बिहार चुनाव: वोटर अधिकार यात्रा से कैसे विपक्षी अभियान के अगुआ बन गए राहुल गांधी?
बिहार में वोटर अधिकार यात्रा को मिले समर्थन के बाद कांग्रेस अब राजद की पिछलग्गू या महागठबंधन की कमजोर कड़ी नहीं रही. राहुल गांधी और उनकी पार्टी राज्य में विपक्षी अभियान के अगुआ बन गए हैं.

वोटर अधिकार यात्रा की कमरतोड़ मेहनत के बाद भाग्य भारती इन दिनों थकान मिटा रही हैं. हालांकि वे जानती हैं कि इसके लिए ज्यादा समय नहीं है. वे कहती भी हैं, ''हमारा असल काम तो अब शुरू होने वाला है. राहुल जी की यात्रा में उमड़ी भीड़ को कांग्रेस के वोटरों में बदलने की जिम्मेदारी हमारी ही है. ऐसा नहीं कर पाए तो पिछले 7-8 महीने की मेहनत बेकार चली जाएगी.’’
कांग्रेस के छात्र संगठन एनएसयूआइ की राज्य उपाध्यक्ष, पिछड़ा वर्ग से आने वाली 25 वर्षीया भारती को सीवान जिले के विधानसभाई क्षेत्रों में महिलाओं को राजनीतिक रूप से जागरूक करने की जिम्मेदारी मिली है. सितंबर, 2023 में बिहार कांग्रेस की सदस्यता लेते वक्त उन्हें लगा नहीं था कि पार्टी के पुराने घाघ नेताओं के बीच उन्हें कभी कोई जिम्मेदारी भी मिलेगी. 2024 और लोकसभा चुनाव भी निकल गया.
वे खाली ही रहीं. पर इस साल उन्हें भरपूर काम मिला और जिम्मेदारियां भी. ''15 मई को दरभंगा के आंबेडकर छात्रावास में राहुल गांधी के दलित छात्रों की समस्या सुनने के लिए आने पर पार्टी ने मंच संचालन की जिम्मेदारी मुझे दी. मुझे पटना के तीन-चार महिला छात्रावासों का भी समन्वय करना था. छह जून को गया में महिला संवाद कार्यक्रम में समन्वय का काम मिला और राहुल जी से मिलने का मौका भी.’’
भाग्य भारती बिहार में हाल के दिनों में उठकर खड़ी हो रही कांग्रेस का प्रतिनिधि चेहरा हैं, जिसके अध्यक्ष रविदास जाति से आने वाले राजेश राम हैं. पार्टी के 40 में से 18 जिलाध्यक्ष बहुजन समाज से आते हैं. पार्टी में इस समाज के प्रकोष्ठ के प्रभारी कृष्णा अलावरु सरीखे युवा हैं जिन्होंने राजद के ऐतराज के बावजूद अपना स्टार कैंपेनर कन्हैया कुमार को बनाया और वोटर अधिकार यात्रा में पप्पू यादव को जगह दी. पार्टी के सौ साल से ज्यादा पुराने दप्तर में अब युवा और बहुजन चेहरों का दबदबा दिखता है.
यह वही बिहार कांग्रेस है जो पिछले साल तक राजधानी पटना में एक पुतला दहन और विरोध प्रदर्शन तक के कार्यक्रम में भीड़ नहीं जुटा पाती थी. उसने न सिर्फ 16 दिन तक चली वोटर अधिकार यात्रा को सफल करके दिखाया बल्कि उसका समापन पटना के गांधी मैदान में किया. सियासी हलकों में कभी राजद की पिछलग्गू समझी जाने वाली कांग्रेस को लेकर आज यह कहा जा रहा है कि वह बिहार में विपक्षी गठबंधन को लीड कर रही है.
