यूपी: क्या अखिलेश की साइकिल पर बैठेंगे दलित वोटर?
उत्तर प्रदेश में अगले विधानसभा चुनाव में दलित मतदाताओं का व्यापक समर्थन हासिल करने के लिए सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने शुरू किए कई कार्यक्रम

इटावा जिला मुख्यालय से करीब 30 किमी पूर्व महेवा ब्लॉक में 12 अप्रैल को समाजवादी पार्टी (सपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव का दौरा कई मायनों में खास था. बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के संस्थापक कांशीराम की राजनैतिक कर्मभूमि रहे महेवा के ब्लॉक मुख्यालय परिसर में अखिलेश ने पहली बार डॉ. भीमराव आंबेडकर की प्रतिमा का अनावरण किया.
दलितों और पिछड़ों की खासी आबादी वाले इस ब्लॉक में पहुंचे सपा सुप्रीमो ने यहीं के लोकमान्य रूरल इंटर कॉलेज परिसर में पीडीए कार्यकर्ता सम्मेलन को संबोधित किया. दो घंटे देरी से पहुंचे अखिलेश ने जैसे ही माइक संभाला, 'जय समाजवाद’, 'जय आंबेडकर’, 'जय भीम’ जैसे नारों से पूरा परिसर गूंज उठा.
करीब 55 मिनट के संबोधन में अखिलेश ने संविधान का मुद्दा जमकर उछाला. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर संविधान खत्म करने का आरोप लगाया और कहा, ''सरकारें कितनी भी ताकतवर हो जाएं, हम संविधान नहीं बदलने देंगे." अंत में अखिलेश ने जोर देकर पीडीए के लोगों से एकजुट होने की अपील की.
वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले अखिलेश यादव ने पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक पर केंद्रित पार्टी की पीडीए रणनीति को धार देना शुरू किया था जिसके अच्छे परिणाम दिखाई दिए थे. सपा ने सत्तारूढ़ भाजपा को पटखनी देते हुए यूपी की 80 में से 37 सीटों पर जीत हासिल की थी. अपनी सहयोगी कांग्रेस के साथ इंडिया गठबंधन की कुल जीती सीटों का आंकड़ा रिकॉर्ड 43 लोकसभा सीटों पर पहुंच गया जबकि भाजपा गठबंधन को 36 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा.
2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में यूपी की एक भी आरक्षित लोकसभा सीट न जीत पाने वाली सपा ने 2024 के लोकसभा चुनाव में कुल सात सीटें जीतीं जो भाजपा की जीती गई आरक्षित सीटों से केवल एक ही कम थी. अब जैसे-जैसे 2027 के यूपी विधानसभा चुनाव का समय नजदीक आता जा रहा है, अखिलेश ने पीडीए की रणनीति को धार देना तेज कर दिया है.
इलाहाबाद विश्वविद्यालय में हिंदी के सहायक प्रोफेसर विनम्रवीर सिंह कहते हैं, ''पिछड़ा और अल्पसंख्यक मतदाताओं में पहले से ही सपा का जनाधार रहा है लेकिन अब जो अंतर आया है, वह दलित मतदाताओं को लेकर है. 2024 के लोकसभा चुनाव ने यह स्पष्ट किया है कि लगातार कमजोर होती जा रही बसपा के चलते दलित मतदाता अब उससे छिटककर नए ठिकाने तलाश रहा है. यूपी की मुख्य विरोधी पार्टी होने और दलितों के प्रति अखिलेश की कई सकारात्मक पहल के चलते यह मतदाता भी सपा की ओर अपना झुकाव दिखा रहा है."
लोकसभा चुनाव के दौरान यूपी में संविधान की किताब को हाथ में लेकर 'संविधान बचाओ’ का नारा देने वाले राहुल गांधी का ही असर था कि विपक्षी 'इंडिया गठबंधन’ ने दलित मतों में भारी सेंधमारी कर दी. सपा ने इसी रणनीति को आगे बढ़ाते हुए 2027 के विधानसभा चुनाव की सेज सजाने की तैयारी की है.
आंबेडकर जयंती के मौके पर आयोजित होने वाले कार्यक्रमों की जानकारी मीडिया को देने के लिए 5 अप्रैल को जब अखिलेश लखनऊ के विक्रमादित्य मार्ग स्थित पार्टी कार्यालय के ऑडिटोरियम में पहुंचे तो संकेतों में अपनी रणनीति को स्पष्ट कर दिया. उन्होंने सबसे पहले कार्यालय में सजाई गई महर्षि कश्यप, निषादराज और सम्राट अशोक की तस्वीरों पर माल्यार्पण किया. मंच पर उनकी कुर्सी के आगे मेज पर गौतम बुद्ध की प्रतिमा रखी गई थी.
