बिहार: कैसे गरीबों को कर्ज के जाल में फंसा रही माइक्रोफाइनेंस कंपनियां?

बिहार की महिलाओं को सशक्त बनाने का दावा करने वाली माइक्रोफाइनेंस कंपनियों का कर्ज गरीबों के लिए जानलेवा साबित हो रहा

Bihar: Microfinance Companies
माइक्रोफाइनेंस कंपनियों से पीड़ित महिलाओं का सम्मेलन

पश्चिमी चंपारण जिले के बेलवा मांझी टोले में कई परिवारों ने माइक्रोफाइनेंस कंपनियों के कर्ज वसूली के दबाव की वजह से गांव छोड़ दिया था. उस टोले की सुनीता देवी इन कंपनियों की चर्चा सुनते ही तमतमाने लगीं. पास आकर दुखड़ा बयान करते हुए बोलीं, ''बहुत निरदयी होता है ई लोग."

हमरे दुआरे पर लहास पड़ा था, जमाई का. तभी किस्ती का पैसा लेने आ गया. हम कहते रहे, आज हम होस में नहीं हैं. आज छोड़ दीजिए. दुआरे पर लहास था, ऊ लोग भी देख रहा था, लेकिन नहीं के नहीं माना. बोलने लगा, आप लोगों को पकड़कर बेतिया थाना में ले चलेंगे. बेटी को उठाकर ले जाएंगे. आखिर किस्ती का पैसा लेकर गया. टोला के लोग चंदा करके उसको पैसा दिए, दु हजार आठ सौ मांग रहे थे, दु हजार दिए, तब गया.

सुनीता और उनके पति अजीत मांझी के परिवार के साथ पिछले साल हुई यह घटना आज भी बेलवा मांझी टोले के लोगों को उत्तेजित कर देती है. गोविंद माझी कहते हैं, ''हम लोग कभी इस तरह की परेशानी में नहीं पड़ते थे. कमाते-खाते थे. एक दिन कंपनी वाले आए और लोगों को लोभ देने लगे कि कर्जा ले लीजिए.

लोभ में कुछ लोग फंस गए और आज उनका जीवन तबाह है. 70-80 परिवार के इस टोले में आज 15-20 परिवार कर्जदार हो गया है. एजेंट आते हैं और उनको परेशान करते हैं, गाली भी देते हैं. आधा दर्जन से ज्यादा लोग गांव छोड़कर चले गए हैं. इनमें संत मांझी, उमेश मांझी, धेनु मांझी, दयाली पंडित, उघना मांझी शामिल हैं...’’

सुनीता अपने लोन का कार्ड दिखाती हैं. उस पर एलऐंडटी फाइनेंशियल सर्विसेज लिखा है. यह एक नॉन बैंकिंग फाइनेंशियल कंपनी है. यह ग्रामीण महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण के लिए उन्हें 16 से 23.5 फीसद सालाना की दर पर लोन देती है.
सुनीता की कहानी इससे बिल्कुल अलग है.

उन्होंने 40,000 रुपए का कर्ज लिया था. कंपनी ने लोन राशि में से 7,000 रुपए उनके और उनके पति अजीत मांझी का बीमा कराने के एवज में काट लिए. उन्हें सिर्फ 33,000 रुपए मिले. इन पैसों के बदले उन्हें अगले दो साल तक हर महीने 2,800 रुपए की रकम चुकानी है. कुल 67,200, यानी उन्हें जो पैसे मिले, उसके दोगुने से भी ज्यादा.

सुनीता की यह कहानी बिहार में महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण के नाम पर माइक्रोफाइनेंस कंपनियों के कारोबार की कड़वी सचाई है. इन कंपनियों की सेल्फ रेगुलेटरी संस्था सा-धन के मुताबिक, राज्य की 1.09 करोड़ महिलाओं ने 66 अलग-अलग कंपनियों से कर्ज लिया है. इन 1.09 करोड़ में से हरेक महिला के नाम पर औसतन 29,532 रुपए का कर्ज है. इसकी कुल राशि 2024 में 65,487 करोड़ रुपए पहुंच गई थी (देखें: माइक्रोफाइनेंस का कारोबार).

