तमिलनाडु: करूर भगदड़ के बाद संकट में विजय, कैसे इस घटना तय होगा उनका सियासी करियर?
करूर रैली में भगदड़ के कारण 41 लोगों की मौत की घटना ने तमिल सुपरस्टार विजय के सियासी करियर के शुरू होने के पहले ही उन्हें गहरा झटका दे दिया

साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता लेखक इमायम ने 2020 में प्रकाशित अपने उपन्यास वालगा वालगा का समापन एक भयावह दृश्य के साथ किया है—सैकड़ों महिलाएं, बच्चे और पार्टी कार्यकर्ता भूखे-प्यासे चिलचिलाती धूप में घंटों खड़े रहकर अपनी महान नेता का इंतजार कर रहे हैं और जैसे ही वे पहुंचती हैं, अफरा-तफरी मच जाती है. भीड़ के कारण लोग एक-दूसरे पर गिरने लगते हैं. अंत में सन्नाटे को चीरती हुई एक आवाज गूंजती है—''वालगा, वालगा... (अमर रहे, अमर रहे).''
यह कल्पित कहानी पिछले हफ्ते करूर की हकीकत बन गई, तमिल सुपरस्टार से नेता बने विजय की एक झलक पाने के लिए घंटों से इंतजार कर रहे उनके 41 प्रशंसक भगदड़ में मारे गए. 27 सितंबर को तमिलगा वेत्री कलगम (टीवीके) की तरफ से आयोजित रैली में सौ से ज्यादा लोग घायल हुए.
इस हादसे का कारण कोई बहुत रहस्यमय नहीं है. आयोजकों ने 10,000 लोगों की भीड़ की अनुमति ली थी लेकिन भगदड़ के बाद के अनुमान बताते हैं कि भीड़ की संख्या तीन गुना ज्यादा रही होगी. 5,000 से ज्यादा समर्थक तो विजय के पीछे नमक्कल से ही चल रहे थे, जहां उन्होंने अपना रोड शो शुरू किया था. हजारों समर्थक वेलुचामिपुरम पहुंचे, जहां उन्हें दोपहर में पहुंचना था.
उत्सुक प्रशंसक सुबह से ही जगह-जगह जमे थे. लेकिन रास्ते में कई बार रुकने के कारण विजय का काफिला छह घंटे देरी से शाम करीब 7 बजे करूर पहुंचा. तब तक लोगों को चिलचिलाती धूप में इंतजार करते लंबा समय बीत चुका था. जैसे ही लोगों को पता चला कि विजय वहां पहुंच चुके हैं तो उनको देखने के लिए वे पेड़ों और अस्थायी ढांचों पर चढ़ गए. विजय का काफिला जब तक पहुंचा, भीड़ के बढ़ते दबाव के कारण कुछ ढांचे ढहने से अफरा-तफरी और भगदड़ मच गई. अभिनेता को तुरंत बाद वहां से हटा दिया गया और तीन दिनों तक उनसे कोई संपर्क नहीं हो पाया.
रील से रियलिटी चेक तक
करूर भगदड़ से पहले विजय बड़ी सतर्कता के साथ अपनी राजनैतिक छवि गढ़ रहे थे. रणनीति थी: खुद को सत्तारूढ़ द्रविड़ मुनेत्र कलगम (द्रमुक) के विकल्प के तौर पर स्थापित करना और एक निर्णायक, जुझारू नेता वाली छवि बनाना. राजनैतिक विश्लेषक प्रियन श्रीनिवासन बताते हैं कि पिछले एक साल में विजय ने छह प्रमुख रैलियां कीं. अपने लक्षित मतदाताओं का खाका खींचा और ऐसा नैरेटिव गढ़ा जिससे पता चले कि उनकी पार्टी निश्चित तौर पर बढ़त की स्थिति में है. विपक्षी अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कलगम (अन्नाद्रमुक) गठबंधन अभी बिखरा हुआ है, इसलिए वे 2026 के विधानसभा चुनाव को अपनी नई पार्टी टीवीके और द्रमुक के बीच सीधी लड़ाई के तौर पर पेश करने की कोशिश कर रहे थे.
करूर भगदड़ ने उनकी सारी सोची-समझी रणनीति उलटकर रख दी. हादसे से पूर्व विजय की रैलियां द्रमुक और भाजपा पर तीखे प्रहार करने वाली होती थीं. वे खुद को दलगत राजनीति से ऊबे मतदाताओं के लिए एक विश्वसनीय विकल्प के तौर पर पेश करते थे. लेकिन जैसा मानवविज्ञानी राजन कुरैकृष्णन कहते हैं, तमिलनाडु पहले भी ऐसी पटकथा का गवाह रहा है.
