कृष्णा नदी के जल बंटवारे पर कैसे शुरू हुआ चौतरफा टकराव?
कृष्णा नदी पर बने अलमट्टी बांध की ऊंचाई बढ़ाने को लेकर कर्नाटक के कदम ने नए विवाद की पटकथा लिखी. इसको लेकर नाराज महाराष्ट्र, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश ने आवाज उठाई है

जमीन या फिर उस पर राज की महत्वाकांक्षाएं पालने वालों को बांटने के लिए पानी से बेहतर कुछ नहीं. इसे साबित करने के लिए भारत में पानी को लेकर युद्धों पर एक नजर डाल लेना ही काफी होगा. ताजा उबाल कृष्णा नदी के पानी को लेकर उठा है.
यह चतुष्कोणीय युद्ध है क्योंकि 1,400 किमी लंबी यह नदी, जो दक्षिण भारत की दूसरी सबसे लंबी नदी है, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश से होकर बहती है.
विवाद के केंद्र में उत्तर कर्नाटक का अलमट्टी बांध है, जहां राज्य का सबसे बड़ा जलाशय है. इसके निर्माण के बीस साल बाद कर्नाटक के मंत्रिमंडल ने इस बांध की ऊंचाई बढ़ाने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है ताकि यह नदी का ज्यादा जल प्रवाह रोक सके.
यह बांध 1960 में शुरू अपर कृष्णा परियोजना का हिस्सा है और उत्तर कर्नाटक के सूखे इलाकों में सिंचाई के लिए बनाए गए बुनियादी ढांचे का मुख्य अंश है. मौजूदा योजना अपर कृष्णा परियोजना (यूकेपी) चरण-III अपने विस्तार में काफी महत्वाकांक्षी है.
इसके लिए 1,33,867 एकड़ तक जमीन का अधिग्रहण करना होगा; डूबने वाले इलाकों समेत केवल मुआवजे पर ही करीब 70,000 करोड़ रुपए का खर्च आएगा. इस पर 2010 से ही काम चल रहा है, जब दूसरे कृष्णा जल विवाद पंचाट (केडब्ल्यूडीटी) ने कर्नाटक को अलमट्टी बांध की ऊंचाई 519.6 मीटर से बढ़ाकर 524.2 मीटर करने और कृष्णा नदी के 90,700 करोड़ क्यूबिक फुट तक पानी के इस्तेमाल की इजाजत दे दी थी.
तब महाराष्ट्र और अविभाजित आंध्र प्रदेश दोनों ने इस फैसले पर सवाल उठाए थे. महाराष्ट्र को अपने सीमावर्ती जिलों की जमीन डूब में आने की चिंता थी, तो नदी के निचले जल प्रवाह पर बसा राज्य होने के नाते अविभाजित आंध्र नीचे की तरफ पानी का प्रवाह कम होने को लेकर चिंतित था. इन चिंताओं को ध्यान में रखते हुए केडब्ल्यूडीटी-III की दूसरी रिपोर्ट नवंबर 2013 में आई. लेकिन इसे दी गई चुनौती सुप्रीम कोर्ट में लंबित है और पंचाट के फैसले को केंद्र ने अभी तक अधिसूचित नहीं किया है.
कर्नाटक की बनाई विस्तार की योजना को अब तेलंगाना समेत प्रभावित राज्यों की तरफ से ताजे विरोध का सामना करना पड़ रहा है. महाराष्ट्र ने केंद्र से कर्नाटक के इस कदम को रोकने का आग्रह किया है, तो मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस सर्वोच्च अदालत में नए सिरे से चुनौती देने का वादा कर रहे हैं. तेलंगाना में भारत राष्ट्र समिति के कार्यकारी अध्यक्ष के.टी. रामाराव ने भी यही बात दोहराई और कहा कि अगर रेवंत रेड्डी की अगुआई वाली कांग्रेस सरकार राज्य को होने वाले पानी के संभावित नुक्सान को कानूनी तरीकों से रोकने में नाकाम रहती है तो इसके लिए उसे जिम्मेदार ठहराया जाएगा.
तीन साल का समय
यूकेपी चरण III उत्तर कर्नाटक के सूखाग्रस्त इलाकों में 15 लाख एकड़ जमीन पर सिंचाई के लिए तैयार की गई है. मंत्रिमंडल की विशेष बैठक में जमीन गंवाने वाले किसानों के लिए मुआवजे का फैसला करने के बाद कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरामैया ने 16 सितंबर को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, ''यह बड़ी परियोजना है. इससे इस इलाके के किसानों को पानी मिलेगा.'' यह पेचीदा मुद्दा है जिससे पिछली सरकारों को भी जूझना पड़ा था. इसके लिए कुल 1,33,867 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किए जाने की संभावना है, जिसमें से 75,563 एकड़ तक डूब में आएगी, 51,837 एकड़ नहरों के लिए और 6,467 एकड़ पुनर्वास के लिए तय है.
जल संसाधन मंत्रालय भी संभालने वाले उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार कहते हैं, ''इस इलाके में जमीन की कीमतें बढ़ रही हैं. पिछली सरकारों ने सिंचित जमीन के लिए 24 लाख रुपए प्रति एकड़ और सूखी जमीन के लिए 20 लाख रुपए प्रति एकड़ मुआवजा तय किया था. मगर किसान राजी न थे और इसलिए सरकार आगे नहीं बढ़ पाई. हमने एक ही चरण में अधिग्रहण पूरा कर लेने का फैसला किया है.'' मौजूदा सरकार ने नई दरों की पेशकश की है: सिंचित जमीन के लिए 40 लाख रु. प्रति एकड़, सूखी जमीन के लिए 30 लाख रु. प्रति एकड़, नहरों के वास्ते अधिग्रहीत जमीन के लिए 25 लाख रु. प्रति एकड़. मुख्यमंत्री कहते हैं, ''हम तीन वित्तीय सालों में यह प्रक्रिया पूरी कर लेना चाहते हैं.''
अनुमान है कि प्रोजेक्ट से 1,36,414 लोग विस्थापित होंगे और 20 गांवों के अलावा कुछ शहरी इलाकों पर भी असर पड़ेगा. अधिग्रहण से जुड़े करीब 20,000 मामले इस वक्त चल रहे हैं जिन्हें सरकार 2013 के जमीन अधिग्रहण कानून के तहत मध्यस्थता से सुलझाने की उम्मीद कर रही है. शिवकुमार कहते हैं कि इन मसलों को सुलझाने के लिए जमीन अधिग्रहण, पुनर्वास और मुआवजा प्राधिकरण बनाया जाएगा, जिसके अध्यक्ष जज होंगे. पंचाट के फैसले की अधिसूचना महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश के 'राजनैतिक दबाव की वजह से स्थगित' कर दी गई थी, और केंद्रीय जल मंत्री ने जल्द बैठक बुलाने का वादा किया है. यह बैठक बहुत शांत तो नहीं रहने वाली.
खास बातें
> कर्नाटक ने बांध पर 2010 के पंचाट के आदेश पर अमल की पहल की.
> महाराष्ट्र जमीन डूबने की आशंका से तो आंध्र, तेलंगाना कम बहाव को लेकर चिंतित.
> कानूनी चुनौती मुमकिन.
- अजय सुकुमारन