मथुरा में ‘बांके बिहारी मंदिर' कॉरिडोर का विरोध क्यों कर रहे हैं गोस्वामी समुदाय के लोग?

मथुरा के वृंदावन ‘बांके बिहारी मंदिर’ में उमड़ने वाली भारी भीड़ की वजह से लगातार हादसे हो रहे थे. सुप्रीम कोर्ट के फैसले से मंदिर के बेहतर प्रबंधन को लेकर कॉरिडोर निर्माण का रास्ता साफ हुआ.

बांके बिहारी कॉरिडोर के निर्माण के बाद श्री बांके बिहारी मंदिर का प्रबंधन बेहतर होने की संभावना

अगस्त की 19 तारीख और साल 2022. श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर मथुरा में साल में एक बार होने वाली वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर की मंगला आरती देखने के लिए रात 12 बजे से ही लाखों श्रद्धालु जुट गए थे. मंदिर के भीतर करीब डेढ़ हजार लोगों की क्षमता वाले आंगन में दोगुने से ज्यादा भक्त पहुंच गए.

रात में करीब दो बजे एक श्रद्धालु दम घुटने के कारण बेहोश हो गया. पुलिसकर्मी उसे बचाकर बाहर लाने लगे तो अचानक भगदड़ मच गई. उसी दौरान गेट नंबर एक पर भी एक श्रद्धालु गिर पड़ा. भीड़ के चलते अन्य लोग भी एक-दूसरे पर गिरने लगे. करीब आधे घंटे बाद हालात कुछ काबू हुए तो पता चला कि दो श्रद्धालु जान गंवा बैठे और 50 से ज्यादा गंभीर रूप से घायल हुए.

जन्माष्टमी पर हुई भगदड़ से मंदिरों में श्रद्धालुओं की सुरक्षा पर गहरे सवाल खड़े हो गए. विपक्ष के निशाने पर आए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हादसे की जांच के लिए पूर्व पुलिस महानिदेशक सुलखान सिंह की अध्यक्षता में दो सदस्यीय कमेटी का गठन किया जिसमें अलीगढ़ के तत्कालीन कमिशनर गौरव दयाल को बतौर सदस्य शामिल किया गया.

कमेटी की रिपोर्ट में हादसे का कारण भीड़ का दबाव और मौजूदा परिसर में क्षमता से कहीं ज्यादा श्रद्धालुओं का मौजूद होना पाया. कमेटी ने कॉरिडोर बनाने की सिफारिश करते हुए रिपोर्ट सौंपी, जिसे सरकार ने स्वीकार कर लिया था. उसके बाद वृंदावन में बांके बिहारी कॉरिडोर निर्माण का प्रस्ताव तैयार किया गया.

कुछ स्थानीय लोगों ने सरकार पर वृंदावन के मूल स्वरूप के साथ खिलवाड़ करने का आरोप लगाया. मामला हाइकोर्ट में पहुंचा. सरकार ने कोर्ट के समक्ष कॉरिडोर का प्रस्ताव पेश किया. हाइकोर्ट ने नवंबर 2023 में कहा कि कॉरिडोर बनाया जाना चाहिए मगर इसमें मंदिर के फंड का उपयोग न किया जाए और राज्य सरकार इसका खर्च उठाए. सरकार ने हाइकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की. 15 मई को सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया.

सुप्रीम कोर्ट ने 15 मई को सरकार को मथुरा-वृंदावन कॉरिडोर विकास के लिए मंदिर के आसपास पांच एकड़ भूमि अधिग्रहण करने के लिए वृंदावन में बांके बिहारी जी ट्रस्ट के धन का उपयोग करने की इजाजत दे दी. शर्त यह लगाई कि अधिग्रहीत भूमि देवता के नाम पर पंजीकृत होगी. न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने कहा, ''उत्तर प्रदेश राज्य ने बांके बिहारी कॉरिडोर विकसित करने के लिए 500 करोड़ रुपए से ज्यादा की लागत वहन करने की सहमति दी है.

हालांकि, वे संबंधित भूमि खरीदने के लिए मंदिर के धन का उपयोग करने का प्रस्ताव रखते हैं, जिसे हाइकोर्ट ने अस्वीकार कर दिया था. हम उत्तर प्रदेश राज्य को इस योजना को पूरी तरह से लागू करने की अनुमति देते हैं. बांके बिहारी जी ट्रस्ट के पास देवता/मंदिर के नाम पर सावधि जमा है. इस न्यायालय की सुविचारित राय में, राज्य सरकार को प्रस्तावित भूमि का अधिग्रहण करने के लिए सावधि जमा में पड़ी राशि का उपयोग करने की अनुमति है.’’