2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में पार्टी के हिस्से आईं 70 में से सिर्फ 19 सीटें जीतने वाली कांग्रेस को अब महागठबंधन की कमजोर कड़ी नहीं कहा जा रहा. पार्टी को समझने वाले जानते हैं कि बिहार कांग्रेस के लिहाज से यह बड़ा बदलाव है. एक ऊंची छलांग है, जो राहुल गांधी की लगातार सक्रियता, देश भर के बड़े कांग्रेसी नेताओं की नियमित आवाजाही, कृष्णा अलावरू जैसे संगठनकर्ता को प्रभारी बनाने और कन्हैया कुमार जैसे लोकप्रिय युवा नेता की सक्रियता से मुमकिन हुई है.
कैसे बदली कांग्रेस
वह 18 जनवरी, 2025 का दिन था. राहुल गांधी पटना में थे. वे डेढ़ साल बाद बिहार कांग्रेस के दफ्तर सदाकत आश्रम पहुंचे थे. मंच सजा था. तब के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह ने उनके स्वागत में भीड़ जुटाई थी. मंच से उन्होंने राहुल से एक मांग भी कर दी, ''आप जिस तरह दक्षिण भारत और उत्तर प्रदेश को समय देते हैं, उसी तरह बिहार को दें तो हम भरोसा दिलाते हैं कि कांग्रेस को बिहार में ’90 से पहले वाली स्थिति में ला देंगे.’’
राहुल ने उस रोज कोई टिप्पणी नहीं की. मगर तब से वे छह बार बिहार यात्रा कर चुके हैं और इस साल पूरे बीस दिन इस चुनावी राज्य में गुजार चुके हैं, जिसमें वोटर अधिकार यात्रा के 15 दिन शामिल हैं. हां, इस दौरान राहुल से बार-बार बिहार आने की मांग करने वाले प्रदेश अध्यक्ष की विदाई हो गई.
पिछले साल कांग्रेस ज्वाइन करने वाले युवा हल्ला बोल के संस्थापक और राहुल गांधी के करीबी समझे जाने वाले अनुपम बताते हैं, ''राहुल जी इस बात को समझते हैं कि राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस को रिवाइव करना है तो बिहार और पूर्वांचल उसका प्रमुख केंद्र हो सकता है. इसलिए उन्होंने बिहार में पार्टी की पूरी ताकत लगाने का फैसला किया. हम सबने पार्टी को रिवाइव करने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है.
राहुल जी के अलावा पार्टी का हर बड़ा नेता कई-कई बार बिहार आ चुका है. ऐसी व्यवस्था बनाई गई है जिसके तहत पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से लेकर आम कार्यकर्ता तक सब इस अभियान में भरपूर योगदान दे रहे हैं. बिहार कांग्रेस में आज एक नई ऊर्जा और भविष्य को लेकर उम्मीद है.’’ उनका मानना है कि राहुल गांधी के बिहार कांग्रेस का रिवाइवल प्लान देश में कांग्रेस पार्टी के रिवाइवल की बड़ी योजना का हिस्सा है. इसलिए यह चुनाव के बाद भी जारी रहेगा और कहीं ज्यादा तेज गति से चलेगा.
पिछलग्गू का टैग हटा
रिवाइवल प्लान 18 जनवरी को राहुल की वापसी के बाद से ही शुरू हो गया था. पहला बदलाव बिहार कांग्रेस के प्रभारी मोहन प्रकाश का हुआ, जो सज्जन होने के बावजूद अप्रभावी साबित हो रहे थे. अब राहुल को बिहार में उनके ही शब्दों में ऐसे 'रेस के घोड़े’ की जरूरत थी, जो सबसे पहले बिहार कांग्रेस को उस टैग से मुक्ति दिलाए, जिसके तहत लोग-बाग कह दिया करते थे कि बिहार कांग्रेस लालू यादव और राजद की पिछलग्गू पार्टी है. यह भी कहा जाता था कि तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह पार्टी में कांग्रेस के आदमी कम और लालू के ज्यादा हैं. 2024 के लोकसभा चुनाव में टिकट बंटवारे के दौरान राजद ने जैसा बर्ताव किया, राहुल उसे भूल नहीं पा रहे थे.
