जम्मू-कश्मीर: हजरतबल दरगाह की मरम्मत से खुश होने के बजाय क्यों गुस्साए लोग?

श्रीनगर की डल झील के किनारे बनी सफेद गुंबद वाली हजरतबल दरगाह में जिस मरम्मत कार्य से श्रद्धालुओं को खुश हो जाना चाहिए था, उसका इस्तेमाल तल्ख सियासत पैदा करने में हुआ

6 सितंबर को हजरतबल दरगाह में ईद पर उमड़े श्रद्धालु, (इनसेट) तोड़ी गई उद्घाटन पट्टिका

मजहब और सियासत अक्सर एक ही मेहराब के दो पहलू माने जाते हैं. वे दोनों अलग हैं लेकिन अलग होते हुए भी कभी टकरा जाएं तो चिंगारी जरूर निकलती है. श्रीनगर की डल झील के किनारे बनी सफेद गुंबद वाली हजरतबल दरगाह इसकी मिसाल है. यहां पैगंबर की पवित्र निशानी रखी है और यह जगह हमेशा से सियासत और मजहब के मिलन का अड्डा रही है.

पहले भी इस दरगाह का नवीनीकरण हुआ है. सबसे अहम मरम्मत 1968 से 1979 के बीच शेख अब्दुल्ला ने करवाई थी, जिसने इसे आज का संगमरमर वाला रूप दिया. लेकिन इस बार जो एक साल लंबा मरम्मत का काम जम्मू-कश्मीर वक्फ बोर्ड ने कराया, वह कुछ और वजहों से सुर्खियों में है.

कुछ चीजें वाकई दिलकश रहीं, जैसे ताजा पेंट की गई दीवारें, उनके बीच तुर्की से आई खास झाड़-फानूस, जो स्थानीय खतमबंद छत की कला से मेल खाते नजर आते हैं. लेकिन सिर्फ यही नया नहीं था. एक और चीज ने सबका ध्यान खींच लिया: दीवार पर लगा उद्घाटन पट्ट, जिस पर अशोक स्तंभ का राष्ट्रीय प्रतीक खुदा हुआ था.

3 सितंबर से ही लोग बड़ी तादाद में हजरतबल दरगाह पहुंचने लगे थे. यह वही दरगाह है जो हर साल लाखों जायरीन को, मजहब और फिरकों से परे, अपनी तरफ खींचती है. लेकिन 5 सितंबर की जुमे की नमाज, जो आमतौर पर ईद-ए-मिलाद के बड़े जलसे की एक अहम पूर्वपीठिका होती है, इस बार बवाल में बदल गई. दरगाह के अंदर लगी उद्घाटन शिला पर उकेरे गए अशोक स्तंभ और चक्र वाले सरकारी निशान को पत्थरों से घिस दिया गया और नारे लगे. विरोध करने वालों का कहना था कि यह 'गुस्ताखी' है क्योंकि इस्लाम में किसी भी तरह की मूर्ति या निशानी की इजाजत नहीं है.

सवाल उठे
विरोध करने वालों के साथ कश्मीर की पूरी सियासत खड़ी हो गई. मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा, ''सरकारी निशान सरकारी दफ्तरों के लिए हैं. मस्जिदों, दरगाहों, मंदिरों या गुरुद्वारों के लिए नहीं.'' पीडीपी की इल्तिजा मुफ्ती ने इसे वक्फ बोर्ड की गलती बताते हुए कहा कि उसने एक पवित्र जगह का अपमान किया. मीरवाइज उमर फारूक ने साफ कहा कि इस्लाम में धार्मिक जगहों पर किसी भी तरह के प्रतीक, निशान या आकृति की मनाही है. यहां तक कि सज्जाद लोन ने भी इसे अफसोसनाक कहा.

वक्फ बोर्ड की चेयरपर्सन और भाजपा नेता दरख्शां अंद्राबी भड़क उठीं. उन्होंने इसे 'आतंकी हरकत' बताया और कहा कि दोषियों पर पब्लिक सेफ्टी ऐक्ट (पीएसए) लगना चाहिए. प्रेस से बात करते हुए उन्होंने नेशनल कॉन्फ्रेंस पर निशाना साधा, ''मैंने तीन साल से जहर पिया है. इन्होंने 35 साल तक गुंडागर्दी की. आतंकियों को घरों में पनाह दी और अब ये सब वही कर रहे हैं.'' अंद्राबी का कहना था कि यह कोई आम जनता का गुस्सा नहीं, बल्कि एक सोची-समझी सियासी साजिश है.

वक्फ पर कब्जे की जंग
दशकों तक हजरतबल दरगाह नेशनल कॉन्फ्रेंस का सियासी गढ़ रहा. शेख अब्दुल्ला, फारूक और अब उमर, सबने इसे अपनी सियासी ताकत का मंच बनाया. लेकिन पिछले कुछ साल में हालात बदल गए हैं. 2019 के जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन ऐक्ट के बाद मुस्लिम स्पेसिफाइड वक्फ बोर्ड ऐक्ट (2005) खत्म कर दिया गया और इसे केंद्र के वक्फ ऐक्ट के साथ मिला दिया गया. 2025 में इसमें और भी अहम संशोधन हुआ, जिसके बाद भाजपा समर्थित वक्फ बोर्ड ने कश्मीर की 32,000 से ज्यादा धार्मिक जगहों पर पूरा कंट्रोल हासिल कर लिया.

उमर सरकार ने बार-बार इसे बदलने की कोशिश की लेकिन नाकाम रहे. केंद्र इसकी इजाजत नहीं दे रहा. जानकारों का कहना है कि वजह यह है कि सरकार अलगाववादी नैरेटिव के लिए जगहें बंद करना चाहती है. दान और किराए से आने वाला भारी पैसा भी इसमें बड़ा फैक्टर है. अगस्त 2022 में बोर्ड ने सभी मजारों और दरगाहों से चंदे के बक्से खाली कराए और सज्जादा नशीनों तथा मुतवल्लियों को मिलने वाली सदियों पुरानी आय बंद कर दी. तीन साल बाद वही आध्यात्मिक-सियासी ताकत अब फिर टकराव की वजह बनी है.

खास बातें

> मरम्मत के बाद हजरतबल में एक पट्टिका पर अशोक की लाट देखकर विरोध शुरू हो गया.

> एनसीपी, पीडीपी, मीरवाइज, सबने इसकी निंदा की और इसे मजहब की तौहीन करार दिया.

> भाजपा की वक्फ बोर्ड अध्यक्ष ने हंगामा करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की.

- कलीम गीलानी

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