे किसी और पार्टी में तो नहीं जाएंगे लेकिन वे चूकने वाले नेता नहीं हैं.'' अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के सेवानिवृत्त प्रोफेसर और उर्दू एकेडमी के पूर्व निदेशक राहत अबरार बताते हैं, ''एएमयू की छात्र राजनीति में मैं आजम का जूनियर रहा हूं. उनकी अब तक की राजनैतिक स्टाइल से यह अंदाजा लगता है कि वे उसी पार्टी में रहना पसंद करते हैं जो उनके नखरे उठा सके.
उत्तर प्रदेश की मुस्लिम राजनीति इस वक्त ऐसे मोड़ पर खड़ी है जहां सपा प्रमुख अखिलेश यादव आजम को खोने का जोखिम नहीं उठा सकते. इसी ने सपा के भीतर आजम की अहमियत बरकरार रखी है.'' इसका संकेत अखिलेश यादव ने आजम की रिहाई पर यह कहते हुए दिया ''हर झूठ की एक उम्र होती है. सपा सरकार बनने पर आजम साहब के खिलाफ सभी झूठे मुकदमे वापस लिए जाएंगे.'' अखिलेश ने यह भी जोड़ा कि आजम अब भी समाजवादी आंदोलन के महत्वपूर्ण चेहरा हैं.
राजनैतिक समीकरण चाहे जिस तरह बदलें, इतना तय है कि आजम खान की रिहाई ने उत्तर प्रदेश की राजनीति को फिर से गर्मा दिया है. सीतापुर जेल से बाहर निकलते वक्त आजम खान ने मीर तकी मीर का शेर कहा था: ''पत्ता-पत्ता बूटा-बूटा हाल हमारा जाने है.'' शायद यही शेर आज उनकी राजनीति की मौजूदा स्थिति का सबसे सही बयान है.
अभी खत्म नहीं हुई मुश्किलें
सपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री आजम खान भले ही 23 सितंबर को जमानत पर जेल से बाहर आ गए हों, लेकिन उनकी कानूनी मुश्किलें खत्म होने का नाम नहीं ले रही हैं. उन पर दर्ज 111 मामलों में से 81 अब भी अदालतों में लंबित हैं. सबसे बड़ा विवाद रामपुर स्थित मौलाना अली जौहर विश्वविद्यालय से जुड़ा है, जहां 418.37 करोड़ रुपए की लागत से बनी 58 इमारतों में सरकारी धन के दुरुपयोग का आरोप है.
आयकर विभाग और ईडी की जांच में सामने आया कि आजम के मंत्री रहते पीडब्ल्यूडी, जल निगम और सीऐंडडीएस ने बिना औपचारिक आदेश के 106.56 करोड़ रुपए विश्वविद्यालय पर खर्च किए. इसमें सीवेज योजना, जल सुविधाएं, सड़कों और ट्रीटमेंट प्लांट जैसे काम शामिल हैं. भाजपा विधायक आकाश सक्सेना की शिकायत पर शुरू हुई जांच में ईडी ने मामले को पीएमएलए के तहत लिया है. फिलहाल संपत्ति की कुर्की नहीं हुई है, लेकिन एजेंसियों की पड़ताल से आजम की राह आसान नहीं दिखती.