सदाकत आश्रम में 21 फरवरी को नए प्रभारी कृष्णा अलावरू का आगमन हुआ और उन्होंने पहले ही दिन बैठक में इरादे साफ कर दिए: ''मेरी दिलचस्पी उन लोगों में नहीं जो यहां अगली कतार में बैठे हैं, उन लोगों में है जो बाहर खड़े होकर सारी व्यवस्था देख रहे हैं. मैं चाहता हूं, कांग्रेसी सदाकत आश्रम के चक्कर लगाने की बजाए फील्ड में आम लोगों के बीच ज्यादा रहें.’’
इसके बाद कृष्णा की अगुआई में पार्टी में दो बड़े बदलाव हुए, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद से अखिलेश प्रसाद सिंह को हटाकर दलित समुदाय के राजेश राम को अध्यक्ष बनाया गया और वहीं 'पलायन रोको-नौकरी दो’ यात्रा के जरिए कन्हैया कुमार को बिहार में एंट्री दी गई. राजेश को अध्यक्ष बनाकर राहुल गांधी की सामाजिक न्याय की राजनीति के प्रति प्रतिबद्धता पर मुहर लगाई गई, वहीं कन्हैया को बिहार में एंट्री देकर युवाओं को कांग्रेस की तरफ आकर्षित किया गया. मगर इन दोनों फैसलों के पीछे यह संदेश देने का मकसद भी था कि कांग्रेस बिहार में राजद की पिछलग्गू पार्टी नहीं है.
सिर्फ चुनावी अभियान नहीं
हालांकि कन्हैया कुमार इस बात से इनकार करते हैं: ''यह सब मीडिया की गॉसिप का हिस्सा है, इसमें सचाई नहीं है.’’ उन्होंने इंडिया टुडे से बातचीत में कहा, ''दरअसल बिहार की लड़ाई, आइडिया ऑफ इंडिया को बचाने की लड़ाई है. हमारा उद्देश्य सिर्फ विधानसभा चुनाव जीतना नहीं है.’’
वे कहते हैं, ''हमारे बिहार प्लान के दो हिस्से हैं. पहला शॉर्ट टर्म, जिसके तहत सहयोगियों के साथ मिलकर भाजपा को बिहार में सत्ता में आने से रोकना. दूसरा लाँग टर्म गोल, जिसमें बिहार कांग्रेस को आम लोगों और वंचितों की लड़ाई का मंच बनाना है. इसे आइडिया ऑफ इंडिया को बचाने की मुहिम का हिस्सा बनाना है.’’
इसके तहत बिहार में कांग्रेस के तीन बड़े प्रोजेक्ट चल रहे हैं. पहला संविधान सुरक्षा सम्मेलन. बिहार में अब तक तीन सम्मेलन हो चुके हैं, दो पटना में और एक राजगीर में. इन सम्मेलनों की वजह से कांग्रेस में कई बहुजन नेता और विचारक शामिल हुए. बिहार कांग्रेस के प्रवक्ता ज्ञान रंजन कहते हैं, ''इसी अभियान की वजह से हाल के दिनों में बिंद, कानू, नोनिया, केवट, मालाकार और वैश्य समाज के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने कांग्रेस की सदस्यता ली है.’’ अनुपम कहते हैं, ''हमने यह लक्ष्य तय किया था कि हम अपने आधार वोटर दलित, अल्पसंख्यक और सवर्णों के बीच अपनी पैठ बनाएंगे ही, साथ-साथ अति पिछड़ी जातियों के बीच भी अपना असर बढ़ाने की कोशिश करेंगे.’’
दूसरा बड़ा अभियान व्हाइट टी-शर्ट कैंपेन रहा. कन्हैया बताते हैं, ''दरअसल ऐसे युवा जो सीधे राजनीति में नहीं आना चाहते मगर आम लोगों के लिए संघर्ष करना चाहते हैं, यह कैंपेन उन्हें जोडऩे के लिए है.’’
