सोने और चांदी की कीमतें रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंचने की क्या है असल वजह?

सोने और चांदी की कीमतें रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गई हैं. इससे संपत्ति और परंपरा के प्रतीक के रूप में इन धातुओं का आकर्षण फिर से उभरकर सामने आया है

सांकेतिक तस्वीर

भारत में इस त्योहारी सीजन में सिर्फ सोना ही नहीं चमक रहा, चांदी भी दमक रही है. हाल के हफ्तों में दोनों बहुमूल्य धातुओं की कीमतों में खासी तेजी आई है. इस कारण वायदा बाजारों और खुदरा दुकानों में खासी गहमा-गहमी है.

पारंपरिक तौर पर पसंद किए जाते रहे सोने की कीमतें दशहरा, धनतेरस और दीवाली से पहले ही 1 लाख रुपए प्रति 10 ग्राम को पार कर गई हैं. ये त्योहार लंबे समय से शुभ खरीदारी से जुड़े रहे हैं.

दरअसल, भारत में पूरे साल के करीब एक-तिहाई सोने की बिक्री अक्तूबर-दिसंबर तिमाही में होती है. दिल्ली में 16 सितंबर को 24 कैरेट सोने की कीमत 1.12 लाख रुपए प्रति 10 ग्राम तक पहुंच गई, जिसकी वजह थी वैश्विक अनिश्चितता और भू-राजनीतिक तनाव. इसने सुरक्षित-संपत्ति के रूप में सोने की स्थिति को और मजबूत किया. लेकिन 18 सितंबर को अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने ब्याज दरों में 25 आधार अंकों की कटौती की.

लिहाजा, शेयरों के लिए अच्छी संभावनाओं और डॉलर की मजबूती के कारण अगले दिन सोने की कीमतें थोड़ी-सी गिरकर 1.11 लाख रुपए प्रति 10 ग्राम रह गईं. उसके बाद कीमतें फिर बढ़ने लगीं और 22 सितंबर को ये 1.13 लाख रुपए तक पहुंच गईं. कुछ विश्लेषकों का अनुमान है कि 2026 की पहली छमाही में कीमतें 1.25 लाख रुपए प्रति 10 ग्राम तक पहुंच सकती हैं.

वैश्विक संकेतों और स्थानीय मांग के कारण चांदी के भावों में भारी तेजी आई है और 22 सितंबर को भारत में इसकी कीमतें 1.38 लाख रु. प्रति किलोग्राम तक पहुंच गईं.

भारत में भारी खपत
चीन के बाद भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा सोने का उपभोक्ता है. इसकी वार्षिक मांग 700-800 टन है. लगभग दो-तिहाई सोने से गहने बनाए जाते हैं, बाकी सोना गिन्नी और बिस्कुटों के रूप में होता है. देश अपनी जरूरत का लगभग 90 प्रतिशत आयात करता है जो मुख्य रूप से ऑस्ट्रेलिया, स्विट्जरलैंड और ब्रिटेन से होता है.

चांदी की मांग टन में वजन के हिसाब से और भी ज्यादा है: सालाना 4,000 से 5,000 टन. लगभग तीन-चौथाई चांदी का प्रयोग गहनों, चांदी के बर्तनों और निवेश में होता है जबकि शेष का औद्योगिक इस्तेमाल, इलेक्ट्रॉनिक्स से लेकर सौर पैनलों तक में होता है. भारत करीब 60 प्रतिशत चांदी आयात करता है, जो मुख्य रूप से संयुक्त अरब अमीरात, ब्रिटेन और चीन से आती है.

सराफा और वित्तीय सलाहकार फर्म बीएन वैद्य ऐंड एसोसिएट्स के भार्गव वैद्य बताते हैं, ''सोने की कीमतों में बढ़ोतरी का सबसे बड़ा कारण भू-राजनीतिक तनाव के साथ कुछ देशों में ब्याज दरों में कटौती की उम्मीदें और अमेरिकी टैरिफ का दबाव है. इनके कारण शेयर बाजारों में अनिश्चितता पैदा हो गई है, जिससे निवेश के विकल्प के रूप में सोने की मांग बढ़ गई है.'' तेजी से भागती कीमतें भौतिक मांग को कम कर रही हैं. वैद्य को उम्मीद है कि पिछले साल की तुलना में इस त्योहारी सीजन में खुदरा आभूषणों की बिक्री में 20 फीसद तक की गिरावट आएगी. हालांकि, मूल्य के लिहाज से बिक्री स्थिर रह सकती है या बढ़ भी सकती है. 2024 में भी त्योहारी सीजन में सोने की मांग में 5 फीसद की गिरावट आई लेकिन बिक्री से प्राप्त पैसे में 31 फीसद का इजाफा हुआ—इस सबका कारण रहीं ऊंची कीमतें.