पीडीए की रणनीति के लक्षित मतदाता वर्ग को संकेतों के जरिए स्पष्ट संदेश देने की रणनीति पर अमल करते हुए अखिलेश ने पत्रकारों को आंबेडकर जयंती के उपलक्ष्य में पार्टी के कार्यक्रमों की विस्तृत जानकारी दी. इस बार विशेष रूप से सपा ने आंबेडकर जयंती के मौके पर वृहद कार्यक्रमों की एक शृंखला का आयोजन किया. इन कार्यक्रमों की जिम्मेदारी समाजवादी बाबासाहेब आंबेडकर वाहिनी और सपा अनुसूचित जाति प्रकोष्ठ को सौंपी गई.
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पहले दलित उपाध्यक्ष निर्वाचित होकर पहचान बनाने वाले चंद्रशेखर चौधरी अब सपा अनुसूचित जाति प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष हैं. चौधरी बताते हैं, ''आंबेडकर जयंती के मौके पर 8 अप्रैल से शुरू हुए कार्यक्रमों के तहत दोनों संगठनों के कार्यकर्ताओं ने गांव-गांव जाकर सभाएं कीं. दलित बस्तियों पर खास फोकस रहा जहां सपा को अच्छा समर्थन मिला. इस दौरान 'संविधान ही संजीवनी है.’, 'संविधान सुरक्षित रहेगा तो स्वाभिमान और सक्वमान सुरक्षित रहेगा’ जैसे नारों को दोहराया गया."
इन कार्यक्रमों के तहत वाहिनी के कार्यकर्ता उन गांवों और कस्बों में विशेष रूप से गए जहां आंबेडकर की प्रतिमा थी. उन्होंने प्रतिमा की साफ-सफाई की और उसी के पास एकत्र होकर 'स्वाभिमान और स्वमान’ गोष्ठियों का आयोजन किया. वाहिनी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मिठाई लाल भारती बताते हैं, ''आंबेडकर जयंती पर आयोजित कार्यक्रमों की राष्ट्रीय नेतृत्व ने निगरानी की. पिछड़ों और दलितों के समर्थन को देखते हुए 14 अप्रैल को आंबेडकर जयंती को संपन्न होने वाले ये कार्यक्रम अब पूरे अप्रैल चलते रहेंगे."
सपा की पीडीए रणनीति ने भाजपा के मजबूत समर्थक पासी दलित वोट बैंक में सेंध लगा दी है. 2024 के लोकसभा चुनाव में सपा ने पासी जाति के पांच उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था और सभी चुनाव जीतकर सांसद बने थे. इन्हीं में से अयोध्या को समाहित करने वाली फैजाबाद लोकसभा सीट पर भाजपा को हराकर सांसद बने अवधेश प्रसाद सपा का दलित चेहरा बनकर उभरे हैं.
नौ बार विधायक और छह बार राज्य सरकार में मंत्री रहे अवधेश प्रसाद को तवज्जो देकर अखिलेश अयोध्या और आसपास के इलाकों में भाजपा का समर्थन करने वाली पासी-दलित जाति को पूरी तरह साइकिल की ओर खींचने की कोशिश कर रहे हैं. इसी तरह सपा ने यूपी के पासी बहुल इलाकों में पार्टी के प्रभावशाली नेताओं को कमान सौंपी है.
इसमें इंद्रजीत सरोज, आर.के. चौधरी जैसे वरिष्ठ नेता पासी बिरादरी में साइकिल की पैठ को मजबूत कर रहे हैं तो लोकसभा में सबसे कम उम्र के सांसद पुष्पेंद्र सरोज और युवा महिला नेता प्रिया सरोज पूर्वांचल में दलित युवाओं के बीच तेजी से लोकप्रिय हुए हैं. सपा के युवा पासी नेता मनोज पासवान बताते हैं, ''राष्ट्रीय नेतृत्व की ओर से दलितों के बीच नया नेतृत्व उभारकर सपा का जनाधार मजबूत करने की रणनीति का विपक्षी दलों के पास कोई जवाब नहीं है. 2027 के विधानसभा चुनाव में इसका व्यापक असर दिखाई देगा."
यूपी की आबादी में 21 फीसद की हिस्सेदारी रखने वाले दलित समुदाय में सबसे प्रभावी जाटव बिरादरी है. यूपी की कुल दलित आबादी में 55 फीसद जाटव बिरादरी का समर्थन पाने के लिए सपा हरसंभव प्रयास कर रही है. राज्यसभा की कार्यवाही के दौरान राजपूत आइकन राणा सांगा पर कथित विवादित बयान देकर करणी सेना के निशाने पर आए सपा सांसद रामजीलाल सुमन को समर्थन देकर अखिलेश यादव जाटव समाज को सकारात्मक संदेश दे रहे हैं.
लोकसभा चुनाव से ठीक पहले आगरा से ताल्लुक रखने वाले सुमन को सपा ने राज्यसभा भेजा था. राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि सुमन के जरिए सपा दरअसल बसपा सुप्रीमो मायावती के कोर वोट बैंक जाटवों पर सेंधमारी कर सकती है. आगरा दलितों की जाटव बिरादरी का एक बड़ा केंद्र है. कभी बसपा का गढ़ रहे इस जिले की सभी सीटों पर अब भाजपा का कब्जा है.
