बिहार चुनाव: युवा मतदाताओं को लुभाने में BJP का भरोसा सिर्फ PM मोदी पर क्यों?

बिहार एक बड़े पीढ़ीगत बदलाव के दौर से गुजर रहा है. सभी पार्टियों के पास युवा चेहरे हैं, लेकिन BJP के पास युवाओं और महिलाओं को साधने के लिए PM मोदी ही सबसे बड़ा नाम है

22 अगस्त को PM मोदी के साथ नीतीश कुमार और सम्राट चौधरी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी चुप्पी तोड़ने के लिए 2 सितंबर को बिहार के एक स्वयं सहायता सहकारी समूह के वर्चुअल उद्घाटन के मौके को चुना. उन्होंने बेहद आहत स्वर में कहा, ''मेरी मां का राजनीति से कोई लेना-देना भी नहीं था.'' उन्होंने 27 अगस्त को अपनी दिवंगत मां को गाली देने वाले दरभंगा के एक नाबालिग के वायरल वीडियो का हवाला देते हुए अपने निजी दुख को एक राष्ट्रीय पीड़ा में बदलने की कोशिश की. उन्होंने इसे 'भारत की हर मां, बहन और बेटी' का अपमान करार दिया.

बिहार की महिलाएं सशक्त और सक्रिय मतदाता हैं. 2024 के लोकसभा चुनावों में 59.45 फीसद मतदान के साथ उनकी भागीदारी पुरुषों (53 फीसद) की तुलना में कहीं ज्यादा रही. पिछले एक दशक में मोदी-नीतीश कुमार की जोड़ी ने सामाजिक क्षेत्र की योजनाओं के इर्द-गिर्द बुनी छवि के जरिए महिला मतदाताओं के बीच मजबूत अपील स्थापित कर ली है. इसे राजद के 'जंगल राज' के उलट तस्वीर के तौर पर पेश किया जाता है.

लेकिन इसके साथ एक गहरा बदलाव भी जारी है—ऐतिहासिक पीढ़ीगत बदलाव. इस विशाल जनसांख्यिकीय समूह का जेपी आंदोलन, मंडल आंदोलन, 1990 के दशक के वैचारिक संघर्षों से कोई वास्ता नहीं रहा है. इसका सियासी जुड़ाव पुराने नारों के दम पर नहीं टिका, बल्कि यह रोजगार, गतिशीलता, प्रवासन और आकांक्षाओं के आधार पर वोट देने वाली पीढ़ी है.

इसके साथ ही, '70 के दशक में उभरे जिन चेहरों के बिना कभी राज्य की राजनीति की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी, वे अब या तो इस दुनिया में नहीं हैं या फिर अपनी चमक खोते जा रहे हैं. सुशील कुमार मोदी, रामविलास पासवान, शरद यादव अब जीवित नहीं हैं. उस दौर के आखिरी दो दिग्गज लालू यादव और नीतीश कुमार करियर के अंतिम पड़ाव पर हैं. उसी समय उभरे रविशंकर प्रसाद और अश्विनी चौबे जैसे वरिष्ठ नेता भी हाशिए पर हैं. प्रतिद्वंद्वी दलों ने बदलाव में तेजी दिखाई है. राजनैतिक उत्तराधिकारियों की पूरी कतार मौजूद है—राजद के तेजस्वी यादव (35), लोजपा के चिराग पासवान (44), हम सुप्रीमो जीतन राम मांझी के बेटे संतोष सुमन (50). वहीं, नए नेता प्रशांत किशोर (45) भी अपनी पैठ बना रहे हैं.

कोई युवा नेता नहीं
इस तरह के सियासी परिदृश्य के बीच भाजपा जाति, हिंदुत्व और केंद्र की ताकत के बलबूते खुद को मजबूत स्थिति में तो खड़ा पाती है लेकिन बिहार में अगली पीढ़ी का कोई स्पष्ट चेहरा नजर नहीं आता. वह युवा नेताओं—नितिन नवीन, ऋतुराज सिन्हा, गुरु प्रकाश पासवान—को आगे बढ़ा रही है. लेकिन किसी को राज्यव्यापी राजनीति का चेहरा नहीं बनाया गया. फिलहाल चिराग पासवान के अलावा भाजपा अगर किसी फैक्टर पर आंख मूंदकर भरोसा कर सकती है तो वह सिर्फ मोदी हैं.

प्रधानमंत्री 2025 में अब तक छह बार बिहार का दौरा कर चुके हैं. सातवां दौरा पटना मेट्रो कॉरिडोर के उद्घाटन के लिए सितंबर में प्रस्तावित है. फीता काटने का हर कार्यक्रम, हर शिलान्यास, हर भावनात्मक भाषण उनके गिर्द ही घूमता है. भावनात्मक मुद्दा उठाना बेमानी नहीं क्योंकि बिहार में पहली बार वोट देने वालों में आधे से ज्यादा महिलाएं ही होंगी.

खास बातें
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बिहार की 57 फीसद आबादी 35 साल से कम उम्र की है जो कि एक बड़ा बदलाव है.

> महिला मतदाताओं से मोदी की अपील असरदार साबित हुई है बशर्ते वे बड़ी संख्या में वोट डालने निकली हों.

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