पंजाब: सिख समुदाय के दो तख्तों के बीच टकराव की क्या है असल वजह?

सिख सत्ता के दो तख्तों के बीच तीखे टकराव ने सिख समुदाय में विचारधारा और संस्थाओं की गहरी दरारों को उधेड़ दिया है

तख्त हरिमंदिर जी गुरुद्वारा, जिसे पटना साहिब के नाम से भी जानते हैं

उस धर्म में जहां पांच तख्त एकता के प्रतीक हैं, दो के बीच लड़ाई छिड़ गई. धार्मिक तोप का गोला 21 मई को पूरब यानी पांच श्रद्धेय तख्तों में से एक बिहार स्थित तख्त श्री पटना साहिब से दागा गया.

पंज प्यारे यानी पटना के 'पांच प्यारे' नेताओं ने अकाल तख्त के कार्यवाहक जत्थेदार और तख्त दमदमा साहिब के प्रमुख को तनखैया यानी धार्मिक दुराचरण का दोषी घोषित कर दिया.

टकराव की वजह क्या थी? सिख सत्ता के सर्वोच्च तख्त अमृतसर के अकाल तख्त का वह फैसला जिसमें उसने विवादास्पद पूर्व जत्थेदार ज्ञानी रंजीत सिंह गौहर को बहाल कर दिया, और वह भी पटना साहिब से सलाह-मशविरा किए बिना, जिसने उन्हें भ्रष्टाचार और दूसरे आरोपों के बीच 2022 में बर्खास्त किया था. अमृतसर ने प्रतिक्रिया में जरा देर नहीं लगाई.

अकाल तख्त के प्रबंधन पर नियंत्रण रखने वाली शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) ने जोरशोर से अपनी नामंजूरी जाहिर करते हुए पटना साहिब से आदेश वापस लेने की मांग की. पटना साहिब ने पीछे हटने से इनकार कर दिया. इसके साथ ही महज धार्मिक सत्ता ही नहीं बल्कि सिख एकता का विचार दांव पर लग गया. कलह की विभाजक रेखाएं धर्म, सत्ता और राजनीति को इस तरह धुंधला कर रही हैं कि वैश्विक सिख मानस तक हिल उठा है.

पर अगर यह अभूतपूर्व लगता हो तो ऐसा है नहीं. 2008 में तब पटना साहिब के जत्थेदार ज्ञानी इकबाल सिंह ने अकाल तख्त की सर्वोच्चता को खुलेआम ललकारा था. उस टकराव को पिछले दरवाजों की कूटनीति के जरिए दबा दिया गया. मगर इस टकराव को फेसबुक, यूट्यूब, इंस्टाग्राम पर लाइव स्ट्रीम किया जा रहा है.

इसके पेश आने का वक्त इससे बदतर नहीं हो सकता था. सिख संस्थाएं पहले ही एसजीपीसी के हाथों तीन जत्थेदारों रअकाल तख्त के पिछले प्रमुख और पंजाब स्थित दो अन्य तख्तों के प्रमुखों की बर्खास्तगी से जूझ रही हैं, जिसे कई लोगों ने राजनैतिक तौर पर उठाया गया कदम माना.

श्रद्धालुओं के लिए संकट प्रशासनिक से कहीं ज्यादा है. इससे लंबे वक्त से सतह के नीचे दफन दरारें उघड़ रही हैं. अकाल तख्त की स्थापना 1606 में गुरु हरगोबिंद ने सत्ता और न्याय के तख्त के रूप में की थी. यह बराबर के धर्मगुरुओं के बीच ही एक के वरिष्ठ होने के तौर पर काम करता आया है.

इसने हुक्मनामे जारी किए, विवाद सुलझाए, और गलत तथा भटके माने गए लोगों को बहिष्कृत किया. यह नैतिक सर्वोच्चता केवल परंपरा से नहीं बल्कि सत्ता यानी एसजीपीसी और पंजाब की राजनैतिक मशीन से नजदीकी की बदौलत हासिल हुई.

पटना साहिब को एसपीजीसी ने 1950 में पांच तख्तों में से एक के तौर पर औपचारिक रूप से स्वीकार किया, लेकिन इसकी पदवी और अहमियत इससे भी पुरानी है और सदियों पहले तक जाती है. यह दसवें गुरु और योद्धा खालसा व्यवस्था के संस्थापक गुरु गोबिंद सिंह का जन्मस्थान है और बिहार, झारखंड, बंगाल और पूर्वी उत्तर प्रदेश के सिखों के लिए आध्यात्मिक नाभिकेंद्र के रूप में लंबे समय से श्रद्धेय रहा है.

महाराष्ट्र में नांदेड़ के तख्त हुजूर साहिब के साथ तनाव एक और बारूद की डिबिया है. नांदेड़ ने पहले भी कैलेंडर सुधार, धार्मिक गणमान्यों की नियुक्ति और यहां तक कि अनुष्ठानों के मामले में भी अमृतसर की तरफ से सर्वोच्चता जताए जाने की कोशिशों पर नाराजगी जाहिर की. यह भी पहले स्वतंत्र आदेश जारी कर चुका है.

वैश्विक सिख प्रवासियों के लिए यह मोहभंग से कम नहीं है. फूट केवल भौगोलिक नहीं है, यह विचाराधारात्मक है. कैलिफोर्निया से लेकर कैलगिरी तक सिख उपदेशक जवाबी नैरेटिव पेश कर रहे हैं और इस तरह डावांडोल तख्तों का खाली छोड़ा शून्य भर रहे हैं. यह सैद्धांतिक मुक्त बाजार विमर्श को लोकतांत्रिक भले बना दे, लेकिन अव्यवस्था भी पैदा कर रहा है. साफ और दोटूक कमान न होने से परस्पर विरोधी आदेश रोजमर्रा की बात हो गए हैं. मौजूदा गतिरोध को बंद कमरों में बातचीत के जरिए अब भी पलटा जा सकता है. लेकिन नुक्सान तो हो ही चुका लगता है.

खास बातें
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सिख सत्ता की सर्वोच्च पीठ अकाल तख्त ने पटना साहिब के विवादित पूर्व जत्थेदार को बिना किसी सलाह-मशविरे के दोबारा बहाल कर दिया.

> पटना साहिब के पंज प्यारे ने कार्यवाहक अकाल तख्त जत्थेदार और तख्त दमदमा साहिब के प्रमुख को धार्मिक अनाचार का दोषी घोषित किया.

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