इस कैंपेन का सबसे बड़ा शो 15 मई, 2025 को हुआ जब बिहार कांग्रेस ने एक साथ राज्य के 75 छात्रावासों में मीटिंग की तैयारी की और इसके लिए एक साथ देश के 75 बड़े कांग्रेसी नेताओं को बुलाया. सभी बैठकें राज्य के आंबेडकर छात्रावास (दलित छात्रों के) और कर्पूरी छात्रावास (अति पिछड़ा छात्रों के) में आयोजित होनी थी. कई जगह प्रशासन ने इसकी इजाजत नहीं दी, फिर भी कांग्रेस ने 46 अलग-अलग हॉस्टलों में बैठकें कर लीं.
प्रशासन की रोक के बावजूद उस रोज राहुल गांधी दरभंगा के आंबेडकर छात्रावास पहुंच गए. उन्होंने वहां मौजूद छात्रों से कहा कि उनकी पार्टी अब उन 90 फीसद लोगों की लड़ाई लड़ेगी, जिन्हें समाज ने हाशिए पर रख छोड़ा है. उन्होंने निजी शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण की बात की और साथ ही एससी-एसटी सब प्लान के मुद्दे को भी मजबूती से उठाया.
बिहार में कांग्रेस का तीसरा कैंपेन शक्ति अभियान महिलाओं के लिए है. इसकी चर्चा कम हुई है और इसका एक ही बड़ा कार्यक्रम गया में महिला संवाद के नाम से हुआ है. मगर एक बड़ी टीम बिहार के अलग-अलग विधानसभा क्षेत्रों में महिलाओं के बीच निरंतर संवाद कर रही है, जिसमें भाग्य भारती जैसी युवतियां अपनी भूमिका निभा रही हैं.
इसी कार्यक्रम के जरिए माई बहिन मान योजना जैसी स्कीम सामने आई. सरकार बनने पर इसके तहत हर महिला को हर महीने 2,500 रुपए की आर्थिक सहायता देने की घोषणा की गई. पार्टी के वरिष्ठ प्रवक्ता आनंद माधव कहते हैं, ''इस अभियान से हमारी पहुंच हर विधानसभा क्षेत्र में 50,000 महिलाओं तक हो गई है. कांग्रेस की पांच गारंटी के पोस्टर करोड़ों घरों में पहुंच गए हैं.’’
तीन अभियान-पांच गारंटी
इस गारंटी वाले पोस्टर में माई बहिन मान योजना के अलावा भूमिहीनों को 5 डिसमिल जमीन, 200 यूनिट बिजली मुफ्त, 25 लाख रुपए का मुफ्त स्वास्थ्य बीमा और वृद्ध एवं दिव्यांग पेंशन को 1,500 रुपए प्रति माह करने का वादा किया गया है.
ज्ञान कहते हैं, ''इन वादों की देखा-देखी सरकार ने मिलती-जुलती योजना लागू कर दी. मगर हमारा सबसे जरूरी काम यह रहा कि हमने राहुल गांधी के नेतृत्व में हर व्यक्ति के मताधिकार की लड़ाई लड़ी, जिससे बड़ी संख्या में एक साथ लाखों लोग हमसे जुड़े.’’
वोटर अधिकार यात्रा की बदौलत महागठबंधन के सभी दलों के बीच समन्वय बेहतर हो गया. कन्हैया कुमार के मुताबिक, ऐसा इसलिए हुआ कि सभी दलों के प्रमुख नेता लगातार साथ रहे. वे कहते हैं, ''सबसे बड़ी बात यह है कि कांग्रेस किसी बात को लेकर रिजिड नहीं है. लड़ाई महत्वपूर्ण है. बाकी पार्टियों ने भी राहुल गांधी के नेतृत्व को स्वीकार किया है.’’
क्या सब खैरियत है?
