राहुल गांधी बार-बार गुजरात जा रहे; कांग्रेस के लिए यहां क्या उम्मीदें हैं?

राहुल गांधी ने बीते दो महीनों में गुजरात के तीन दौरे किए हैं और कांग्रेस कार्यकर्ताओं में इससे एक नया जोश दिख रहा है

जिला कार्यकर्ता सम्मेलन गुजरात के दौरान पार्टी प्रमुख शक्ति सिंह गोहिल के साथ राहुल गांधी.

दरअसल, नौशाद सोलंकी के लिए बीते तीन महीने बेहद व्यस्तता वाले रहे. सुरेंद्रनगर में कांग्रेस के जिला अध्यक्ष की राजनैतिक जिंदगी से आम तौर पर समुद्रतट से दूर सौराष्ट्र के इस इलाके की शांति और सौम्यता ही झलकती है. तो फिर वे अपनी तरह के इतने सारे लोगों से मुलाकात और बातचीत क्यों कर रहे हैं?

शायद पहले से कहीं ज्यादा. वजह हैं राहुल गांधी. मध्य अप्रैल में वे 45 दिनों में तीसरी बार गुजरात आए और पार्टी के पुनरुद्धार की शुरुआत की. यह अभियान पार्टी की शिथिलता की जड़ यानी जिलों को झकझोरने का जतन करता है.

गुजरात को एआइसीसी के सत्र (8-9 अप्रैल) के लिए चुनने के बाद राहुल हफ्ता बीतते-बीतते कुछ जमीनी काम शुरू करने लौट आए. मध्य अप्रैल से चुनी हुई टीमें हर हफ्ते पांच दिन जिलों में बिता रहीं और लोगों से बातचीत कर रहीं, नए स्थानीय नेतृत्व की पहचान कर रहीं और सबसे अहम भाजपा के 'एजेंटों' का पता लगा रही हैं.

विकेंद्रीकरण की इस पहल में पहले ही काफी देर हो चुकी है. मजबूत स्थानीय नेतृत्व नहीं होने से हताश महसूस कर रहे जमीनी कार्यकर्ता वोटरों से अपना जुड़ाव गंवा बैठे.

यही कोताही राज्य स्तर पर रही. कोई विश्वसनीय, प्रेरक और अखिल-गुजरात चेहरा नहीं है. उत्साह से भरे सोलंकी कहते हैं, ''हम हर जिले में 45-50 नेताओं की कतार खड़ी कर रहे हैं.'' बेदम रहने वाले पार्टी दफ्तर मधुमक्खी के छत्ते की तरह इतनी चहल-पहल से क्यों गुंजार हैं, इसकी वजह बताते हुए सोलंकी कहते हैं कि पांच सदस्यों की समिति जुलाई में विस्तृत जिलावार रिपोर्ट पेश करेगी, ''तब तक हम हर जिले में 2,500-3,000 लोगों के साथ बातचीत कर चुके होंगे.''

मगर पार्टी की सबसे बड़ी चुनौती यह है कि वह गुजरात के शहरी वोटरों से पूरी तरह कट गई है. विधानसभा की करीब 75 सीटों को 'शहरी सीटें' माना जाता है. इनमें से कांग्रेस ने 2022 में महज दो जीतीं (तब वह 17/182 के अपने बदतरीन आंकड़े पर पहुंच गई). क्या इस पुनरुद्धार में उस नाकामी का ख्याल रखा गया है? कई अंदरूनी लोगों का मानना है कि पार्टी की जाति को साधने वाली भाषा इस मतदाता मंडल को अनदेखा करती है और उन तक पहुंचने के वैकल्पिक उपाय का खाका भी तैयार नहीं किया गया.

अगला इम्तहान 2026 की शुरुआत में होगा जब शहरी स्थानीय निकायों के चुनाव होंगे. ये चुनाव विधानसभा चुनाव का माहौल तैयार करते रहे हैं. मसलन, आप ने अपनी पहली छाप 2021 में सूरत नगर निगम के चुनाव में छोड़ी तथा उसके बाद कांग्रेस के वोटों का और बड़ा हिस्सा हड़प लिया. आप के मौजूदा पतन और भाजपा के खिलाफ चौतरफा सत्ता-विरोधी भावना के मद्देनजर कांग्रेस के लिए एक मौका है. मगर इसका फायदा उठाने के लिए कांग्रेस को अपनी निराशावादी मानसिकता से उबरना होगा.

खास बातें
कोई अखिल-गुजरात चेहरा नहीं. जो हैं भी वे सामाजिक समूह विशेष के प्रतिनिधि.

जमीनी स्तर पर खोज शुरू की गई है. एक समिति 50 होनहार चेहरों की पहचान करेगी.

दक्षिण की ओर पलायन
कांग्रेस के कई प्रमुख चेहरे हाल के वर्षों में पाला बदलकर भाजपा में चले गए

अर्जुन मोढवाडिया: पार्टी के पूर्व राज्य प्रमुख और ओबीसी नेता मार्च 2024 में भाजपा में लौट गए

अंबरीश डेर: राजुला के पूर्व विधायक मार्च 2024 में भाजपा में चले गए

सी.जे. चावड़ा: वीजापुर से तीन बार के विधायक और विधानसभा में पूर्व मुख्य सचेतक ने 2024 में पार्टी छोड़ दी

हार्दिक पटेल: कभी पाटीदार आंदोलन का चेहरा और राज्य कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष रहे हार्दिक जून 2022 में भाजपा में शामिल हो गए

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