राजस्थान: क्या अपनी छवि बदलने में लगे हैं CM भजन लाल शर्मा?

राजनीतिक और प्रशासनिक मोर्चों पर कई जगह लड़खड़ाने के बाद राजस्थान के मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा अपनी एक मजबूत छवि गढ़ने की कोशिश में जुटे हुए हैं

राजस्थान के मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा

मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा ने 1 सितंबर से शुरू हुए विधानसभा के मॉनसून सत्र के दौरान जब सदन में प्रवेश किया होगा उस वक्त वे बेशक एक उलझन और ऊहापोह में रहे होंगे. पिछले तीन सत्रों में उनकी सरकार को अपने नैरेटिव पर टिके रहने के लिए खासी जद्दोजहद करनी पड़ी.

उनके मंत्री खासे आक्रामक तेवर अपनाए कांग्रेस के सामने लड़खड़ा गए. यहां तक कि वरिष्ठ भाजपा विधायकों ने भी कई बार खुद पर हमले का मौका मुहैया किया. ऐसे में भजनलाल के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह साबित करना है कि उनकी हनक में कोई कमी नहीं आई है. इसके लिए उन्हें राजनैतिक और प्रशासनिक मोर्चों पर कड़ाई से निबटना होगा.

इसके लिए पहली रणनीति—कैबिनेट फेरबदल की अटकलों को बनाए रखना—उनकी बेचैनी को भी उजागर करती है. यह हमेशा से किसी मुख्यमंत्री के लिए एक हथियार की तरह रहा है. कई नए चेहरे अपनी छाप छोड़ने में नाकाम रहे हैं. कई अनुभवी नेताओं को पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के करीबी होने के नाते बाहर रखना असंतोष को बढ़ा रहा है.

प्रशासनिक स्तर पर अलग तरह की चुनौतियां हैं, खासकर निर्णय लेने की प्रक्रिया धीमी होने की धारणा से उबरना. राजस्थान हाइकोर्ट ने हाल में कई आदेश जारी किए जिनसे सरकार की छवि खराब हुई. 7 अगस्त को उस समय शर्मिंदगी की स्थिति पैदा हो गई जब अदालत ने सभी विभागों को 30 दिन के भीतर नागरिकों की शिकायतों का संज्ञान लेने का निर्देश दिया. तीन दिन बाद उसने चार जिलों के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को जांच की निगरानी के लिए थानों में रोज एक घंटा बिताने को कहा.

यह स्थिति मुख्यमंत्री की दैनिक समीक्षा बैठकों और पिछले 20 महीनों में मुख्य सचिव सुधांश पंत के दो दर्जन से ज्यादा औचक निरीक्षणों के बावजूद दिख रही है. औचक निरीक्षणों के बारे में पंत का कहना है कि इनसे सुस्त प्रशासन चपल-चौकन्ना हुआ है. पर अंदरूनी सूत्रों की मानें तो प्रशासनिक व्यवस्था में खेल जारी है—डिजिटल निगरानी प्रणाली में 'निबटा' हुआ दिखाने के लिए फाइलों को अक्सर देर रात तक इधर-उधर किया जाता है. सचाई यह है कि वे वहीं की वहीं घूम रही होती हैं.

पटरी से उतरती व्यवस्था
बात कागजी सुस्ती तक ही सीमित नहीं. प्रमुख निवेश प्रस्तावों को तेजी से निबटाने के लिए बनी राज्य अधिकार प्राप्त समिति ने बमुश्किल ही कोई बैठक की है. चित्तौड़गढ में खनन/पर्यावरण मंजूरियां, जन स्वास्थ्य में निविदाओं के अनुमोदन आदि पर अंतर-विभागीय विवाद अभी तक अनसुलझे ही पड़े हैं. मुख्यमंत्री कार्यालय की खबर रखने वाले एक पूर्व नौकरशाह का कहना है कि मूल कारण संरचनात्मक है: भजनलाल सहज सुलभ हैं और जहां से ले सकते हैं फीडबैक लेते हैं. पर अभी तक अपने इर्द-गिर्द एक विश्वसनीय कोर टीम नहीं बना पाए हैं जबकि ज्यादातर मुख्यमंत्री सुचारु ढंग से काम चलाने और लोगों में नाराजगी न पनपने देने के लिए अपनी खास टीम पर निर्भर रहते हैं.

हाल के हफ्तों में विभिन्न जिलों में स्कूल भवन ढहने की घटनाओं में नौ छात्रों की मौत के बाद इस कमी को और भी शिद्दत से महसूस किया गया. इन घटनाओं ने घोर कुप्रबंधन को ही उजागर किया. न तो मरम्मत के लिए पर्याप्त धनराशि आवंटित की गई, न उपलब्ध धनराशि का उचित इस्तेमाल किया गया. शिक्षा मंत्री मदन दिलावर बुनियादी सुरक्षा से ज्यादा शिक्षकों के लिए ड्रेस कोड तय करने और भाजपा के वैचारिक एजेंडे के अनुरूप स्कूली पाठ्यक्रम को नया रूप देने में ही व्यस्त रहे.

जनाक्रोश से आहत शर्मा ने खुद कमान संभाली और असुरक्षित इमारतों को खाली करने तथा हजारों अन्य की मरम्मत करने का आदेश जारी किया. स्थिति उस समय और भी ज्यादा असहज हो गई जब भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने 13 अगस्त को सीकर में स्कूल निर्माण संबंधी बिलों को मंजूरी देने के लिए एक लेखा अधिकारी और एक बिचौलिए को एक लाख रुपए की रिश्वत लेते रंगे हाथों पकड़ा. अगले दिन सहकारिता विभाग के एक निरीक्षक को एक हाउसिंग सोसाइटी में जमीन विवाद निबटाने के लिए 2.75 लाख रुपए लेते गिरफ्तार किया गया.

मुख्यमंत्री शर्मा दावा करते हैं कि ''भ्रष्टाचारी पकड़े जा रहे हैं.'' उन्होंने पिछले साल राइजिंग राजस्थान शिखर सम्मेलन के दौरान हस्ताक्षरित एमओयू को आगे बढ़ाने और भूमि आवंटन में तेजी लाने का आदेश दिया है. जरूरत पड़ने पर वैकल्पिक जमीन की भी पेशकश की है. पर सबसे पहले जरूरी है कि वे आसपास की सियासी जमीन को जल्द से जल्द मजबूत करें.

खास बातें
> परेशान करने वाली कुछ घटनाओं के बाद सीएम शर्मा अब अपनी इमेज सुधारने की कोशिश में जुटे.

> सियासी असंतोष पर काबू पाने के लिए मंत्रिमंडल विस्तार के झुनझुने का इस्तेमाल कर रहे.

> हाइकोर्ट में प्रशासनिक और पुलिस अफसरों की फजीहत के बाद शासकीय सुस्ती के आरोपों से निबटने में जुटे.

> स्कूल इमारतें गिरने के हादसों में नौ छात्रों की मौत के बाद बढ़ा जनाक्रोश.

> दो गिरफ्तारियों ने भ्रष्टाचार के इर्द-गिर्द चर्चाओं को बनाए रखा.

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