अपने माता-पिता की तस्वीर हाथ में लिए मनीषा पासवान

बिहार में इन कंपनियों के फलने-फूलने की वजह यह है कि ये तीन लाख रुपए सालाना से कम आय वाले परिवार को ही लोन दे सकती हैं और बिहार में ऐसे परिवारों की संख्या सबसे ज्यादा है. 2024 में आई जाति आधारित गणना की रिपोर्ट के मुताबिक राज्य के 81.80 फीसद परिवारों की औसत सालाना आय 2.40 लाख रुपए से भी कम है. ये कंपनियां बिना कुछ गिरवी रखे लोन देती हैं.

घर की कमजोर माली हालत और रोजी-रोजगार की अस्थिरता के कारण इनमें से ज्यादातर महिलाएं समय पर किस्त जमा नहीं करा पा रहीं. ऐसे में इन कंपनियों के एजेंट इन्हें बार-बार आकर परेशान और अपमानित करते हैं. उनके अपमान और धमकियों की वजह से कर्जदार परिवार के लोगों की खुदकुशी के मामले काफी बढ़ गए हैं.

माइक्रोफाइनेंस कंपनियों की वजह से खुदकुशी करने का कोई आधिकारिक आंकड़ा तो उपलब्ध नहीं मगर खबरों से अंदाजा लगता है कि पिछले डेढ़ साल में बिहार में कम-से-कम बीस लोगों ने इन कंपनियों के एजेंटों की प्रताड़ना से परेशान होकर जान दी है. इनमें कुछ मामले पुलिस के संज्ञान में आए हैं.

बिहार के पुलिस महानिदेशक विनय कुमार कहते हैं, ''जहां शिकायतें मिली हैं, पुलिस ने कार्रवाई भी की है लेकिन हमने इसे पैटर्न के रूप में नहीं देखा है.’’ उन्होंने यह भी कहा, ''हम इससे जुड़े सभी मामलों को एक साथ करवाकर ज्यादा संगठित तरीके से कार्रवाई करेंगे.’’ कुछ मामलों में परिवार ने इस डर से मामले को पुलिस तक पहुंचने नहीं दिया कि कहीं परिवार के लोग ही न फंसा दिए जाएं.

पश्चिमी चंपारण के बेलवा मांझी टोले से तकरीबन दो सौ किमी दूर मुजफ्फरपुर के मणिका गाजी गांव में 19 साल की मनीषा के माता-पिता गीता देवी और राजकिशोर पासवान ने 31 जनवरी, 2025 को एक साथ खुदकुशी कर ली. उन्होंने मनीषा की पढ़ाई के लिए एक माइक्रोफाइनेंस कंपनी से 50,000 रुपए का लोन लिया था. मनीषा की चाची वीणा देवी रुंधे गले से बताती हैं, ''उस रोज समूह वाले आए थे और कह रहे थे, पैसा दीजिए, नहीं तो घर की कुर्की-जब्ती करवा देंगे. एजेंट चला गया तो एक-एक करके दोनों फांसी लटक गए.’’

मुजफ्फरपुर में रहकर बिहार पुलिस की तैयारी करने वाली मनीषा अब गांव में भाई संजय कुमार के परिवार के साथ रहती है. इस घटना के बाद अब कर्ज का सारा दबाव संजय और उनकी पत्नी आरती पर आ गया है. आरती बताती हैं, ''अभी मेरे ऊपर महीना में 12,000 रुपया का किस्ती भरने का दबाव है. हम कहां से देंगे? मेहनत मजूरी करने वाले लोग हैं.’’ संजय और आरती के चेहरे पर अपने माता-पिता की खुदकुशी के साथ-साथ समय पर किस्त न चुका पाने और उसकी वजह से आने वाले वक्त में घटने वाली घटनाओं का खौफ भी नजर आता है.

इसी तरह मणिका गाजी के पास के गांव सकरा वाजिद में पिछले साल 3 मार्च को शिवनाथ दास और उनकी पत्नी भुखली देवी ने एक साथ खुदकुशी कर ली. इस घटना के तीसरे दिन वहां पहुंची ऐपवा (अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला एसोसिएशन) की राष्ट्रीय महासचिव मीना तिवारी कहती हैं, ''कर्ज भुखली देवी ने लिया था मगर एजेंट उनकी बहुओं को परेशान करते थे. एक बार आए तो बड़ी बहू की बकरी को खोलकर ले गए. दूसरी बार छोटी बहू के घर का सामान लेकर चले गए. ऐसे में शिवनाथ और भुखली इस त्रासदी को झेल नहीं पाए.’’