मगर कांग्रेस का असर बढ़ने के साथ ही कई बातें शुरू हुईं. कहा जाने लगा कि यह सारी कवायद ज्यादा से ज्यादा सीट पाने के लिए है. यह भी कहा गया कि गठबंधन ऊपर से भले एकजुट लग रहा हो मगर तेजस्वी असुरक्षाबोध से घिरे हैं. सीटों के सवाल पर अध्यक्ष राजेश राम कहते हैं, ''इसे लेकर कोई विवाद नहीं, असल मकसद एनडीए को हराना है.’’ (देखें बॉक्स: ''बिहार में हिट हो रही राम और कृष्ण की जोड़ी’’) ज्ञान रंजन बताते हैं, ''पार्टी ने इस बार सर्वे कराया है, जिसमें 113 सीटों पर हम मजबूत हैं.
43 सीटों पर तो हम नंबर वन हैं. कांग्रेस चाहती है कि इन्हीं 113 में से हमें सीटें मिलें. संक्चया कोई मसला नहीं.’’ अलावरू भी इसमें जोड़ते हैं, ''मजबूत सीटें और कमजोर सीटें बराबरी से बंटें, ऐसा न हो कि किसी को सारी मजबूत सीटें मिल जाएं, किसी के हिस्से में कमजोर सीटें आ जाए.’’ राजद खेमा भी ताल ठोंक रहा है. वह पार्टी 15 सितंबर से अलग यात्रा शुरू करने जा रही है, जिसमें सारा फोकस तेजस्वी पर रहेगा.
इधर वोटर अधिकार यात्रा के बाद कांग्रेस नेता इस बात को लेकर फिक्रमंद हैं कि इस यात्रा की वजह से बने माहौल को वह चुनाव तक कैसे बरकरार रखे? उसकी एक वजह यह है कि अभी तक बिहार कांग्रेस का ज्यादातर काम केंद्रीय और दूसरे राज्यों से आए नेताओं और पेशेवरों पर निर्भर है. बिहार की इकाई अभी भी इस जिम्मेदारी को संभाल पाने में सक्षम नहीं दिखती.
एक बड़े नेता नाम न उजागर करने की शर्त पर कहते हैं, ''अभी सब कुछ टीम राहुल तय कर रही है, हम बस उसे लागू कर रहे हैं. 2015 में पूरी जिम्मेदारी स्थानीय इकाई पर छोड़ दी गई थी और तब हमने बेहतरीन रिजल्ट लाकर दिखाया.’’ एक खतरा यह भी है कि यह सारी एकता तभी तक है, जब तक टिकट नहीं बंटे हैं. टिकट बंट जाने के बाद भी नेता और कार्यकर्ता इसी तरह एकजुट रहेंगे, कहना मुश्किल है.
भाग्य भारती कहती हैं, ''कांग्रेस के कई बड़े नेता अभी भी पार्टी का झंडा उठाने में संकोच करते हैं. वे चाहते हैं कि कार्यकर्ता उनके पीछे झंडा लेकर चलें. यह मानसिकता नहीं बदली तो दिक्कत हो सकती है.’’ वैसे, प्रदेश में कांग्रेस तीन दशक से ज्यादा समय से सत्ता से बाहर है. हर चुनाव के बाद कमोबेश उसकी हालत बिगड़ती रही है. नेताओं और कार्यकर्ताओं को यह जोश चुनाव और उसके बाद भी बनाकर रखना होगा.
● पिछले सात-आठ महीनों में बिहार में कांग्रेस बदली-बदली नजर आ रही है...
हम लोग जनहित के मुद्दों को लेकर काम कर रहे हैं. बेरोजगारी का मुद्दा है, पलायन का मुद्दा है. सरकार इन मुद्दों पर बात नहीं कर रही. हमारी योजनाएं जनहित से जुड़ी हैं, चाहे माई बहिन मान योजना हो या फिर हर घर झंडा कार्यक्रम. इससे गांवों में लोग समझने लगे कि कांग्रेस खड़ी हो रही है. फिर 'जय भीम, जय बापू, जय संविधान’ कार्यक्रम चला, उससे लोगों से हमारा जुड़ाव बढ़ा. हालांकि प्रदेश कांग्रेस कमेटी नहीं बनी है मगर संगठन उठ खड़ा हुआ है.