राज्य का राजनैतिक इतिहास ऐसे कई सुपरस्टारों की मिसालों से भरा पड़ा है जो स्क्रीन के जादू को वोटों में बदलने में नाकाम रहे. शिवाजी गणेशन से लेकर कमल हासन और रजनीकांत तक, सब इसका एहसास कर चुके हैं कि वे रातोरात एम.जी. रामचंद्रन (एमजीआर) या जयललिता जैसी राजनैतिक लोकप्रियता हासिल नहीं कर सकते. कृष्णन के मुताबिक, ''तमिलनाडु में सामाजिक न्याय की अवधारणा सिनेमा में भी गहराई से व्याप्त रही हैं. एमजीआर ने द्रमुक में पार्टी नेता बनने, उससे अलग होने और अन्नाद्रमुक की स्थापना करके मुख्यमंत्री बनने तक के सफर के लिए जो राजनैतिक कौशल दिखाया, उसकी नकल कर पाना हर किसी के बस की बात नहीं.''
कृष्णन का मानना है कि विजय का प्रयास वास्तविकता के बजाए दिखावे पर ज्यादा टिका है. उनके मुताबिक, ''यह गलत धारणा है कि कोई जमीनी हकीकत को समझे बिना बुनियादी स्तर पर लोगों के साथ जुड़ाव के बगैर और पार्टी में नीचे से लेकर शीर्ष स्तर का ढांचा तैयार किए बिना ही अपनी स्टार छवि को भुनाकर सीधे सत्ता हथिया सकता है.'' उन्होंने यह भी कहा कि करूर त्रासदी ऐसी ही महत्वाकांक्षा में निहित जोखिमों को दर्शाती है. उनके मुताबिक, ''ऐसी बेबुनियाद, सत्तालोलुप राजनीति में विजय के प्रशंसक जैसे लोग ही बीच में फंसकर मुश्किलें उठाते हैं.''
त्रासदी को भुनाने की कोशिश
अब जबकि विधानसभा चुनाव में एक साल से भी कम का समय बचा है, हर राजनेता ने करूर की घटना पर नजरें गड़ा रखी हैं. भाजपा सांसद हेमा मालिनी के नेतृत्व में राज्य के बाहर से एनडीए सांसदों के एक प्रतिनिधिमंडल ने स्थानीय अधिकारियों और पीड़ित परिवारों से मुलाकात की. बाद में निष्पक्ष न्यायिक जांच की मांग करते हुए पूर्व अभिनेत्री ने कहा कि घटना के पीछ 'कुछ तो गड़बड़' जरूर है. इसने केंद्र की तरफ से गैर-भाजपा शासित राज्यों को 'निशाना' बनाने की राजनीति को तुरंत हवा दे दी. सत्तारूढ़ द्रमुक गठबंधन में शामिल विदुतलै चिरुतैगल काच्चि नेता तोल तिरुमावलवन ने भाजपा पर इस घटना का राजनैतिक फायदा उठाने की कोशिश करने का आरोप लगाया.
द्रमुक खुद खासी सतर्कता बरत रहा है क्योंकि उसे लग रहा है कि कहीं सुरक्षा-व्यवस्था को लेकर कुछ खामियां उस पर ही भारी न पड़ जाएं. खुद मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन करूर भगदड़ के पीड़ितों से मिलने पहुंचे. राज्य ने मृतकों के लिए 10-10 लाख रुपए के मुआवजे की घोषणा की और घटना की जांच के लिए हाइकोर्ट की सेवानिवृत्त न्यायाधीश अरुणा जगदीशन की अध्यक्षता में एक सदस्यीय न्यायिक आयोग का गठन भी कर दिया. सूत्रों का कहना है कि यह आयोग भीड़ नियंत्रण के उपायों, सुरक्षा प्रोटोकॉल और कार्यक्रम प्रबंधन में संभावित खामियों की जांच करेगा.