चांदी अक्सर सोने की चमक के आगे फीकी पड़ जाती है लेकिन उसने भी अपनी दोहरी विशेषता के कारण नई रफ्तार पकड़ी है. वित्तीय समाधान मुहैया करने वाली फर्म एसएस वेल्थस्ट्रीट की संस्थापक सुगंधा सचदेवा कहती हैं, ''चांदी कीमती धातु भी है तो औद्योगिक इस्तेमाल की भी.'' आभूषणों और निवेश के अलावा यह सौर पैनलों, 5जी नेटवर्क और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के लिए अपरिहार्य है. वे कहती हैं, ''इसकी मजबूत औद्योगिक मांग और पिछले चार वर्षों से लगातार किल्लत वाले चांदी के बाजार—यह रुझान पूरे 2025 में भी जारी रहने का अनुमान—के कारण आपूर्ति और मांग में बड़ा असंतुलन पैदा हो जाता है.''

वैश्विक असर
वैश्विक निवेश प्रवाह इस तेजी को और बढ़ा रहा है. गोल्ड एक्सचेंज-ट्रेडेड फंड (ईटीएफ) ऐसे निवेश फंड हैं जो भौतिक सोना खरीदते हैं और जिनके यूनिट स्टॉक एक्सचेंज में बेचे जाते हैं जिससे निवेशक शेयरों की तरह ही उनमें खरीद-बेच कर सकते हैं. बताया जाता है कि इन गोल्ड ईटीएफ ने अपनी होल्डिंग एक साल में लगभग दोगुनी कर ली है और केंद्रीय बैंक भी चुपचाप अपना भंडार बढ़ा रहे हैं. पिछले एक साल में सोने ने रुपए के लिहाज से 50 फीसद रिटर्न दिया है, जो शेयरों से कहीं ज्यादा है, जबकि इसी अवधि में बेंचमार्क सेंसेक्स 1.2 फीसद गिरा है.

वल्र्ड गोल्ड काउंसिल के अनुसार, केंद्रीय बैंकों की होल्डिंग 2009 में 26,000 टन थी जो 2024 में बढ़कर 32,000 टन हो गई. इनमें शीर्ष 10 बैंकों—अमेरिका, जर्मनी, इटली, फ्रांस, स्विट्जरलैंड, जापान, नीदरलैंड, चीन, रूस और भारत—के पास कुल सोने का तीन-चौथाई हिस्सा है. कई केंद्रीय बैंकों के लिए सोना खरीदना डॉलर की अस्थिरता से बचने और अमेरिकी मुद्रा पर निर्भरता घटाने का एक तरीका है. वित्त वर्ष 2025 की दूसरी तिमाही तक भारत के पास 880 टन का भंडार था, उसने 2000 और 2025 के बीच अपने भंडार को औसतन 531 टन से लगातार बढ़ाया है. अब उसके 711 अरब डॉलर (62.6 लाख करोड़ रुपए) के भंडार में सोने का हिस्सा 13 फीसद है जो पहले 10 फीसद से भी कम था.

सितंबर के मध्य में रिकॉर्ड ऊंचाई के बाद कुछ मुनाफा वसूली के बावजूद विश्लेषकों को उम्मीद है कि कीमती धातुओं में मजबूती बनी रहेगी. मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विसेज में विश्लेषक मानव मोदी कहते हैं, ''अमेरिका में रोजगार के कमजोर आंकड़ों, ब्याज दरों में कटौती की उम्मीदों और रुपए के अवमूल्यन के बीच नुक्सान सीमित रहा.'' वे कहते हैं कि पश्चिम एशिया और पूर्वी यूरोप में भू-राजनीतिक अस्थिरता से सोने को 'रिस्क प्रीमियम' मिल रहा है. निवेशकों और उपभोक्ताओं दोनों के लिए संदेश स्पष्ट है—वैश्विक राजनीति और अर्थव्यवस्था में अस्थिरता के कारण कुछ समय तक कीमती धातुओं की चमक बनी रहेगी.

नई ऊंचाई पर
✪ सोना 22 सितंबर को 1.13 लाख रु. प्रति 10 ग्राम पर. कुछ विश्लेषकों का अनुमान है कि 2026 के मध्य तक यह 1.25 लाख रु. तक पहुंच जाएगा

✪ चांदी में भी शानदार तेजी. 22 सितंबर को घरेलू बाजार में इसके दाम 1.38 लाख रु. प्रति किलो की ऊंचाई पर पहुंच गए

तेजी की वजहें 
✪ वैश्विक अनिश्चितता के कारण निवेशक सोने जैसी सुरक्षित परिसंपत्ति की ओर मुड़ रहे हैं.

✪ डॉलर की अनिश्चितता से निबटने के लिए केंद्रीय बैंक तेजी से सोना जमा कर रहे.

✪चांदी के भाव में तेजी इसके दोहरे महत्व—कीमती धातु और औद्योगिक इस्तेमाल—की वजह से है.

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