उत्तर प्रदेश: सपा मुख्यालय का उद्घाटन होती ही आजमगढ़ क्यों बन गया पूर्वांचल का सियासी रणक्षेत्र?

समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने आजमगढ़ में पार्टी के कैंप कार्यालय का फीता काटा, जिसके बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी यहां बीते 20 दिन में दो बार आ चुके हैं. इसके बाद से ही इस शहर में सियासी सरगर्मी तेज हो गई है.

Special report: Azamgarh
आजमगढ़ में 'पीडीए भवन’ के उद्घाटन के मौके पर सपा प्रमुख अखिलेश यादव .

यूपी में तमसा नदी के किनारे स्थित आजमगढ़ में पूर्वांचल एक्सप्रेसवे के नजदीक अनवरगंज इलाके में नया बना एक परिसर इन दिनों खासी हलचल का केंद्र बना हुआ है.

80,000 वर्ग फुट से ज्यादा जमीन पर बना सफेद रंग का यह कैंपस समाजवादी पार्टी (सपा) कार्यकर्ताओं और नेताओं की जिज्ञासा का केंद्र है. यह न केवल आजमगढ़ में सपा का नया कार्यालय है बल्कि पूर्वांचल में पार्टी का मुख्यालय और अखिलेश यादव का निवास भी है.

सपा प्रमुख ने इसका उद्घाटन 3 जुलाई को काफी धूमधाम से किया. पार्टी नेतृत्व की रणनीति के अनुसार, 2027 का विधानसभा चुनाव आते-आते यह परिसर सपा के पूर्वांचल मुख्यालय का रूप ले लेगा. इससे पहले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ 20 जून को गोरखपुर लिंक एक्सप्रेसवे का लोकार्पण करने आजमगढ़ पहुंचे थे.

यहां के सालारपुर की रैली में योगी ने सपा सरकार के दौरान आजमगढ़ को आतंक का पर्याय बताया और अपनी सरकार में इसे ''आजन्म साहस का गढ़’’ की संज्ञा से नवाजा. 9 जुलाई को मुख्यमंत्री पौधरोपण अभियान की शुरुआत करने दोबारा आजमगढ़ आए. योगी का 20 दिन के भीतर दूसरी बार आजमगढ़ पहुंचना संकेत कर रहा था कि वे 2027 के विधानसभा चुनाव में सपा के गढ़ में सेंधमारी की कोशिश में लग गए हैं. इस तरह आजमगढ़ राजनीति के दो धुरंधरों की जंग के मैदान के रूप में तब्दील हो गया है.

पूर्वी यूपी में आजमगढ़ की भौगोलिक स्थिति इसे राजनैतिक महत्व दिलाती है. आजमगढ़ के प्रतिष्ठित शिब्ली नेशनल कॉलेज के पूर्व प्राचार्य ग्यास असद खां बताते हैं, ''आजमगढ़ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृह जिले गोरखपुर और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के ठीक बीच में है. यहां खास स्थिति की वजह से आजमगढ़ से निकला संदेश पूर्वी यूपी की सियासत पर असर डालता है. यही वजह है कि यह इलाका अखिलेश यादव और योगी आदित्यनाथ की सियासी जंग में तब्दील होता जा रहा है.’’

दरअसल, सपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद से ही अखिलेश यादव आजमगढ़ में एक बड़े पार्टी कार्यालय की जरूरत महसूस कर रहे थे. प्रदेश के पूर्वांचल बेल्ट में 27 जिले और 135 विधानसभा सीटें आती हैं. इसे लखनऊ से संभालना मुश्किल काम था. इलाके में सपा का कोई बड़ा शक्ति केंद्र न होने का असर विधानसभा चुनाव में स्पष्ट दिखा था.

बढ़त बनाने की जुगत मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ आजमगढ़ में पौधरोपण के मौके पर

2022 के विधानसभा चुनाव में सपा गठबंधन भाजपा गठबंधन से काफी पीछे रह गया था. हालांकि 2024 के लोकसभा चुनाव में सपा ने पलटवार किया और अब इसी बढ़त को आगे बरकरार रखने के लिए अखिलेश पूर्वी यूपी पर खास नजर रखना चाहते हैं. अनवरगंज स्थित नए सपा कार्यालय का परिसर आजमगढ़ जिला मुख्यालय से बमुश्किल तीन किमी और पूर्वांचल एक्सप्रेसवे से महज एक किमी दूर स्थित है.

सपा प्रमुख आजमगढ़ पार्टी कार्यालय से ही पूर्वांचल क्षेत्र की 135 विधानसभा सीटों पर पार्टी के 2027 के चुनाव अभियान की निगरानी कर सकेंगे. आजमगढ़ में सपा के जिला मीडिया प्रभारी विवेक सिंह के अनुसार, भवन के ग्राउंड फ्लोर पर आगंतुकों से मुलाकात के लिए विशेष कक्ष, निजी सचिव का कार्यालय, सुरक्षा कर्मचारियों के लिए अलग रूम, और आम लोगों से संवाद के लिए अलग-अलग व्यवस्था की गई है.