इसी तरह बांका में 16 नवंबर, 2024 को माइक्रोफाइनेंस कंपनियों के दवाब में एक परिवार के पांच लोगों ने सल्फास खाकर जान देने की कोशिश की, तीन लोगों की मौत हो गई. सारण जिले में एक वृद्ध दंपती ने पोती की शादी के लिए कर्ज लिया था, चुका नहीं पाए तो 6 जुलाई, 2024 को दोनों ने एक साथ खुदकुशी कर ली.

इस मामले में सबसे हालिया घटना 14 अगस्त, 2025 को पटना जिले के काब गांव में घटी. जब बेटी की शादी को लिए गए दो लाख रुपए के कर्ज की किस्तें चुका न पाने और एजेंट की बदसलूकी के चलते किसान सियाराम साव ने खुदकुशी कर ली. इस घटना के बाद वहां पहुंचे भाकपा-माले के विधायक संदीप सौरभ ने प्रतिरोध मार्च निकाला और माइक्रोफाइनेंस कंपनी के खिलाफ एफआइआर दर्ज कराने की मांग की.

भाकपा-माले और उसकी सहयोगी संस्था ऐपवा बिहार में माइक्रोफाइनेंस कंपनियों की ज्यादतियों के खिलाफ लगातार अभियान चला रही हैं. राज्य के विभिन्न जिलों में इसके खिलाफ धरने-प्रदर्शन करने के बाद 31 जुलाई, 2025 को राजधानी पटना में कर्ज मुक्ति महिला सम्मेलन का आयोजन किया, जिसमें राज्य भर से सैकड़ों महिलाएं अपनी शिकायतें लेकर पहुंचीं.

भारत में माइक्रोफाइनेंस के मकड़जाल का अध्ययन करने वाली अर्थशास्त्री कल्पना विल्सन ने इस मौके पर कहा, ''माइक्रोफाइनेंस के समर्थक कहते हैं, इससे महिलाएं आत्मनिर्भर होंगी, छोटा-मोटा व्यवसाय करेंगी. लेकिन हकीकत में रकम इतनी कम होती है कि इससे कोई व्यवसाय शुरू कर पाना संभव ही नहीं. इसके बदले यह कर्ज उन्हें ज्यादा गरीबी, डर और बेबसी में धकेल देता है. कई मामलों में ब्याज दर 50 फीसद तक पहुंच जाती है. वे ग्रुप लोन देते हैं और समूह की महिलाओं को एक दूसरे के खिलाफ खड़ा कर उन्हें कर्ज वसूली के टूल के तौर पर इस्तेमाल करते हैं.’’

मीना तिवारी कहती हैं, ''सच तो यह है कि महिलाएं रोजी-रोजगार के लिए कम, घरेलू मुसीबतों की वजह से ज्यादा कर्ज लेती हैं. कोविड के बाद बिहार में गरीबी भयानक रूप से सामने आई है. रोजगार की कमी है. ऐसे में बेरोजगार पति या बेटे का धंधा खड़ा करने के लिए भी महिलाएं कर्ज ले रही हैं. मगर अक्सर कर्ज चुका नहीं पातीं. फिर एजेंटों की दबिश, मानसिक और भावनात्मक प्रताड़ना का वही अंजाम होता है जो हम लगातार सुन रहे हैं.’’

इस त्रासदी के पीछे एक नाम बार-बार उभरता है: रिकवरी एजेंट. ऐसा लगता है जैसे एजेंट ही मुसीबत की असल वजह हैं. पर ऐसा है नहीं. पिछले छह महीने में तीन माइक्रोफाइनेंस कर्मियों ने भी काम के दबाव की वजह से खुदकुशी कर ली. उनमें से एक ने अपने आखिरी पत्र में कंपनी की कार्यशैली पर गंभीर सवाल उठाए. एक रिकवरी एजेंट नाम उजागर न करने की शर्त पर बताते हैं: ''मैं मूलत: ऐसे लोन का रिकवरी एजेंट हूं, जिसे कंपनी ने डूबा हुआ मान लिया है.

कंपनी की तरफ से महीने में 15,000 रुपए मिलते हैं और रोजाना 15 डिफॉल्टर ग्राहकों से कम से कम एक-एक हजार रुपए वसूलने का टारगेट रहता है. टारगेट पूरा न होने पर सीनियर हमसे बदसलूकी करते हैं.’’ वे कबूल करते हैं कि ''हम लोग ग्राहकों को डराते हैं, दबाव बनाते हैं. हमारे कुछ साथी बदतमीजी और गाली-गलौज भी करते हैं.’’ उनका कहना है कि मजबूरी उनसे यह सब करा रही है ''वरना यह काम करने की सबसे खराब जगह है.’’