● पार्टी में बहुजन समाज की भागीदारी और युवा चेहरे दिख रहे हैं.
राहुल गांधी का कहना है कि अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति को वे सत्ता में भागीदारी देना चाहते हैं. उनमें वे सवर्ण समाज के लोगों को भी समाहित करना चाहते हैं, जिन्हें अभी तक किसी योजना का लाभ नहीं मिला. सामाजिक न्याय का ही परिणाम था कि चमार जाति से आने वाले राजेश राम को बिहार कांग्रेस की कमान मिली.
एससी, एसटी, ओबीसी और सवर्ण वर्ग में पिछड़ों को साथ लेकर हम आगे बढ़ रहे हैं. राहुल गांधी का नारा कि जिसकी जितनी हिस्सेदारी, उसकी उतनी भागीदारी और मेरे जैसे व्यक्ति को कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी पर बिठाने से यह मैसेज गया कि कांग्रेस सामाजिक न्याय को लेकर गंभीर है.
● राहुल गांधी बिहार को काफी समय दे रहे हैं. इसका लाभ मिला?
हां, वे जब गांव के इलाके में जाते हैं तो लोग कहते हैं कि राहुल गांधी उनके यहां तक आए. उसका फायदा यह हुआ कि लोग अब राहुल गांधी जिंदाबाद और 'वोट चोर, गद्दी छोड़’ का नारा उनके सामने लगाते हैं. आज युवा उनके दीवाने हैं. लोग गर्मी-बरसात में घंटों उनका इंतजार करते हैं.
● कहा जाता था कि बिहार में कांग्रेस पिछलग्गू पार्टी है.
कभी यह कहा जाता था कि कांग्रेस जमीन पर मजबूत नहीं दिखती, आज मजबूत है और वोट परसेंट भी बढ़ा है. कांग्रेस मजबूत हुई है तो इंडिया गठबंधन भी मजबूत हुआ है. हम एक दूसरे के पार्टनर हैं.
● कृष्णा अलावरू से क्या लाभ हुआ?
कृष्णा जी अच्छे प्लानर हैं. देखिएगा, राम और कृष्ण की जोड़ी हिट रहने वाली है.
● अब कांग्रेस आपके कंट्रोल में है?
सब अंडर कंट्रोल है. सभी कांग्रेसियों का हर तबका मदद कर रहा है. अभी आपको कहीं गुटबाजी नहीं दिखेगी.
● कहा जा रहा है कि यह सारी कवायद सीट बंटवारे को लेकर है...
सीट कोई कम ले, बेसी ले, इससे फर्क नहीं पड़ता. अभी की अक्षम सरकार को हटाना हमारी प्राथमिकता है, बेरोजगारी को हटाना है. आज भी हम लोग सीट शेयरिंग पर आगे बढ़े हैं.
2025 में बिहार कांग्रेस में क्या-क्या बदला
● राजद की पिछलग्गू होने की छवि से मुक्ति
● संगठन को जातीय जकड़न से मुक्ति
● पार्टी में दलित बहुजन चेहरों को नेतृत्व
● युवाओं और महिलाओं का महत्व बढ़ा, कार्यकर्ता रिचार्ज हुए
● गठबंधन में कांग्रेस अगुआ और दलों के बीच बेहतर समन्वय
● अब कांग्रेस कमजोर कड़ी नहीं
● मारक मीडिया-सोशल मीडिया
कमजोरियां
● अभी भी स्थानीय नेतृत्व पूरी तरह प्रभावी नहीं, बाहरी नेता ही संभाल रहे
● संगठन अभी भी जमीन तक मजबूत नहीं, पीसीसी का गठन नहीं हो पाया है