ओडिशा : कांग्रेस सत्ताधारी BJP के बजाय बीजू जनता दल को क्यों ललकार रही है?
BJP का विरोध करने के मसले पर राज्य में बीजू जनता दल तकरीबन वजूद की कशमकश से घिरा है

ओडिशा पर करीब दो दशक राज कर चुका बीजू जनता दल (बीजद) गहरी सांसत में पड़ गया है. उसके सिर पर दो ऐसे विकल्प मंडरा रहे हैं जिन पर उसका वजूद टिका है.
एक यह कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की अगुआई वाली राज्य सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाए या उसका समर्थन करे या नहीं; और दूसरा उपराष्ट्रपति के आने वाले चुनाव में किसका समर्थन करे.
दोनों फैसलों से बीजद की राजनैतिक नियति की झलक मिल सकती है. कांग्रेस और भाजपा के साथ समान दूरी रखने का उसका पुराना रुख अतीत में रणनीतिक तौर पर अहम और सोचा-समझा रहा. क्या अब भी उसी राह पर चलना अक्लमंदी होगी? या यह गहरी नादानी होगी, जिससे वह अवसरवाद के आरोप को न्यौता देगा या इससे भी बदतर अप्रासंगिक होकर रह जाएगा?
तात्कालिक दबाव नए राज्य अध्यक्ष भक्त चरण दास की अगुआई में कांग्रेस ने पैदा कर दिया है, जिसने महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराधों को लेकर बीजद और भाजपा दोनों को आक्रामक ढंग से आड़े हाथों लिया है. बालेश्वर में एक छात्रा के खौफनाक आत्मदाह और लिंग-आधारित हिंसा की दूसरी चर्चित घटनाओं के बाद दास ने बीजद से विधानसभा के आगामी सत्र में मोहन माझी की अगुआई वाली भाजपा सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने का आग्रह किया है.
147 सदस्यों की विधानसभा में कांग्रेस के महज 14 विधायक हैं, इसलिए वह 51 सदस्यों वाले बीजद को इस मामले में अगुआई करने के लिए ललकार रही है और कह रही है कि वह प्रस्ताव को पूरा समर्थन देगी. सुप्रीम कोर्ट की तरफ से की गई घटना की आलोचना की दुहाई देते हुए दास इसे बेहद जरूरी नैतिक मामले की तरह पेश कर रहे हैं.
हैं किसकी तरफ आप?
दास की 'पेशकश' ने बीजद के लिए रणनीतिक कशमकश पैदा कर दी. अगर वह अविश्वास प्रस्ताव लाता है, तो कांग्रेस की सहयोगी पार्टी के तौर पर पेश किए जाने का जोखिम उठाएगा. यह वही पार्टी है जिसे उसने ओडिशा में सत्ता से बेदखल करते हुए ऐतिहासिक रूप से उसका विरोध किया है. प्रतिरोध किया तो यह धारणा और मजबूत हो सकती है कि बीजद भाजपा के 'दोस्ताना विपक्ष' की तरह काम करता है. यह आरोप बीजद पर अक्सर लगाया जाता रहा है क्योंकि वह केंद्र सरकार के प्रमुख विधेयकों का चुनिंदा समर्थन करता रहा है, जिनमें बिल्कुल हाल का विवादास्पद वक्फ विधेयक भी शामिल है.
देबी प्रसाद मिश्र और अरुण साहू सरीखे बीजद के बड़े नेताओं ने इस मसले पर एहतियात के साथ अस्पष्ट और टालमटोल का रुख अपना रखा है. मिश्र कहते हैं, ''अभी तक कोई आधिकारिक सूचना जारी नहीं की गई है.'' वे यह भी कहते हैं कि विधानसभा के सत्र की औपचारिक घोषणा होने पर अंतिम निर्णय विधायी दल लेगा. साहू भाजपा पर सत्र बुलाने के मामले में ही आनाकानी का आरोप लगाते हैं और कहते हैं कि ''जनता की नकारात्मक राय ही असली अविश्वास प्रस्ताव है.''
भाजपा ने गीदड़भभकी और उकसावे के साथ मिला-जुला जवाब दिया. राज्य प्रमुख मनमोहन सामल और मंत्री सुरेश पुजारी का कहना है कि सरकार अविश्वास प्रस्ताव से डरती नहीं. पुजारी ने तो विपक्ष को 'इसे लाने' की चुनौती तक दे डाली. राज्य की उपमुख्यमंत्री प्रवती परीदा ने भी जोर देकर बताया कि किस तरह मामले तुरत-फुरत दर्ज करके जांच की गई और दावा किया कि बीजद के शासन में ऐसा नहीं होता था.
बहस कितनी भी जानदार हो, आंकड़े विपक्ष की कपोलकल्पित उड़ान को धराशायी कर देंगे. सत्तारूढ़ गठबंधन के पास 81 सीटों का अच्छा-खासा बहुमत है, जिनमें भाजपा के 78 और तीन निर्दलीय विधायक हैं. बीजद और कांग्रेस के मिलाकर भी कुल 65 विधायक होते हैं, जो जरूरी तादाद से काफी कम हैं. इसलिए इस कदम से कोई ठोस फायदा होना नहीं है. जो हासिल किया जा सकता है वह महज प्रतीकात्मक है, तो जो गंवाया जा सकता है, वह भी प्रतीकात्मक ही है.
आगामी उपराष्ट्रपति चुनाव में भी पार्टी उसी कशमकश भरी जमीन पर चल रही है जहां वह वक्फ विधेयक पर मतदान के वक्त थी, जब कोई व्हिप जारी नहीं किया गया और 'अंत:करण की आवाज पर वोट देने' की इजाजत दे दी गई. यह कदम आंतरिक खींचतान और बाहरी आलोचना का सबब बना, जिससे बीजद की क्षेत्रीय स्वायत्तता की पहले से कमजोर पड़ चुकी छवि और पेचीदा हो गई. बीजद के पक्ष में उकसावा यह है कि दास के मातहत कांग्रेस फिर उठ खड़ी हुई है और राज्य भर में बंद और विधानसभा में मुखर गतिविधियों के जरिए अपने को 'असल विपक्ष' के तौर पर पेश कर रही है. ऐसे हालात में रणनीतिक काहिली भला कितनी देर टिक सकती है?
खास बातें
> ओडिशा कांग्रेस ने बीजद को अविश्वास प्रस्ताव लाने की चुनौती दे डाली है
> सहमत होने का मतलब है, पुरानी प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के साथ खड़े होना. पीछे हटने का अर्थ है, भाजपा समर्थक का ठप्पा.
> रणनीतिक रूप से अस्पष्ट रुख अब तक उपयोगी रहा लेकिन इस बार बीजद को एक पक्ष चुनना होगा.