उत्तर प्रदेश : सरकार की सख्ती के बावजूद कर विभाग के भ्रष्टाचार पर लगाम क्यों नहीं लग रही?

रामपुर में अधिकारी की रंगे हाथ गिरफ्तारी से लेकर गाजियाबाद, मुजफ्फरनगर और कानपुर तक, राज्य कर विभाग बार-बार गड़बड़ियों में घिरा. सरकार की कार्रवाई के बावजूद सिस्टम की खामियां बरकरार है

Special Report/GST
लखनऊ स्थित राज्य कर महकमे का मुख्यालय

उत्तर प्रदेश का राज्य कर विभाग प्रदेश सरकार के राजस्व का सबसे बड़ा आधार है. माल एवं सेवा कर (जीएसटी) लागू होने के बाद इसकी जिम्मेदारी और भी बढ़ गई. पर हाल के महीनों में इस विभाग के भीतर रिश्वतखोरी और मनमानी के दिलचस्प मामले सामने आए हैं. अब इस बात को लेकर सवाल उठने लगे हैं कि यह विभाग राजस्व बढ़ा रहा है या अपनी ही छवि को खोखली कर रहा है.

रामपुर जिले में 3 सितंबर को जो हुआ उसने इस सवाल को और बल दे दिया. यहां राज्य कर विभाग के सहायक आयुक्त सतीश कुमार को विजिलेंस टीम ने रंगे हाथों पकड़ लिया. उन पर एक व्यापारी से जीएसटी रजिस्ट्रेशन कराने के नाम पर 25,000 रुपए रिश्वत मांगने का आरोप था. शिकायतकर्ता आले नबी बीवी के नाम से फर्म खोलना चाहते थे. उन्होंने विजिलेंस से संपर्क किया. उसने जाल फैलाया और जैसे ही अधिकारी ने 15,000 रुपए लिए, उसे मौके पर ही गिरफ्तार कर लिया गया.

बरेली सेक्टर के एसपी विजिलेंस अरविंद कुमार यादव का कहना है, ''शिकायत मिलते ही हमने टीम बनाकर जाल बिछाया. यह स्पष्ट संदेश है कि भ्रष्टाचार को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.’’ मुरादाबाद के एक व्यापारी सलीम अंसारी का अनुभव इस व्यवस्था की पोल खोलता है. उनका कहना है, ''जीएसटी नंबर बनवाना छोटे व्यापारी के लिए सिरदर्द है. अफसर कागजों में बार-बार कमी बताकर पैसे मांगते हैं. देने से इनकार करने पर रजिस्ट्रेशन महीनों लटका रहता है.’’ शासन ने 11 सितंबर को सतीश कुमार को निलंबित कर दिया.

गाजियाबाद जोन-द्वितीय में तैनात राज्य कर अधिकारी रेनू पांडेय को लखनऊ की कंपनी 'बडी एंटरप्राइजेज’ से 2.5-3 लाख रुपए की वसूली के आरोप में 17 अगस्त को निलंबित कर दिया गया. पीड़ित ने विजिलेंस को ऑडियो और वीडियो रिकॉर्डिंग सौंपी थी. राज्य कर आयुक्त नितिन बंसल ने आदेश जारी करते हुए साफ कहा, ''इस तरह के गंभीर कदाचार से विभाग की छवि धूमिल होती है. दोषी पाए जाने पर कठोरतम कार्रवाई होगी.’’

गाजियाबाद के कारोबारी मनोज अग्रवाल जोड़ते हैं, ''हम लोग हर महीने टैक्स भरते हैं, फिर भी हमें अफसरों की नजर में चोर समझा जाता है. अगर रिकार्डिंग न होती तो यह अधिकारी बच जाती.’’