मगर माइक्रोफाइनेंस कंपनियों से जुड़े लोग इन तमाम आरोपों से इनकार करते हैं. 26 अगस्त, 2025 को पटना में इन कंपनियों की एक और सेल्फ रेगुलेटरी संस्था माइक्रोफाइनेंस इंडस्ट्रीज (एमफिन) ने मीडिया को बताया कि माइक्रोफाइनेंस कंपनियों के खिलाफ जो भी आरोप लगाए जा रहे हैं, वे झूठे और भ्रामक हैं. एमफिन के निदेशक और मुख्य कार्यपालक अधिकारी आलोक मिश्र कहते हैं, ''मीडिया में माइक्रोफाइनेंस को लेकर छपने वाली खबरों में भ्रांतियां हैं.

जो संस्थाएं माइक्रोफाइनेंस नहीं हैं, रिजर्व बैंक से विनियमित नहीं हैं, उन्हें भी माइक्रोफाइनेंस कह दिया जाता है. हमने इनवेस्टिगेशन किया है कि हमारे खिलाफ जो भी खबरें आती हैं, उनमें दस में से नौ गलत होती हैं. कई बार हमसे लोन लेने वाले किसी प्राइवेट बैंक या गांव के किसी महाजन से भी लोन लेते हैं. परेशान वे उन्हें करते हैं और जवाबदेही हम पर डाल दी जाती है.’’

आलोक दावा करते हैं कि ''माइक्रोफाइनेंस कंपनियां कभी एजेंट नहीं रखतीं. उनका अपना स्टाफ होता है. महिलाओं का समूह बनाने और बैठक करने के लिए उनके पास कर्मी हैं और वे हर हक्रते बैठक करते हैं. फिर उन्हें एजेंट रखने की क्या जरूरत है. हां, अगर किसी जगह गलत व्यवहार हो गया हो तो उसकी बात मैं अस्वीकार नहीं करता. मगर इसकी वजह से लोग खुदकुशी नहीं करते.

बेलवा मांझी टोले की सुनीता देवी लोन के कागजात के साथ

इसके बावजूद अगर माइक्रोफाइनेंस कर्मियों से लोगों की कोई शिकायत हो तो हर लोन कार्ड पर बैंक का और हमारा नंबर होता है, वे शिकायत कर सकते हैं.’’ इसमें एमफिन ने अपना टोल फ्री शिकायत नंबर- 18001021080 भी जारी किया.
हालांकि जमीन पर उनकी बातें सच साबित नहीं होतीं. बेलवा मांझी टोले की सुनीता एलऐंडटी फाइनेंस के कागजात दिखाती हैं. मणिका गाजी और सकरा वाजिद में हुई खुदकुशी के मामले में कहीं किसी प्राइवेट बैंक या स्थानीय महाजन का नाम पीड़ित परिवार नहीं बताते. हर जगह माइक्रोफाइनेंस कंपनी का नाम ही बताया जाता है.

मीना तिवारी कहती हैं, ''दरअसल दिक्कत यह है कि इन माइक्रोफाइनेंस कंपनियों पर रिजर्व बैंक का कोई नियंत्रण नहीं है. उनकी गाइडलाइन लागू नहीं हो रही. यहां तक कि बिहार सरकार भी इनके लिए कोई रेगुलेटरी सिस्टम नहीं बना रही. बिहार में इतनी बड़ी संख्या में खुदकुशी और पलायन होने के बावजूद आज तक किसी कंपनी, उसके कर्मचारी या एजेंट पर एक भी मुकदमा दर्ज नहीं हुआ है. हमने मुख्यमंत्री और समाज कल्याण मंत्री को ज्ञापन दिया मगर कोई कार्रवाई नहीं हुई.’’