इन सबके बीच विजय खेमे की अव्यवस्था भी खुलकर सामने आई है. राजनैतिक विश्लेषक श्रीनिवासन कहते हैं, ''बात सिर्फ इतनी नहीं है कि करूर भगदड़ के बाद वे वहां से लापता क्यों हो गए, बल्कि पार्टी में अफरा-तफरी की स्थिति दिखी. उन्होंने एक नेता के तौर पर हादसे की जिम्मेदारी तक नहीं ली.'' आखिरकार, जब विजय सामने आए भी तो एक वीडियो संदेश के जरिए बयान दिया. उनके सुर में एक तल्खी झलक रही थी और उन्होंने घटना के पीछे एक सुनियोजित साजिश होने की ओर इशारा किया. उन्होंने सीधे तौर पर स्टालिन को चुनौती देते हुए कहा, ''यह करूर में ही क्यों हुआ? लोग सब देख रहे हैं. सचाई जल्द सामने आ जाएगी. बदला लेना है, तो मुझसे लो. मेरे साथियों को नुक्सान मत पहुंचाओ...जो करना है मेरे साथ करो.'' कुछ पर्यवेक्षकों का मानना है कि द्रमुक की अति-सतर्कता संभवत: उस पर भारी पड़ गई है क्योंकि उसने सहानुभूति की लहर के डर से स्टार के खिलाफ तुरंत कार्रवाई न करना ही बेहतर समझा था.
सख्त तेवर
टीवीके कार्यकर्ता पूर्व मंत्री और करूर में द्रमुक के कद्दावर नेता सेंथिल बालाजी को जोड़कर इस घटना के पीछे साजिश की आशंका जता रहे हैं. लेकिन सत्तारूढ़ दल ने इन दावों को दृढ़ता से खारिज कर दिया है. श्रीनिवासन के मुताबिक, यह विजय और टीवीके के आगे के रास्ते की तस्वीर उजागर करता है: ''वे द्रमुक का विरोध जारी रखेंगे...हो सकता है कि करूर की घटना उनकी आक्रामक तेवरों को और सख्त कर दे.''
हालांकि, टीवीके के निचले स्तर के पदाधिकारियों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज किए गए हैं और कुछ गिरफ्तारी भी हुई है लेकिन फिल्म अभिनेता का नाम एफआइआर में नहीं है. वैसे, विजय के वीडियो संदेश और साजिश के आरोपों के बाद सरकार ने भी सख्त तेवर अपना लिए हैं. 30 सितंबर को प्रेस कॉन्फ्रेंस में अतिरिक्त मुख्य सचिव पी. अमुधा और अन्य अधिकारियों ने सोशल मीडिया पर छाए आरोपों को झुठलाने के लिए बाकायदा वीडियो और तस्वीरों के साथ हादसे का पल-पल का ब्योरा दिया. अधिकारियों ने यह भी बताया कि पुलिस ने सुरक्षा कारणों से सात अन्य स्थलों को अस्वीकार करने के बाद वेलुचमिपुरम को रैली के लिए क्यों चुना. विजय के इस आरोप पर कि 'केवल करूर' में ही ऐसा क्यों हुआ, सरकार की तरफ से दावा किया गया कि टीवीके की रैलियों के कारण विल्लुपुरम में एक और मदुरै में भी दो लोगों की मौत हुई थी. अधिकारियों ने कहा कि कई लोग घायल भी हुए थे, और उन्होंने आयोजकों को इन दुर्घटनाओं के लिए जिम्मेदार ठहराया.
बहरहाल, टीवीके का संकट तमिलनाडु की अन्य पार्टियों के लिए सहारा बन सकता है. अन्नाद्रमुक के लिए विजय की पार्टी का सियासी परिदृश्य में उभरना एक दुधारी तलवार की तरह रहा है, जो द्रमुक विरोधी वोटों को झटक रही है. श्रीनिवासन कहते हैं, ''वे शायद मन ही मन खुश होंगे कि अच्छा हुआ विजय को यह झटका लगा.''
आक्रामक तेवरों के बावजूद क्या करूर त्रासदी विजय के लिए एक अहम मोड़ साबित होगी? युवा नेता इलयतलपति अपने वीडियो संदेशों में अपनी ताकत को दर्शा सकते हैं लेकिन ये सियासत का मैदान है, कोई तीन घंटे की फिल्म नहीं, जिसमें नायक पूरी जीवटता के साथ संघर्ष करता है और अंत में जीत भी हासिल करता है. अपनी खोई जमीन वापस पाने के लिए विजय को बयान वीर बनने के बजाए आत्ममंथन करने की ज्यादा जरूरत पड़ेगी.
विजय की भारी लोकप्रियता को देखते हुए तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन उन्हें घेरने से अब तक बचते रहे हैं. लेकिन उनका तल्ख और आरोप मढ़ने वाला बयान द्रमुक सरकार को कार्रवाई करने पर मजबूर कर सकता है.