मुजफ्फरनगर में मामला और गंभीर निकला. यहां 30 जुलाई को इंडियन इंडस्ट्रीज एसोसिएशन (आइआइए) के सदस्यों ने जोरदार हंगामा किया. आरोप था कि राज्य कर अधिकारी हिमांशु लाल ने एक उद्यमी से 50 लाख रुपए की रिश्वत मांगी. उद्यमी को छापे की धमकी देकर दबाव बनाया गया और आखिरकार 10 लाख रुपए की एकमुश्त रकम तथा हर महीने 50,000 रुपए देने का प्रस्ताव थमाया गया. मुजफ्फरनगर में आइआइए के एक पदाधिकारी का कहना है, ''जब अधिकारी खुद व्यापारी को ब्लैकमेल करने लगे तो उद्योग कैसे आगे बढ़ेगा? यह पूरे उद्योग जगत की समस्या है.’’

भ्रष्टाचार का यह चेहरा सिर्फ रिश्वत तक सीमित नहीं रहा. कानपुर जोन के एडिशनल कमिशनर ग्रेड-दो रहे केशव लाल पर आरोप थे कि वे कर चोरों का साथ देते हैं और अधीनस्थ अधिकारियों को डराते हैं. उन्हें 2017 में अनिवार्य सेवानिवृत्ति दे दी गई थी. जांच आगे बढ़ी तो विजिलेंस ने खुलासा किया कि उनके पास 10 करोड़ रुपए से ज्यादा नकद, तीन करोड़ रुपए से ज्यादा के जेवर और करोड़ों रुपए की अचल संपत्ति है. शासन ने उनकी पूरी पेंशन रोक दी. राज्य कर विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है, ''पेंशन काटने जैसा कठोर कदम इसलिए उठाया गया क्योंकि यह संदेश देना जरूरी था कि कोई अधिकारी कितना भी बड़ा हो, अगर भ्रष्ट है तो उसे छोड़ा नहीं जाएगा.’’ 

बीते कुछ साल में राज्य कर विभाग में गड़बड़ियों की वजह से उसकी छवि खराब हो गई है. सबसे ज्यादा गड़बड़ी सचल दस्ते और प्रवर्तन दल में पकड़ी गई है. जीएसटी अधिनियम के तहत जांच की जिम्मेदारी सचल दलों की है. सचल दल इकाई के प्रभारी सहायक आयुक्त होते हैं. उन पर वाहनों से जा रहे माल और गोदाम की जांच के साथ-साथ रेलवे तथा सड़क मार्ग से होने वाली टैक्स चोरी को रोकने की जिम्मेदारी है.

इकाई में राज्य कर अधिकारी भी सहायक आयुक्त के अधीन काम करते हैं. सबसे ज्यादा आरोप वसूली के और टैक्स चोरी में लिप्त सिंडिकेट से सांठगांठ के लगते हैं. यही वजह है कि सचल दल में आने के लिए बड़ी-बड़ी सिफारिशें चलती हैं. इसी गड़बड़ी को रोकने के लिए पहली बार सचल दस्ते में तैनात होने वाले सहायक आयुक्तों और राज्य कर अधिकारियों के लिए मानक तय हुए थे.

इस संबंध में 24 अप्रैल को दूसरे विभागों के अधिकारियों को भी सचल दल में तैनात किए जाने की व्यवस्था की गई. जांच की कार्रवाई और प्रभावी बनाने के लिए दक्ष, ईमानदार और योग्य अधिकारियों को प्रतिनियुक्ति पर तैनात किया जाएगा. शासनादेश के बाद बड़ी संख्या में बिजली विभाग के इंजीनियरों ने सचल दस्ते में प्रतिनियुक्ति के लिए आवेदन किया. मामला मुख्यमंत्री योगी के संज्ञान में आने पर प्रतिनियुक्ति को फिलहाल ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है.

राज्य कर विभाग में पांच साल से प्रतीक्षारत काडर पुनर्गठन का प्रस्ताव भी ठंडे बस्ते में चला गया है. सरकारी विभागों के काडर पुनर्गठन का काम कार्मिक विभाग करता है लेकिन जीएसटी लागू होने के बाद काडर पुनर्गठन के लिए भारतीय प्रबंधन संस्थान (आइआइएम), लखनऊ से रिपोर्ट मांगी गई थी. आइआइएम की 2019 में पेश रिपोर्ट के आधार पर अधिकारी-कर्मचारी राज्य कर में काडर पुनर्गठन की मांग कर रहे हैं.