रिजर्व बैंक के क्षेत्रीय निदेशक इस बाबत किसी तरह का बयान देने के लिए अधिकृत नहीं हैं. केंद्रीय बैंक ने इन कंपनियों के कामकाज के लिए दिशानिर्देश बनाए हैं मगर इनका रेगुलेशन दो सेल्फ रेगुलेटरी संस्थाएं एमफिन और सा-धन करती हैं. रिजर्व बैंक ने लोन रिकवरी एजेंटों के लिए काफी सख्त नियम बनाए हैं. कंपनी को अपने एजेंटों की सूची अपने वेबसाइट पर रखनी है, उन्हें आइकार्ड और आधिकारिक पत्र देना है. ये एजेंट सुबह नौ बजे से पहले और शाम छह बजे के बाद कर्ज वसूली के लिए लोन लेने वालों के घर नहीं जा सकते. बिना सूचना नहीं जा सकते. अभद्र व्यवहार नहीं कर सकते.

इन कंपनियों की वजह से लगातार हो रही खुदकुशी और पलायन के आंकड़े भी बताते हैं कि महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण के नाम पर लोन बांटने वाली ये कंपनियां बिहार में नए जमाने के सूदखोर महाजनों की तरह व्यवहार करने लगी हैं. मीना कहती हैं, ''हम पूरे राज्य में महिलाओं के साथ हो रहे इस अत्याचार को लेकर संघर्षरत हैं और इस चुनाव में इसे राजनैतिक मुद्दा बनाने की तैयारी में हैं. हमारी मांग है कि इन महिलाओं का दो लाख रुपए तक का कर्ज माफ हो, हर पंचायत में सरकारी बैंक हो और दो प्रतिशत सालाना ब्याज की दर से दो लाख रुपए तक का कर्ज मिले.’’

इससे बेलवा मांझी टोले के मदन मांझी की बात का मर्म समझ आता है, ''सरकार कहती है कि हम गरीबों की मदद करते हैं. मगर जब हम सरकारी बैंक जाते हैं तो वहां कहा जाता है कि आपको यहां से लोन नहीं मिलेगा. तभी हम मजबूर होकर प्राइवेट कंपनी से लोन लेते हैं.’’

इसके बाद कर्ज का दुष्चक्र शुरू हो जाता है. ऐसा लगता है कि पुराने जमाने के महाजनों का दौर वापस आ गया है. और इस बार ज्यादा क्रूर तरीके से इसकी वापसी हुई है. इसने सांस्थानिक रूप ले लिया है.

बिहार में माइक्रोफाइनेंस का कारोबार
● माइक्रोफाइनेंस खातों की संख्या: 2.21 करोड़ (मार्च, 2024 तक). यह देश में सर्वाधिक. पिछले एक साल में इसमें 22.32 फीसद की बढ़ोतरी हुई.

● माइक्रोफाइनेंस कंपनियों से कर्ज लेने वालों की संक्चया. 1.09 करोड़. यह भी देश में सबसे ज्यादा. पिछले साल के मुकाबले इसमें 28.43 फीसद की बढ़ोतरी.

● माइक्रोफाइनेंस कंपनियों ने कर्ज दिया 65,487 करोड़ रुपए, जो देश में सर्वाधिक है और पिछले साल के मुकाबले इसमें 33 फीसद की बढ़ोतरी हुई.

● इन कंपनियों से बिहार के लोग औसतन 29,532 रुपए का कर्ज लेते हैं. इस मामले में यह देश में 13वें नंबर पर.

● बिहार में 66 माइक्रोफाइनेंस कंपनियां हैं. इस मामले में यह मध्य प्रदेश के साथ देश में तीसरे नंबर पर. तमिलनाडु में 78 और उत्तर प्रदेश में 74 कंपनियां हैं.

किस तरह परेशान करते हैं रिकवरी एजेंट

● बिना बताए लोन वसूली या किस्त की रकम लेने के लिए आ जाते हैं.
● किस्त की तारीख को ही पैसे लेने की जिद करते हैं, एक भी दिन की मोहलत आसानी से नहीं देते.
● कर्जदारों की परिस्थितियों को नहीं समझते. अगर दरवाजे पर लाश भी पड़ी हो तो भी वे पैसे लेने की जिद करते हैं.
● पैसे न देने पर धमकियां देते हैं.
● किस्त चुकाने में ज्यादा देर होने लगे तो घर पर ताला लगाने, सामान उठा लेने, पुलिस के पास ले जाने, घर के बच्चों या स्त्रियों को उठा लेने की धमकी देते हैं.
● कई दफा अपमानजनक व्यवहार की वजह से आहत होकर कर्जदार खुदकुशी करने जैसा कदम उठा लेते हैं.

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