मथुरा के वृंदावन में श्री बांके बिहारी मंदिर का निर्माण 1864 में हुआ था और यह ब्रज क्षेत्र के सबसे पवित्र मंदिरों में से एक है. 162 साल पुराना यह मंदिर 1,200 वर्ग फुट में फैला हुआ है. मंदिर में रोज 40,000-50,000 श्रद्धालु आते हैं. सप्ताहांत और कुछ छुट्टियों के दौरान, यह संख्या डेढ़ से ढाई लाख और उससे भी ज्यादा हो जाती है.

जन्माष्टमी जैसे त्योहार और शुभ मौकों पर भक्तों की संख्या पांच लाख को भी पार कर जाती है. भक्तों की भारी भीड़ और उन्हें संभालने के कमजोर इंतजाम के कारण मंदिर में कई बार गंभीर दुर्घटनाएं हुई हैं (देखें बॉक्स). अब सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले के बाद वृंदावन में बांके बिहारी कॉरिडोर के निर्माण को गति मिलने की उम्मीद है.
दूसरी ओर, इससे मंदिर के आसपास

रहने वाले लोग आशंकित हो गए हैं. उन्हें लगता है कि कॉरिडोर निर्माण के नाम पर इनके घर और दुकानें तोड़ी जाएंगी. उन्हीं में से एक 85 वर्षीय राजकुमार खांडेकर हैं जो 1948 से बांके बिहारी मंदिर के मुख्य गेट की बगल में अपने घर में प्रसाद की दुकान चला रहे हैं. राजकुमार कहते हैं, ''वृंदावन की पहचान बांके बिहारी मंदिर को जाने वाली कुंज गलियां भी हैं. कॉरिडोर बनने से न केवल ये गलियां नष्ट हो जाएंगी बल्कि वृंदावन की संस्कृति भी खत्म होगी.’’ कॉरिडोर की जद में 'ब्रज संस्कृति शोध संस्थान’ के प्रकाशन अधिकारी गोपाल शरण शर्मा का घर भी आ गया है. वे कहते हैं, ''सरकार को पहले कॉरिडोर के अलावा अन्य विकल्पों पर विचार करना चाहिए.’’

दरअसल, बांके बिहारी मंदिर में पूजा-पाठ करने वाले सेवायतों के अंदरूनी विवाद ने भी कॉरिडोर के लिए जगह बनाई है. मथुरा के एक प्रशासनिक अधिकारी बताते हैं, ''श्री बांके बिहारी प्रबंधन कमेटी के लिए गोस्वामी समाज के चार सदस्य अगले दो सदस्यों का चुनाव तो सहमति से कर लेते हैं लेकिन सातवें सदस्य को लेकर हमेशा विवाद हो जाता है.’’ इसी विवाद के चलते 2001 में तय समय में प्रबंध समिति का चुनाव नहीं हो पाया और अगले 12 वर्षों तक मथुरा मुंसिफ मजिस्ट्रेट ने बतौर रिसीवर मंदिर की प्रबंध व्यवस्था संभाली. हाइकोर्ट के आदेश पर 2013 में नए सिरे से प्रबंध समिति का चुनाव हुआ और उसके अध्यक्ष गौरव गोस्वामी बने.

कुछ ही वक्त में सेवायतों में आपसी विवाद फिर उभर आए. 2016 में मंदिर की प्रबंध समिति से गोस्वामी ने अपना इस्तीफा सिविल जज जूनियर डिवीजन को सौंपा था. उसके बाद से किसी भी प्रकार की कमेटी मंदिर के प्रबंधन से नहीं जुड़ी है. धर्मार्थ कार्य विभाग के एक अधिकारी बताते हैं, ''बांके बिहारी मंदिर की सालाना आय 10 करोड़ रुपए से ज्यादा है. मंदिर कोष में 360 करोड़ रुपए जमा हैं. प्रबंधन कमेटी न होने से इस धन का सदुपयोग नहीं हो पा रहा.’’

अधिकारियों का मानना है कि मंदिर कोष में जमा 360 करोड़ रुपए में से 250 करोड़ रुपए का उपयोग कॉरिडोर के लिए जमीन खरीदने में होगा. बाकी 110 करोड़ रुपए को बैंक में सावधि जमा कराकर इसके ब्याज से ही मंदिर का प्रबंधन किया जा सकता है. राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में प्रस्ताव दिया है कि मंदिर के बेहतर प्रबंधन के लिए राष्ट्रीय स्तर का एक ट्रस्ट बनाया जाएगा जिसमें सेवायतों के अलावा पूरे देश से पदाधिकारी और सदस्य होंगे.