पहले तल पर अखिलेश के निजी निवास, बैठक और विश्राम के लिए विशेष कमरे बनाए गए हैं. इसके अलावा, यहां 2,000 लोगों की क्षमता वाले ऑडिटोरियम का निर्माण होगा. सपा के रणनीतिकारों को विश्वास है कि आजमगढ़ पर नए सिरे से ध्यान केंद्रित करने से पार्टी को पूर्वांचल की जनसांख्यिकी में अपनी पीडीए (पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक) रणनीति को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी. इसलिए अखिलेश ने आजमगढ़ में नए पार्टी कार्यालय का नाम 'पीडीए भवन’ रखा. पिछले लोकसभा चुनाव में पीडीए के समर्थन के बूते सपा ने 37 सीटें जीती थीं.

आजमगढ़ जिले में आजमगढ़ और लालगंज (सुरक्षित) लोकसभा सीटें और 10 विधानसभा सीटें हैं. इस जिले में दलित मतदाता 24 फीसद, यादव 22, मुसलमान 20, अपर कास्ट 18 और गैर यादव पिछड़ी जाति के मतदाता 16 फीसद हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद से आजमगढ़ में सपा का राजनैतिक सफर उतार-चढ़ाव वाला रहा है.

पिछले विधानसभा चुनाव में सपा ने इतिहास रचते हुए जहां पहली बार जिले की सभी 10 सीटों पर कब्जा जमाया तो वहीं विधान परिषद और लोकसभा उपचुनाव में सपा का किला दरक गया. पिछले लोकसभा चुनाव से पहले सपा प्रमुख ने आजमगढ़ के सभी जातीय समीकरण दुरुस्त किए.

2022 का लोकसभा उपचुनाव लड़ चुके शाह आलम उर्फ गुड‍्डू जमाली को साइकिल पर सवार करवाकर अखिलेश ने आजमगढ़ को एक मजबूत दुर्ग में तब्दील करने की कोशिश की जिसका असर लोकसभा चुनाव में सपा उम्मीदवार धर्मेंद्र यादव की जीत के रूप में सामने आया. अखिलेश ने जमाली और आजमगढ़ के वरिष्ठ नेता बलराम यादव को विधान परिषद भेजकर आजमगढ़ के जिताऊ यादव-मुस्लिम समीकरण को मजबूत किया है.

भाजपा ने भी जातिगत समीकरण दुरुस्त करने के लिए अपने प्रयास तेज किए हैं. पिछला विधानसभा चुनाव सपा के साथ मिलकर लड़ने वाली सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (एसबीएसपी) दोबारा राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में लौट आई और इसके प्रमुख ओम प्रकाश राजभर यूपी कैबिनेट में शामिल हैं. पूर्वी यूपी में 75 से ज्यादा विधानसभा सीटों पर राजभर मतदाता 15,000 या इससे ज्यादा संख्या में हैं.

राजभर समुदाय के आराध्य महाराजा सुहेलदेव के नाम पर आजमगढ़ में एक राज्य विश्वविद्यालय भी खुल चुका है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपने पिछले दौरों में आजमगढ़ को 20,000 करोड़ रुपए से ज्यादा की सौगात दे चुके हैं. आजमगढ़ की कला को नई पहचान देने के लिए हरिहरपुर में संगीत महाविद्यालय का उद्घाटन मुख्यमंत्री योगी के हाथों करवाने की तैयारियां शुरू हो गई हैं.

विपक्ष सवाल भी खड़े कर रहा है. अतरौलिया से विधायक संग्राम सिंह कहते हैं, ''योगी सरकार ने आजमगढ़ में सपा सरकार की योजनाओं के साथ भेदभाव किया है. जनता 2027 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को सबक सिखाने को तैयार बैठी है.’’

आजमगढ़ में भाजपा कई चुनौतियों से जूझ रही है. जिले के निवासी विजय बहादुर पाठक और राम सूरत राजभर को भाजपा ने विधान परिषद भेजा है. सहजानंद राय गोरखपुर क्षेत्र के क्षेत्रीय अध्यक्ष और पूर्व सांसद नीलम सोनकर प्रदेश उपाध्यक्ष हैं. बावजूद इसके यहां के कार्यकर्ता और नेता उत्साहहीन हैं. आपस में गुटबाजी है. लेकिन सपा के सामने केवल भाजपा ही है.

बहरहाल यह टकराव सिर्फ दो दलों या दो नेताओं का नहीं है, यह यूपी की राजनीति की दिशा तय करने वाला द्वंद्व है. 2027 भले अभी दूर हो, लेकिन पूर्वांचल की जमीनी सरगर्मियां बता रही हैं कि चुनावी बिसात बिछ चुकी है और उसकी पहली चाल आजमगढ़ से चली जा चुकी है.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का गृह जिला गोरखपुर आजमगढ़ के उत्तर में स्थित है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र वाराणसी दक्षिण में. अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण आजमगढ़ पूर्वी उत्तर प्रदेश की सियासत का केंद्रबिंदु बन गया है.
ग्यास असद खां, पूर्व प्रिंसिपल, शिब्ली नेशनल कॉलेज, आजमगढ़ठॅृ.

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