मार्च में प्रमुख सचिव एम. देवराज ने वाणिज्य कर विभाग के मान्यता प्राप्त संघों के पदाधिकारियों को बुलाया था. वहां काडर पुनर्गठन लागू करने की मांग एक बार फिर उठाई गई लेकिन इसे खारिज कर दिया गया. देवराज कहते हैं, ''विभाग का काम सुचारु ढंग से चल रहा है. ऐसे में काडर पुनर्गठन की कोई जरूरत नहीं महसूस हो रही.’’ हालांकि प्रदेश के राज्य कर विभाग ने व्यापारियों की सुविधा के लिए खंडों का पुनर्गठन किया है. पहले 436 खंड थे, अब इन्हें घटाकर 364 कर दिया गया है. अब हर खंड में करदाताओं की औसत संख्या 3,130 हो जाएगी.

राज्य कर विभाग में हाल के महीनों में यौन उत्पीड़न की शिकायतों ने विभाग का माहौल बिगाड़ दिया है. समस्या यह है कि कई शिकायतें बाद में झूठी या मनगढ़ंत साबित हुईं. नतीजा यह हुआ कि विभाग के भीतर कामकाज प्रभावित हुआ और अधिकारियों-कर्मचारियों के बीच अविश्वास का माहौल बन गया. ताजा मामले में राज्य कर विभाग में तैनात एक आइएएस पर कुछ महिला अधिकारियों ने यौन शोषण का आरोप लगाया है.

विभाग के एक अधिकारी बताते हैं, ''कुछ मामलों में महिला कर्मचारियों ने अपने वरिष्ठों पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए लेकिन जांच के दौरान ये ठोस सबूतों के अभाव में टिक नहीं पाए. आरोपी अधिकारी की छवि धूमिल हुई और पूरे विभाग पर सवाल उठने लगे हैं. दूसरी ओर, सही शिकायतें भी इस अंदेशे के घेरे में आ गईं कि कहीं यह भी किसी दबाव या व्यक्तिगत रंजिश का नतीजा तो नहीं.’’ विभाग के भीतर यह चर्चा है कि ऐसे मामलों का इस्तेमाल कई बार प्रमोशन, ट्रांसफर या बदले की भावना से भी किया जा रहा है. 10 सितंबर को विभाग ने यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली माहिला अधिकारियों का तबादला कर दिया.

उत्तर प्रदेश के जीएसटी महकमे में हाल के दिनों में गलत नोटिस भेजने की गड़बड़ी लगातार सुर्खियों में है. कई छोटे और मध्यम व्यापारी अचानक मिले नोटिसों से परेशान हैं. बरेली के एक कपड़ा कारोबारी को 50 लाख रुपए बकाया जीएसटी का नोटिस मिला जबकि उनके वार्षिक कारोबार का टर्नओवर ही 30 लाख रुपए से कम है. इसी तरह कानपुर में एक छोटे फर्नीचर व्यापारी को करोड़ों रुपए का कर बकाया दिखाया गया, जबकि उनके रिटर्न और बैंक स्टेटमेंट में ऐसी कोई विसंगति नहीं मिली.

इन घटनाओं से व्यापारी वर्ग में आक्रोश फैल गया है. जीएसटी ग्रिवांस रिड्रेसल कमेटी के सदस्य मनीष खेमका बताते हैं, ''एआइ की गड़बड़ी से ऐसे मामले आए हैं जिनमें बकाये का गलत नोटिस जारी किया गया है. इन्हें प्राथमिकता के आधार पर दूर किया जा रहा है.’’ पर सवाल यह है कि क्या इन कार्रवाइयों से सिस्टम की सूरत बदलेगी या फिर विभाग पुराने ढर्रे पर चलता रहेगा?

जीएसटी मामलों के वकील कार्तिकेय सिंह कहते हैं, ''हर सरकार यही कहती है कि भ्रष्टाचार खत्म होगा. कुछ अफसर पकड़े भी जाते हैं लेकिन सिस्टम वही रहता है. जब तक नियम सरल नहीं होंगे और अधिकारी जवाबदेह नहीं होंगे, कुछ नहीं बदलेगा.’’ राज्य कर विभाग के भीतर सुधार की जरूरत अब सिर्फ विभागीय मुद्दा नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश की पूरी वित्तीय विश्वसनीयता का सवाल बन चुकी है.