मंदिर से जुड़े सेवायतों को ट्रस्ट का विचार पसंद नहीं आ रहा. उनका मानना है कि ठाकुरजी अब तक सात बार नए मंदिरों में विराज चुके हैं और इस समय भक्तों की संख्या को देखते हुए आठवें मंदिर की अत्यंत आवश्यकता है. इसलिए सरकार को कॉरिडोर की जगह श्री बांके बिहारी के लिए एक नया, सुगठित और विस्तृत मंदिर बनाना चाहिए.

वहीं, बांके बिहारी कॉरिडोर के निर्माण का रास्ता साफ होने के बाद से उत्तर प्रदेश ब्रज तीर्थ विकास परिषद आगे की योजनाओं को अमलीजामा पहनाने के लिए युद्ध स्तर पर जुट गया है. अगस्त, 2017 में मुख्यमंत्री योगी की अध्यक्षता में इस परिषद का गठन हुआ. परिषद का उपाध्यक्ष 1977 बैच के आइपीएस अफसर (सेवानिवृत्त) शैलजाकांत मिश्र को बनाया गया था. यह परिषद देश में इकलौता मॉडल है जहां एक जिले के विकास के लिए बनी किसी संस्था के प्रशासनिक अध्यक्ष मुख्यमंत्री स्वयं है. इससे मथुरा-वृंदावन के प्रति योगी की प्राथमिकता स्पष्ट है.

सुप्रीम कोर्ट का फैसला ऐसे समय आया है जब ब्रज इलाके में ठाकुर बनाम जाटव की जंग ने सियासी गर्मी बढ़ा रखी है. मथुरा से सटे आगरा जिले के रहने वाले समाजवादी पार्टी (सपा) के राष्ट्रीय महासचिव और राज्यसभा सांसद रामजी लाल सुमन के जरिए पार्टी दलित-जाटव वोटों की लामबंदी की आक्रामक कोशिश कर रही है. 2024 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश के ब्रज इलाके में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को झटका लगा था.

उसके हाथ से फिरोजाबाद और एटा लोकसभा सीटें फिसल गई थीं. लोकसभा चुनाव में भाजपा के खराब प्रदर्शन पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने भी चिंता जाहिर की थी. लोकसभा चुनाव के बाद संघ की बैठक में यह बात रखी गई थी कि भाजपा अपने मूल हिंदुत्व के एजेंडे से दूर खिसकी, इसलिए लोकसभा चुनाव में उम्मीद के अनुरूप परिणाम नहीं आया. खास तौर से यूपी में झटका लगा. ऐसे में यही तय हुआ था कि पार्टी हिंदुत्व के अपने एजेंडे पर बरकरार रहेगी और मथुरा में बांके बिहारी और श्री कृष्ण जन्मभूमि दोनों ही मुद्दों पर अपनी स्थिति स्पष्ट रखेगी.

संघ ने यूपी में योगी पर भरोसा जताया था. उसके बाद यूपी में भाजपा योगी के सहारे हिंदुत्व के एजेंडे को आक्रामक ढंग से बढ़ा रही है. पिछले साल लोकसभा चुनाव के बाद 25 अगस्त को कृष्ण जन्मोत्सव का उद्घाटन करने मथुरा पहुंचे मुख्यमंत्री योगी ने बिना किसी पूर्व सूचना के बांके बिहारी मंदिर में माथा टेका था. मथुरा में राधारानी मंदिर के लिए रोपवे और अन्य विकास योजनाओं की शुरुआत कर योगी ने अपने एजेंडे को स्पष्ट कर दिया था.

भगवा खेमे के लिए मथुरा कितनी अहम हो गई है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पिछले साल अक्तूबर में मथुरा के परखम में आरएसएस की 10 दिवसीय बैठक में उसके सभी आला पदाधिकारियों ने भाग लिया था. आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत भी उसमें मौजूद थे. उसी दौरान योगी ने मथुरा आकर संघ प्रमुख से लंबी वार्ता की थी. उसके बाद वे बेहद उत्साहित अंदाज में वहां से रवाना हुए थे.

यूपी में विधानसभा चुनाव 2027 में होना है. संघ की बैठक में मिशन-2027 पर मंथन अहम बिंदु रहा था. दरअसल, अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के बाद अब संघ और भाजपा दोनों के ही एजेंडे में मथुरा है. बांके बिहारी कॉरिडोर पर अब रास्ता साफ होने से भाजपा नेता उत्साहित हैं. ब्रज में इन दिनों लगाए जा रहे इस नारे से भी यह स्पष्ट है: ''आ गए हैं अवध बिहारी, अब आएंगे कृष्ण मुरारी.’ 