2024 के लोकसभा चुनाव से पहले सपा प्रमुख आगरा को खास तवज्जो दे रहे थे. इसी रणनीति के तहत वे पिछले साल 25 फरवरी को कांग्रेस नेता राहुल गांधी की न्याय यात्रा में आगरा में शामिल हुए थे. अब राणा सांगा विवाद से चर्चा में आए सुमन के आगरा स्थित आवास पहुंचकर अखिलेश ने जाटव बिरादरी के साथ साइकिल के रिश्ते प्रगाढ़ करने की कोशिश की.
राजनैतिक विश्लेषक विधानसभा चुनाव में सपा के लिए जाटव मतदाताओं की अहमियत की ओर इशारा करते हैं. विनम्र वीर की राय में, ''पश्चिमी यूपी के कम से कम तीन दर्जन विधानसभा क्षेत्रों में जाटव और मुस्लिम मतदाता मिलकर 50 फीसद से ज्यादा हैं. अगर सपा जाटव मतदाताओं को अपनी ओर खींचने में कामयाब हो गई तो विधानसभा चुनाव में पश्चिमी यूपी में बहुत अच्छा प्रदर्शन करेगी."
हालांकि पश्चिमी यूपी में आजाद समाज पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद के नगीना से सांसद बनने के बाद जाटव समुदाय के मतदाताओं का झुकाव उनकी ओर दिखा है. इसी की काट के लिए पिछले साल नवंबर में नौ विधानसभा सीटों के लिए हुए उपचुनाव में सपा ने गाजियाबाद और खैर विधानसभा सीट पर जाटव बिरादरी के उम्मीदवारों को टिकट दिया था. हालांकि ये दोनों प्रत्याशी चुनाव हार गए लेकिन सपा यह संदेश देने में कामयाब रही कि वह जाटव बिरादरी को प्रतिनिधित्व देने में पीछे नहीं हटेगी.
सपा के पीडीए नारे को 8 अप्रैल को पूर्व मंत्री और बसपा के संस्थापक सदस्य दद्दू प्रसाद के शामिल होने से बड़ा बल मिला, जिससे 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले जाटव दलित वोटों के लिए पार्टी का जोर और भी स्पष्ट हो गया. दलित समुदाय को अपने पक्ष में करने की सपा की कोशिशें लंबे समय से चली आ रही इस धारणा को पूरी तरह खत्म करने में मदद करेंगी कि यादव—जिन्हें सपा का मुख्य मतदाता माना जाता है—और दलित एक साथ नहीं रह सकते. इससे कांग्रेस के साथ गठबंधन में पार्टी का रुख भी मजबूत होगा.
अनुभवी और युवा चेहरों पर भरोसा
अवधेश प्रसाद, 79 वर्ष
अयोध्या को समाहित करने वाली फैजाबाद लोकसभा सीट से सपा सांसद. सपा के संस्थापक सदस्य. पूर्वी यूपी की पासी दलित जाति के बीच लोकप्रिय.
रामजीलाल सुमन,74 वर्ष
सपा के राष्ट्रीय महासचिव और राज्यसभा सांसद. आगरा में छात्र जीवन से राजनीति की शुरुआत. दलित जाति के जाटव समाज के बीच पार्टी का चेहरा.
आर.के. चौधरी,74 वर्ष
मोहनलालगंज से सपा सांसद. बसपा के संस्थापक सदस्य. अवध के जिलों में पासी दलित जाति के बीच लोकप्रिय. अखिलेश यादव के भरोसेमंद नेता.
इंद्रजीत सरोज, 62 वर्ष
मंझनपुर विधानसभा सीट से सपा विधायक. पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव. यूपी विधानसभा में विपक्ष के उपनेता. कभी बसपा सुप्रीमो मायावती के करीबी थे.
रागिनी सोनकर, 34 वर्ष
मछलीशहर ( जौनपुर) विधानसभा सीट से सपा विधायक. पेशे से डॉक्टर. जुझारू महिला दलित युवा नेता की छवि. सदन के भीतर सक्रियता से मिली पहचान.
राजेंद्र कुमार, 65 वर्ष
मऊ जिले की मुहम्मदाबाद-गोहना विधानसभा सीट से विधायक. पूर्वांचल में दलितों की जाटव बिरादरी में लोकप्रिय. प्रखर वक्ता और तेजतर्रार नेता की छवि.
मिठाई लाल भारती, 50 वर्ष
समाजवादी बाबासाहेब आंबेडकर वाहिनी के राष्ट्रीय अध्यक्ष. बलिया निवासी और पूर्वांचल में तेजतर्रार दलित नेता की छवि.
राहुल भारती, 38 वर्ष
समाजवादी एससी प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय अध्यक्ष. सहारनपुर निवासी युवा दलित नेता, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में समाजसेवा के कार्यों से लोकप्रिय.
चंद्रशेखर चौधरी, 30 वर्ष
समाजवादी एससी प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष. हमीरपुर जिले के राठ कस्बे के निवासी. बुंदेलखंड में जाटव दलित समाज के बीच जुझारू युवा नेता की छवि.