राज्य कर प्रमुख सचिव एम. देवराज ने कहा कि विभाग में गड़बड़ी करने वालों पर सख्त कार्रवाई हो रही है. भ्रष्टाचार पर सरकार की नीति जीरो टॉलरेंस की है.

हर तरफ भ्रष्टाचार की बानगी

● कानपुर: पंजीकृत पान मसाले की फैक्ट्री से बिना ईवे बिल के चार ट्रक निकलने पर कानपुर में सचल दल में तैनात चार राज्य कर अधिकारियों संदीप कुमार, जगदीश प्रसाद, जगत प्रकाश और अंकुर द्विवेदी को 28 दिसंबर, 2024 को निलंबित कर दिया गया.
● मेरठ: हरियाणा से गिफ्ट आइटम लेकर हल्द्वानी जा रहे एक ट्रक की 25 अक्तूबर, 2024 को मेरठ सचल दल ने जांच की थी. इस मामले में पैसे लेकर ट्रक छोड़ने की जांच शिकायत हुई थी. जांच के बाद सहायक आयुक्त अपूर्वा पटेल और राज्य कर अधिकारी नरेश अग्रवाल को निलंबित किया गया.
● लखनऊ: विजिलेंस ने राज्य कर विभाग के डिप्टी कमिशनर धर्मेंद्र कुमार पांडेय को दो लाख रु. की रिश्वत लेते हुए 19 मार्च, 2024 को लखनऊ में रंगे हाथों गिरफ्तार किया. वे एक कंपनी को जीएसटी रिफंड देने के बदले दो लाख रु. की मांग कर रहे थे. 
● नोएडा: गौतमबुद्ध नगर में तैनाती के दौरान बिल्डरों को गलत तरीके से फायदा पहुंचाने, वित्तीय अनियमितताओं और लापरवाही के आरोप में
11 सितंबर को अपर आयुक्त ग्रेड-2 अरुण शंकर राय को निलंबित कर दिया गया.

ऐसा है विभागीय ढांचा
● वाणिज्य कर विभाग का मुखिया अपर मुक्चय सचिव/ प्रमुख सचिव, कर और निबंधन होता है. इनके कार्यालय में मदद के लिए दो जॉइंट कमिशनर और एक जॉइंट कमिशनर (राजस्व अभिसूचना) होते हैं. 
● राज्य कर मुख्यालय कमिशनर के अधीन होता है. मुख्यालय, जोनल ऑफिस, ट्रेनिंग सेंटर, सुप्रीम कोर्ट और हाइकोर्ट के कार्य, डिप्टी कमिशनर की सीधी निगरानी राज्य कर आयुक्त करता है.
● कामकाज के लिए राज्य कर के कुल 20 जोन हैं जिनका मुख्यालय 16 जिलों में है. लखनऊ, वाराणसी, कानपुर और गाजियाबाद में दो-दो जोन हैं.
● बस्ती, देवीपाटन, आजमगढ़, मिर्जापुर और चित्रकूट वे मंडल मुख्यालय हैं जहां राज्य कर विभाग का कोई जोन ऑफिस नहीं. इटावा, गाजियाबाद और नोएडा में जोन ऑफिस हैं.
● सभी जोनल ऑफिस में एडिशनल कमिशनर ग्रेड-1 की तैनाती है. इसके साथ स्टैटिस्टिक्स अफसर भी तैनात हैं. गाजियाबाद और लखनऊ के जोन में एक-एक आइएएस अधिकारी की तैनाती है.
● सभी जोनल कार्यालय में कुल मिलाकर 56 एडिशनल कमिशनर ग्रेड-2 (अपील), 20 एडिशनल कमिशनर ग्रेड-2 (एसआइबी), 45 जॉइंट कमिशनर (कार्यालय) और 20 जॉइंट कमिशनर (कॉर्पोरेट सेल) तैनात हैं.

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