महाराष्ट्र: क्या एक बार फिर से एकजुट होगा शरद पवार का कुनबा?

शरद पवार ने अपनी पार्टी में 'दो मत' का संकेत देकर अटकलों का बाजार गर्म कर दिया है. एक मत चाहता है कि दोनों एनसीपी फिर एक हों. पर कुछ लोग इससे साफ इनकार करते हैं. लेकिन, शरद की बेटी सुप्रिया क्या चाहती हैं?

बेटी और बारामती की सांसद सुप्रिया सुले के साथ शरद पवार

जब स्थानीय प्यादों और सिपहसालारों ने कहा कि मेहरबानी करके ऐसा कर लीजिए. पितामह ने कहा हां, ठीक है, कर सकते हैं. चचेरे पोते ने कहा, हां, हमें जरूर करना चाहिए. बेटी ने कहा क्या? नहीं, ऐसा कुछ नहीं होगा. हलचल भांपने वालों को पता नहीं होगा कि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरदचंद्र पवार) के भीतर से उभर रहे संकेतों की व्याख्या कैसे करें.

मगर 84 वर्षीय शरद पवार और खुद उनकी जुबानी पार्टी के अर्धसेवानिवृत्त सुप्रीमो सोचे-समझे बिना नहीं बोलते. अगर वे रंजिशजदा भतीजे, उपमुख्यमंत्री और प्रतिद्वंद्वी एनसीपी के शीर्ष नेता अजित पवार के साथ संभावित समझौते का संकेत दे रहे हैं, तो इसका कुछ मतलब जरूर होना चाहिए.

हैरत की बात है या नहीं?
मराठा राजनीति के सबसे चतुरसुजान शख्स ने ऐसा क्या कहा जिससे अटकलों का बाजार गर्म हो गया? यह चिरपरिचित पवार थे. शब्द गूढ़ थे, ढुलमुल थे और इतनी गुंजाइश देते थे कि कुछ भी मतलब निकाला जा सके. उन्होंने मीडिया से कहा कि यह उनकी बेटी सुप्रिया सुले और उनके चचेरे भाई अजित पवार को तय करना है कि दोनों एनसीपी को फिर एक होने की जरूरत है या नहीं, और यह भी कि यह विचार पूरा होता है तो उन्हें ''हैरानी नहीं होगी.''

पहले एक अखबार को दिए इंटरव्यू में उन्होंने पार्टी में 'दो मत' होने की बात कही. एक मत फिर एक होने के पक्ष में था और दूसरा भाजपा से सशर्त दूरी की वकालत करता था ताकि जनता की नजर में वैचारिक शुचिता बनाए रखी जा सके. उन्होंने कहा कि बारामती से सांसद सुले ने ''संसद में विपक्ष में बैठने का फैसला लिया'' और ''हमारी सोच'' कहने का मतलब इसका अनुमोदन था.

शतरंज की बिसात पर हमेशा अपनी अप्रत्याशित और चतुर चालों के लिए मशहूर पवार के शब्दों ने सियासी सटोरियों की भूख बढ़ा दी और उसे शांत करने के लिए कुछ नहीं दिया. इंडिया टुडे से बात करते हुए सुले ने उन्हें एक निवाला तक देने से इनकार कर दिया. सुले ने कहा कि उन्होंने ''इसके (फिर एक होने के) बारे में सोचा तक नहीं है'' और यह कि बुजुर्ग पवार ने ''साफ संकेत दे दिया है कि वे वहीं हैं जहां वे हैं.''

वे शामिल भले न हों, मगर उनके नजरिए से अलग एक नजरिया मौजूद जरूर है. एक तो पवार के चचेरे पोते और 2024 के विधानसभा चुनाव में एनसीपी (एससीपी) के सफाए से बच निकले 10 में से एकमात्र उम्मीदवार रोहित ने बड़ों से सुलह की राह पर चलने की सिफारिश की.

एक और बड़े नेता कहते हैं, ''सुलह दोनों दलों के लिए फायदेमंद होगी.'' उनकी सलाह का अनिवार्य मतलब है इंडिया गुट से बाहर निकलना. उनका कहना है कि एनसीपी (एसपी) के आठ लोकसभा सांसदों का समूह नई दिल्ली में अजित का दबदबा बढ़ा सकता है (अजित की एनसीपी का मात्र एक सांसद है) और उन्हें प्रतिद्वंद्वी उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को पटखनी देने में मदद कर सकता है, जिनकी शिवसेना के लोकसभा में सात सांसद हैं.

वे कहते हैं, ''पवार चाचा-भतीजे का फिर एक होना आसान है. अनबन महज दो साल पुरानी है. दरार अभी कार्यकर्ताओं में पुख्ता नहीं हुई है.'' वे यह भी कहते हैं कि सांसद-विधायक विकास निधियों की मंजूरी से 'बाहर रखे जाने' से परेशान हैं.

एनसीपी (एसपी) के एक और नेता पार्टी में 'तीन मत' के बारे में बताते हैं, जिसमें तीसरा मत कांग्रेस के साथ विलय का है, जहां एकमात्र खतरा नेतृत्व का कमजोर होना है. उनकी समय सीमा एनसीपी की सुलह की किसी भी संभावना को बिहार में विधानसभा के चुनाव और महाराष्ट्र में स्थानीय निकायों के चुनाव होने तक सख्ती से टालती है.

एक सूत्र (दोटूक पंथनिरपेक्ष नीति से 2029 तक अच्छे नतीजे मिलने की उम्मीद रखने वाले एक अन्य धड़े की मौजूदगी की तरफ इशारा करते हुए) कहते हैं कि सहकारी और शिक्षा क्षेत्र में मौजूद तगड़ी लॉबी फिर से मिलने के पक्ष में है. खुसर-पुसर शुरू हुई जब सोलापुर के चार विधायक राज्य प्रमुख जयंत पाटील के मार्फत पवार तक पहुंचे और सत्ता में हिस्सेदारी की वकालत की. एक शीर्ष नेता का कहना है कि पार्टी में इसी दबाव ने शायद पवार को बोलने के लिए उकसाया हो. पुरानी गेंद के महारथी की तरह उनका निशाना हवा की दिशा में था, मगर कोई ठीक से समझ नहीं सका कि गेंद की चमक किस तरफ थी.

खास बातें
शरद पवार ने खुलकर कहा कि एनसीपी (एसपी) के कुछ लोग अजित की एनसीपी से सुलह चाहते हैं.

पवार परिवार के ही रोहित पवार और मजबूत स्थानीय लॉबी के लोग सुलह की वकालत कर रहे हैं.

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