 

विवादों में मंदिर प्रबंधन
● बांके बिहारी मंदिर में स्थापित भगवान की मूर्ति साढ़े पांच सौ वर्ष पुरानी है. उन्ही दिनों अलीगढ़ की खैर तहसील के हरिदासपुर गांव में स्वामी हरिदास का जन्म हुआ जो वैराग्य उत्पन्न होने पर वृंदावन के निधिवन में आकर रहने लगे थे. 
● कहा जाता है कि हरिदास की साधना से प्रसन्न होकर श्री कृष्ण 'श्री बांके बिहारी’ के मूर्ति रूप में प्रकट हुए. उसी स्वरूप में श्री यानी राधारानी भी समाई थीं. 

● हरिदास के भाई के तीन पुत्र थे जिनमें बांके बिहारी के सुबह के शृंगारभोग, दोपहर के राजभोग और शाम के शयनभोग सेवा का बंटवारा हुआ. हरिदास के बाद की पीढ़ियां 'गोस्वामी’ कहलाईं जो बांके बिहारी की सेवायत थीं.
● बाद में शृंगारभोग कर रही पीढ़ी का वंश खत्म हो गया तो यह कार्य राजभोग और शयनभोग के सेवायतों में बंटा. 151 वर्ष पूर्व राजा बदन सिंह के बाग में मौजूदा बांके बिहारी मंदिर स्थापित.

● मंदिर प्रबंधन 1938 में मथुरा मुंसिफ मजिस्ट्रेट की कोर्ट से डिक्री—स्कीम ऑफ मैनेजमेंट के नियमों के तहत होता है. इसमें 7 सदस्यीय समिति का प्रावधान है.
● गोस्वामी लोग समिति में दो राजभोग सेवाधिकारी और दो शयनभोग सेवाधिकारी चुनते हैं. वे चार सदस्य तीन अन्य गैर गोस्वामी सदस्य चुनते हैं. 
● प्रबंधन विवाद खासकर 2016 में एक सदस्य के इस्तीफे के बाद, सिविल जज (जूनियर डिवीजन) कोर्ट में चल रहा. अभी सिविल जज (वरिष्ठ डिवीजन), मथुरा की ओर से नियुक्त एक प्रशासक प्रबंधन करता है.

   

सुगम दर्शन की खोलेगा राह
● प्रस्तावित बांके बिहारी कॉरिडोर 5 एकड़ में बनेगा. भूमि अधिग्रहण पर 250 करोड़ रु. और कुल निर्माण पर 650 करोड़ रुपए खर्च होंगे.
● कॉरिडोर के निर्माण में कम से कम ढाई साल लगेंगे. निर्माण प्रक्रिया शुरू होने के बाद चार से छह महीने में भूमि का अधिग्रहण होगा.
● कॉरिडोर निर्माण की जद में 148 भवन या प्रतिष्ठान आएंगे. दायरे में आने वाले चार प्राचीन मंदिरों का संरक्षण और सौंदर्यीकरण होगा.

मंदिर कॉरिडोर के होंगे तीन हिस्से
1. ठाकुर श्री बांके बिहारी मंदिर क्षेत्र और उसकी परिक्रमा
2. 10,600 वर्ग मीटर में कॉरिडोर का ऊपरी क्षेत्र (प्रतीक्षालय, गलियारा, परिक्रमा क्षेत्र, खुला क्षेत्र, जूता घर, सामान घर, प्रसाधन और पेयजल, शिशु देखभाल स्थान, चिकित्सा सेवा, वीआइपी प्रतीक्षालय, विद्युत सेवा स्थल)
3. 11,300 वर्ग मीटर में कॉरिडोर का निचला क्षेत्र (खुला क्षेत्र, जूता घर, सामान घर, शिशु देखभाल कक्ष, चिकित्सा सेवा, वीवीआइपी प्रतीक्षालय, विद्युत सेवा केंद्र, पूजा सामग्री दुकान, तीर्थ यात्री प्रतीक्षालय ) मंदिर पहुंचने के मार्ग
(क) विद्यापीठ चौराहे से पुलिस चौकी होते हुए वर्तमान रास्ता
(ख) परिक्रमा से वीआइपी मार्ग होते हुए मंदिर तक वर्तमान रास्ता
(ग) जुगलघाट से राधावल्लभ मंदिर मार्ग होते हुए नया रास्ता जानलेवा भीड़

 

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