मध्य प्रदेश: तीर्थयात्रियों के कारण क्यों खतरे में है मशहूर टाइगर रिजर्व?

मध्य प्रदेश के टाइगर रिजर्व में तीर्थयात्रियों की भीड़ ने पारिस्थितिकी तंत्र के लिए खतरा खड़ा कर दिया है

बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के कोर जोन में कबीरपंथी तीर्थयात्री

प्राचीन भारतीय महाकाव्यों में देवी-देवता जंगलों में नियमित आते-जाते थे लेकिन आज के वक्त में उस तरह के किस्से की पुनरावृत्ति होगी, इसकी आपने उम्मीद न की होगी. मध्य प्रदेश के मशहूर टाइगर रिजर्व में आज साधु-संत-बैरागी कदमताल कर रहे हैं.

इस घटना ने टाइगर रिजर्व को नए टकराव के स्थलों में बदल दिया है. यह टकराव है आस्था और संरक्षण के बीच. लेकिन यह जिस पैमाने पर हो रहा है, वह नई बात है.

राज्य के नौ टाइगर रिजर्व में से ज्यादातर के भीतर जंगलों में कुछ प्राचीन पवित्र स्थल हैं, जो धार्मिक या सामुदायिक श्रद्धा के केंद्र हैं. और इन केंद्रों पर आने वाले तीर्थयात्रियों की संख्या में हर साल खतरनाक बढ़ोतरी दर्ज की जा रही है. यह इस हद तक हो रहा है कि राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) को राज्य सरकार से टाइगर रिजर्व में सार्वजनिक आवाजाही के लिए नीति बनाने के लिए कहना पड़ा.

बांधवगढ़ और सतपुड़ा दो ऐसे टाइगर रिजर्व हैं जहां तीर्थयात्रियों की भीड़ इतनी ज्यादा है कि वह किसी न किसी रूप में हस्तक्षेप की मांग करती है. टाइगर रिजर्व के मूल इलाके में स्थित बांधवगढ़ के किले में एक गुफा है जो कबीरपंथियों की आस्था का केंद्र है. पारंपरिक रूप से वे साल में एक बार पूजा-प्रार्थना के लिए गुफा में आते हैं. इस खास दिन के लिए पार्क के अधिकारी उन्हें ताल गेट से पवित्र स्थल तक पैदल जाने की इजाजत देते हैं. यह रास्ता बाघों के मुख्य क्षेत्र से होकर गुजरता है और चक्रधर चरागाह से आड़े-तिरछे गुजरकर जाना होता है. अलबत्ता इन सालों के दौरान तीर्थयात्रियों की संख्या तेजी से बढ़ी है. दिसंबर, 2024 में 14,000 तीर्थयात्री यहां दर्शन करने के लिए आए.

जंगल में साधु-संत
मोटे तौर पर अनुसूचित जाति के तौर पर दर्ज कबीरपंथी संप्रदाय मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की सीमा पर बड़ी तादाद में बसा है. इसके आस-पास पड़ने वाली विधानसभा सीटों पर वे प्रमुख चुनावी धड़े हैं. उनके प्रवेश को नियम-कायदों के दायरे में लाने की पिछली कोशिशों के चलते पार्क के अफसरों और तीर्थयात्रियों के बीच टकराव की नौबतें आईं. एक दिन के इस दर्शन के अलावा यह धड़ा संप्रदाय के प्रमुख का प्रवचन सुनने के लिए पार्क के प्रवेश द्वार ताल पर रुकता भी है. कबीरपंथियों के अलावा यह किला तीर्थयात्रियों के लिए जन्माष्टमी पर भी खुलता है, जब करीब 2,000 श्रद्धालु पूजा के लिए मंदिर तक पैदल चलकर जाते हैं.

वन्यजीव कार्यकर्ता अजय दुबे ने दिसंबर, 2024 में एनजीटी में याचिका दाखिल की. एनजीटी ने 8 अगस्त को राज्य के वन विभाग से कहा कि वह तीर्थयात्रियों के लिए मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) तैयार करे. एक समिति बनाई गई, जिसने तीर्थयात्रियों की अधिकतम संख्या 5,000 तय कर दी लेकिन किले तक वाहनों से जाने की सिफारिश भी की, जो पर्यावरण के लिहाज से और भी खतरनाक है. दुबे कहते हैं, ''कुल 5,000 तीर्थयात्रियों का मतलब है 800-900 वाहन! इससे तो वन्यजीवों को पैदल तीर्थयात्रियों के मुकाबले कहीं ज्यादा परेशानी होगी.''

जंगल में छूटा कचरा
सतपुड़ा में परेशानी और भी बड़ी है. हर साल अगस्त में नागपंचमी पर होने वाले नागद्वारी मेले में इस साल छह लाख श्रद्धालु आए. तीर्थयात्री पुराने स्थल काजरी गांव (अब स्थानांतरित) तक पैदल जाते हैं और एक हफ्ता रुकते हैं. वहां रुकने और साफ-सफाई का कोई इंतजाम नहीं है. प्रत्यक्षदर्शी बताते हैं कि तीर्थयात्रियों के छोड़े प्लास्टिक, खाने-पीने के अवशेष, मल और दूसरा कचरा बारिश में वहीं पड़ा रह जाता है. इसी तरह शिवरात्रि पर लाखों तीर्थयात्री पचमढ़ी के बायोस्फीयर रिजर्व में आते हैं. रातापानी टाइगर रिजर्व के नजदीक झिरी गांव में भी तीर्थयात्रियों की संख्या बढ़ती जा रही है.

पेंच और कान्हा में भी मुख्य इलाके के भीतर तीर्थयात्राएं हुआ करती थीं. 2000 के दशक के शुरुआती सालों में पेंच के प्रबंधन ने श्रद्धालुओं को प्रार्थनाएं बाहर करने के लिए मना लिया. कान्हा में होने वाला वार्षिक मेला 1990 के दशक में एक बाघ के एक श्रद्धालु की हत्या कर देने के बाद बंद कर दिया गया.

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 राष्ट्रीय उद्यानों की अधिसूचना के पहले से चली आ रही धार्मिक प्रथाओं की इजाजत देता है. फर्क बस इतना है कि पहले ये यात्राएं इक्का-दुक्का हुआ करती थीं. अब जलवायु के साथ जनसांख्यिकी भी बदल गई है.

मगर हमें अपनी पुरानी राह पर लौटाने के लिए वन्यजीवों के पास किसी तरह का वोट देने का अधिकार तो है नहीं.

खास बातें
> मध्य प्रदेश के नौ टाइगर रिजर्व में से ज्यादातर के भीतर प्राचीन तीर्थ स्थल स्थित हैं.

> सतपुड़ा के नाग मेले में अगस्त महीने में छह लाख श्रद्धालु पहुंचे, जिन्होंने रिजर्व में जगह-जगह कूड़ा फैला दिया.

> बांधवगढ़ के भीतर स्थित कबीरपंथी संप्रदाय के तीर्थस्थल पर पिछले साल 14,000 श्रद्धालु पहुंचे.

> बढ़ती भीड़ को देखते हुए एनजीटी ने राज्य सरकार से इन्सानी आवाजाही को नियंत्रित करने के निर्देश दिए हैं.

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