कर्नाटक: CM सिद्धारमैया बैलैट पेपर से क्यों कराना चाहते हैं चुनाव?
इधर 'वोट चोरी' का शोरशराबा तेज हुआ, उधर कर्नाटक सरकार स्थानीय निकायों के चुनाव में ईवीएम को छोड़ने और मतदाता सूचियों में सुधार के लिए तैयार

ईवीएम नहीं, मतपत्र. कर्नाटक में सत्तारूढ़ कांग्रेस अब इसी राह पर चल रही है. यह राहुल गांधी के मतदाता सूचियों के जरिए 'वोट चोरी' के खुलासे की लकीर से ऊंची छलांग हो सकती है.
आरोपों के हिसाब से संदिग्ध मतदाता सूचियों वाला मसला ईवीएम में छेड़छाड़ से अलग है. मगर दोनों पर अविश्वास जताते हुए एकमेक कर दिया गया.
4 सितंबर को मुख्यमंत्री सिद्धरामैया की अध्यक्षता में हुई राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में लंबे समय से टलते आ रहे बेंगलूरू के म्युनिसिपल चुनाव समेत स्थानीय निकायों के सभी आगामी चुनावों में मतपत्र के इस्तेमाल की सिफारिश कर दी गई.
अगर ऐसा होता है तो 2001 के बाद पहली बार भारत में इतने बड़े पैमाने पर पुराने ढर्रे पर कागजों पर मतदान होता देखा जाएगा. विपक्षी भाजपा ने तीखी प्रतिक्रिया की और कांग्रेस पर देश के सिलिकॉन हब को वापस 'पाषाण युग' में ले जाने का आरोप लगाया.
मगर इसे ताकत मिली अगस्त में हुई राहुल की नाटकीय प्रेस कॉन्फ्रेंस से, कर्नाटक जिसकी बुनियाद में था. वैसे तो इसमें ज्यादा बड़ा मुद्दा उठाया गया मगर नजीर यहीं की थी—बेंगलूरू के भीतर सेंट्रल लोकसभा सीट. राहुल गांधी की रिसर्च टीम ने इसे ऐसी मिसाल के तौर पर पेश किया जहां इसके महादेवपुरा विधानसभा क्षेत्र में पूरे 1,00,250 वोट संदिग्ध नजर आए.
मतदाता सूचियों से जुड़ी 'शिकायतों' पर जोर देते हुए कर्नाटक के मंत्रिमंडल ने राज्य चुनाव आयोग को आगामी स्थानीय निकाय चुनावों के लिए सूचियों में सुधार करके नई मतदाता सूचियां बनाने का अधिकार दे दिया. इसका ऐलान करते हुए राज्य के कानून मंत्री एच.के. पाटील ने कहा कि 'ईवीएम पर भरोसा और उसकी साख भी खत्म' हुई है.
राज्य की ओर से पहल
राज्य चुनाव आयोग की स्थापना 1993 में 73वें और 74वें संविधान संशोधनों के जरिए स्वतंत्र संगठन के तौर पर की गई थी. यह ग्रामीण और शहरी स्थानीय निकायों के चुनाव करवाता है. अमूमन इनके लिए विधानसभा चुनावों की मतदाता सूचियों का इस्तेमाल किया जाता है. अभी सिर्फ केरल और यूपी ने ही अपने एसईसी को मतदाता सूचियां तैयार करने का हक दिया है. अब कर्नाटक भी नियमों में संशोधन करके ऐसा ही करेगा.
कर्नाटक में ग्राम पंचायत के चुनाव करवाने के लिए मतपत्र पसंदीदा विकल्प रहे हैं पर स्थानीय निकायों के अन्य सभी चुनाव ईवीएम से होते हैं. आगामी चुनावों की फेहरिस्त लंबी है. 5,950 ग्राम पंचायतों के कार्यकाल दिसंबर में खत्म होंगे और कम से कम पांच नगर निगमों और 192 नगर पालिकाओं के चुनाव भी जल्द करवाने होंगे. जिला पंचायतों के चुनाव 2021 से टलते आ रहे हैं क्योंकि सीटों की आरक्षण सूची तैयार नहीं है.
- अजय सुकुमारन